Spacing for Cauliflower

  • किस्मों, भूमि के प्रकार व मौसम के अनुसार पौध अन्तराल निर्भर करती है।
  • पौध अन्तराल निम्नलिखित है।
  • अगेती किस्म:- 45 x  45 से.मी.
  • मध्य अवधि किस्म:- 60 x 40 से.मी.
  • पिछेती किस्म:- 60 x 60 से.मी. या 60 x 45 से.मी.

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Field Preparation for Cauliflower

  • 1 से 2 आड़ी खड़ी जुताई मिट्टी पलट हल से करने के बाद 3 से 4 जुताई देसी हल से करते है।
  • अधिक उपज देने के लिए अच्छी प्रजातियों का चुनाव करें।
  • जुताई के समय 20 से 25 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टयर की दर से भूमि में मिलाना चाहिये ।  
  • यदि खेत में नेमाटोड का प्रकोप हो तो 10 किलो प्रति एकड़ की दर से कार्बोफ्यूरान कीटनाशक पावडर का छिड़काव करें।

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Calcium deficiency Symptoms in Tomato plant

  • पौधे के उतकों में कैल्शियम की बहुत कम गतिशीलता के कारण लक्षण मुख्य रूप से तेजी से पौधे के बढ़ते हुए भागों में दिखाई देते हैं।
  • कैल्शियम की कमी वाले पत्ते पीले दिखाई देते हैं और फिर वो सूखने लगते है ये लक्षण पत्तियों के आधार वाले भागो में दिखाई देते है | 
  • पौधे के तने पर सूखे मृत धब्बे दिखाई देते है तथा ऊपरी वृद्धि करने वाले भाग मृत हो जाते है|  
  • शुरू में ऊपरी पत्ती का रंग गहरा हरे रंग का रहता है फिर बाद में किनारे पीले रंग में परिवर्तीत होने लगते है तथा अंत में पौधे की मृत्यु हो जाती है | 
  • पौधे में फलो के ऊपर कैल्सियम की कमी की वजह से फलो के ऊपर ब्लॉसम एन्ड रॉट के लक्षण दिखाई देते है | 

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Control of Neck Blast in Paddy

  • ट्रायसायक्लाज़ोल 75% डब्ल्यूपी 120ग्राम/एकड़ | या 
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यू पी @ 300 ग्राम/एकड़ | या 
  • थियोफोनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी @ 250 ग्राम/एकड़ | 

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Neck Blast of Paddy

  • बहुतायत से होने  वाला यह रोग जो की  ब्लास्ट नाम से जाना जाता हैं धान की उपज में अधिक कमी ला देता हैं | 
  •  ग्रषित पौधे में संक्रमण नोड्स पर पट्टी नुमा गर्डल होता हैं जिसका रंग धूसर से काला होता हैं |
  •  क्योकी संक्रमण करधनी के ऊपर होता हैं इस कारण नोड्स के ऊपर का हिस्सा लटक जाता हैं या टूट जाता हैं | 
  • अगर संक्रमण दाने भरने के पहले हो जाये तो दाने नहीं बनते अगर यह संक्रमण देर से होता हैं तो दानो की गुणवत्ता खराब हो जाती हैं | 
  • कभी कभी इसके लक्षण स्टेम बोरर कीट की तरह होते हैं जिसमे बालिया सफ़ेद रंग की  हो जाती हैं |

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Control of late blight of tomato

  • कटाई के बाद फसल अवशेष को नष्ट करें
  • खेत पर जल भराव की स्थिति न होने दे | 
  • रोग नियंत्रण के लिए किसी भी एक फफूंद नाशक का स्प्रे करे | 
  • मेटलैक्सिल 8% + मैनकोजेब 64% @ 500 ग्राम/एकड़।
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़।
  • पायरोस्टॉकलोबिन 5% + मेटीराम 55% @ 600 ग्राम/एकड़।
  • डाइमेथोमॉर्फ 50% डब्लू पी @ 400 ग्राम/एकड़।

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Late blight of tomato

  • लेट ब्लाइट के लक्षण पुरानी पत्तियों की निचली साथ पर धूसर हरे रंग के पनीले धब्बो के रूप में नजर आते हैं | 
  • जैसे ही रोग बढ़ता हैं ये धब्बे काले पड़ जाते हैं और अंदर की तरफ सफेद कवक की वृद्धि होती है। तथा अंत में पूरा पौधा संक्रमित हो जाता हैं| 
  • इस रोग से फसलों को भारी नुकसान हो सकता है। यह रोग खेतों में शीघ्रता से फैलता है अगर उपचार नहीं होने पर कुल पूरी फसल नष्ट हो जाती हैं |

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Weed Control in Tomato Crop

टमाटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण :-

  • प्रारंभिक अवस्था में पौधे की अच्छी वृद्धि के लिये 2-3 निदाई-गुड़ाई आवश्यक होती है।
  • खरपतवार नियंत्रण के लिये अंकुर पूर्व निदानाशक पेन्डामेथिलिन 30% SC @ 700 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर साथ में फसल लगाने के 45 दिन बाद हाथ से एक निदाई करनी चाहिये ।
  • खरपतवार नियंत्रण के लिए पौध लगाने 15 दिन बाद मेट्रिब्यूज़िन 70% WP @ 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें|
  • संपूर्ण नियंत्रण करने के लिये मल्च जैसे पैरा, लकड़ी का बुरादा और काले रंग का पॉलीथीन का उपयोग किया जाता है । इसके साथ ही मल्च भूमि में नमी का संरक्षण करके उत्पादन व गुणवत्ता को बढ़ता है ।

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Seed treatment of Potato

आलू में बीज उपचार:- आलू एक कंदीय फसल हैं जिसमे विभिन्न फफूंद जनित रोग लगते है जो कि बीज एवं मृदा से फैलते है इसलिए आलू में बीज उपचार अति महत्त्वपूर्ण है | आलू का बीज उपचार कार्बोक्सीन 37. 5 % + थायरम 37. 5 % @ 200 ग्राम / 6 लीटर पानी 1 एकड़ बीज के लिए  या थायोफनेट मिथाइल 45% + पाइरक्लोस्ट्रोबिन 5% एफएस @ 800 मिलीलीटर/16 लीटर पानी 40 क्विंटल बीज के लिए | 

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Control of Verticillium wilt in cotton

  • छ: वर्षीय फसल चक्र अपनाए|
  • गर्मी के दिनों में गहरी जुताई (6-7 इन्च) करके खेत को समतल करे |
  • रोग मुक्त बीज का प्रयोग करे |
  • रोग प्रतिरोधी किस्में लगाये|
  • ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 2 किलो प्रति एकड़ की दर से बुवाई के पहले 40- 50 किलो गोबर की खाद के साथ मिला कर जमीन में मिलवाये |
  • कार्बोक्सीन 37.5 % + थायरम 37.5 % @ 3 ग्राम/किलो बीज या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करे |
  • ट्राईकोडर्मा विरिडी @ 1 किलो + सूडोमोनास फ्लोरोसेंसे @ 1 किलो का घोल 200 लीटर पानी में मिला कर ड्रेंचिंग करे |
  • माइकोराइज़ा @ 4 किलो प्रति एकड़ 15 दिन की फसल में भुरकाव करें|
  • फूल आने से पहले थायोफिनेट मिथाईल 75% @ 300 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें |
  • फली बनते समय प्रोपिकोनाज़ोल 25% @ 125 मिली/ एकड़ का स्प्रे करें | ( या ) 
  • कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 46% WP @ 300 ग्रामं प्रति एकड़ की दर से स्प्रे करे | 

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