जाने भिंडी में चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिल्ड्यू) के प्रकोप से बचाव

  • पत्तियों के निचली और ऊपरी सतह पर सफ़ेद-भूरे रंग के पाउडर का विकास होता है जिससे फल की पैदावार में गंभीर कमी आती है| 
  • यह फफूंद भिंडी को गंभीर रूप से संक्रमित करती है| 

पंद्रह दिन के अंतराल से हेक्ज़ाकोनाजोल 5% SC 400 मिली या थियोफेनेट मिथाइल 70 डब्लू पी या एज़ोक्सिस्ट्रोबिन  23 एस सी का 200 मिली प्रति एकड़ 200 से 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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मौसम बदलाव के कारण हो सकते है कीट आक्रमण

Pest attacks may occur in the change of weather
  • मौसम बदलाव को देखते हुए कई तरह के कीट फसलों पर हमले कर सकते हैं क्योंकि नमीयुक्त वातावरण इनके लिए उपयुक्त होता है।
  • ग्रीष्मकालीन कद्दूवर्गीय सब्जियों में लाल भृंग कीट के आक्रमण की संभावना रहती है। इस कीट की संख्या अधिक हो तो साइपरमैथ्रिन 4% ईसी + प्रोफेनोफॉस 40% ईसी 400 मिली या बाइफेंथ्रीन 10% ईसी 200 मिली या डाइक्लोरोवोस 76 ईसी 300 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।
  • भिंडी में रस सूचक कीट जैसे सफेद मक्खी, एफिड, जैसिड आदि के नियंत्रण के लिए थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
  • प्याज में थ्रिप्स (तेला) के प्रकोप की अधिक संभावना बनी हुई रहती है अतः प्रोफेनोफोस 50 ई.सी. @ 45 मिली या लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.9% सी.एस. @ 20 मिली या स्पिनोसेड @ 10 मिली या फिप्रोनिल 5 एस.सी. प्रति 15 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।
  • रासायनिक दवा के साथ इस मौसम में 0.5 मिली चिपको प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करें ताकि दवा पौधों द्वारा अवशोषित हो जाये।
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आइये जाने भिन्डी की तुड़ाई की संख्या बढ़ाकर उत्पादन कैसे बढ़ाये

  • भिन्डी की फसल में अधिक तुड़ाई लेने के लिए बुवाई के 2 सप्ताह पहले खेत में सडी हुई गोबर की खाद 10 टन/एकड़ की दर से खेत में समान रूप से मिला दे, जिससे पोधो में पोषक तत्वों को ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है।
  • बुवाई के समय उर्वरको के साथ नाईट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घुलनशील जीवाणु की मात्रा 2 किलो/एकड़ की दर से खेत में अच्छी तरह से मिला दे।
  • नाईट्रोजन (60-80 किलो/ एकड़ ) की आधी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष मात्रा बुवाई के 30 दिन बाद दे, जिससे भिन्डी में प्रति पोधे प्रति शाखा में फलो की संख्या में वृद्धि अधिक होती है और 50 % तक उत्पादन बढ़ सकता है।
  • भिंडी की फसल बुवाई के लगभग 40 से 50 दिन बाद फल देना शुरु कर देती है।
  • पहली तुड़ाई के पहले केल्सियम नाइट्रेट+बोरान @ 10 किलो/एकड़, मैग्नीशियम सल्फेट 10 किलो/एकड़ + यूरिया @ 25 किलो/एकड़ को 1 किलो नाईट्रोजन स्थिरीकरण एवं फास्फोरस घुलनशील जीवाणु के साथ दे ।
  • भिंडी  में फुल बनते समय अमोनियम सल्फेट 55-70 किलो/एकड़ की दर से दे जो फल के विकास के लिए अति आवश्यक है।
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भिन्डी में खरपतवार नियंत्रण

  • बुवाई से पहले गहरी जुताई करे।
  • फसल चक्र अपनाये कोई भी सकरी घास कूल या छोटे दाने वाली फसल लगाये|
  • 2-3 बार निराई गुड़ाई करे बुवाई के 20,40 और 60 दिन में।
  • बुआई के बाद ऑक्सीफ्लोरफेन 23.5 ई.सी. @ 200 मिली/एकड़ अंकुरण के पूर्व स्प्रे करे|
  • पेंडीमेथलीन 30% ईसी @ 700 मिली प्रति एकड़ बुवाई के 3 दिन बाद स्प्रे करे|
  • सकरी पत्तियाँ वाले खरपतवारों के लिए 2 -3 पत्ती अवस्था पर प्रोपाक्विजाफाप 10 % ईसी @ 400 मिली प्रति एकड़ का स्प्रे करें|

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भिन्डी तोड़ते समय ध्यान रखने योग्य बातें

  • जब फल अधिकतम लम्बाई के हो जाए तब उनकी तोड़ाई की जाती है तोड़ाई के समय यह ध्यान रखना आवश्यक है की फल कोमल हो |
  • 6 से 8 सेमी लम्बे फल निर्यात के लिए उपयुक्त रहते है|
  • भिन्डी के फलो की तोड़ाई सामान्य धारदार चाकू या हुक नुमा चाकू से की जाती है |
  • भिन्डी के पौधों पर चुभने वाले रेशे पाए जाते है इनसे बचने के लिए, सूती कपड़े से बने दस्ताने उपयोग में लाना चाहिये|
  • संभव हो तो तोडाई सुबह के समय जल्दी कर लेना चाहिए |
  • यदि रात में भिन्डी को रखना पड़े तो पानी छिट कर रखे इससे सुबह तक ताज़ी बनी रहेगी |

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भिन्डी में पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक रोग ) का प्रबंधन

भिन्डी का पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक रोग ) :-

  • यह बीमारी सफ़ेद मक्खी नामक कीट के कारण होती है|
  • यह बीमारी भिंडी की सभी अवस्था में दिखाई देती है|
  • इस बीमारी में पत्तियों की शिराएँ पीली दिखाई देने लगती हैं|
  • पीली पड़ने के बाद पत्तियाँ मुड़ने लग जाती हैं|
  • इससे प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते है|

प्रबंधन:-

  • वायरस से ग्रसित पौधों और पौधों के भागों को उखाड़ के नष्ट कर देना चाहिए|
  • कुछ किस्मे जैसे परभणी क्रांति, जनार्धन, हरिता, अर्का अनामिका और अर्का अभय इत्यादि वायरस के प्रति सहनशील होती है|
  • पौधों की वृद्धि की अवस्था में उर्वरकों का अधिक उपयोग ना करें|
  • जहाँ तक हो सके भिंडी की बुवाई समय से पहले कर दें|
  • फसल में प्रयोग होने वाले सभी उपकरणों को साफ रखें ताकि इन उपकरणों के माध्यम से यह रोग अन्य फसलों में ना पहुँच पाए|
  • जो फसलें इस बीमारीं से प्रभावित होती है उन फसलों के साथ भिंडी की बुवाई ना करें|
  • सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 4-5 चिपचिपे प्रपंच/एकड़ उपयोग कर सकते है|
  • डाइमिथोएट 30% ई.सी. 250  मिली /एकड़ पानी मे घोल बना कर स्प्रे करें|
  • इमिडाइक्लोप्रिड 17.8% SL 80 मिली /एकड़ की दर से स्प्रे करें|

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भिन्डी में सिंचाई प्रबन्ध

भिन्डी में सिंचाई प्रबन्ध :-

  • पहली सिंचाई पत्तियो के निकलते समय करना चाहियें |
  • गर्मी में 4-5 दिन के अन्तराल से सिंचाई करनी चाहियें|
  • यदि तापमान 400C हो तो हल्की सिंचाई करते रहना चाहियें, जिससे मिट्टी में नमी रहे एवं फल अच्छे से आये|
  • पानी का जमाव या पौधो को मुरझाने से रोकना चाहियें|
  • ड्रिप सिंचाई पद्धति के व्दारा 85% तक पानी की बचत की जा सकती है|
  • फल/बीजो को बनाते समय सूखे की स्थिति में फसल को 70% तक की हानि होती है|

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Control of Yellow Mosaic Disease in Okra

  • वायरस से ग्रसित पौधों और पौधों के भागों को उखाड़ के नष्ट कर देना चाहिए|
  • कुछ किस्मे जैसे परभणी क्रांति, जनार्धन, हरिता, अर्का अनामिका और अर्का अभय इत्यादि वायरस के प्रति सहनशील होती है|
  • पौधों की वृद्धि की अवस्था में उर्वरकों का अधिक उपयोग ना करें|
  • जहाँ तक हो सके भिंडी की बुवाई समय से पहले कर दें|
  • फसल में प्रयोग होने वाले सभी उपकरणों को साफ रखें ताकि इन उपकरणों के माध्यम से यह रोग अन्य फसलों में ना पहुँच पाए|
  • जो फसलें इस बीमारीं से प्रभावित होती है उन फसलों के साथ भिंडी की बुवाई ना करें|
  • सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए 4-5 चिपचिपे प्रपंच/एकड़ उपयोग कर सकते है|
  • डाइमिथोएट 30% ई.सी. 250  मिली /एकड़ पानी मे घोल बना कर स्प्रे करें|
  • इमिडाइक्लोप्रिड 17.8% SL 80 मिली /एकड़ की दर से स्प्रे करें|

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Yellow Mosaic Disease in Okra/Bhindi

  • यह बीमारी सफ़ेद मक्खी नामक कीट के कारण होती है|
  • यह बीमारी भिंडी की सभी अवस्था में दिखाई देती है|
  • इस बीमारी में पत्तियों की शिराएँ पीली दिखाई देने लगती हैं|
  • पीली पड़ने के बाद पत्तियाँ मुड़ने लग जाती हैं|
  • इससे प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते है|

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Symptoms and control of Fusarium wilt in Okra

  • प्रारंभिक अवस्था में पौधा अस्थाई रुप से मुरझा जाता है किन्तु बीमारी का प्रभाव बढ़ जाने पर पौधा स्थाई रुप  से मुरझाकर सूख जाता है ।
  • ग्रसित पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती है ।
  • फफूंद जड़तंत्र पर आक्रमण  करता है और संवहन उतकों पर कालोनी का निर्माण करता है ।  
  • इसके कारण जल का प्रवाह संवहन उतकों द्वारा रुक जाता है साथ ही फंगस के विषैले प्रभाव के कारण संवहन उतक और कोशिकायें कार्य करना बंद कर देती है ।  
  • ग्रसित पौधों के तने को काटने पर मध्य भाग गहरे भूरे रंग का दिखाई देता है।

प्रबंधन

  • भिण्डी को लगातार एक ही खेत  में नहीं उगाना चाहिए ।
  • कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% @ 2-3 g/kg  बीज या थायोफनेट मिथाइल 45% WP+ पाइरक्लोस्ट्रोबिन 5% FS @ 2g/kg  से बीज उपचार करे।
  • थायोफनेट मिथाइल 70% WP @ 400g/एकड़ की दर से स्प्रे करें।
  • एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2%+ डेफ़नकोनाज़ोल 11.4% एससी @ 200 ml/एकड़ |
  • जैव प्रबंधन के तौर पर ट्राइकोडर्मा विरिडी की ड्रेंचिंग एवं पत्तियों पर स्प्रे करे । इसका उपयोग फसलों में होने वाले लगभग सभी प्रकार के फफूंद जनित रोगो के नियंत्रण के लिए किया जा सकता हैं।

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