मूंग की फसल को पाउडरी मिल्ड्यू से होगा नुकसान, ऐसे करें बचाव

Management of powdery mildew in green gram crop
  • आमतौर पर यह रोग मूंग की पत्तियों को प्रभावित करता है और पत्तियों के निचले एवं ऊपरी भाग पर आक्रमण करता है।
  • इसके कारण मूंग की पत्तियों के ऊपरी एवं निचली सतह पर पीले से सफेद रंग का पाउडर दिखाई देता है।
  • इनके प्रबंधन के लिए एजेस्ट्रोबिन 11% + टेबूकोनाज़ोल 18.3% SC @ 300 मिली/एकड़ या एजेस्ट्रोबिन@ 300 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
  • जैविक उपचार रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी 500 ग्राम/एकड़ + स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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कीटनाशक और कवकनाशी के छिड़काव के लिए घोल बनाते समय बरतें सावधानियाँ

  • छिड़काव के लिए घोल तैयार करने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले पानी का उपयोग करें। इसकी तैयारी किसी साफ़ ड्रम या प्लास्टिक की बाल्टियों में करें। 
  • किसी कीटनाशी एवं कवकनशी को आपस में नहीं मिलाना चाहिए। 
  • इसके साथ ही दोपहर में दवाओं का छिड़काव न करें और जब हवा चल रही तब भी दवाइयों का छिड़काव न करें। छिड़काव सुबह शाम को ही करें क्योंकि दोपहर में मधुमक्खियों का मूवमेंट होता है, ये बाते ध्यान में रखकर आप न केवल खुद को सुरक्षित रख सकते हैं बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रख सकते हैं।
  • कीटनाशक का प्रयोग करते समय यह देख लेना चाहिए कि उपकरण में लीकेज तो नहीं है। कभी भी कीटनाशक छिड़कने वाले उपकरण पर मुंह लगाकर घोल खींचने का प्रयास नहीं करना चाहिए। तरल कीटनाशकों को सावधानी पूर्वक उपकरण में डालना चाहिए और यह ध्यान रखना चाहिए कि यह शरीर के किसी अंग में न जाए। अगर ऐसा होता है तो तुरंत साफ पानी से कई बार धोना चाहिए।
  • बचे हुए कीटनाशक को सुरक्षित भण्डारित कर देना चाहिए। इसके रसायनों को बच्चों, बूढ़ों और पशुओं की पहुंच से दूर रखें। कीटनाशकों के खाली डिब्बों को किसी अन्य काम में नहीं लेना चाहिए। उन्हें तोड़कर मिट्टी में दबा देना चाहिए। कीटनाशक छिड़कने के बाद छिड़के गए खेत में किसी मनुष्य या जानवरों को नहीं जाने देना चाहिए।
  • खेत में छिड़काव की दिशा सुनिश्चित करके एवं सामान मात्रा में छिड़काव करें। 
  • कीटनाशकों की आवश्यकता से अधिक मात्रा उपयोग ना करें। 
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आलू में अगेती झुलसा रोग का प्रबंधन

आलू में अगेती झुलसा रोग का प्रबंधन:-

  • रोगग्रस्त पौधों को ठीक से नष्ट किया जाना चाहिए, ठन्डे बादली मौसम में सिचाई नहीं करनी चाहिए, सिचाई का समय ऐसा हो की रात तक पौधे सुख जाये|
  • मिट्टी की उर्वरता और फसल की शक्ति को बनाए रखें| फसल खुदाई जब करे तब कंदों की छिलका सख्त हो जाए जिससे की उस पर खरोच के कारण संक्रमण ना हो |
  • 2 ग्राम मेन्कोजेब 75 डब्लूपी + 10 ग्राम यूरिया प्रति लीटर 15 दिन के अंतराल पर जब लक्षण शुरू होते हैं या कार्बेन्डाजिम 12% + मेन्कोजेब 63% WP @ 50 ग्रा / 15 लीटर पानी या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 % WP @ 50 ग्रा। / 15 लीटर पानी का छिडकाव करे |

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Management of Downy Mildew in Onions

प्याज में मृदुरोमिल आसिता रोग का प्रबंधन:-

लक्षण:-

  • पत्तियो और पुष्प वृंत पर बैगनी कवक वृद्धि करते हैं, जो कि बाद में हल्के हरे रंग के हो जाते है।
  • पत्तियाँ और पुष्प वृंत अंत मे गिर जाते है।
  • यह रोग अधिक नमी एवं अत्यधिक उर्वरक के उपयोग एवं सधी सिंचाई के कारण होती है

रोकथाम

  • बीज के लिए जिन प्याज के कन्दो का उपयोग करते है उन्हें 12 दिन के लिए सूर्य के प्रकाश में रखने से कवक ख़त्म हो जाती है
  • मेंकोजेब + मेटालेक्ज़ील या कार्बेंडाजीम+ मेंकोजेब @ 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 15 दिनों के अंतराल में छिड़काव करना चाहिये।

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Fusarium rot/basal rot in garlic

  • पौधे की बढ़वार रुक जाती तथा पत्तियो पर पीला पन आ जाता हैं तथा पौधा ऊपर से नीचे की ओर  सूखता चला जाता हैं |

  • संक्रमण के प्रारंभिक चरण में, पौधों की जड़ें रंग में गुलाबी हो जाती हैं और सड़ने लगती हैं। बल्ब निचले सिरे से सड़ने लगता है और अंततः पूरा पौधा मर जाता है।

  • उत्तरजीविता और प्रसार: – रोगज़नक़ मिट्टी और लहसुन के बल्ब में रहता है |

  • अनुकूल परिस्थितियां: – नम मिट्टी और 27 डिग्री सेल्सियस तापमान रोग के विकास के लिए अनुकूल होता है।

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Control of anthracnose in cowpea

  • बरबटी की पत्तियाँ, तने व फलियाँ इस रोग के संक्रमण से प्रभावित होती हैं।
  • छोटे-छोटे लाल-भूरे रंग के धब्बे फलियों पर बनते है व शीघ्रता से बढ़ते हैं |
  • आर्द्र मौसम में इन धब्बों पर गुलाबी रंग के जीवणु पनपते हैं।
  • रोग रहित प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
  • रोग ग्रसित खेत में कम से कम दो वर्ष तक बरबटी न उगाये।
  • रोग ग्रसित पौधों को निकाल कर नष्ट करें।
  • बीज को कार्बोक्सिन 37.5 + थायरम  37.5 @ 2.5 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें|
  • मैनकोजेब 75% डब्ल्यू पी @ 400-600/एकड़ की दर पानी में घोल बनाकर प्रति सप्ताह छिड़काव करें।

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Control of wilt in okra

  • प्रारंभिक अवस्था में पौधा अस्थाई रुप से मुरझा जाता है किंतु बीमारी का प्रभाव बढ़ जाने पर पौधा स्थाई रुप से मुरझाकर सूख जाता है ।
  • ग्रसित पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती है ।
  • ग्रसित पौधों के तने को काटने पर आधार गहरे भूरे रंग का दिखाई देता है ।
  • भिण्डी को लगातार एक ही खेत में नहीं उगाना चाहिए ।
  • फसल चक्र अपनाना चाहिए ।
  • थायोफनेट मिथाइल 70% WP @ 200-300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • हेक्साकोनाजोल 5% ईसी @ 250-400 मिली/एकड़ का उपयोग भी इस बीमारी की रोकथाम के लिए किया जा सकता हैं ।

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Control of fruit rot in brinjal

  • अत्यधिक नमी इस रोग के विकास में सहायक होती है।
  • फलों पर जलीय सूखे हुये धब्बे दिखाई देते है जो बाद में धीरे-धीरे पुरे फलों में फैल जाते है।
  • प्रभावित फलों की ऊपरी सतह भूरे रंग की हो जाती है, जिन पर सफेद रंग की कवक का निर्माण हो जाता है।
  • इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों एवं अन्य भागों को तोड़कर नष्ट कर दे।
  • मेंकोजेब 75% WP @ 400 ग्राम प्रति एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 25 % ईसी @ 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें|

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Seed treatment of coriander

  • बीजों को 12 घंटे तक पानी में भिगोएँ।
  • बीज को कार्बोक्सिन 37.5 + थायरम  37.5 @ 2.5 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें|

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Control of fusarium wilt in muskmelon

  • फ्यूजेरियम विल्ट के पहले लक्षण पुरानी पत्तियो पर दिखाई देते हैं। पत्तिया पीलापन लिए हुए सुख जाती हैं। इस बीमारी के लक्षण दिन में गर्मी के समय स्पष्ट रूप से दिखाई देते है।
  • तने में  भूरे रंग की दरारें दिखाई देती हैं, जिसमे से लाल-भूरे रंग का गाढ़ा रिसाव निकलता हैं।
  • बुवाई के लिए स्वस्थ बीजो का प्रयोग करें।
  • खेत की गहरी जुताई, खरपतवार प्रबंधन, तथा उचित जलनिकास आवश्यक हैं |
  • फ्यूजेरियम विल्ट के प्रभावी नियंत्रण के लिए प्रोपिकोनाजोल 25% ईसी @ 200 मिली / एकड़ या थियोफैनेट-मिथाइल 500 ग्राम प्रति एकड़ का उपयोग करें।

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