Nursery preparation in brinjal

  • भारी मृदा में ऊँची क्यारियों का निर्माण करना जरूरी होता हैं ताकि पानी भराव की समस्या को दूर कर सके|
  • रेतीली भूमि में बीजों की बुवाई समतल सतह तैयार करके की जाती है।
  • प्रातः ऊँची क्यारियों का आकार 3 x1 मी. और ऊँचाई 10 से 15 से.मी. के लगभग होता है।
  • दो क्यारियों के बीच की दूरी प्रायः 70 से.मी. के लगभग होना चाहिये ताकि अंतरसस्य क्रियाएँ जैसे सिंचाई एवं निदाई आसानी से की जा सके।
  • पौधशाला क्यारियों की ऊपरी सतह साफ़ एवं समतल होना चाहिये ।
  • पूणतः पकी गोबर की खाद या पात्तियों की सड़ी हुई खाद को क्यारियों का निर्माण करते समय मिलाना चाहिये।
  • पौधशाला में आर्द्रगलन से पौधों को मरने से रोकने के लिये मैनकोज़ेब 75% WP @ 400-600 ग्राम / एकड़ की दर से घोल बनाकर अच्छी तरह से क्यारियों में ड्रेंचिंग करे|

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Weed management in brinjal

  • पौधे की प्रारंभिक अवस्था में हाथों के द्वारा निदाई-गुड़ाई करनी चाहिये ।
  • रोपाई के बाद खरपतवारनाशी पेंडीमेथलीन 30% EC @ 1.2 लीटर/एकड़ 72 घंटे के भीतर छिड़काव करें |
  • इसके बाद 30 दिन की फसल होने पर हाथ से निदाई करें|

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Irrigation scheduling in Brinjal

  • पौधो की अच्छी वृद्वि के लिये, फूलों एवं फलों के वृद्वि एवं विकास के लिये समय पर सिंचाई करना आवश्यक होता हैं।
  • ठंड के समय हल्की सिंचाई 8 से 10 दिन के अंतराल एवं 5 से 6 दिन के अंतराल से ग्रीष्म ऋतु में देना चाहिये।  
  • ठंड के मौसम में हल्की सिंचाई देकर अधिक ठण्ड से होने वाली हानि को कम कर सकते है ।

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Control of Fruit Rot in Brinjal

बैगन में फल सड़न रोग का नियंत्रण:-

लक्षण:

  • अत्यधिक नमी इस रोग के विकास में सहायक होती है |
  • फलों पर जलीय सूखे हुये धब्बे दिखाई देते है जो बाद में धीरे धीरे दूसरे फलो में फैल  जाते है |
  • प्रभावित फलो की ऊपरी सतह भूरे रंग की हो जाती है जिस पर सफ़ेद रंग की कवक का निर्माण हो जाता है |

रोकथाम :

  • इस रोग से ग्रसित पौधे के पतियों  एवं अन्य भागो के तोड़कर नष्ट कर दे |
  • फसल पर मेंकोजेब @ 400 ग्राम/एकड़ या जिनेब @ 400 ग्राम या केप्टॉन+ हेक्साकोनाज़ोल @ 250 ग्राम/ एकड़ की दर से 10 दिनों के अन्तराल से छिडकाव करें|

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Control of Jassids in Brinjal

बैंगन में जैसिड का नियंत्रण:-

  • शिशु एवं वयस्क कीट दोनों हरे रंग के एवं छोटे आकार के होते है।
  • शिशु एवं वयस्क, पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं ।
  • ग्रसित पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती है जो बाद में पीली हो जाती है एवं उन पर जले हुये धब्बे बन जाते है ।
  • इनके द्वारा माइकोप्लाज्मा रोग जैसे लघु पर्ण एवं विषाणु रोग जैसे चितकबरापन स्थानांतरित होता है।
  • इस कीट के अत्यधिक प्रभाव देखे जाने पर पौधे में फल लगना कम  हो जाता है।

नियंत्रण:-

  • जेसिड की रोकथाम हेतु पौध रोपाई के 20 दिन बाद से  एसीटामिप्रिड 20% WP @ 80 ग्राम/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8%@ 80 मिली/ एकड़ दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

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Suitable Climate and Soil for Brinjal

बैंगन के लिए उपयुक्त मौसम एवं मिट्टी:-

  • बैंगन गर्म जलवायु में उगाये जाने वाला एवं प्रकाश के प्रति असंवेदनशील पौधा है ।
  • यह फसल, पाला के प्रति अत्याधिक संवेदनशील है ।
  • इस फसल की अच्छी वृद्धि एवं उपज हेतु 21 से 27 °C के बीच तापमान की आवश्यकता होती है ।
  • इसे वर्षा एवं ग्रीष्म ऋतु में आसानी से उगाया जा सकता है ।

मिट्टी:-

  • बैंगन को सभी प्रकार की भूमि में आसानी से उगाया जा सकता है ।
  • बैंगन के अच्छे उत्पादन के लिये ऐसे स्थल का चयन करें जो हल्की से मध्यम श्रेणी की हो एवं जिसमें जल निकास की व्यवस्था उत्तम हो ।
  • चयनित  भूमि का पी.एच. मान 5.6 से 6.6 के मध्य होना चाहिये ।

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Damping Off Disease in Brinjal

बैगन में आद्र गलन रोग का नियंत्रण:-

लक्षण:- यह बीमारी प्रायः नर्सरी अवस्था में होती है ।

  • बारिश में अत्यधिक नमी एवं सामान्य तापमान मुख्य रूप से इस रोग के विकास हेतु अनुकूल होती है।
  • इस बीमारी का आक्रमण प्रायः पौधे के आधार स्तर पर होता  है। इस रोग में दो प्रकार के लक्षण दिखाई देते है ।
  • पहला आर्द्रगलन प्रायः बीज और पौध के उगने के पूर्व होता है।
  • दूसरा आधार के नये उतक में संक्रमण प्रारंभ  होता है ।
  • संक्रमित उत्तक मुलायम एवं उन पर कुछ समय बाद जल रहित धब्बों का निर्माण हो  जाता है । जिसके कारण आधारीय भाग सड़ जाता है। और अंततः पौध मर जाता है।

प्रबंधन:-

  • स्वस्थ बीजो को ही बुवाई हेतु उपयोग करे।
  • बीजो को बुआई के पूर्व थाइरम 2 ग्राम प्रति कि.ग्राम बीज को मात्रा की दर से उपचारित करे।
  • किसी भी एक जगह पर लगातार नर्सरी को न उगाये।
  • नर्सरी की ऊपरी भूमि को कार्बेन्डाजिम 50% WP 5 ग्राम प्रति मीटर क्षेत्रफल की दर से उपचारित करना चाहिये एवं नर्सरी को कार्बेन्डाजिम+ मैंकोजेब 75% के द्वारा 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अंतराल से छिड़काव करे।
  • ग्रीष्म ऋतु में मई माह के अंत में तैयार की गई नर्सरी में पानी छिड़काव कर ततपश्चात 250 गेज मोटी पालीथिन बिछाकर सूर्य ऊर्जा द्वारा 30 दिन तक उपचारित कर बीजो की बुवाई करें ।
  • आर्द्रगलन की रोकथाम हेतु जैविक कारक जैसे ट्राइकोडर्मा विरीडी को 1.2 कि. ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करे।

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Nutrient Management in Brinjal

बैगन में पोषक तत्व प्रबंधन:-

  • उर्वरक की मात्रा भूमि की उर्वरकता एवं फसल को दी गई कार्बनिक खाद की मात्रा पर निर्भर करती है|
  • फसल के अच्छे उत्पादन के लिए 20-25 टन पुर्णतः पकी हुई गोबर की खाद को खेत करते समय मिला देना चाहिए|
  • प्रायः खेत को तैयार करते समय 50 किलो यूरिया 350 किलो सिंगल सुपर फास्फेट एवं 100 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए|
  • बची हुई 100 किलो यूरिया मात्रा को एक महीने के अंतराल से रोपाई के 3-4 सप्ताह बाद डालना चाहिए|
  • संकर किस्मों के लिए 200 किलो नाईट्रोजन, 100 किलो फास्फोरस एवं 100 किलो पोटाश की मात्रा अनुमोदित की गई है|

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Season of planting of Brinjal

बैगन की रोपाई का समय:-

  • वर्षा ऋतु (बारिश)- इस मौसम में फसल को उगाने के लिए बीजों की बुवाई जून में एवं तैयार पौध को जुलाई में रोपित कर देना चाहिए|
  • शरद ऋतु (ठण्ड):- इस मौसम में फसल उगाने के लिए बीजों की बुवाई नवम्बर माह के दुसरे सप्ताह में एवं रोपाई जनवरी माह के अंत में करना चाहिए|
  • ग्रीष्म ऋतु:- ग्रीष्म ऋतु में बीजों की बुवाई फरवरी से मार्च माह में करनी चाहिये एवं रोपाई मार्च से अप्रैल माह में करना चाहिए|

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Land preparation for Brinjal

बैगन में भुमि की तैयारी :-

  • बैगन की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए खेत में जल निकासी की व्यवस्था अच्छी होनी चाहिये|
  • खेत की 4-5 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी कर देना चाहिये |
  • खेत की अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद को खेत में मिलाये |

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