Caring of Dairy Cow after Calving

ब्यात के बाद दुधारू गायों की देखभाल:-

ब्यात के बाद वाला समय दुधारू गायों के लिए बहुत महत्वपूर्ण समय होता है!

इस समय जानवर के शरीर में कोलोस्ट्रम और दूध उत्पादन करने के लिए ऊर्जा एवं पौषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती हैं| और इसी समय उसकी भूख कम हो जाती हैं| जिसके कारण उसके शरीर में ऊर्जा के स्तर एवं पौषक तत्वों की कमी हो जाती हैं |

इसलिए, बेहतर स्वास्थय, दूध उत्पादन और प्रजनन के लिए ब्यात के तुरंत बाद गायों की अच्छी देखभाल करना महत्वपूर्ण हैं| नई ब्याही गायों की देखभाल करने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु हैं|-

  • यह सुनिश्चित करने के लिए ब्यात के बाद गायों की निगरानी करें कि वे दुध ज्वर और केटोसिस जैसे- रोगों से मुक्त रहें |

 (दुध ज्वर के कुछ संकेत कंपन, कान झटकना, सुस्सता, सूखे थूथन, शरीर का कम तापमान, लेटना, सूजन और चेतना में कमी)

(मीठी गंध वाली सांस और मूत्र, बुखार, वजन घटना आदि केटोसिस के संकेत हैं)

  • बीमार गाय के साथ नई ब्याही गाय को ना रखें|
  • थनैला से बचाव के लिए साफ़ सफाई बनाए रखें| (नई ब्याही गाय में थनैला होने की संभावना अधिक होती हैं )
  • गाय को तनाव मुक्त रखें | उन्हें अधिक गर्मी/ठण्ड एवं बारिश से बचाये| अन्य जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्ली तथा किसी भी अन्य आक्रामक जानवर से नई ब्याही गाय को दूर रखे|
  • पौषक तत्वों की पूर्ति करने और भूख बढ़ाने के लिए ताजा आहार के साथ पूरक आहार दे|
  • इसके अलावा यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण हैं कि जानवर अपना आहार पूरा ले रहा हैं कही उसको छोड़ तो नहीं रहा हैं और सामान्य रूप से जुगाली कर रहा है|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Control of Blight and Foot Rot in Pea Crop

मटर में अंगमारी (झुलसा) और पद गलन रोग का नियंत्रण:-

लक्षण:-

  • पत्तियों पर गहरे भूरे किनारे वाले गोल कत्थई से लेकर भूरे रंग के धब्बे पाये जाते है ।  
  • तनों पर बने विक्षत धब्बे लंबे, दबे हुये एवं बैगनी-काले रंग के होते है ।  
  • ये विक्षत बाद में आपस में मिल जाते है और पूरे तने को चारों और से  घेर लेते है । इस प्रकार यह तना कमजोर हो जाता है ।
  • फलियों पर धब्बे लाल या भूरे रंग के अनियमित धब्बे होते है ।

नियंत्रण:-

  • स्वस्थ बीजों का उपयोग करें एवं बुवाई से पहले कार्बनडेजिम+मेंकोजेब@ 250 ग्राम/ क्विन्टल बीज से बीजोपचार करें ।
  • रोग ग्रस्त पौधों पर फूलों के आने पर मैनकोजेब 75% @ 400 ग्राम/ एकड़ का छिड़काव करें एवं 10-15 दिन के अंतराल से पुनः  छिड़काव करें ।
  • रोगग्रस्त पौधों को निकालकर नष्ट करें ।  
  • जल निकास की उचित व्यवस्था  करें ।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Nutrient Management in Wheat

गेहूं मे पौषक तत्व प्रबंधन:- गेंहू की उपज में पौषक तत्त्व प्रबंधन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है मृदा मे उपलब्ध पौषक तत्त्व की जानकारी हेतु मिट्टी की जाँच बहुत आवश्यक है| इसी के आधार पर फसलो में पौषक तत्त्व प्रबंधन की रणनीति अपनाई जाती है|-

  • अच्छे से सडी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट को 15-20 टन/हे. के हिसाब से हर 2 साल में मिट्टी में मिलाना चाहिये|
  • गोबर की खाद डालने से भूमि की संरचना में सुधार और पैदावार में बढ़ोतरी होती है।
  • गेंहू में 88  कि.ग्रा. यूरिया, 160 कि.ग्रा ,सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 40 कि.ग्रा. म्युरेट ऑफ़ पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से उपयोग करना चाहिये|
  • युरिया का उपयोग तीन भागों में करना चाहिए|
    1.) 44  कि.ग्रा. यूरिया की मात्रा बोनी के समय करें।
    2.) शेष 22 कि.ग्रा. पहली सिंचाई के समय डाले।
    3.) शेष 22 कि.ग्रा., दुसरी सिंचाई के समय डाले।
  • आशिंक सिंचाई उपलब्ध हो एवं अधिकतम दो सिंचाई होने पर यूरिया @ 175 , सुपर सिंगल फॉस्फेट@ 250 और म्युरेट ऑफ़ पोटाश @ 35-40 कि.ग्रा प्रति हेक्टेयर डाले।
    असिंचित अवस्था में नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटॉश की पूरी मात्रा डालें|
  • यदि गेंहू की बुवाई मध्य दिसम्बर में करते है तो नत्रजन की 25 प्रतिशत मात्रा कम डालना चाहिये|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Soil Preparation and Sowing Time for Wheat

गैंहू के लिए खेत की तैयारी एवं बुआई का समय:-

  • ग्रीष्मकालीन जुताई करें |
  • तीन वर्षों में एक बार गहरी जुताई करें |
  • 2 -3 बार कल्टीवेटर कर खेत को समतल करें |
  • बुवाई का उचित समय
  • असिंचित:- मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक|
  • अर्धसिंचित:- नवम्बर माह का प्रथम पखवाड़ा|
  • सिंचित (समय से):- नवम्बर माह का द्वितीय पखवाड़ा|
  • सिंचित (देरी से):- दिसंबर माह का द्वितीय सप्ताह से|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Requirement of Irrigations in Pea

मटर के लिए आवश्यक सिंचाई:-

  • यदि भूमि सूखी हो तो अच्छी तरह से बीजांकुर होने के लिये बोने पूर्व सिंचाई करें ।
  • भूमि के प्रकार व मौसमानुसार 10 से 15 के अंतर से सिंचाई करना चाहिये ।
  • फल एवं फल्ली आने के समय नमी की कमी होने पर उपज में कमी आती है अंतः इस समय सिंचाई अवश्य करें ।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Suitable Climate and soil for Cabbage Cultivation

पत्ता गोभी के लिए उपयुक्त जलवायु एवं भूमि:-

  • पत्तागोभी की किस्में तापमान के प्रति अति संवेदनशील है। अच्छे अंकुरण के लिए 10°C से 21 °C तापमान उपयुक्त है।
  • पौधों व पत्तागोभी के विकास के लिए 15°C से 21°C तापमान अनुकूल है। 10°C से कम तापमान पर पौधों का विकास कम होता व गोभी भी देर से बनती है।
  • पत्तागोभी की खेती, हल्की एवं दोमट मिट्टी जिसका जल निकास अच्छा हो तथा पी.एच. 5.5 से 6.8 हो उपयुक्त होती है।
  • अगेती किस्मों के लिए हल्की मिट्टी व मध्य अवधि किस्मों और पिछेती किस्मों के लिए भारी दोमट भूमि उपयुक्त है।
  • लवणीय भूमि में फंगस व जीवाणु से फैलने वाले रोग ज्यादा होते है।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Critical stage of irrigation in Potato

आलू में सिचाई की क्रांतिक अवस्था:-

  • आलू की फसल में सीजन के दौरान उच्चतम मृदा नमी को बांये रखने के लिए उच्च स्तरीय प्रबंधन की आवश्यकता होता है |
  • वृद्धि के कुछ चरण जब जल प्रबंधन बहुत महत्त्वपूर्ण है-
  • 1). अंकुरण अवस्था
  • 2). कंद स्थापित अवस्था
  • 3). कंद बढ़वार अवस्था
  • 4). अंतिम फसल अवस्था
  • 5). खुदाई के पूर्व |

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Sowing time, Planting and Seed Rate of Garlic

लहसुन लगाने का समय, लगाने का तरीका एवं बीज दर:-

  • कलियों की चोपाई मध्य भारत में सितम्बर- नवम्बर तक की जाती हैं|
  • लहसुन की कलियॉं को गाँठ से अलग कर लें यह काम बुआई के समय ही करें|
  • कलियों का छिलका निकल जाने पर वह बुआई के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं|
  • कड़क गर्दन वाली लहसुन, जिसके एक एक कली कड़क और अलग अलग हो उपयुक्त होता हैं |
  • बड़ी कलियों (1.5 ग्राम से बड़ी) का चयन करना चाहिए| छोटे, रोग ग्रस्त एवं क्षति ग्रस्त कलियों को हटा दो |
  • लहसुन की बीज दर 400-500 किलो प्रति हे.
  • चयनित कलियों को 2 सेमी. की गहराई पर 15 X 10 सेमी. की दूरी पर लगना चाहिए|

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Nursery bed preparation for Tomato

टमाटर के लिए नर्सरी बनाना:-

  • क्यारियों की लंबाई 3 मी., चौड़ाई 0.6 मी. एवं ऊंचाई 10-15 से.मी. होनी चाहिये ।
  • दो नर्सरी क्यारियों के बीच की दूरी 70 से.मी. होनी चाहिये, ताकि नर्सरी के अंदर निदाई, गुड़ाई एवं सिंचाई जैसी अंतरसस्य क्रियाएं आसानी से की जा सके ।
  • नर्सरी क्यारियों की सतह चिकनी (भुरभुरी) अच्छी तरह से समतल, ऊंची एवं उचित जल निकास वाली होनी चाहिये ।
  • नर्सरी क्यारियों को बुआई के पूर्व मैंकोजेब के द्वारा उपचारित कर लेना चाहिये ।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

Spacing and Seed Rate of Pea

मटर की दूरी एवं बीज दर:-

  • मटर को कतार से कतार में 30 से.मी. तथा बीज से बीज 10 से.मी. की दूरी पर बोना चाहिये ।
  • बीज को 2-3 से.मी. गहरी  बोना चाहिये ।
  • लगभग 100 कि.ग्रा.  बीज/हेक्टर पर्याप्त होता है ।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share