Management of Ascochyta foot rot and blight in Pea

  • स्वस्थ बीजों को लें एवं बुवाई से पहले कार्बनडेजिम 2. 5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करें । 
  • रोग ग्रस्त पौधों पर कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोजेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ या
  • क्लोरोथायोनिल 75% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या
  • किटाज़िन 48.0 डब्ल्यू/डब्ल्यू @ 400 मिली/एकड़।
  • रोगग्रस्त पौधों को निकालकर  नष्ट करें ।  
  • जल निकास की उचित व्यवस्था  करें । 

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Ascochyta foot rot and blight in pea 

  • पत्तियों पर गहरे भूरे  किनारे वाले गोल कत्थई से लेकर भूरे रंग के धब्बे पाये जाते है ।  
  • तनों पर बने धब्बे लंबे, दबे हुये एवं बैगनी-काले रंग के होते है ।  
  • ये धब्बे बाद में आपस में  मिल जाते है और पूरे तने को चारों और से घेर लेते है। इस प्रकार यह तना कमजोर हो जाता है ।  
  • फल्लियों पर धब्बे लाल या भूरे रंग के अनियमित धब्बे होते है । 

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Control of leaf miner in pea

  • इसके लिए दैहिक कीटनाशक जैसे डेल्टामेथ्रिन 2.8% ईसी @ 200 मिली/एकड़ या 
  • ट्रायजोफॉस 40% ईसी @ 350-500 मिली/ एकड़ या 
  • डायमिथोएट 30% EC @ 400  मिली/एकड़ या 
  • करटोप हाइड्रो क्लोराइड 50% SP @ 250  ग्राम/एकड़ की दर से स्प्रे |

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Leaf miner in pea

  • वयस्क गहरे रंग के होते है ।  
  • इस कीट का मैगट मटर की पत्तियों पर आक्रमण करता है । 
  • पत्तियों पर सफेद टेढ़ी मेढ़ी धारियां बन जाती है ।  
  • पौधे छोटे रह जाते है ।
  • कीट से ग्रसित पौधों की फलन एवं फूलन क्षमता पर विपरित  प्रभाव पड़ता है।

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Control of Anthracnose in Cucumber

  • खेतों को साफ रखे एवं उचित फसल चक्र अपनाकर बीमारी के फैलने  से रोकना चाहिये । 
  • बीजों को कार्बोंन्डाजिम 50% WP से 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
  • 10 दिनों के अंतराल से मेंकोजेब 75% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम प्रति एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम प्रति एकड़ की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

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Anthracnose disease in Cucumber

  • इस बीमारी के लक्षण पत्तियों, पर्णवृंत, तना एवं फलों  पर दिखाई देते है। 
  • नये फलों के ऊपर अण्डाकार जल रहित धब्बे निर्मित होते है जो आपस में मिलकर बहुत बडा क्षेत्र ढँक लेते है। 
  • अत्यधिक नमी युक्त वातावरण में निर्मित धब्बों के बीच में गुलाबी रंग के समूह वाले जीवाणु दिखाई देते है। 
  • निर्मित धब्बों से गुलाबी चिपचिपा पदार्थ निकलने लगता है, जिन पर रोग के बीजाणु  उत्पन्न होते है। 
  • लताओं पर भूरे रंग की धारियाँ निर्मित होती है जिन पर कोणीय एवं गोलाकार धब्बो का निर्माण होता है। 
  • इस बीमारी में प्रभावित भागों पर अंगमारी रोग नुमा लक्षण निर्मित हो जाते है। 

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Symptoms and control of Fusarium wilt in Okra

  • प्रारंभिक अवस्था में पौधा अस्थाई रुप से मुरझा जाता है किन्तु बीमारी का प्रभाव बढ़ जाने पर पौधा स्थाई रुप  से मुरझाकर सूख जाता है ।
  • ग्रसित पौधों की पत्तियाँ पीली हो जाती है ।
  • फफूंद जड़तंत्र पर आक्रमण  करता है और संवहन उतकों पर कालोनी का निर्माण करता है ।  
  • इसके कारण जल का प्रवाह संवहन उतकों द्वारा रुक जाता है साथ ही फंगस के विषैले प्रभाव के कारण संवहन उतक और कोशिकायें कार्य करना बंद कर देती है ।  
  • ग्रसित पौधों के तने को काटने पर मध्य भाग गहरे भूरे रंग का दिखाई देता है।

प्रबंधन

  • भिण्डी को लगातार एक ही खेत  में नहीं उगाना चाहिए ।
  • कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% @ 2-3 g/kg  बीज या थायोफनेट मिथाइल 45% WP+ पाइरक्लोस्ट्रोबिन 5% FS @ 2g/kg  से बीज उपचार करे।
  • थायोफनेट मिथाइल 70% WP @ 400g/एकड़ की दर से स्प्रे करें।
  • एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 18.2%+ डेफ़नकोनाज़ोल 11.4% एससी @ 200 ml/एकड़ |
  • जैव प्रबंधन के तौर पर ट्राइकोडर्मा विरिडी की ड्रेंचिंग एवं पत्तियों पर स्प्रे करे । इसका उपयोग फसलों में होने वाले लगभग सभी प्रकार के फफूंद जनित रोगो के नियंत्रण के लिए किया जा सकता हैं।

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Control of Fruit Rot in Brinjal

रोकथाम :-

  • इस रोग से ग्रसित पौधे के पत्तियों  एवं अन्य भागो के तोड़कर नष्ट कर दे |
  • फसल पर मेंकोजेब @ 400 ग्राम/एकड़, या जिनेब @ 400 ग्राम या केप्टॉन+ हेक्साकोनाज़ोल @ 250 ग्राम/ एकड़ की दर से 10 दिनों के अन्तराल से छिडकाव करें|

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Fruit Rot in Brinjal

लक्षण:-

  • अत्यधिक नमी इस रोग के विकास में सहायक होती है |
  • फलों पर जलीय सूखे हुये धब्बे दिखाई देते है जो बाद में धीरे धीरे दूसरे फलो में फैल जाते है |
  • प्रभावित फलो की ऊपरी सतह भूरे रंग की हो जाती है जिस पर सफ़ेद रंग की कवक का निर्माण हो जाता है |

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Control of Eriophyid mite in Garlic and Onion

  • व्यस्क एवं अवयस्क दोनों ही कोमल पत्तियों एवं कलियों के बीच में लहसुन एवं प्याज में रस चूसते है| पत्तियाँ पुरी नहीं खुल पाती है पूरे पौधे की छोटा, टेड़ा, घुमावदार एवं पीले धब्बे दार हो जाता है|
  • धब्बे अधिकाँश पत्तियों के किनारों पर दिखाई देते है|
  • माइटस के प्रभावशाली नियंत्रण के लिए,  घुलनशील सल्फर 80% का 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।  
  • अधिक प्रकोप होने पर प्रोपरजाईट 57% का  400 मिली. प्रति एकड़ के अनुसार 7 दिन के अंतराल से दो बार छिड़काव करें |

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