- पेट के परजीवियों से प्रभावित पशु प्रायः बेचैन रहते हैं। पर्याप्त दाना-पानी खिलाने पर भी उनका समुचित शारीरिक विकास नहीं हो पाता और उसकी उत्पादकता कम हो जाती है।
- प्रभावित पशु सुस्त एवं कमजोर हो जाते हैं। उनका वजन कम हो जाता है और हड्डियाँ दिखने लगती हैं।
- पशु का पेट बड़ा हो जाता है और दस्त की समस्या भी होती है जिसमें कभी कभी रक्त और कीड़े भी दिखते हैं।
- प्रभावित पशु मिट्टी खाने लगता है। पशु के शरीर की चमक कम हो जाती है और बाल खुरदरे दिखते हैं।
- कई बार अत्यधिक चरने के कारण घास एवं खरपतवारों की लम्बाई काफी कम हो जाती है जिसके कारण उनकी जड़ों में बसने वाले परजीवी जानवरों के पेट में पहुँच जाते हैं।
- परजीवी पशुओं के पेट में रहकर उनका भोजन और रक्त चूसते रहते हैं जिनके कारण पशुओं में दुर्बलता आ जाती है।
मध्यप्रदेश: फसल बीमा के अंतर्गत 1493171 किसानों को 2990 करोड़ रूपये की ऑनलाइन भुगतान
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान आज यानी एक मई को दोपहर 3 बजे प्रदेश के 14 लाख 93 हजार 171 किसानों को फसल बीमा के अंतर्गत कुल 2990 करोड़ रूपये का ऑनलाइन भुगतान करेंगे।
इस मसले पर प्रदेश के किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री श्री कमल पटेल ने बताया कि “8 लाख 33 हजार 171 किसानों को खरीफ फसल की बीमा राशि के रूप में एक हजार 930 करोड़ रुपये प्रदान किये जा रहे हैं। इसी प्रकार, 6 लाख 60 हजार किसानों को रबी फसल की बीमा राशि के रूप में एक हजार 60 करोड़ का भुगतान किया जायेगा।”
मंत्री श्री पटेल ने आगे बताया कि प्रदेश में नई सरकार बनते ही फसल बीमा के अंतर्गत 2200 करोड़ रुपये की रकम का बीमा कंपनियों को प्रीमियम के लिए भुगतान किया गया था। अब इसी का परिणाम है की किसानों को फसल बीमा की राशि का ऑनलाइन भुगतान किया जा रहा है।
स्रोत: जनसम्पर्क विभाग
Shareग्रामोफ़ोन की सलाह ने दिखाई खरगोन के कल्याण विष्णुले को मिर्च की खेती से बम्पर उत्पादन की राह
एक बड़ी प्रचलित कहानी है आपने भी ज़रूर सुनी होगी, जिसमे चींटी दाना लेकर चलती है, कई बार गिरती है, सम्हलती है और आखिरकार अपनी मंज़िल तक पहुँच जाती है। कुछ ऐसी ही कहानी है खरगोन जिले के गोगांवा तहसील के अंतर्गत आने वाले गांव बेहरामपुर टेमा के किसान श्री कल्याण विष्णुले जी की है। विष्णुले जी मिर्च की खेती करते थे पर उन्हें इसमें अच्छा उत्पादन नहीं मिल रहा था।
लगातार दो बार अच्छा उत्पादन पाने में असफल होने के बाद जब विष्णुले जी तीसरी बार मिर्च की खेती करने जा रहे थे तब वे ग्रामोफ़ोन के सम्पर्क में आये और ग्रामोफ़ोन के कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर मिर्च की खेती की जिसका नतीजा यह हुआ की उत्पादन ज़बरदस्त हुआ और फसल की क्वालिटी इतनी अच्छी रही की आस पास के किसान उनके मिर्च को देख आश्चर्यचकित रह गए।
अगर आप भी विष्णुले जी की तरह किसी भी प्रकार की कृषि संबंधित समस्या का सामना कर रहे हैं तो तुरंत हमारे टोल फ्री नंबर 18003157566 पर मिस्डकॉल करें या फिर ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप डाउनलोड कर अपनी समस्याओं का समाधान पाएं।
Shareउड़द और मूंग की फसल को पाउडरी मिल्डयू रोग से कैसे बचाएं?
- पत्तियों और अन्य हरे भागों पर सफेद चूर्ण दिखाई देते हैं जो बाद में हल्के रंग के सफेद धब्बेदार क्षेत्र में बदल जाते हैं। ये धब्बे धीरे-धीरे आकार में बढ़ जाते हैं और निचली सतह को भी कवर करते हुए गोलाकार हो जाते हैं।
- गंभीर संक्रमण में, पर्णसमूह पीला हो जाता है जिससे समय से पहले पत्तियाँ झड़ जाती है। रोग संक्रमित पौधों में जल्दी परिपक्वता आ जाती है जिसके परिणामस्वरूप उपज में भारी नुकसान होता है।
- शुरुआती रोग दिखाई देने पर 10 दिनों के अंतराल पर NSKE या नीम तेल 75 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर दो बार स्प्रे करें।
- पंद्रह दिन के अंतराल से हेक्ज़ाकोनाजोल 5% SC 400 मिली या थियोफेनेट मिथाइल 70% WP या एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 23 SC का 200 मिली प्रति एकड़ 200 पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
बैंक देगी 65 प्रतिशत की सहायता राशि, डेयरी फार्म लगाकर शुरू कर सकते हैं अपना रोजगार
अगर आप रोजगार की तलाश में हैं और आपको डेयरी फार्म खोलने में दिलचस्पी है तो इसके लिए आपको बैंक से मदद मिल सकती है। डेयरी फार्म खोल कर आप ना सिर्फ अपना रोजगार स्वयं कर पाएंगे बल्कि साथ ही साथ इसमें आपको अच्छी कमाई होने की भरपूर संभावनाएं हैं।
डेयरी फार्म को छोटे स्तर पर खोला जा सकता है। इसके शुरुआत में ज्यादा लागत भी नहीं लगती है और इस काम को आरम्भ करने के लिए कई प्रकार की सरकारी एवं निजी संस्थाएं सहायता भी प्रदान कर रही है, जिसका फायदा छोटे या मध्यम श्रेणी के किसान उठा सकते हैं।
आप उन्नत नस्ल की 2 गायों के साथ लघु स्तर का डेयरी फार्म लगभग एक लाख रूपए के खर्च पर शुरू कर सकते हैं। इसमें बैंक सहायता स्वरुप दो गायों की ख़रीददारी के लिए 65 प्रतिशत राशि मुहैया करवाती है। वहीं 5 गायों के साथ मिनी डेयरी फार्म खोलने में लगभग 3 लाख रूपए खर्च होते हैं, जिस पर 65 प्रतिशत तक की सहायता बैंक देती है।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareगन्ने की फसल में पायरिला कीट का प्रबंधन कैसे करें?
- गन्ने के खेत में 5 X 5 फीट का एवं 4 इंच गहरा गड्ढा बना लें एवं उसमें पॉलीथिन बिछा दें।
- इस गड्ढे में पानी भर कर आधा लीटर केरोसिन या 10-15 मिली मेलाथियान डालें।
- गड्ढे के ठीक ऊपर प्रकाश प्रपंच (ब्लब) लटका दें। पायरिल्ला व अन्य कीट प्रकाश प्रपंच से आकर्षित होंगे और गड्ढे में गिरकर मर जायेंगे।
- प्रकाश प्रपंच (ब्लब) रात्रि 8 से 10 बजे तक ही चालू रखे उसके बाद इन कीटों की क्रियाशीलता कम हो जाती है।
- 80 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL या 80 मिली थायोमेथोक्सोम 25 WG प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से भी इसका नियंत्रण किया जा सकता है।
- पायरिला कीट के परजीवी एपीरिकेनिया मेलोनोल्यूका के 4-5 लाख अंडे प्रकोपित फसल पर छोड़े। इस परजीवी कीट की पर्याप्त उपस्थित में पायरिला कीट की स्वतः रोकथाम हो जाती है।
मंडी में नहीं मिल रहे किसानों को वाजिब दाम, जानें कब तक बढ़ सकते हैं मंडी के भाव?
मध्यप्रदेश के कुछ जिलों (भोपाल, इंदौर, उज्जैन) को छोड़ कर सभी जिलों में समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीदी 15 अप्रैल से चल रही है पर सरसों आदि फ़सलों की समर्थन मूल्य पर खरीदी होनी अभी बाकी है। गेहूं की खरीदी की रफ़्तार भी खरीदी केंद्रों पर काफी धीमी है। इस धीमी रफ्तार की वजह है कोरोना संक्रमण के कारण अपनाई जा रही सामाजिक दूरी। इस सामाजिक दूरी की वजह से खरीदी केंद्रों पर महज 20 किसान ही आ पाते हैं। ऐसे में किसान अपनी उपज मंडी में औने पौने दाम पर बेचने को मजबूर हो रहे हैं।
समर्थन मूल्य पर खरीदी केंद्रों में चल रही खरीदी की धीमी रफ़्तार के कारण किसानों को अपनी सरसों व गेहूं की उपज कम दाम पर बेचनी पड़ रही है। इसके कारण गेहूं पर किसानों को दो से ढाई सौ रुपए तथा सरसों पर लगभग पांच सौ रुपए तक का नुकसान उठाना पड़ रहा है। हालांकि यह उम्मीद जताई जा रही है की 3 मई को जब लॉकडाउन की अवधि खत्म होगी तब मध्यप्रदेश के कम कोरोना संक्रमित क्षेत्रों के मंडियों में भाव बढ़ने की संभावना है।
स्रोत: नई दुनिया
Shareमिट्टी परीक्षण में जैविक कार्बन का महत्व
- यह मृदा में कार्बनिक पदार्थ विच्छेदन व संश्लेषण प्रतिक्रियाओं द्वारा ह्यूमस बनाता है, जो मृदा स्वास्थ्य में सुधार के साथ मृदा की उर्वरता भी बनाये रखता है।
- भूमि में इसकी अधिकता से मिट्टी की भौतिक और रासायनिक गुणवत्ता बढ़ती है। भूमि की भौतिक गुणवत्ता जैसे मृदा संरचना, जल ग्रहण शक्ति आदि जैविक कार्बन से बढ़ती है।
- इसके अतिरिक्त पोषक तत्वों की उपलब्धता स्थानांतरण एवं रुपांतरण और सूक्ष्मजीवी पदार्थों व जीवों की वृद्धि के लिए भी जैविक कार्बन बहुत उपयोगी होता है।
- यह पोषक तत्वों की लीचिंग (भूमि में नीचे जाना) को भी रोकता है।
इन तत्वों की कमी से होते है पशुओं में रोग
कॉपर/तांबा
- यह ऐसे एंजाइम के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है जो कोशिकाओं की क्षति को रोकते या कम करते हैं।
- इसकी कमी से पशु की हड्डियों में मज़बूती कम हो जाती हैं जिससे विकृति उत्पन्न होती है।
- इसकी कमी से बालों का रंग असामान्य हो जाता है जैसे कि लाल गाय का रंग पीला हो जाता है एवं काले रंग की गाय का रंग मटमैला या स्लेटी हो जाता है।
कोबाल्ट
- कोबाल्ट जुगाली करने वाले पशुओं के लिये अति आवश्यक है क्योंकि यह शरीर में बहुत ही सीमित मात्रा में पाया जाता है।
- कोबाल्ट की कमी मुख्यत: पशुओं के खाद्य पदार्थों में इसलिये होती है क्योंकि जिस मिट्टी में खाद्य पदार्थों को उगाया गया उस मिट्टी में ही इसकी कमी थी।
- यह तत्व विटामिन बी12 के संश्लेषण में मदद करता है जिससे लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण एवं वृद्धि में मदद मिलती है।
- कोबाल्ट की कमी से भूख न लगना, कमजोरी, पाइका, दस्त लगना तथा बांझपन जैसी समस्याएं पशुओं को हो सकती हैं।
जिंक
- जिंक कई एंजाइम्स के निर्माण में मदद करता है, इसकी कमी से प्रोटीन संश्लेषण में कमी एवं कार्बोहाइड्रेट के उपापचय में बाधा उत्पन्न होने लगती है।
- इसके अलावा इसकी कमी से त्वचा संबंधी विकार जैसे त्वचा रूखी, कड़ी एवं मोटी हो जाती है।
विटामिन ई एवं सेलेनियम
- यह पशु के शारीरिक वृद्धि एवं प्रजनन के लिये बहुत ही आवश्यक खनिज है।
- विटामिन ई एवं सेलेनियम दोनों ही शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते हैं और इसकी कमी के कारण कई रोग हो जाते हैं।
मैगनीज
- इसकी कमी से पशुओं में गर्भाधान की दर में कमी आ जाती है।
- इसके अलावा इसकी कमी से हीट में नहीं आना, बांझपन एवं मांसपेशियों में विकृति जैसे रोग भी हो सकते हैं।
आयरन/लौह
- आयरन दरअसल हिमोग्लोबिन का अच्छा स्त्रोत होता है, और इसकी कमी से नवजात बछड़ें एवं सुअरों में एनीमिया (खून की कमी) हो जाता है।
आयोडीन
- आयोडजीन थायरॉइड नामक हार्मोन के संश्लेषण के लिये अति आवश्यक है।
- आयोडीन की कमी से पशुओं में थायरॉइड ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है।
लॉकडाउन की अवधि में भी रिकॉर्ड स्तर पर हुई उर्वरकों की बिक्री
कोरोना संक्रमण की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान आवागमन पर बहुत अधिक प्रतिबंध लगा हुआ है। इसके बावजूद भी कृषि क्षेत्र में इस दौरान खूब काम हो रहा है। इसका सबूत मिलता है लॉकडाउन की अवधि में रिकॉर्ड स्तर पर हुई उर्वरकों की बिक्री के आंकड़े देखने से।
लॉकडाउन के दौरान 1 अप्रैल से 22 अप्रैल 2020 के मध्य किसानों ने 10.63 लाख मीट्रिक टन उर्वरक खरीदे हैं। अगर इस आंकड़े को पिछले साल इसी समय अवधि के उर्वरक बिक्री के आंकड़ों के साथ मिलान करें तो इनमें बड़ा अंतर नजर आता है। पिछले साल की इसी अवधि के 8.02 लाख मीट्रिक टन की तुलना में इस साल उर्वरकों की बिक्री में 32% का इज़ाफा हुआ है।
बता दें की भारत सरकार ने आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत देश में उर्वरक संयंत्रों के संचालन की अनुमति लॉकडाउन के दौरान भी प्रदान की हुई है जिससे कि लॉकडाउन के कारण कृषि क्षेत्र पर कोई बुरा प्रभाव ना पड़ सके।
स्रोत: कृषक जगत
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