करेले की फसल में कीट क्षति की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय
रेड पंपकिन बीटल (लाल कद्दू भृंग)
क्षति के लक्षण –
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यह हानिकारक कीट है, जो करेला पर प्रारम्भिक अवस्था पर लगता है।
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यह कीट पत्तियों को खा कर पौधे की बढ़ाव को रोकता है।
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इसकी सूंडी खतरनाक होती है, यह करेला के पौधे की जड़ों को काटकर फसल को नष्ट कर देती है।
नियंत्रण के उपाय
नोवालैक्सम (थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% ZC) @ 80 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
मकड़ी
क्षति के लक्षण –
-
यह कीट आकार में छोटा होता है जो की फसलों के कोमल अंगों जैसे पत्तियां ,फूल कलियों ,एवं टहनियों पर भारी मात्रा में पाए जाते है।
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पत्तियों पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं।
-
जिन पोधो पर मकड़ी का प्रकोप होता है उस पौधे पर जाले दिखाई देते है। यह किट पौधे के कोमल भागो का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते है एवं अंत में पौधा मर जाता है।
नियंत्रण के उपाय –
अबासीन (एबामेक्टिन 1.8% ईसी) @ 150 मिली या ओमाइट (प्रोपरगाइट 57% ईसी) @ 200 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें
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फसलों में ट्राइकोडर्मा विरडी) का कैसे उपयोग करें एवं इसके फायदे?
ट्राइकोडर्मा के फायदे
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यह एक घुलनशील जैविक फफूंदी नाशक दवा होती है. जिसको धान, गन्ना, दलहन, गेहूं, औषधीय और सब्जियों वाली फसल में उपयोग किया जाता है। इसको अपना कर फसल का उत्पादन बड़ा सकते हैं।
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मिट्टी में कई तरह के रोग पाए जाते हैं, जैसे – आर्द्र गलन, जड़ गलन, उकठा, सफेद तना गलन, फल सड़न, तना झुलसा, जीवाण्वीय उकठा और मूल ग्रंथि| इन सभी रोगों से निजात मिलती है।
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रोग उत्पन्न करने वाले कारकों को रोकता है, फ्यूजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लेरोशियम, स्क्लेरोटिनिया आदि मृदा जनित रोगों को मारता है, साथ ही पौधों की रोगों से सुरक्षा करता है। ये दवा फलदार वृक्षों के लिए भी लाभदायक साबित है।
ट्राइकोडर्मा के प्रयोग की विधि
बीज का उपचार – बीज के उपचार के लिये 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो बीज के हिसाब से उपयोग करते है। बीज के उगने और बढ़ने के साथ.साथ ट्राईकोडरमा भी मिट्टी में चारो तरफ फैलता है और जड़ को चारों तरफ से घेरे रहता है जिससे कि उपरोक्त कोई भी कवक आसपास बढ़ने नहीं पाता।
मिट्टी का उपचार – 2 किग्रा ट्राईकोडर्मा पाउडर को 50 किग्रा गोबर की खाद (एफ वाई एम) में मिलाकर एक हफ्ते के लिये छायेदार स्थान पर रख देते हैं, जिससे की कवक का स्पोर जम जाय फिर इसे एक एकड़ खेत की मिट्टी में फैला देते हैं तथा इसके उपरान्त बोवाई कर सकते हैं।
सीड प्राइमिंग – बीज बोने से पहले खास तरह के घोल की बीज पर परत चढ़ाकर छाया में सुखाने की क्रिया को सीड प्राइमिंग कहा जाता है। ट्राइकोडर्मा से सीड प्राइमिंग करने हेतु सर्वप्रथम गाय के गोबर का स्लरी बनाएं। प्रति लीटर गारे में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिलाएं और इसमें लगभग एक किलोग्राम बीज डुबोकर थोड़ी देर रखे। इसे बाहर निकालकर छाया में थोड़ी देर सूखने दें फिर बुवाई करें। यह प्रक्रिया खासकर अनाज, दलहन और तिलहन फसलों की बुवाई से पहले की जानी चाहिए।
पर्णीय छिड़काव – – कुछ खास तरह के रोगों जैसे पर्ण चित्ती, झुलसा आदि की नियंत्रण के लिये पौधों में रोग के लक्षण दिखाई देने पर 5 से 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
जड़ उपचार- 100 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति 10 लीटर पानी में मिलाये व रोपित किये जाने वाले पौधों की जड़ों (कन्द, राइजोम एवं कलम,नर्सरी पौध) को में 15 से 30 मिनट तक उस घोल में डुबोकर रखे, उसके पश्चात् खेत में रोपाई करे।
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देश के विभिन्न मंडियों में 13 जुलाई को क्या रहे फलों और फसलों के भाव?
देश के विभिन्न शहरों में फलों और फसलों की कीमतें क्या हैं? |
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मंडी |
फसल |
न्यूनतम मूल्य (किलोग्राम में) |
अधिकतम मूल्य (किलोग्राम में) |
लखनऊ |
प्याज़ |
9 |
10 |
लखनऊ |
प्याज़ |
12 |
13 |
लखनऊ |
प्याज़ |
14 |
– |
लखनऊ |
प्याज़ |
15 |
16 |
लखनऊ |
प्याज़ |
10 |
– |
लखनऊ |
प्याज़ |
13 |
– |
लखनऊ |
प्याज़ |
15 |
– |
लखनऊ |
प्याज़ |
16 |
– |
लखनऊ |
लहसुन |
15 |
– |
लखनऊ |
लहसुन |
20 |
26 |
लखनऊ |
लहसुन |
34 |
38 |
लखनऊ |
लहसुन |
45 |
50 |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
13 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
15 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
16 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
11 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
13 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
14 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
15 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
15 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
20 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
21 |
– |
गुवाहाटी |
प्याज़ |
22 |
– |
गुवाहाटी |
लहसुन |
22 |
27 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
28 |
35 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
35 |
40 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
40 |
42 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
23 |
26 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
27 |
35 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
35 |
40 |
गुवाहाटी |
लहसुन |
40 |
42 |
रतलाम |
अदरक |
23 |
25 |
रतलाम |
आलू |
21 |
22 |
रतलाम |
टमाटर |
32 |
36 |
रतलाम |
हरी मिर्च |
26 |
32 |
रतलाम |
कद्दू |
12 |
15 |
रतलाम |
भिन्डी |
18 |
22 |
रतलाम |
नींबू |
25 |
34 |
रतलाम |
फूलगोभी |
15 |
16 |
रतलाम |
बैंगन |
13 |
16 |
रतलाम |
आम |
30 |
33 |
रतलाम |
आम |
40 |
45 |
रतलाम |
आम |
30 |
34 |
रतलाम |
पपीता |
14 |
16 |
रतलाम |
खीरा |
15 |
18 |
रतलाम |
करेला |
18 |
20 |
रतलाम |
शिमला मिर्च |
28 |
30 |
रतलाम |
प्याज़ |
4 |
6 |
रतलाम |
प्याज़ |
8 |
11 |
रतलाम |
प्याज़ |
11 |
13 |
रतलाम |
प्याज़ |
13 |
14 |
रतलाम |
लहसुन |
7 |
14 |
रतलाम |
लहसुन |
15 |
24 |
रतलाम |
लहसुन |
26 |
34 |
रतलाम |
लहसुन |
35 |
40 |
मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में भारी बारिश से बाढ़ का खतरा
गुजरात मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र के कई जिले भारी बारिश से प्रभावित हुए हैं। 24 घंटों तक मध्य प्रदेश महाराष्ट्र में भारी बारिश जारी रहेगी। गुजरात में अगले 2 दिनों के दौरान मूसलाधार बारिश से परेशानी बनी रहेगी। दिल्ली तथा उसके आसपास के इलाकों में हल्की बारिश की गतिविधियां होने के आसार हैं।
स्रोत: स्काइमेट वेदर
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मध्यप्रदेश की चुनिंदा मंडियों में क्या चल रहे सोयाबीन के भाव ?
मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों जैसे मन्दसौर, बदनावर, छिंदवाड़ा और खरगोन आदि में क्या चल रहे हैं सोयाबीन के भाव? आइये देखते हैं पूरी सूची।
विभिन्न मंडियों में सोयाबीन के ताजा मंडी भाव |
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कृषि उपज मंडी |
न्यूनतम मूल्य (प्रति क्विंटल) |
अधिकतम मूल्य (प्रति क्विंटल) |
बदनावर |
4700 |
6300 |
बमोरा |
4000 |
5901 |
बाणपुरा |
5500 |
6000 |
बेतुल |
5800 |
6091 |
भीकनगांव |
5500 |
6165 |
बुरहानपुर |
6125 |
6125 |
छिंदवाड़ा |
5565 |
6100 |
गंधवानी |
5100 |
5500 |
खाचरोडी |
5850 |
6234 |
खरगोन |
5475 |
6001 |
खातेगांव |
4090 |
6161 |
खातेगांव |
3800 |
6540 |
खिरकिया |
3762 |
6200 |
खुजनेर |
6000 |
6190 |
लटेरी |
3725 |
6000 |
मन्दसौर |
5000 |
6340 |
महू |
3400 |
3400 |
पचौरी |
5700 |
6245 |
राहतगढ़ |
5500 |
5500 |
सांवेर |
5758 |
6200 |
सतना |
4951 |
5935 |
श्योपुरबडोद |
5960 |
6070 |
श्योपुरकलां |
5056 |
6030 |
सिराली |
5185 |
6025 |
सुसनेर |
5500 |
6130 |
स्रोत: एगमार्कनेट
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बिना परेशान हुए किसानों को मिलेगी सीधे 50 हजार रूपए की मदद
अधिक पैदावार पाने के लिए खेतों में अंधाधुंध उर्वरकों का प्रयोग किया जा रहा है। इससे मिट्टी की गुणवत्ता में भारी क्षति पहुंचती है। इस कारण फसलों की पैदावार में साल दर साल कमी आ रही है। इस मुश्किल का हल निकालने के लिए केंद्र सरकार परंपरागत कृषि विकास योजना चला रही है। सरकार की इस योजना का उद्देश्य परंपरागत खेती के माध्यम से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाना है।
इस योजना के माध्यम से किसानों को उपज बढ़ाने और आय वृद्धि के लिए अनुदान दिया जा रहा है। इसके तहत स्वेच्छा से परंपरागत खेती अपनाने वाले किसानों को 3 साल में 50 हजार रूपए की आर्थिक मदद की जाती है। जहां पहले साल में 31 हजार रूपए सीधे लाभार्थी के खाते में भेजे जाते हैं, ताकि किसान खेती के लिए जैविक उर्वरक, जैविक कीटनाशक और उत्तम बीजों की खरीद कर सके।
वहीं बाकि राशि आखिर के 2 साल में दिए जाते हैं। जिसका उपयोग किसान प्रसंस्करण, पैकेजिंग और मार्केटिंग करने के लिए कर सकें। इस योजना का लाभ उठाने के लिए ऑनलाइन आवदेन कर सकते हैं। इसके लिए केंद्र सरकार की आधिकारिक वेबसाइट pgsindia-ncof.gov.in पर जाएं। यहां पर योजना से जुड़ी बाकी जानकारी भी प्राप्त की जा सकती है।
स्रोत: कृषि जागरण
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मध्य प्रदेश की प्रमुख मंडियों में गेहूँ भाव में दिखी कितनी तेजी?
मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों जैसे खातेगांव, मन्दसौर, बदनावर, खरगोन और झाबुआ आदि में क्या चल रहे हैं गेहूँ के भाव? आइये देखते हैं पूरी सूची।
विभिन्न मंडियों में गेहूं के ताजा मंडी भाव |
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कृषि उपज मंडी |
न्यूनतम मूल्य (प्रति क्विंटल) |
अधिकतम मूल्य (प्रति क्विंटल) |
अजयगढ़ |
1900 |
2000 |
अमरपाटन |
1900 |
2100 |
बदनावर |
1950 |
2375 |
बमोरा |
1950 |
2170 |
बेतुल |
1980 |
2170 |
भीकनगांव |
2063 |
2198 |
बुरहानपुर |
2060 |
2151 |
चाकघाटी |
1920 |
1925 |
डबरा |
1960 |
2180 |
गंधवानी |
2075 |
2200 |
गौतमपुरा |
1850 |
2000 |
जैसीनगर |
1950 |
2000 |
जतारा |
1960 |
2040 |
झाबुआ |
1855 |
1910 |
खरगोन |
1826 |
2240 |
खातेगांव |
1890 |
2180 |
लटेरी |
1850 |
1985 |
लटेरी |
2405 |
2405 |
लटेरी |
2000 |
2300 |
मन्दसौर |
1980 |
2301 |
मुरैना |
2030 |
2049 |
पचौरी |
1901 |
2101 |
पलेरा |
1840 |
1900 |
पन्ना |
1850 |
1860 |
पवई |
1900 |
1900 |
पवई |
1875 |
1875 |
राहतगढ़ |
2000 |
2020 |
सांवेर |
1795 |
2005 |
सिवनी |
1970 |
1970 |
शाहगढ़ |
1910 |
1990 |
शाजापुर |
2060 |
2060 |
शामगढ़ |
1900 |
2030 |
श्योपुरबडोद |
1950 |
1965 |
श्योपुरकलां |
1921 |
2170 |
सिमरिया |
1820 |
1972 |
सिराली |
1930 |
2018 |
सुसनेर |
1923 |
2027 |
स्रोत: एगमार्कनेट
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आधे हिंदुस्तान में भारी बारिश से जनजीवन अस्त व्यस्त, देखें मौसम पूर्वानुमान
देश के कई राज्यों में मूसलाधार बारिश के प्रभाव से बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है तथा लोगों की जान जा रही है। मवेशियों के ऊपर भी खतरा मंडरा रहा है। गुजरात में अगले 24 घंटों तक बहुत तेज बारिश जारी रहेगी। महाराष्ट्र दक्षिणी मध्य प्रदेश तथा कर्नाटक के तटीय भागों में तेज बारिश संभव है। दो दिनों के बाद उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में मूसलाधार बारिश हो सकती है। दूसरी तरफ उत्तर भारत में पंजाब हरियाणा दिल्ली उत्तर प्रदेश बिहार झारखंड और पश्चिम बंगाल सूखे की मार झेल रहे हैं।
स्रोत: स्काइमेट वेदर
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जानें धान की सीधी बुवाई के फायदे
धान की सीधी बुआई दो विधियों से की जाती है। एक विधि में खेत तैयार कर ड्रिल द्वारा बीज बोया जाता है। दूसरी विधि में खेत में पाटा लगाकर अंकुरित बीजों को ड्रम सीडर द्वारा बोया जाता है। इस विधि में वर्षा आगमन से पूर्व खेत तैयार कर सूखे खेत में धान की बुवाई की जाती है। अधिक उत्पादन के लिए, इस विधि में जुताई करने के उपरांत, बुआई जून के प्रथम सप्ताह में बैल चलित बुआई यंत्र (नारी हल में पोरा लगाकर) अथवा ट्रैक्टर चलित सीड ड्रिल द्वारा कतारों में करना चाहिए।
धान की सीधी बुवाई तकनीक से फायदे
-
धान की कुल सिंचाई की आवश्यकता का लगभग 20 प्रतिशत पानी रोपाई हेतु खेत मचाने में प्रयुक्त होता है। सीधी बुआई तकनीक अपनाने से 20 से 25 प्रतिशत पानी की बचत होती है क्योंकि इस इस विधि से धान की बुवाई करने पर खेत में लगातार पानी बनाए रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
-
सीधी बुआई करने से रोपाई की तुलना में श्रमिक प्रति हेक्टेयर की बचत होती है। इस विधि में समय की बचत भी हो जाती है क्योंकि इस विधि में धान की पौध तैयार और रोपाई करने की जरूरत नहीं पड़ती है।
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धान की नर्सरी उगाने, खेत मचाने तथा खेत में पौध रोपण का खर्च बच जाता है। इस प्रकार सीधी बुआई में उत्पादन व्यय कम आता है।
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रोपाई वाली विधि की तुलना में इस तकनीक में ऊर्जा व ईंधन की बचत होती है
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समय से धान की बुआई संपन्न हो जाती है, इससे उपज अधिक मिलने की संभावना होती है।
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धान की खेती रोपाई विधि से करने पर खेत की मचाई (लेव) करने की जरूरत पड़ती है जिससे भूमि की भौतिक दशा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जबकि सीधी बुवाई तकनीक से मिट्टी की भौतिक दशा पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है।
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इस विधि से जीरो टिलेज मशीन में खाद व बीज डालकर आसानी से बुवाई कर सकते हैं। इससे बीज की बचत होती है और उर्वरक उपयोग क्षमता बढ़ती है।
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सीधी बुआई का धान, रोपित धान की अपेक्षा 7-10 दिन पहले पक जाता है जिससे रबी फसलों की समय पर बुआई की जा सकती है।
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