- वर्तमान में कई किसान तरबूज की खेती कर रहे हैं और फसल अभी अंकुरण की शुरूआती अवस्था में है जिसके कारण फसल में कीट प्रकोप अधिक मात्रा में होती है।
- शुरुआती वृद्धि अवस्था में लीफ माइनर, रस चूसक कीटों का प्रकोप अधिक मात्रा में होता है।
- इसके नियंत्रण के लिए थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG@ 40 ग्राम/एकड़ या एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
तरबूज की फसल में कवक रोगों से होगा नुकसान, ऐसे करें निदान
- गर्मियों के मौसम की फसलों में तरबूज की फसल को बहुत सारे किसान प्राथमिकता देते हैं।
- हालांकि इसकी फसल में अंकुरण के पश्चात कई प्रकार की समस्याएं सामने आती हैं जिनमें पत्तियों में पीलापन, जड़ों में गलन, तना सड़न जैसी समस्याएं शामिल होती हैं।
- इसके निवारण के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 500 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
कद्दू की फसल में क्यों फलों एवं फूलों का आकार रह जा रहा है छोटा?
- वर्तमान समय में ज्यादातर स्थानों पर कद्दू की फसल लगी हुई है।
- कई स्थानों पर ऐसा देखा जा रहा है की कद्दू की फसल में फल तो लग रहे हैं वो परंतु पूरी तरह विकसित नहीं हो रहे हैं और आकार में छोटे रह जा रहे हैं।
- यह समस्या मौसम परिवर्तन के कारण मधुमक्खियों की कार्यशीलता में कमी के कारण हो रही है।
- जैसा की आप सभी जानते हैं की मधुमक्खियाँ प्राकृतिक रूप से कद्दूवर्गीय फसलों में परागण के लिए सहयता करती हैं।
- यदि मधुमक्खियों की क्रियाशीलता में कमी होती है तो कद्दू की फसल में फलों का विकास अपूर्ण होता है या फल लगते ही नहीं हैं।
प्याज की फसल में गुलाबी जड़ों की समस्या का निवारण कैसे करें?
- इस रोग का मुख्य लक्षण प्याज़ की जड़ों का गुलाबी हो जाना होता है।
- जैसे – जैसे इस रोग का प्रकोप बढ़ता है वैसे वैसे इसके प्रभाव से जड़ें काली होकर सूख जाती हैं।
- इसके कारण कंद का विकास बहुत अधिक प्रभावित होता है।
इसके निवारण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग करें
- कीटाजिन 48% EC@ 400 मिली/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें एवं स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
मूंग की फसल में पित शिरा वायरस का ऐसे करें नियंत्रण
- पीत शिरा विषाणु मूंग में लगने वाला एक प्रमुख विषाणु जनित रोग है।
- यह सफ़ेद मक्खी के कारण फैलता है एवं इसके कारण फसल को 25-30% तक नुकसान होता है।
- इस रोग के लक्षण पौधे की सभी अवस्थाओं में नजर आ सकते हैं।
- इसके कारण पत्तियों की शिराएं पीली पड जाती हैं एवं पत्तियों पर जाल जैसी संरचना बन जाती है।
- इसके निवारण के लिए एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC@ 250 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
मूंग में बुआई के समय उर्वरक प्रबंधन व समृद्धि किट का उपयोग
- मूंग की बुआई के समय अच्छे अंकुरण के लिए जो तत्व बहुत आवश्यक होते हैं वे सभी तत्व मिट्टी उपचार के रूप में मूंग की बुआई के समय दिए जाते हैं।
- DAP @ 40 किलो/एकड़ + MOP @ 20 किलो/एकड़ + ज़िंक सल्फेट @ 5 किलो की दर से मिट्टी में मिलाकर बुआई से पहले खाली खेत में भुरकाव करें।
- इसके साथ ग्रामोफ़ोन लेकर आया है मूंग स्पेशल ‘सॉइल समृद्धि किट’ जो आपकी फसल का सुरक्षा कवच बनेगा।
- इस किट में आपको वो सबकुछ एक साथ मिलेगा जिसकी जरूरत मूंग की फसल को होती है।
- इस किट में पीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया, राइज़ोबियम बैक्टीरिया, ट्राइकोडर्मा विरिडी, ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल, अमीनो एसिड एवं मायकोराइज़ा शामिल है।
भिंडी की फसल में सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग का प्रबंधन कैसे करें
- इस रोग के शुरूआती लक्षण निचली पत्तियों पर दिखाई देते हैं और पत्तियों का रंग भूरा हो जाता है।
- इस रोग के कारण पत्तियां बेलनाकार हो कर गिर जाती हैं।
- इस रोग के निवारण के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 500 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
भिंडी की फसल में बुआई के 15 दिनों में जरूर करें फसल प्रबंधन
भिंडी की फसल में बुआई के 15 दिनों में फसल प्रबधन करने से फसल की बढ़वार बहुत अच्छी होती है।
इस दौरान फसल प्रबंधन दो प्रकार से किया जाता है
जमीन से फसल प्रबधन: यूरिया @ 50 किलो + सल्फर @ 5 किलो + ज़िंक सल्फेट@ 5 किलो + सूक्ष्मपोषक तत्व@ 10 किलो की दर से उपयोग करें।
छिड़काव प्रबंधन: थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ + थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से कीट प्रबंधन एवं रोग प्रबंधन के लिए उपयोग करें।
Shareभिंडी की 3 से 5 दिनों की फसल अवस्था में खरपतवार प्रबंधन
- भिंडी की फसल में बुआई के 3 से 5 दिनों में खरपतवार प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- इस अवस्था में खरपतवार उगने पर भिंडी की फसल में विकास बहुत अधिक प्रभावित होती है।
- इसके लिए खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथलिन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इस बात का ध्यान रखें की खरपतवारनाशी की उचित मात्रा का ही उपयोग करें।
भिंडी की फसल में थ्रिप्स के कारण हो सकती है भारी क्षति
- थ्रिप्स एक रस चुसक कीट है जो अपने नुकीले मुखपत्र से पत्तियों का रस चूसने का कार्य करता है।
- प्रभावित पौधें की पत्तियां सूखी एवं मुरझाई हुई दिखाई देती हैं या फिर विकृत हो जाती हैं और ऊपर की ओर कर्ल (मुड़ जाना) हो जाती हैं।
- थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए रसायनों की अदला बदली करके ही उपयोग करना चाहिए।
- थ्रिप्स के प्रकोप के निवारण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 40 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 75 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।