- पीत शिरा विषाणु मूंग में लगने वाला एक प्रमुख विषाणु जनित रोग है।
- यह सफ़ेद मक्खी के कारण फैलता है एवं इसके कारण फसल को 25-30% तक नुकसान होता है।
- इस रोग के लक्षण पौधे की सभी अवस्थाओं में नजर आ सकते हैं।
- इसके कारण पत्तियों की शिराएं पीली पड जाती हैं एवं पत्तियों पर जाल जैसी संरचना बन जाती है।
- इसके निवारण के लिए एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC@ 250 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
मूंग में बुआई के समय उर्वरक प्रबंधन व समृद्धि किट का उपयोग
- मूंग की बुआई के समय अच्छे अंकुरण के लिए जो तत्व बहुत आवश्यक होते हैं वे सभी तत्व मिट्टी उपचार के रूप में मूंग की बुआई के समय दिए जाते हैं।
- DAP @ 40 किलो/एकड़ + MOP @ 20 किलो/एकड़ + ज़िंक सल्फेट @ 5 किलो की दर से मिट्टी में मिलाकर बुआई से पहले खाली खेत में भुरकाव करें।
- इसके साथ ग्रामोफ़ोन लेकर आया है मूंग स्पेशल ‘सॉइल समृद्धि किट’ जो आपकी फसल का सुरक्षा कवच बनेगा।
- इस किट में आपको वो सबकुछ एक साथ मिलेगा जिसकी जरूरत मूंग की फसल को होती है।
- इस किट में पीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया, राइज़ोबियम बैक्टीरिया, ट्राइकोडर्मा विरिडी, ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल, अमीनो एसिड एवं मायकोराइज़ा शामिल है।
भिंडी की फसल में सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग का प्रबंधन कैसे करें
- इस रोग के शुरूआती लक्षण निचली पत्तियों पर दिखाई देते हैं और पत्तियों का रंग भूरा हो जाता है।
- इस रोग के कारण पत्तियां बेलनाकार हो कर गिर जाती हैं।
- इस रोग के निवारण के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 500 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
भिंडी की फसल में बुआई के 15 दिनों में जरूर करें फसल प्रबंधन
भिंडी की फसल में बुआई के 15 दिनों में फसल प्रबधन करने से फसल की बढ़वार बहुत अच्छी होती है।
इस दौरान फसल प्रबंधन दो प्रकार से किया जाता है
जमीन से फसल प्रबधन: यूरिया @ 50 किलो + सल्फर @ 5 किलो + ज़िंक सल्फेट@ 5 किलो + सूक्ष्मपोषक तत्व@ 10 किलो की दर से उपयोग करें।
छिड़काव प्रबंधन: थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ + थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से कीट प्रबंधन एवं रोग प्रबंधन के लिए उपयोग करें।
Shareभिंडी की 3 से 5 दिनों की फसल अवस्था में खरपतवार प्रबंधन
- भिंडी की फसल में बुआई के 3 से 5 दिनों में खरपतवार प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- इस अवस्था में खरपतवार उगने पर भिंडी की फसल में विकास बहुत अधिक प्रभावित होती है।
- इसके लिए खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथलिन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इस बात का ध्यान रखें की खरपतवारनाशी की उचित मात्रा का ही उपयोग करें।
भिंडी की फसल में थ्रिप्स के कारण हो सकती है भारी क्षति
- थ्रिप्स एक रस चुसक कीट है जो अपने नुकीले मुखपत्र से पत्तियों का रस चूसने का कार्य करता है।
- प्रभावित पौधें की पत्तियां सूखी एवं मुरझाई हुई दिखाई देती हैं या फिर विकृत हो जाती हैं और ऊपर की ओर कर्ल (मुड़ जाना) हो जाती हैं।
- थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए रसायनों की अदला बदली करके ही उपयोग करना चाहिए।
- थ्रिप्स के प्रकोप के निवारण के लिए फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 40 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC @ 75 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
पौधों में सूक्ष्म पोषक तत्व जिंक के लाभ और इसकी कमी के लक्षण
- जिंक पौधों में एन्जाइम क्रियाओं को उत्तेजित करता है तथा हार्मोन्स के निर्माण में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
- जिंक प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होता है। दलहनी फ़सलों में जिंक की कमी के कारण प्रोटीन संचय की दर कम हो जाती है जिससे फली के निर्माण में गिरावट आती है।
- यह क्लोरोफिल निर्माण में उत्प्रेरक का कार्य करता है अतः ये पौधों को भोजन निर्माण में मदद करता है।
- पौधों द्वारा फास्फोरस और नाइट्रोजन के उपयोग में जिंक मदद करता है।
- इसकी कमी से पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है तथा यह मुड़ भी जाती हैं। इसके कारण पत्तियों पर पीली धारियां भी दिखाई पड़ने लगती हैं।
अपने खेत में ही तैयार कर सकते हैं स्वस्थ बीज़, जानें पूरी प्रक्रिया
- अच्छी फसल उत्पादन के लिए अच्छे एवं स्वस्थ बीजों का होना बहुत आवश्यक होता है।
- किसान नई फसल में से कुछ बीज़ अगली बार लगाने के लिए को सग्रहित करके रख लेता है।
- इन बीजों को संगहित करके रखने से पहले बीजों का अच्छे से छटाई करना बहुत आवश्यक होता है।
- इसके लिए जिस किस्म के बीज़ बनाने के लिए आपने चयन किया है उसे बाकि फसल से अलग अच्छे खेत में लगाना चाहिए।
- बीजों को लगाने से पहले मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार करके ही लगाएं।
- फसल को पूरे फसल चक्र में कीट एवं बीमारी रहित रखने के लिए रसायनों का छिड़काव समय समय पर करते रहें।
- इस प्रकार किसान रोग रहित बीजों का उत्पादन कर सकते हैं।
मायकोराइज़ा की मदद से तरबूज के पौधे को मिलती है बेहतर बढ़वार, जानें अन्य फायदे
- तरबूज के पौधों की जड़ों से माइकोराइज़ा कवक के सूक्ष्म कण जुड़कर जड़ों के वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को प्रदान करता है।
- विशेष रूप से फास्फोरस, पोटाश आदि जैसे तत्व तरबूज की फसल के विकास को बढ़ाते हैं।
- माइकोराइज़ा कवक तरबूज के पौधे को मिट्टी से अधिक से अधिक पोषक तत्वों एवं पानी को खींचने में मदद करता है।
- माइकोराइज़ा कवक विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय तनावों को सहने के लिए पौधे की सहनशीलता को बढ़ाता है।
- इसके अलावा, माइकोराइज़ा कवक मिट्टी में सभी प्रकार के आवश्यक पोषक तत्वों को इक्क्ठा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
तरबूज की फसल में ऐसे करें खरपतवार प्रबंधन
- तरबूज एक उथली जड़ वाली फसल है, इस कारण इसमें अंतरशस्य क्रियाएँ बहुत आराम से की जाती है।
- प्रायः निड़ाई एवं गुड़ाई कतारों के मध्य ही की जाती है। खेत में खरपतवारों को बहुत अधिक बड़ा नहीं होने चाहिए चाहिए। खेत में बड़े खरपतवार उग आने पर उन्हे हाथों से उखाड़ कर अलग कर देना चाहिये।
- रासायनिक खरपतवार नाशक जैसे पेडामेथलिन 30% CS @ 700 मिली/एकड़ का अंकुरण पूर्व 1 से 3 दिनों की अवस्था में छिड़काव करें।
- सकरी पत्ती के खरपतवार के नियंत्रण हेतु खरपतवार 2-4 पत्ती की अवस्था पर क्विजलॉफॉप इथाइल 5% EC @ 400 मिली/एकड़ या प्रोपाक्विज़ाफोप 10% EC@ 400 मिली प्रति एकड़ 10 से 25 दिनों की फसल अवस्था में छिड़काव करें।
