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- तरबूज की फसल की बुआई को लगभग एक माह पूरा हो चुका है।
- एक माह की अवस्था को पूर्ण करने के बाद तरबूज की फसल में फूल अवस्था शुरू हो जाती है।
- फूल लगने की अवस्था में अच्छे फूल उत्पादन एवं असमय फूलों को गिरने से बचाने के लिए कुछ उपाय करना बहुत आवश्यक होता है।
- फूलों के अच्छे उत्पादन एवं फूलों को गिरने से बचाने के लिए होमोब्रेसिनोलाइड @ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इसी के साथ तरबूज़ के पौधे के अच्छे विकास एवं वृद्धि हेतु जिब्रेलिक एसिड @ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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- मिट्टी में पोषक तत्वों के स्तर की जांच करके फसल एवं किस्म के अनुसार तत्वों की संतुलित मात्रा का निर्धारण कर खेत में खाद एवं उर्वरक मात्रा की सिफारिश हेतु मिट्टी परीक्षण करवाना बहुत जरूरी होता है।
- मिट्टी की अम्लीयता, लवणता एवं क्षारीयता की पहचान एवं सुधार हेतु सुधारकों की मात्रा व प्रकार की सिफारिश कर इस प्रकार की भूमि को कृषि योग्य बनाने हेतु महत्वपूर्ण सलाह एवं सुझाव देने के लिए मिट्टी परीक्षण आवश्यक होती है।
- फल के बाग लगाने के लिये भूमि की उपयुक्तता का पता लगाने हेतु भी यह जरूरी होता है।
- मृदा उर्वरता मानचित्र तैयार करने के लिये भी मिट्टी परीक्षण करना जरूरी होता है। यह मानचित्र विभिन्न फसल उत्पादन योजना निर्धारण के लिये महत्वपूर्ण होता है तथा क्षेत्र विशेष में उर्वरक उपयोग संबंधी जानकारी देता है।
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- थ्रिप्स कीट के शिशु एवं वयस्क रूप तरबूज के पौधों की पत्तियों को खुरचकर रस चूसते हैं। पौधे के कोमल डंठल, कलियों व फूलों पर इसका प्रकोप होने पर ये टेढी मेढी हो जाती हैं। इसके प्रभाव के कारण पौधे छोटे रह जाते हैं।
- इसके नियंत्रण हेतु लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 50% ईसी @ 400 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 5% एस सी @ 400 मिली/एकड़ की दर से 15 दिन के अन्तराल से छिड़काव करें।
- कीटनाशक को 15 दिनों के अंतराल में बदलकर उपयोग करें।
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- मूंग की 15 -20 दिनों की फसल अवस्था में कीट प्रकोप, कवक रोगों का प्रकोप एवं वृद्धि व विकास से संबंधित समस्या आ सकती है।
- इन सभी समस्या के निवारण के लिए मूंग की इस फसल अवस्था में फसल प्रबंधन के उपायों को अपनाना बहुत आवश्यक होता है।
- कीट प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए एसिटामिप्रिड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक नियंत्रण के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से कवक रोगों के नियंत्रण के लिए छिड़काव करें।
- कवक रोगों के जैविक नियंत्रण के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- अच्छी फसल वृद्धि एवं विकास के लिए विगरमैक्स जेल @ 400 ग्राम/एकड़ + 19:19:19 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
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- मूंग प्रमुख दलहनी फसलों में शामिल है एवं कम समय में अच्छा उत्पादन देने वाली फसल है।
- मध्य प्रदेश के कई जिले में मूंग की खेती बहुत बड़े पैमाने पर की जाती है।
- मूंग की बुआई के बाद लगभग 20 से 30 दिन तक किसान को खरपतवारों पर खास ध्यान देना चाहिए।
- ऐसा इसलिए क्योंकि शुरुआती दौर में खरपतवार फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।
- मूंग की फसल में किसान पेन्डीमिथालीन 38.7 CS@ 700 मिली/एकड़ की दर से पूर्व उद्भव खरपतवारनाशी के रूप में उपयोग करें।
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- तरबूज की फसल में 30-35 दिनों की अवस्था में फूल बनने की शुरुआत होती है।
- इस अवस्था में कीट प्रकोप के रूप में थ्रिप्स, एफिड, लीफ माइनर जैसे रस चूसक कीटों का प्रकोप बहुत अधिक होता है।
- कवक एवं जीवाणु जनित रोगों के रूप में पत्ती झुलसा रोग, जड़ गलन, तना गलन जैसे रोगों का प्रकोप बहुत अधिक होता है।
- लीफमाइनर के नियंत्रण के लिए एबामेक्टिन 1.9% EC@ 150 मिली/एकड़ उपयोग करें।
- एसिटामिप्रिड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ रस चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए उपयोग करें।
- इन दोनों प्रकार के कीटों के जैविक नियंत्रण के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 500 ग्राम/एकड़ सभी प्रकार के कवक रोगों के नियंत्रण के लिए उपयोग करें।
- कवक जनित रोगों के जैविक नियंत्रण के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- मॉलीब्लेडिनम एक सूक्ष्म पोषक तत्व है जिसकी मूंग की फसल को वैसे तो बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है पर ये कम मात्रा भी इसके लिए काफी जरूरी होती है।
- मॉलीब्लेडिनम की बहुत कम मात्रा भी मूंग की फसल की अच्छी बढ़वार देने में मदद करती है।
- मॉलीब्लेडिनम मूंग की फसल में नाइट्रोजन के रासायनिक परिवर्तन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- मॉलीब्लेडिनम की कमी से ग्रस्त मूंग की फसल का विकास सही से नहीं हो पाता है।
- इसकी कमी के कारण पत्तियों के किनारे पीले हो जाते हैं साथ ही इसकी कमी के लक्षण नाइट्रोज़न की कमी के समान ही होते हैं।
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- पेड़ के नीचे, मेड से, निचले स्थानों से, जहां खाद का ढेर हो, जहां पानी इकट्ठा होता हो आदि स्थानों से नमूना नहीं लें।
- मिट्टी परीक्षण के लिए नमूना इस तरीके से लें कि वह स्थान पूरे खेत का प्रतिनिधित्व करता हो, इसके लिए कम से कम 500 ग्राम नमूना अवश्य लेना चाहिए।
- मिट्टी की ऊपरी सतह से कार्बनिक पदार्थों जैसे टहनियाँ, सुखी पत्तिया, डण्ठल एवं घास आदि को हटाकर खेत के क्षेत्र के अनुसार 8-10 स्थानों का नमूना लेने हेतु चुनाव करें।
- चयनित स्थानों पर लगाई जाने वाली फसल के जड़ की गहराई जितनी गहराई से ही मिट्टी का नमूना लेना चाहिए।
- मिट्टी का नमूना किसी साफ बाल्टी या तगारी में एकत्रित करना चाहिए।
- मिट्टी के इस नमूने को लेबलिंग ज़रूर कर लें।
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- एफिड छोटे व नरम शरीर वाले कीट होते है जो पीले, भूरे, हरे या काले रंग के हो सकते हैं।
- ये आमतौर पर मूंग के पौधे की छोटी पत्तियों और टहनियों के कोनों पर समूह बनाकर रहते हैं और रस चूसते है। इसके साथ ही ये एक चिपचिपा मधु रस (हनीड्यू) छोड़ते हैं जिससे फफूंदजनित रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
- इसके गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियां और टहनियां कुम्हला सकती हैं या पीली पड़ सकती हैं।
- एफिड कीट से बचाव हेतु थायोमेथोक्सोम 25% WG@100 ग्राम/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL@100 मिली/एकड या फ्लूनेकामाइड 50% WG @ 60 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक रूप से बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- गेहूँ की फसल में लगने वाला यह रोग दरअसल एक बीज़ जनित रोग है और यह अस्टीलैगो सेजेटम नामक एक कवक की वजह से होता है।
- इस रोग से संक्रमित बीज ऊपर से देखने में बिल्कुल स्वस्थ बीजों की तरह ही दिखाई देते हैं।
- इस रोग के लक्षण बाली आने पर ही दिखाई देते हैं। रोगी पौधों की बालियों में दानों की जगह रोग जनक के रोगकंड (स्पोर्स) काले पाउडर के रूप में नजर आते हैं जो हवा से उड़कर अन्य स्वस्थ बालियों में बन रहे बीजों को भी संक्रमित कर देते हैं।
- इस रोग के नियंत्रण का सबसे अच्छा उपाय बीज़ उपचार ही है।
- इसके आलावा इस रोग के नियंत्रण के लिए कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 600 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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