मूंग की उपज को कम कर देते हैं ये रोग

Molybdenum element is essential in the crop of green and black gram
  • किसान भाइयों, मूंग की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग लगते हैं जो मूंग की उपज को प्रभावित करते हैं। इनमे से कुछ प्रमुख रोग निम्न हैं 

  • पत्ती धब्बा रोग: इस रोग के लक्षण पौधे के सभी भागों में पाए जाते हैं तथा पत्तियों पर इसका प्रभाव बहुत अधिक देखने को मिलता है l प्रारम्भ में रोग के लक्षण भूरे रंग के नाव के आकार के छोटे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं, जो कि बड़े होकर पत्तियों के सम्पूर्ण भाग को झुलसा देते हैं तथा ऊतक मर जाते हैं जिससे पौधे का हरा रंग नष्ट हो जाता है।

  • सरकोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग:- इस रोग का संक्रमण पहले पुरानी पत्तियों से प्रारंभ होता है l पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं जिनके किनारे भूरे लाल रंग के होते हैं, बाद में धब्बे अनियमित आकार के हो जाते है। पत्तियां पीली हो जाती हैं और गिर जाती हैं। पुष्पीकरण के समय अत्यधिक प्रकोप पर पत्तियाँ झड़ जाती हैं तथा दाने सिकुड़े हुए एवं बदरंग नजर आते हैं l

  • तना झुलसा रोग: रोग संक्रमण फसल की परिपक्वता के समय दिखाई देता है। इस रोग में भी पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे दिखाई देते हैं। 

  • अंगमारी/झुलसा रोग: इस रोग में पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। तनों पर बैंगनी-काले रंग एवं फलियों पर लाल या भूरे रंग के अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं। रोग की गंभीर अवस्था में तना कमजोर होने लगता है।

उपयुक्त रोगों के लिए उचित प्रबंधन – 

  • रासायनिक प्रबंधन: थायोफिनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी [मिल्ड्यू विप] @ 300 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% डब्ल्यूपी [कारमानोवा] @ 300 ग्राम या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% डब्ल्यूजी [स्वाधीन ] @ 500 ग्राम या क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी [जटायु] @ 400 ग्राम /एकड़ की दर से छिडकाव करें। 

  • जैविक प्रबंधन: इन सभी रोगों के जैविक उपचार के लिए ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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खेतों में ड्रोन उपयोग के दौरान रखें इन बातों का खास ध्यान

This company is giving drones for free
  • किसान भाइयों, खेतों में छिड़काव के लिए ड्रोन एक सही विकल्प है। इससे मानव शक्ति की कम आवश्यकता के साथ पानी एवं रसायन में भी बचत होती है। ड्रोन से छिड़काव करते समय निम्न बातों का अवश्य रूप से ध्यान रखें। 

  • ड्रोन से छिड़काव करते समय पीपीई किट अवश्य पहनें। जिससे रसायन नाक एवं आँखों में ना जा पाये। 

  • छिड़काव करते समय धूम्रपान न करें।  

  • कम से कम 5 मिनट के लिए छिड़काव संचालन का परीक्षण करने के लिए शुद्ध पानी (बिना रसायन के) का छिड़काव करें। 

  • पानी में कीटनाशक को पूरी तरह से घोलने के लिए दो चरणों में तनुकरण सुनिश्चित करें। 

  • हवा की गति, आर्द्रता एवं तापमान के लिए मौसम की स्थिति की जाँच करें। ये स्थितियाँ छिड़काव दक्षता को प्रभावित करती है।

  • मधुमक्खी परागण के समय छिड़काव न करें।  

  • प्रभावी छिड़काव के लिए टैंक में पानी की मात्रा के साथ ड्रोन की उचित उड़ान ऊंचाई और गति सुनिश्चित करें। 

  • रसायन के अधिकतम उपयोग के लिए एन्टी ड्रिफ्ट नोजल का प्रयोग अवश्य रूप से करें।

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तरबूज में फल मक्खी के नियंत्रण हेतु प्रभावी उपाय

Damage and control measure of fruit fly in watermelon

  • किसान भाइयों कद्दू वर्गीय फसलों में से एक तरबूज की फसल में फल मक्खी का आक्रमण मुख्यतः बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। जो फसल को हानि पहुंचाकर उपज को प्रभावित करता है। 

  • फल मक्खी फलों के अंदर अंडे देती है। अंडे से इल्ली निकलकर फलों के गूदे को खाती है जिससे फल सड़ने लगते है l फल टेड़े-मेड़े हो जाते है तथा कमजोर होकर बेल से अलग हो जाते है। 

  • प्रबंधन के उपाय:- फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% ईसी [डैनिटोल] @ 400 मिली या प्रोफेनोफॉस 40 % + साइपरमेथ्रिन 4% ईसी [ प्रोफेनोवा ] @ 400 मिली या स्पिनोसेड 45% एससी [ट्रेसर] @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • फल मक्खी के अच्छे प्रबंधन के लिए 10 फ्रूट फ्लाई ट्रैप प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • जैविक प्रबंधन के लिए बवेरिया बेसियाना [बवे कर्ब ] @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग कर सकते है।

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तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Gummy stem blight symptoms and control in watermelon crop Symptoms

तरबूज की खेती के दौरान इसके पूरे फसल चक्र में कई प्रकार के रोगों का प्रकोप देखने को मिलता है। इन रोगों की रोकथाम कर के तरबूज की अच्छी उपज की प्राप्ति की जा सकती है। तरबूज की फसल का एक प्रमुख रोग है गमी तना झुलसा और इस लेख में हम जानेंगे इसी रोग से संबंधित जानकारी एवं रोकथाम के उपाय।

लक्षण: तरबूज की फसल में गमी तना झुलसा गंभीर पर्णीय बीमारियों में से एक है। इस रोग में तने और पत्तियों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं और यह धब्बे पीले ऊतकों से घेरे होते हैं। साथ ही तने में यह घाव बढ़कर गलन का निर्माण करता है और इससे चिपचिपे, भूरे रंग के द्रव का स्रावण होता है। इस रोग में फल शायद ही कभी प्रभावित होते हैं, लेकिन पर्णसमूह के नुकसान से उपज और फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।

नियंत्रण: गमी तना झुलसा से बचने के लिए रोग रहित बीज का उपयोग करें, साथ ही सभी कद्दू वर्गीय फसलों से 2 वर्ष का फसल चक्र रखें। इसके अलावा रोग के लक्षण दिखाई देने पर रासायनिक नियंत्रण के लिए, फफूंदनाशक जैसे जटायु (क्लोरोथॅलोनिल 75% डब्लूपी) 400 ग्राम प्रति एकड़ या एम 45 (मैंकोज़ेब 75% डब्लूपी) 600-800 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के दर से छिड़काव करें। इसके जैविक नियंत्रण के लिए, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स) 500 ग्राम/एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। 

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क्यों ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती किसानों के लिए है फायदेमंद?

Know the benefits of growing summer moong

रबी की फसलों की कटाई के बाद खरीफ सीजन आने तक खेत खाली रह जाता है। पर किसान भाई चाहें तो रबी तथा खरीफ के बीच वाले समय जिसे जायद कहते हैं, का सही इस्तेमाल कर के बढ़िया लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जायद सीजन में खेती के लिए सबसे अच्छा चुनाव अगर कोई हो सकता है तो वो है मूंग की फसल का जो कम अवधि की फसल है और अच्छा मुनाफ़ा दे सकती है। इसकी खेती के फायदेमंद होने के मुख्य कारण निम्न हैं। 

  • इसकी खेती खरपतवारों को नियंत्रित करती है और गर्मियों में हवा के कटाव को रोकती है।

  • फसल पर कीट एवं रोगों का आक्रमण बहुत कम होता है। 

  • फसल/किस्में परिपक्व होने में कम समय लेती हैं (60-65 दिन)

  • इसकी खेती से राइजोबियम फिक्सेशन के माध्यम से कम से कम 30-50 किग्रा उपलब्ध नाइट्रोजन/हेक्टेयर जुड़ जाता है जिसे अगली खरीफ मौसम की फसल में उर्वरकों को देते समय समायोजित किया जा सकता है।

  • इसकी खेती से फसल की सघनता बढ़ जाती है।

  • आलू, गेहूँ और सर्दियों के मौसम की मक्का जैसी भारी उर्वरक माँग वाली फसलों के बाद उगाए जाने पर यह मिट्टी की अवशिष्ट उर्वरता का उपयोग करती है।

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धनिया की खेती से कम समय में मिल जायेगी जबरदस्त उपज और होगी खूब कमाई

Coriander cultivation will give tremendous yield in less time and earn a lot
  • धनिया की फसल के लिए शुष्क व ठंडा मौसम अच्छा होता है। इसके बीजों के अंकुरण के लिए 25 से 26 से.ग्रे. तापमान अच्छा होता है।

  • धनिया की सिंचित फसल के लिए अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे अधिक उपयुक्त होती है और असिंचित फसल के लिए काली भारी भूमि अच्छी होती है। धनिया क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नही करता है।

  • सिंचित क्षेत्र में अगर, जुताई के समय भूमि में पर्याप्त नमी न हो तो भूमि की तैयारी सिंचाई करने के उपरांत करनी चाहिए। इससे जमीन में जुताई के समय ढेले भी नही बनेंगे तथा खरपतवार के बीज अंकुरित होने के बाद जुताई के समय नष्ट हो जाएंगे।

  • धनिया की उन्नत किस्में  जैसे फाऊजा, सुरभी, रौनक-31 की खेती कर सकते हैं। बोने के समय की बात करें तो हरे पत्तों की उपज के लिये अप्रैल – मई माह में इसकी बिजाई कर सकते हैं।

  • सिंचित फसल में 15-20 किग्रा/हे तथा असिंचित फसल में 25-30 किग्रा/हे बीज की आवश्यकता होती है।

  • भूमि एवं बीज जनित रोगों से बचाव के लिए बीज को करमानोवा (कार्बेंन्डाजिम + मेंकोजेब) 2.5 ग्रा./कि.ग्रा. से उपचारित करें। धनिया की अच्छी पैदावार लेने के लिए गोबर खाद 20 टन/हे का भुरकाव करें। सिंचित फसल 60 किग्रा नत्रजन, 40 किग्रा फॉस्फोरस, 20 किग्रा पोटाश तथा 20 किग्रा सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरक का उपयोग करें।

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कद्दूवर्गीय सब्जियों की फसल के प्रमुख कीट एवं नियंत्रण के उपाय

Major pests and control measures of cucurbitaceous crops

लालभृंग: यह चमकीले लाल रंग का कीट है जो पत्तियों को विशेषकर शुरूआती अवस्था में खा कर छलनी जैसा बना देता है। ग्रसित पत्तियाँ फट जाती हैं तथा पौधों की बढ़वार रूक जाती हैं।

नियंत्रण:  रासायनिक नियंत्रण के लिए मारक्विट (बायफैनथ्रिन 10% EC) 2 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 0.5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया वेसियाना 2 ग्राम/लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

लीफ माइनर: इस कीट की इल्ली पत्तियों के अंदर सुरंग बना कर हरितलवक को खाती हैं। इसके प्रभाव से पत्तियों पर सफ़ेद धारियां बन जाती हैं। यह मुख्य रूप से टमाटर, गिलकी, ककड़ी एवं समस्त कद्दू वर्गीय फसलों को नुकसान पहुँचाती है। 

नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए नीमगोल्ड (एजाडिरेक्टिन 0.3%) 3000 पीपीएम 150 मिली, या  बेनेविया (सायट्रानिलिप्रोएल 10.26% ओडी ) 20-25 मिली +  सिलिकोमैक्स गोल्ड 5 मिली प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

फलमक्खी: इस कीट के मैगट छोटे फलों को अधिक नुकसान पहुंचाते हैं। इसकी इल्ली फल को अंदर से नुकसान पहुंचती है। इससे फल पकने से पहले ही गिर जाते हैं। इल्ली का आक्रमण होने से फलों में से भूरे रंग का चिपचिपा द्रव बहता है और फल का आकार बिगड़ जाता है। फल मक्खी अंडे देने के लिए फलों में छेद करती हैं। जिससे फलों में छेद नजर आने लगते हैं। प्रभावित फलों का आकार टेढ़ा हो जाता है। कीट का प्रकोप बढ़ने पर फल सड़ने लगते हैं। 

नियंत्रण: इसके मैगट पर सीधा नियंत्रण संभव नहीं है परंतु वयस्क नर मक्खियों की संख्या पर नियंत्रण करके इनके प्रकोप को कम किया जा सकता है। खेत में पौधों की रोपाई से पहले खेत की गहरी जुताई करें। इससे मिट्टी में पहले से मौजूद प्यूपा नष्ट हो जाएंगे। कीट को आकर्षित करने के लिए प्रति एकड़ खेत में 10 से 12 फेरोमोन ट्रैप लगाएं और इसके ल्यूर को 15 -20 दिन के अंतराल से बदलें। ल्यूर से नर कीट आकर्षित हो कर फंस जाते हैं। इससे फल मक्खियों की वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकता है। प्रभावित फलों को तोड़ कर नष्ट कर दें। साथ ही रासायनिक नियंत्रण के लिए डेसिस (डेल्टामैथ्रिन 100 EC) 1 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें या सेलक्विन (क्विनलफॉस 25% EC) 2 मिली प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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तरबूज व खरबूज में एन्थ्रेक्नोज रोग का ऐसे करें नियंत्रण

Control of Anthracnose disease in Watermelon and Muskmelon
  • पत्तियों पर सबसे पहले छोटे,अनियमित पीले या भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। यह धब्बे समय के साथ फैलते हैं और गहरे होकर पूरी पत्तियों को घेर लेते हैं।

  • फल पर भी ये छोटे काले गहरे धब्बे उत्पन्न होते हैं जो धीरे-धीरे फैलते हैं। नमी युक्त मौसम में इन धब्बों के बीच में गुलाबी बीजाणु जन्म लेते हैं। 

  • इस रोग से बचाव के लिए, वीटावैक्स (कार्बोक्सिन 37.5 + थायरम 37.5) 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें।

  • 10 दिनों के अंतराल से नोवाफ़नेट (थायोफनेट मिथाइल 70% WP) 300 ग्राम प्रति एकड़ या जटायु (क्लोरोथालोनिल 75 WP) 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स) 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

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पॉलीहाउस में खेती करने से मिलेंगे कई फायदे

Farming in polyhouse will get many benefits
  • पॉली हाउस में पौधों को कम पानी, सीमित सूरज की किरणें, कम कीटकनाशक के साथ नियंत्रित वातावरण में उगाया जा सकता है।

  • अगर किसी क्षेत्र में जलवायु खेती के अनुरूप नहीं है और खेती लगभग असंभव है वहां भी पॉलीहाउस के माध्यम से खेती की जा सकती है और पौधे उगाए जा सकते हैं।

  • जैसे के लिए भारत के मैदानी इलाकों में स्ट्रॉबेरी उगाना मुश्किल है पर पॉलीहाउस में यह संभव है।

  • बाहरी जलवायु पॉलीहाउस में फसलों की वृद्धि को प्रभावित नहीं करती है।

  • पॉलीहाउस में खेती करने से उपज की गुणवत्ता में सुधार होता है। 

  • यह सब्जियों, फलों और फूलों में 90% पानी का संरक्षण करता है, जिससे उपज की शेल्फ लाइफ बढ़ता है।

  • पॉलीहाउस उत्पादन को अधिकतम स्तर तक बढ़ाने के लिए Co2 की उच्च सांद्रता भी प्रदान करता है, जिसके कारण पॉलीहाउस की पैदावार खुले खेत की खेती से कहीं अधिक होती है।

  • पॉली हाउस में टपक सिंचाई का इस्तेमाल होता है जिसके कारण पानी की बचत होती है। 

  • किसी भी मौसम में पौधों के लिए सही वातावरण निर्माण कर सकते हैं।

  • पॉलीहाउस से फसलों को हवा, बारिश, वर्षा और अन्य जलवायु के कारकों से बचाया जा सकता है।

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खीरे की फसल में डाउनी मिल्डू रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of downy mildew in cucumber crop

यह खीरे का सबसे महत्वपूर्ण रोग है, और यह रोग कवक के कारण होता है। आमतौर पर  इसके लक्षण पत्तियों की ऊपरी सतह पर दिखाई देते हैं। शुरूआती अवस्था में पत्तियों पर छोटे पीले अथवा नारंगी रंग के धब्बे होते हैं, और जैसे ही धब्बे बड़े होते हैं, वे अनियमित मार्जिन के साथ भूरे रंग के हो जाते हैं। संक्रमित पौधों की निचली पत्तियों की सतह पर सफेद या हलके बैंगनी रंग का पाउडर दिखाई देता हैं। इस रोग में फल प्रभावित नहीं होता है, लेकिन स्वाद में यह कम मीठा होता है। 

नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए प्रतिरोधी/सहिष्णु किस्में उगाएं साथ ही अधिक ऊपरी सिंचाई से बचें और पत्तियों को तेजी से सुखाने के लिए सुबह देर से सिंचाई करें। प्रकोप दिखाई देने पर मिरडोर (एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 23% एस सी) @ 200 मिली प्रति एकड़ या क्लच ( मेटीराम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5 % डब्लूजी)@ 600 -700 ग्राम प्रति एकड़ के दर से छिड़काव करें। 

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