मिर्च की बढ़िया उपज के लिए जानें नर्सरी तैयार करने का सही तरीका

Know the right way to prepare nursery for good yield of chilli
  • मिर्च की नर्सरी डालने का सही समय दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह से फरवरी माह तक होता है।

  • एक एकड़ क्षेत्र में रोपण के लिए, 40 वर्ग मीटर के नर्सरी क्षेत्र की आवश्कता होती है।  

  • बीज के अच्छे अंकुरण एवं पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए, मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है।

  • दोमट मिट्टी वाली कार्बनिक पदार्थ से भरपूर क्षेत्र जिसका पीएच रेंज 6.5-7.5 हो और वहां अच्छी जल निकासी की व्यवस्था हो तो यह सबसे अच्छा होगा। 

  • तैयारी के लिए एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। खेत में मौजूद अन्य अवांछित सामग्री को हटा दें। 

  • अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले हल्की सिंचाई करें, फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चला कर खेत को समतल कर लें।

  • बीज एवं मिट्टी जनित रोग जैसे आद्र गलन, से बचाने के लिए बीज को,  कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.00% डब्ल्यूपी) @ 4 ग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1.00% डब्ल्यूपी) @ 10 ग्राम, प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित कर बुवाई करें। 

  • खेत की तैयारी होने के बाद, गोबर की खाद – 10 किग्रा + स्पीड कम्पोस्ट 200 ग्राम  + मैक्सरूट – 50 ग्राम  + डीएपी – 1 किग्रा, को आपस में मिलाकर 40 वर्ग मीटर नर्सरी क्षेत्र के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें। 

  • बीज दर – 80 से 100 ग्राम बीज प्रति एकड़ के लिए पर्याप्त है। 

  • तैयार किये गए बेड में बीज की बुवाई करें एवं झारे की सहायता से हल्की सिंचाई करें। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे अपने मित्रों के साथ शेयर करना ना भूलें।

Share

आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग का ऐसे करें निवारण

Prevention of late blight disease in potato crop

  • यह रोग आलू के पौधों की पत्तियों, तने और कंदों को प्रभावित करता है l 

  • इस रोग में पत्तियों पर अनियमित आकार के पानी से भीगे धब्बे बन जाते हैं जो पत्तियों के शीघ्र पतन का कारण बनते हैं।

  • इन धब्बों के कारण पत्तियों पर भूरे रंग की परत बन जाती है जो कि पौधे के भोजन निर्माण की प्रक्रिया को बाधित कर देती है l 

  • प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होने के कारण पौधे भोजन का निर्माण नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण पौधे का विकास भी सही से नहीं हो पाता है एवं पौधा समय से पहले ही सूख जाता है l 

  • सफेद वृद्धि पत्तियों की सतह के नीचे, तने एवं नोड्स पर विकसित होती है इन बिंदुओं पर से तना टूट जाता है और पौधा ऊपर गिर जाता है। कंदों में, बैंगनी भूरे रंग के धब्बे जिन्हें काटने पर पूरी सतह पर फैल जाते हैं, प्रभावित कंद सतह से केंद्र तक जंग लगे भूरे रंग के परिगलन हुए दिखाई देते है।

  • रासायनिक उपचार: एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC @ 300 मिली या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम या टेबुकोनाजोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम या मेटालैक्सिल 4 % + मैनकोज़ेब 64%WP@ 600 ग्राम या टेबुकोनाजोल 50% + ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25% WG 150 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करे l 

  • जैविक उपचार: स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करे l

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

नोवामैक्स का बस एक स्प्रे बदलते मौसम में फसल को देगा संपूर्ण सुरक्षा

NovaMaxx is a great tonic for crops
  • मौसम में अचानक बदलाव के कारण पौध विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, इससे फसलों को बचाने के लिए, करें नोवामैक्स का छिड़काव। 

  • नोवामैक्स हर फसल का च्यवनप्राश, जो रखेगा फसलों को तनाव मुक्त !

  • नोवामैक्स (जिब्रालिक अम्ल 0.001%) गेहूँ, सब्जीवर्गीय, धान, मक्का, अनाज, कपास, गन्ना, मूंगफली, सोयाबीन आदि फसलों के लिए बेहद प्रभावशाली है।

  • जो ठण्ड, सूखा, अधिक पानी और कीट बीमारी के हमले जैसे तनाव से फसल को बचाने में मदद करता है।

  • इससे पौधों और फल का आकार बढ़ता है साथ ही फूल उत्तेजित भी होते हैं। यह सल्फर और कॉपर आधारित उत्पाद के साथ मिश्रित नहीं होगा बाकि सभी कीटनाशक और उर्वरक के साथ मिलाया जा सकता है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

कद्दू वर्गीय फसल में कुकम्बर मोज़ेक वाइरस के लक्षण एवं रोकथाम के उपाय!

Symptoms and preventive measures of Cucumber mosaic virus in Cucurbits crop
  • कुकम्बर मोज़ेक वाइरस का रोगवाहक माहु कीट है। कद्दु वर्गीय फसलें, कुकम्बर मोज़ेक वाइरस के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। 

  • इसके प्रकोप से शुरुआत में पत्तियों पर पानी से भरे पीले धब्बे विकसित होते हैं। 

  • ये धब्बे तेजी से बढ़ते हैं और हल्के भूरे या सफेद केंद्र के साथ पहले गोलाकार आकृति लेते हैं और फिर अनियमित आकृति में बदल जाते हैं।

  • ये धब्बे आपस में मिलकर बड़े घाव में परिवर्तित हो जाते हैं।

  • पौधे गंभीर रूप से बौने हो जाते हैं और पत्तियां विकृत हो जाती हैं। 

  • फूल व फल निर्माण की अवस्था में संक्रमण होने पर इसके कारण फल विकृत हो जाते हैं और इसकी वजह से पैदावार में भारी कमी आती है। 

  • अंत में पत्तियां सूख जाती हैं और पौधा भी मर जाता है। 

रोकथाम के उपाय 

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए, एडमायर (इमिडाक्लोप्रिड 70% डब्ल्यूजी) @ 14 ग्राम + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

  • 3 दिन बाद, प्रिवेंटल BV @ 100 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

मटर की फसल में फली छेदक इल्ली के क्षति के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of pod borer caterpillars in pea crops

फल छेदक इल्ली के क्षति के लक्षण: प्रारंभिक अवस्था में ये पत्तियों को खाते हैं। फूल एवं फली की अवस्था में गंभीर रूप से विकासशील फली में छेद करते हैं और बीजों को खाते हैं। इसकी इल्ली सिर को आमतौर पर फली के अंदर और शरीर के अधिकांश हिस्से को बाहर की ओर रखती है।

नियंत्रण के उपाय: इस कीट के नियंत्रण के लिए, तुस्क (मैलाथियान 50.00% ईसी) @ 600 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो शेयर करना ना भूलें।

Share

आलू की फसल में पछेती झुलसा के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय!

Symptoms and control measures of late blight in potato crops

क्षति के लक्षण: इस रोग से पौधों के पत्ते, तने एवं कंद प्रभावित होते हैं। सबसे पहले रोग के ये लक्षण पत्तियों के सिरों और किनारों पर पानी से लथपथ छोटे-छोटे भूरे धब्बे विकसित होते हैं। इन धब्बों के चारों ओर कवक की एक सफेद कपास जैसी संरचना दिखाई देती है। अनुकूल मौसम की स्थिति में जैसे – कम तापमान, उच्च आर्द्रता में रोग तेजी से फैलता है और पूरी फसल 10-14 दिनों के भीतर नष्ट हो सकती है और झुलसा हुआ रूप ले सकती है।

नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए, नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकनाज़ोल 18.3% एससी) @ 300 मिली या करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी) @ 700 ग्राम + नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001 % एल) 300 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

लहसुन की फसल में 50-55 दिन की अवस्था में पोषक तत्व प्रबंधन!

Nutrient management in garlic crops at the 50-55 days old stage

लहसुन की फसल अभी 50-55 दिन की हो रही है, इस अवस्था में अच्छे कंद विकास के लिए, बोरो 1 किग्रा + कैल्शियम नाइट्रेट 10 किग्रा + एमओपी 20 किग्रा को आपस में मिलाकर एक एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव कर हल्की सिंचाई करें। 

उपयोग के फायदे

बोरोन

  • फफूंद जनित रोगों से प्रतिरोध क्षमता बढ़ाता है। 

  • लहसुन के कंदों में चमक और रंग अच्छा आता है।

कैल्शियम नाइट्रेट

  • कंद का आकार बढ़ाता है, एवं बेहतर गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त होती है।

  • लहसुन के कंद ठोस बनते हैं जिनसे इनकी भंडारण क्षमता बढ़ती हैं। 

पोटैशियम 

  • पोटैशियम पौधे में संश्लेषित शर्करा को पौधे के सभी भागो तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटैशियम प्राकृतिक नत्रजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है। पौधों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है। पोटैशियम से उपज बढ़ती हैं। 

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो शेयर करना ना भूलें।

Share

भिंडी की भरपूर उपज के लिए ऐसे करें खेत को तैयार और पोषण प्रबंधन!

Watermelon and Muskmelon field preparation
  • भिंडी की फसल के लिए भुरभुरी, अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी जिसका पीएच रेंज 6.0-6.8 तक हो सबसे उपयुक्त होती है। 

  • कार्बनिक पदार्थों से भरपूर भूमि में बीज का अंकुरण एवं जड़ों का विकास अच्छा होता है। 

  • पिछली फसल की कटाई के बाद एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें। 

  • इसके बाद, गोबर की खाद 8 से 10 टन + स्पीड कम्पोस्ट 4 किग्रा + कॉम्बैट (ट्राईकोडर्मा विरिडी 1.0 % डब्ल्यूपी) @ 2 किलोग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें।

  • इसके बाद 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें, फिर खेत की तैयारी करें और आखिर में पाटा चलाकर खेत समतल बना लें।

  • खेत तैयार होने के बाद, बीज की बुवाई सिफारिश की गयी दूरी पर ही करें।

  • पौध से पौध एवं कतार से कतार की दूरी 30 x 30 सेमी रखें। एक एकड़ क्षेत्र के लिए 1.5-2.2 किग्रा बीज, पर्याप्त होता है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो  इसे शेयर करना ना भूलें।

Share

प्याज की 40-45 दिन की फसल अवस्था में कंद निर्माण के लिए पोषक तत्व प्रबंधन!

Nutrient management required for bulb formation at the 40-45 day old stage of onion crop

प्याज की फसल में रोपाई के 40-45 दिन बाद, कंद निर्माण होना प्रारम्भ हो जाता है। इस अवस्था में, यूरिया 30 किग्रा + कैल्शियम नाइट्रेट 10 किग्रा + मैगनेशियम सल्फेट 10 किग्रा को आपस में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र में, सामान रूप से भुरकाव कर हल्की सिंचाई करें।

यूरिया: यह नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके उपयोग से, पत्तियों में पीलापन एवं सूखने की समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तेज़ करता है।

कैल्शियम नाइट्रेट: इसमें 15.5% नाइट्रोजन और 18.5% कैल्शियम होता है। कैल्शियम के अलावा, इससे फसलों को नाइट्रोजन की भी पूर्ती होती है। पौधों की वृद्धि के लिए कैल्शियम एक महत्वपूर्ण द्वितीयक पोषक तत्व है। कैल्शियम नाइट्रेट फसलों के लिए कैल्शियम का एक उत्कृष्ट स्रोत है। यह फसलों में उपज की गुणवत्ता और लंबी शेल्फ लाइफ को बढ़ाता है। यह पौधों में कंदो के विकास में मदद करता है। 

मैग्नीशियम सल्फेट: इसमें 9.5% मैग्नीशियम और 12% सल्फर होता है। मैग्नीशियम के साथ यह फसलों को सल्फर भी उपलब्ध करवाता है जिससे फसल की गुणवत्ता के साथ-साथ उत्पादन भी बेहतर मिलता है। यह एंजाइम एवं कार्बोहाइड्रेट के परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण में मदद करता है और फास्फोरस ग्रहण और अवशोषण में भी सुधार करता है।

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो  शेयर करना ना भूलें।

Share

मिर्च की फसल में काले थ्रिप्स के क्षति के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Black thrips damage symptoms and control measures in chilli crop

क्षति के लक्षण: मिर्च की फसल में होने वाला काला थ्रिप्स एक बहुत ही घातक कीट है। यह कीट पहले पत्ती की निचली सतह से रस चूसते हैं और धीरे धीरे टहनी, फूल एवं फल पर भी हमला करते हैं। फसल की फूल अवस्था में ये फूलों को प्रभावित करके फलों के विकास को रोक देते हैं। फूलों को नुकसान पहुंचाने के कारण इसे “फ्लावर थ्रिप्स” भी कहा जाता है। गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं।

नियंत्रण के उपाय: इस  कीट के नियंत्रण के लिए, लार्गो (स्पाइनेटोरम 11.7 % एससी) @ 180-200 मिली + नीमगोल्ड (एज़ाडिरेक्टिन 3000 पीपीएम) @ 800 मिली + नोवामैक्स @ 300 मिली + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली, प्रति एकड़, 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें

कृषि क्षेत्र एवं किसानों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए ग्रामोफ़ोन के लेख प्रतिदिन जरूर पढ़ें। आज की जानकारी पसंद आई हो तो इसे शेयर करना ना भूलें।

Share