कपास की फसल में 40-50 दिनों में इन उर्वरकों की पूर्ति है जरूरी

How to supply fertilizer in cotton crop in 40-50 days
  • कपास की फसल में 40-45 दिनों की अवस्था, डेंडू बनने की शुरुआती अवस्था होती है। इस अवस्था में कपास की फसल को अधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है इस हेतु निम्नलिखित पोषक तत्वों का उपयोग करना जरूरी हो जाता है।

  • यूरिया @ 30 किलो + MOP @ 30 किलो + मैग्नीशियम सल्फेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से भूमि में मिलाएं।

  • यूरिया: कपास की फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से पत्तियों में पीलापन एवं सूखने जैसी समस्या नहीं आती है, यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को भी तेज़ करता है।

  • MOP (पोटाश): पोटाश संश्लेषित शर्करा को कपास के पौधे के सभी भागों तक पहुंचाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटाश प्राकृतिक नत्रजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है और पौधों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है।

  • मैग्नीशियम सल्फेट: मेग्नेशियम सल्फेट अनुप्रयोग से कपास की फसल में हरियाली बढ़ती है एवं प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में तेज़ी आती है। अंततः उच्च पैदावार और उत्पादन की गुणवत्ता भी बढ़ती है।

  • इस प्रकार पोषण प्रबधन करने से कपास की फसल में नाइट्रोज़न की पूर्ति बहुत अच्छे से होती है। पोटाश के कारण डेंडु की संख्या और आकार में बढ़ोतरी होती है। मैगनेशियम सल्फेट सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति करता है। यदि डेंडू का निर्माण बहुत अच्छा होता है तो कपास का उत्पादन भी अधिक होता है।

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खरतपतवारों की ऐसे करें पहचान, जानें इससे फसलों को होते हैं किस प्रकार के नुकसान

Know what kind of damage weed causes to crops

फसलों को होने वाले नुकसान में सबसे ज्यादा करीब 35 से 70 प्रतिशत तो सिर्फ खरपतवारों के प्रकोप से होता होता है। खरपतवार नैसर्गिक संसाधन जैसे प्रकाश, जगह, जल, वायु के साथ-साथ पोषक तत्व के लिये फसल से प्रतिस्पर्धा करते हैं और उपज में भारी कमी लाते हैं। खरपतवारों के अधिक प्रकोप के कारण फसल में रोगों का प्रकोप भी बहुत अधिक बढ़ जाता है।

फसल में तीन प्रकार के खरपतवार होते हैं

  • सकरी पत्ती/एक बीज़ पत्रीय खरपतवार: घास परिवार के खरपतवारों की पत्तियाँ, पतली एवं लम्बी होती हैं तथा इन पत्तियों पर समांतर धारियां पाई जाती हैं। यह एक बीज पत्रीय पौधे होते हैं। इनके उदाहरणों में सांवक (इकाईनोक्लोआ कोलोना) तथा कोदों (इल्यूसिन इंडिका) इत्यादि शामिल हैं।

  • चौड़ी पत्ती/दो बीज़ पत्रीय खरपतवार: इस प्रकार के खरपतवारों की पत्तियाँ प्राय: चौड़ी होती हैं। यह मुख्यत: दो बीजपत्रीय पौधे होते हैं। इनमें छोटी और बड़ी दूधी, फुलकिया, दिवालिया, बोखाना, जंगली चौलाई (अमरेन्थस बिरिडिस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अजरेन्सिया), जंगली जूट (कोरकोरस एकुटैंन्गुलस) आदि शामिल होते हैं।

  • वार्षिक खरपतवार: इन खरपतवारों की पत्तियां लंबी तथा तना तीन किनारे वाला ठोस होता है। इनकी जड़ों में गांठे (ट्यूबर) पाए जाते हैं जो भोजन इकट्ठा करके नए पौधों को जन्म देने में सहायक होते हैं। इनमे दूब, मोथा (साइपेरस रोटन्ड्स, साइपेरस स्पीशीज) इत्यादि शामिल होते हैं।

खरपतवार के कारण फसल की उपज बहुत प्रभावित होती है। फसल को दिए जाने वाले पोषक तत्व भी खरपतवार के द्वारा ग्रहण कर लिए जाते हैं। सामान्यतः खरपतवार फसलों को मिलने वाली 47% फास्फोरस, 50% पोटाश, 39% कैल्शियम और 34 मैग्नीशियम तक का उपयोग कर लेते हैं। जिससे फसल की उपज घट जाती है। इन खरपतवारों के कारण फसल पर कवक जनित रोगों और कीटों का प्रकोप भी बहुत अधिक होता है।

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पत्तागोभी की नर्सरी के इन उत्पादों के साथ यह पहला छिड़काव जरूर करें

Which products should be used for the first spray in the cabbage nursery
  • पत्तागोभी की नर्सरी में बुवाई के बाद 10-15 दिनों की अवस्था में छिड़काव करना अति आवश्यक होता है।

  • इस छिड़काव के द्वारा पौध गलन और जड़ गलन जैसे रोग गोभी की फसल में नहीं लगते हैं।

  • पत्तागोभी की नर्सरी की प्रारंभिक अवस्था में लगने वाले कीटों का भी इस छिड़काव से आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है।

  • 10 दिनों की नर्सरी अवस्था दरअसल अंकुरण के बाद की प्रारभिक अवस्था होती है, इस अवस्था में दो प्रकार से छिड़काव कर पौध की रक्षा की जा सकती है।

  • कीटों के प्रकोप से बचने के लिए, थायमेथोक्सम 25 % WP@ 10 ग्राम/पंप या बवेरिया @ 50 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

  • किसी भी तरह के कवक जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W 30 ग्राम/पंप या ट्राइकोडर्मा 25 ग्राम + स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 25 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

  • नर्सरी में अच्छी पौध बढ़वार के लिए ह्यूमिक एसिड @ 10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।

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टमाटर की मुख्य खेत में रोपाई के बाद इस पहले छिड़काव से मिलेंगे कई लाभ

Benefits of first spraying after tomato transplanting
  • टमाटर के पौध की मुख्य खेत में रोपाई के बाद, फसल में रोगों व कीटों का प्रकोप होने की संभावना होती है। इनसे टमाटर की फसल की रक्षा करना बहुत आवश्यक होता है।

  • टमाटर की रोपाई के 10-15 दिनों में कवक रोग जैसे झुलसा, पत्ती धब्बा, उकठा रोग लगने की पूरी संभावना रहती है। कीट प्रकोप की बात करें तो रस चूसक कीट जैसे थ्रिप्स, एफिड, जेसिड, सफेद मक्खी, मकड़ी इत्यादि प्रमुख हैं।

  • टमाटर की रोप को मुख्य खेत में लगाया जाता है। इस अवस्था में पौधे को अच्छे से अपनी जड़ों को भूमि में फैलाने के लिए पोषक तत्व की आवश्यकता होती है। इसके लिए छिड़काव के रूप मे सूक्ष्म पोषक तत्व का प्रबधन करना बहुत आवश्यक है।

  • इन्ही कीट, कवक एवं जीवाणु रोगों से टमाटर की फसल की रक्षा के लिए एवं फसल की अच्छी बढ़वार के लिए छिड़काव करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इसके लिए सीवीड एक्सट्रेक्ट + एमिनो एसिड + फल्विक एसिड 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। इससे टमाटर की फसल में आवश्यक पोषक तत्व की पूर्ति एवं अच्छी बढ़वार होती है।

  • कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से कवक एवं जीवाणु जनित रोगों की रोकथाम लिए छिड़काव करें या जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • थियामेंथोक्साम 25% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या सायनट्रानिलीप्रोल 10.26% OD@ 240 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से रस चूसक कीटों के नियंत्रण के लिए छिड़काव करें।

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सोयाबीन को काफी नुकसान पहुंचाएगी पत्ती खाने वाली ये इल्ली, जानें नियंत्रण विधि

How to control leaf eating caterpillar in soybean crop

इस कीट के लार्वा पत्ती पर आक्रमण करते हैं और पत्ती के नरम ऊतकों (भागों) को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं। यह इल्ली एक पत्ती को खाने के बाद नई पत्तियों पर भी आक्रमण करती है फलस्वरूप यह इल्ली 40-50% सोयाबीन की फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। जब सोयाबीन की फसल को अलग से यूरिया दी जाती है तो सोयाबीन की फसल में इल्ली के हमले की संभावना अधिक हो जाती है।

सोयाबीन की फसल को इस इल्ली से बचाने के लिए यांत्रिक, रसायनिक एवं जैविक
विधियों से रोकथाम की जा सकती है।

यांत्रिक नियंत्रण: सोयाबीन की बुआई के पहले गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें। इससे इस इल्ली के प्यूपा ज़मीन में ही नष्ट हो जाएंगे। मानसून पूर्व बुवाई ना करें क्योंकि इससे इल्ली को अपनी संख्या बढ़ाने के लिए उचित तापमान मिल जाता है। फसल की बहुत अधिक घनी बुवाई ना करें। यदि कोई संक्रमित पौधा दिखाई से तो उसे उखाड़ कर नष्ट कर दें। इल्ली के अच्छे नियंत्रण के लिए खेत में 10 नग प्रति एकड़ की दर से फेरामोन ट्रैप स्थापित करें और इस ट्रैप में लगने वाले ल्युर को हर 3 सप्ताह के अंतराल से बदलते रहें।

रासायनिक नियंत्रण: प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 20% WG @ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ का छिड़काव करें।

जैविक नियंत्रण: बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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जिप्सम का उपयोग खेतों में कब करना होता है लाभकारी?

When should farmers use gypsum?
  • जिप्सम एक अच्छा भू सुधारक है। यह क्षारीय भूमि को सुधारने का कार्य करता है।

  • जिप्सम का उपयोग किसी भी फसल की बुआई के पूर्व खेत में करना चाहिए।

  • जिप्सम को खेत में बिखेर दें और खेत की हल्की जुताई करें।

  • जिप्सम को मृदा में अधिक गहराई तक नहीं मिलाना चाहिए।

  • जिप्सम का उपयोग करने पर, फसल को कैल्शियम 22% एवं सल्फर 18% मिलता है।

  • मृदा परिक्षण के परिणाम के अनुसार ही, जिप्सम की उचित मात्रा का उपयोग अपने खेत में करें।

  • फसलों में जड़ों की सामान्य वृद्धि एवं विकास में जिप्सम के उपयोग से सहायता मिलती है।

  • जिप्सम का उपयोग सभी प्रकार की फसल में कर सकते हैं, खासकर के सब्जी और तिलहनी फसल में इसके प्रयोग से काफी लाभ होता है।

स्मार्ट कृषि एवं उन्नत कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों व यंत्रों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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सोयाबीन में होगा गर्डल बीटल का प्रकोप, जानें रोकथाम के उपाय

Damage and prevention measures of girdle beetle in soybean

गर्डल बीटल कीट की मादा तने के अंदर अंडे देती है एवं जब अंडे से इल्ली निकलती है तो वो तने को अंदर से खाकर कमजोर कर देती है। इसके कारण, तना खोखला हो जाता है, पोषक तत्व पत्तियों तक नहीं पहुंच पाते है एवं पत्तियां मुरझाकर सूख जाती हैं। फसल के उत्पादन में भी काफी कमी हो जाती है।

यांत्रिक प्रबंधन: गर्मियों में खाली खेत की गहरी जुताई करें। अधिक घनी फसल ना बोयें। अधिक नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का उपयोग ना करें, यदि संक्रमण बहुत अधिक हो तो उचित रसायनों का उपयोग करें।

रासायनिक प्रबंधन: लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% EC @ 200 मिली/एकड़ या बीटासायफ्लूथ्रिन 8.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81 OD% @ 150 मिली/एकड़ प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC @ 80 मिली/एकड़, फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 40 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

जैविक प्रबंधन: बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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मक्का की फसल फॉल आर्मी वर्म से हो जायेगी बर्बाद, जल्द कर लें बचाव

Management of fall army worm in Maize Crop,

फॉल आर्मी वर्म दिन में मिट्टी के ढेलों, पुआल, खर-पात के ढेर में छिप जाता है और रात भर फ़सलों को खाता रहता है। प्रभावित खेत/फसल में इसकी संख्या काफी देखी जा सकती है। इस कीट की प्रवृत्ति बड़ी तेजी से खाने की होती है और यह काफी कम समय में पूरे खेत की फसल को खाकर प्रभावित कर सकता है। आर्मी वर्म एक साथ समूह में फसल पर आक्रमण करता है एवं मूलतः रात में फ़सलों की पत्तियों या अन्य हरे भाग को किनारे से काटता है तथा दिन में यह खेत में स्थित दरार या ढेले के नीचे या घने फसल के छाये में छिपा रहता है। जिन क्षेत्रों में इस कीट की संख्या अधिक है उन क्षेत्रों में कीटनाशी का छिड़काव तत्काल किया जाना चाहिए।

  • रासायनिक प्रबधन: नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 39.35% SC @ 50 मिली/एकड़ या क्लोरांट्रानिलप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़, या इमाबेक्टीन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ + बवेरिया बैसियना @ 250 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

  • जैविक प्रबधन: बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जिन क्षेत्रों में इसकी संख्या कम हो, उन क्षेत्रों में कृषक बंधु अपने खेत के मेड़ पर एवं खेत के बीच में जगह-जगह पुआल का छोटे-छोटे ढेर लगा कर रखें। धूप में आर्मी वर्म (सैनिक कीट) छाया की खोज में इन पुआल के ढेर में छिप जाता है। शाम को इन पुआल के ढेर को इकट्ठा करके जला देना चाहिए।

  • इसके अलावा आप अपने खेत में फेरोमोन ट्रैप का उपयोग भी कर सकते हैं। एक एकड़ में 10 ट्रैप लगाएं।

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कपास की फसल में रस चूसक कीट सफेद मक्खी का ऐसे करें नियंत्रण

How to control the sucking pest white fly in cotton crop

सफ़ेद मक्खी एक रस चूसक कीट है जो कपास की फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है।

कीट की पहचान कैसे करें?

यह मक्खियां सफेद रंग की होती हैं। इनके अंडे सफेद एवं मटमैले रंग के होते हैं। इसके निम्फ हल्के पीले रंग के होते हैं।

जानें इससे होने वाले नुकसान!

  • इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों रूप कपास की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।

  • यह कीट पत्तियों के नीचे बैठ कर उनका रस चूसते हैं और पौधे के विकास को प्रभावित करते हैं।

  • सफेद मक्खियां पत्तियों का रस चूसती हैं जिससे पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और ऊपर की और मुड़ जाती हैं। कुछ समय बाद ये पत्तियां लाल होने लगती हैं।

  • अधिक प्रकोप की स्थिति में, कपास की फसल पूर्णतः संक्रमित हो जाती है। फसल की किसी भी अवस्था पर इस कीट का प्रकोप हो सकता है।

  • प्रकोप अधिक होने पर, पौधों का विकास रुक जाता है जिससे पैदावार में भारी कमी हो जाती है।

  • इसके अलावा सफ़ेद मक्खी, वायरस जनित रोगों को फैलाने का काम भी करती हैं।

प्रबंधन: सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए, डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामिड 50% WG @ 60 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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टमाटर की रोप का रोपाई के पूर्व उपचार जरूर करें और साथ ही बरतें ये सावधानियाँ

How to treat tomato seedlings before transplanting and precautions
  • टमाटर की फसल की बुआई नर्सरी में की जाती है और नर्सरी से स्वस्थ पौध को उखाड़कर मुख्य खेत में रोपाई की जाती है।

  • नर्सरी में बुआई के 20 से 30 दिनों बाद टमाटर की पौध मुख्य खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। रोपाई का उपयुक्त समय मध्य जून से मध्य जुलाई तक होता है।

  • रोपाई के पूर्व नर्सरी में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए, ऐसा करने से पौध की जड़ नहीं टूटती, वृद्धि अच्छी होती है और पौध आसानी से जमीन से निकल जाती है। पौध को जमीन से निकालने के बाद सीधे धूप मे नहीं रखना चाहिए।

  • पौध की जड़ों के अच्छे विकास के लिए 5 ग्राम माइकोरायज़ा प्रति लीटर की दर से घोल बना लें, ध्यान रखें की पानी की मात्रा आवश्यकतानुसार ही हो। टमाटर की पौध की जड़ों को इस घोल में 10 मिनट के लिए डूबाकर रखें। यह प्रक्रिया अपनाने के बाद ही खेत में पौध का रोपण करना चाहिए।

  • मायकोराइज़ा से उपचार करने से, पोषक तत्वों का अवशोषण सुगम होता है। टमाटर की पौध को खेत में रोपाई के बाद अच्छी वृद्धि करने में सहायता मिलती है।

  • इससे सफेद जड़ का विकास बढ़ जाता है। पौधों को पोषक तत्व ग्रहण करने में मदद मिलती है और प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया भी बढ़ जाती है। टमाटर की फसल को वातावरणीय तनाव से सुरक्षित रखने में भी यह बहुत मदद करता है।

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