गेहूँ में पद विगलन रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of Foot rot in wheat
  • यह रोग अधिक तापमान वाले प्रदेशों जैसे मध्यप्रदेश, गुजरात तथा कर्नाटक में मुख्य रूप से देखा जाता है। यह रोग मुख्यतः सोयाबीन के बाद गेहूँ की फसल लेने पर अधिक देखने को मिलता है।

  • यह रोग स्क्लेरोशियम रोलफसाई नामक फफूंद से होता है जो कि संक्रमित भूमि में पाया जाता है। इस रोग से ग्रसित पौधों की जड़ से ऊपर कॉलर वाले भाग पर सफेद फफूंद पैदा होती है तथा तने का भूमि से ऊपर का भाग सड़ जाता है और आखिर में रोगी पौधा मर जाता है।

  • रासायनिक उपचार: एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% एससी @ 300 मिली/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% ईसी @ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार: स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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सरसों में आरा मक्खी के प्रकोप की ऐसे करें पहचान व नियंत्रण

How to identify and control the outbreak of sawfly in mustard

  • सरसों की फसल में अंकुरण के 25-30 दिन बाद आरा मक्खी बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है।

  • इस कीट के मादा वयस्क का पिछला भाग काफी विकसित एवं आरी के जैसा होता है जिसकी मदद से ये पत्तियों में छेद करके अंडे देती है। यह पौधे से रस को चूसती है और फूल को संक्रमित कर उड़ जाती है। अक्सर पुष्प क्रम के प्रमुख भाग को यह मक्खी चट कर जाती है, जिससे पौधे की बढ़वार भी रुक जाती है।

  • इस कीट का लार्वा सूर्यास्त के बाद एवं प्रातः काल के समय पत्तियों को खाता है एवं दिन में मिट्टी के अंदर छिपा रहता है।

  • आरा मक्खी का फसल पर अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों के स्थान पर शिराओं का जाल ही शेष रह जाता है।

  • इसके नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफॉस 50% ईसी @ 500 मिली या थियामेथॉक्साम 12.6% + लैम्ब्डा सिहलोथ्रिन 9.5% जेडसी @ 80 ग्राम या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें l

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तरबूज की खेती से अच्छी उपज के लिए ऐसे करें उर्वरक प्रबंधन

  • तरबूज़ की फसल में उर्वरक प्रबंधन करने से, पोषण से संबंधित समस्याओं का समाधान होता है एवं उच्च गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त होती है। 

  • बुवाई के पहले खेत जी तैयारी के समय DAP @ 50 किलो + बोरोनेटेड एसएसपी @ 75 किलो + पोटाश @ 75 किलो + जिंक सल्फेट @ 10 किलो + मैग्नीशियम सल्फेट @ 10 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से दें। 

  • बुवाई के समय 20 किलो यूरिया के साथ समृद्धि किट [ट्राइकोडर्मा विरडी (राइज़ोकेयर) 500 ग्राम + एनपीके बैक्टीरिया का संघ (टीम बायो-3) 3 किलो  + ZnSB (ताबा जी) 4 किलो + सीवीड एक्स्ट्रैक्ट, ह्यूमिक एसिड, अमीनो एसिड और माइकोराइजा (मैक्समायको ) 2 किलो] प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।  

  • इस प्रकार उर्वरक प्रबंधन करने से फसल एवं मिट्टी में फास्फोरस, पोटाश, नाइट्रोजन के साथ अन्य  उर्वरक एवं पोषक तत्वों की पूर्ति आसानी से हो जाती है। 

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चने की फसल में ऐसे करें एस्कोकाइटा ब्लाइट की रोकथाम

Management of Ascochyta blight in Gram Crop
  • इन दिनों एस्कोकाइटा ब्लाइट के लक्षण चने की फसल में आमतौर पर देखने को मिल रहे हैं। इस रोग से ग्रसित पौधों के लक्षण पत्तियों, तने और पेटीओल्स पर छोटे – छोटे गोलाकार भूरे धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं।

  • अनुकूल परिस्थितियों में, ये धब्बे तेजी से बढ़ते हैं जो पत्तियों और कलियों को प्रभावित करते हैं।

  • गंभीर संक्रमण के समय पौधा अचानक से सूखने लगता है एवं संक्रमण के बाद वाली अवस्था में बीज सिकुड़ने लगते हैं।

  • ध्यान रखें की यह बीमारी बीज जनित होती है तथा पुरानी फसल के अवशेषों द्वारा अधिक फैलती है l 

प्रबंधन: 

  • रासायनिक नियंत्रण के लिए कासुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% डब्ल्यूपी @ 300 ग्राम  या कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम या क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी @ 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें l 

  • जैविक  नियंत्रण के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस @ 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें l

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आलू की फसल में ऐसे करें सफेद मक्खी का नियंत्रण

Control of white fly in potato crop
  • इस कीट के शिशु एवं वयस्क दोनों ही आलू की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।

  • यह पत्तियों का रस चूस कर पौधे के विकास को बाधित कर देती है एवं पौधे पर उत्पन्न होने वाली सूटी मोल्ड नामक जमाव का कारण भी बनती है।

  • अधिक प्रकोप की स्थिति में आलू की फसल पूर्णतः संक्रमित हो जाती है। फसल के पूर्ण विकसित हो जाने पर भी इस कीट का प्रकोप होता है। इसके कारण से फसलों की पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं।

  • प्रबंधन: इस कीट के निवारण के लिए डायफेनथुरोंन 50% SP@ 250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामाइड 50% WG@ 60मिली/एकड़ या एसिटामेप्रिड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफेन 10% + बॉयफेनथ्रीन 10% EC 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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मटर की फसल के फूल अवस्था में जरूर करें पोषण प्रबंधन

Nutritional management at flowering stage in pea crop
  • मटर की फसल में जो सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है वो है फूल अवस्था और इस अवस्था में अच्छे फूल विकास के लिए पोषण प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • बदलते मौसम एवं पोषक तत्वों की कमी के कारण मटर की फसल में फूल गिरने की समस्या भी आ जाती है।

  • अधिक मात्रा में फूल गिरने के कारण मटर की फसल में फल उत्पादन बहुत प्रभावित होता है।

  • इस समस्या के निवारण के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • फूल गिरने से रोकने के लिए होमब्रेसिनोलाइड @ 100 मिली/एकड़ या पेक्लोबूट्राज़ोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • फसल में फूलों की संख्या बढ़ाने के लिए 0:52:34 @ 1 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं।

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फसलों का बड़ा दुश्मन है खरपतवार, जानें क्यों जरूरी है इनकी रोकथाम?

Weeds are the biggest enemy of crops
  • खरपतवार प्रत्येक फसल के लिए बहुत बड़ी समस्या मानी जाती है।

  • फसलों की गुणवत्ता एवं पैदावार को बढ़ाने के लिए खरपतवार पर नियंत्रण करना आवश्यक है।

  • कई बार खरपतवारों की अधिकता से परेशान किसान इससे निजात पाने के लिए विभिन्न खरपतवारनाशक का प्रयोग करते हैं।

  • खरपतवारनाशक खेत की मिट्टी के साथ फसलों एवं हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक साबित होते हैं, साथ ही फसल में खरपतवारनाशी एक निश्चित समय अर्थात खरपतवारों में 2-5 पत्ती आने के पहले तक ही उपयोग कर सकते हैं। इस अवस्था के बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई ही एक विकल्प रह जाता है।

  • निराई गुड़ाई के लिए विभिन्न यंत्रों का उपयोग किया जा सकता है जिनमें खुरपी, फावड़ा, कुदाली, पशु-चालित निराई यंत्र (त्रिफाली, अकोला, डोरा, बारडोली) कोनो वीडर, व्हील हैंडल, स्वचालित रोटरी पावर वीडर आदि शामिल हैं।

कृषि एवं कृषि उत्पादों से सम्बंधित ऐसी ही महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। उन्नत कृषि उत्पादों की खरीदी के लिए ग्रामोफ़ोन के बाजार विकल्प पर जाना ना भूलें।

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रबी की फसल में अच्छे उत्पादन के लिए तापमान नियंत्रण के उपाय

Temperature Control Measures for Good Production in Rabi Crop
  • आइये जानते हैं अच्छी फसल उत्पादन के लिए तापमान (कम होने की दशा में) नियंत्रण के क्या क्या उपाय उपयोग किये जा सकते हैं।

  • खेतों की सिंचाई जरूरी: जब भी तापमान कम होने की संभावना हो या मौसम पूर्वानुमान विभाग से पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई देनी चाहिए। जिससे तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को तापमान कम से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है सिंचाई करने से 0.5 – 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में बढ़ोतरी हो जाती हैं।

  • पौधों को ढकें: तापमान कम होने का सबसे अधिक नुकसान नर्सरी में होता है। नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढकने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से प्लास्टिक के अंदर का तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। जिससे सतह का तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुंच पाता। पॉलीथिन की जगह पर पुआल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पौधों का दक्षिण पूर्वी भाग में खुला रहे, ताकि पौधों को सुबह व दोपहर को धूप मिलती रहे।

  • वायु अवरोधक: ये अवरोधक शीत लहरों की तीव्रता को कम करके फसल को होने वाले नुकसान से बचाते हैं। इसके लिए खेत के चारों ओर ऐसी फसलों की बुवाई करनी चाहिए जिससे की हवा को कुछ हद तक रोका जा सके जैसे चने के खेत में मक्का की बुवाई करनी चाहिए। फलवृक्षों की पौध को पाले से बचाने के लिए पुआल या किसी अन्य वस्तु से धूप आने वाली दिशा को छोड़कर ढक देना चाहिए।

  • खेत के पास धुंआ करें: तापमान नियंत्रण के लिए आप अपने खेत में धुंआ पैदा कर दें, जिससे तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिर पाता और फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है।

  • पाले से बचाव के लिए स्यूडोमोनास का छिड़काव 500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब करें।

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आलू की फसल में ऐसे करें रस चूसक कीटों का प्रबंधन

Management of sucking pests in potato crop
  • आलू की फसल में रस चूसक कीटों के कारण भारी नुकसान होता है, साथ ही फसल की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर होता है। आलू की फसल में मुख्यतः माहू, हरा तेला तथा चेपा, सफ़ेद मक्खी, मकड़ी आदि का प्रकोप होता है। समय रहते इन कीटों पर नियंत्रण करना आवश्यक है।

  • माहू, हरा तेला: इसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों का रस चूस कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं।

  • चेपा: यह अति सूक्ष्म कीट काले अथवा पीले रंग के होते हैं। इनके वयस्क तथा शिशु पत्तियों को खुरचकर पत्तियों से रस चूसते हैं।

  • सफ़ेद मक्खी: यह आकार में छोटे एवं सफेद रंग के होते हैं जो पत्तियों का रस चूसते हैं। इससे पौधों के विकास में बाधा आती है। सफ़ेद मक्खी विषाणु के लिए वाहक का कार्य करती है।

  • माहू, हरा तेला, चेपा, सफ़ेद मक्खी के प्रबंधन के लिए थियामेथोक्सम 25% WP 100 ग्राम या एसीफेट 75% एसपी 300 ग्राम/एकड़ या ऐसिटामिप्रिड 20% एसपी 100 ग्राम या डाइफेंथियूरॉन 50% WP 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • मकड़ी: पत्तियाँ लाल-भूरे रंग की होकर मुरझा कर सूख जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए प्रॉपरजाइट 57% ईसी 400 मिली या एथिओन 50% ईसी 600 मिली या सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • आलू के खेतों में प्रति एकड़ 10 येलो स्टिकी ट्रैप लगाकर भी फसल को रस-चूसक कीटों के प्रकोप से बचाया जा सकता है।

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सरसों की फसल में माहू प्रकोप के लक्षणों को पहचानें और करें नियंत्रण

Symptoms and control measures of aphid in mustard crop
  • कीट पहचान: माहू छोटे, मुलायम शरीर वाले, मोती के आकार के कीट होते हैं।

  • अनुकूल परिस्थिति: इनका प्रकोप आमतौर पर दिसंबर के दूसरे और तीसरे सप्ताह के दौरान होता है और मार्च तक जारी रहता है। माहू की तेजी से वृद्धि के लिए 70 से 80% आर्द्रता एवं 8 और 24°C के बीच का तापमान अनुकूल होता है। बारिश और आर्द्र मौसम कीटों के विकास को तेज करने में मदद करते हैं।

  • क्षति के लक्षण: निम्फ और वयस्क दोनों पत्तियों, कलियों और फली से रस चूसते हैं। संक्रमित पत्तियाँ मुड़ी हुई दिखाई देती हैं और उन्नत अवस्था में पौधे मुरझाकर मर जाते हैं। पौधे रूखे नजर आते हैं और कीड़ों द्वारा उत्सर्जित मीठे स्त्राव (हनीड्यू) पर काली फफूंद उग आती है।

  • नियंत्रण: थियामेथॉक्सम 25% WP 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 30.5% SC 100 मिली या फ्लोनिकामिड 50% WG 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। इन उत्पादों के साथ सिलिकॉन आधारित स्टिकर 5 मिली प्रति टैंक के अनुसार मिला सकते हैं।

  • इसके लिए पीले स्टिकी जाल 10 प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ मेटारीजियम 1 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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