मटर की फसल के फूल अवस्था में जरूर करें पोषण प्रबंधन

Nutritional management at flowering stage in pea crop
  • मटर की फसल में जो सबसे महत्वपूर्ण अवस्था होती है वो है फूल अवस्था और इस अवस्था में अच्छे फूल विकास के लिए पोषण प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • बदलते मौसम एवं पोषक तत्वों की कमी के कारण मटर की फसल में फूल गिरने की समस्या भी आ जाती है।

  • अधिक मात्रा में फूल गिरने के कारण मटर की फसल में फल उत्पादन बहुत प्रभावित होता है।

  • इस समस्या के निवारण के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • फूल गिरने से रोकने के लिए होमब्रेसिनोलाइड @ 100 मिली/एकड़ या पेक्लोबूट्राज़ोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • फसल में फूलों की संख्या बढ़ाने के लिए 0:52:34 @ 1 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर सकते हैं।

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फसलों का बड़ा दुश्मन है खरपतवार, जानें क्यों जरूरी है इनकी रोकथाम?

Weeds are the biggest enemy of crops
  • खरपतवार प्रत्येक फसल के लिए बहुत बड़ी समस्या मानी जाती है।

  • फसलों की गुणवत्ता एवं पैदावार को बढ़ाने के लिए खरपतवार पर नियंत्रण करना आवश्यक है।

  • कई बार खरपतवारों की अधिकता से परेशान किसान इससे निजात पाने के लिए विभिन्न खरपतवारनाशक का प्रयोग करते हैं।

  • खरपतवारनाशक खेत की मिट्टी के साथ फसलों एवं हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक साबित होते हैं, साथ ही फसल में खरपतवारनाशी एक निश्चित समय अर्थात खरपतवारों में 2-5 पत्ती आने के पहले तक ही उपयोग कर सकते हैं। इस अवस्था के बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई ही एक विकल्प रह जाता है।

  • निराई गुड़ाई के लिए विभिन्न यंत्रों का उपयोग किया जा सकता है जिनमें खुरपी, फावड़ा, कुदाली, पशु-चालित निराई यंत्र (त्रिफाली, अकोला, डोरा, बारडोली) कोनो वीडर, व्हील हैंडल, स्वचालित रोटरी पावर वीडर आदि शामिल हैं।

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रबी की फसल में अच्छे उत्पादन के लिए तापमान नियंत्रण के उपाय

Temperature Control Measures for Good Production in Rabi Crop
  • आइये जानते हैं अच्छी फसल उत्पादन के लिए तापमान (कम होने की दशा में) नियंत्रण के क्या क्या उपाय उपयोग किये जा सकते हैं।

  • खेतों की सिंचाई जरूरी: जब भी तापमान कम होने की संभावना हो या मौसम पूर्वानुमान विभाग से पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई देनी चाहिए। जिससे तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को तापमान कम से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है सिंचाई करने से 0.5 – 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में बढ़ोतरी हो जाती हैं।

  • पौधों को ढकें: तापमान कम होने का सबसे अधिक नुकसान नर्सरी में होता है। नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढकने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से प्लास्टिक के अंदर का तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। जिससे सतह का तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुंच पाता। पॉलीथिन की जगह पर पुआल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पौधों का दक्षिण पूर्वी भाग में खुला रहे, ताकि पौधों को सुबह व दोपहर को धूप मिलती रहे।

  • वायु अवरोधक: ये अवरोधक शीत लहरों की तीव्रता को कम करके फसल को होने वाले नुकसान से बचाते हैं। इसके लिए खेत के चारों ओर ऐसी फसलों की बुवाई करनी चाहिए जिससे की हवा को कुछ हद तक रोका जा सके जैसे चने के खेत में मक्का की बुवाई करनी चाहिए। फलवृक्षों की पौध को पाले से बचाने के लिए पुआल या किसी अन्य वस्तु से धूप आने वाली दिशा को छोड़कर ढक देना चाहिए।

  • खेत के पास धुंआ करें: तापमान नियंत्रण के लिए आप अपने खेत में धुंआ पैदा कर दें, जिससे तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिर पाता और फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है।

  • पाले से बचाव के लिए स्यूडोमोनास का छिड़काव 500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब करें।

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आलू की फसल में ऐसे करें रस चूसक कीटों का प्रबंधन

Management of sucking pests in potato crop
  • आलू की फसल में रस चूसक कीटों के कारण भारी नुकसान होता है, साथ ही फसल की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर होता है। आलू की फसल में मुख्यतः माहू, हरा तेला तथा चेपा, सफ़ेद मक्खी, मकड़ी आदि का प्रकोप होता है। समय रहते इन कीटों पर नियंत्रण करना आवश्यक है।

  • माहू, हरा तेला: इसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों का रस चूस कर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं।

  • चेपा: यह अति सूक्ष्म कीट काले अथवा पीले रंग के होते हैं। इनके वयस्क तथा शिशु पत्तियों को खुरचकर पत्तियों से रस चूसते हैं।

  • सफ़ेद मक्खी: यह आकार में छोटे एवं सफेद रंग के होते हैं जो पत्तियों का रस चूसते हैं। इससे पौधों के विकास में बाधा आती है। सफ़ेद मक्खी विषाणु के लिए वाहक का कार्य करती है।

  • माहू, हरा तेला, चेपा, सफ़ेद मक्खी के प्रबंधन के लिए थियामेथोक्सम 25% WP 100 ग्राम या एसीफेट 75% एसपी 300 ग्राम/एकड़ या ऐसिटामिप्रिड 20% एसपी 100 ग्राम या डाइफेंथियूरॉन 50% WP 250 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • मकड़ी: पत्तियाँ लाल-भूरे रंग की होकर मुरझा कर सूख जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए प्रॉपरजाइट 57% ईसी 400 मिली या एथिओन 50% ईसी 600 मिली या सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • आलू के खेतों में प्रति एकड़ 10 येलो स्टिकी ट्रैप लगाकर भी फसल को रस-चूसक कीटों के प्रकोप से बचाया जा सकता है।

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सरसों की फसल में माहू प्रकोप के लक्षणों को पहचानें और करें नियंत्रण

Symptoms and control measures of aphid in mustard crop
  • कीट पहचान: माहू छोटे, मुलायम शरीर वाले, मोती के आकार के कीट होते हैं।

  • अनुकूल परिस्थिति: इनका प्रकोप आमतौर पर दिसंबर के दूसरे और तीसरे सप्ताह के दौरान होता है और मार्च तक जारी रहता है। माहू की तेजी से वृद्धि के लिए 70 से 80% आर्द्रता एवं 8 और 24°C के बीच का तापमान अनुकूल होता है। बारिश और आर्द्र मौसम कीटों के विकास को तेज करने में मदद करते हैं।

  • क्षति के लक्षण: निम्फ और वयस्क दोनों पत्तियों, कलियों और फली से रस चूसते हैं। संक्रमित पत्तियाँ मुड़ी हुई दिखाई देती हैं और उन्नत अवस्था में पौधे मुरझाकर मर जाते हैं। पौधे रूखे नजर आते हैं और कीड़ों द्वारा उत्सर्जित मीठे स्त्राव (हनीड्यू) पर काली फफूंद उग आती है।

  • नियंत्रण: थियामेथॉक्सम 25% WP 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 30.5% SC 100 मिली या फ्लोनिकामिड 50% WG 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। इन उत्पादों के साथ सिलिकॉन आधारित स्टिकर 5 मिली प्रति टैंक के अनुसार मिला सकते हैं।

  • इसके लिए पीले स्टिकी जाल 10 प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ मेटारीजियम 1 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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जानें क्या है गेहूँ फर्टी किट की उपयोगिता, कैसे फसल को मिलता है इससे लाभ?

Know the utility of Wheat Ferti Kit

  • रबी के मौसम की विशेष फसल गेहूँ के लिए ग्रामोफोन लेकर आया है, ‘गेहूँ फर्टी किट’ जिसका फसल की बुवाई के बाद भी आप उपयोग कर सकते हैं।

  • इस किट में समुद्री शैवाल, अमीनो अम्ल, ह्यूमिक अम्ल और माइकोराइजा के साथ जिंक सल्फेट एवं अन्य आवश्यक पोषक तत्व जैसे फास्फोरस, पोटाश, मैग्नम, जिंक एवं सल्फर आदि सम्मिलित है।

  • इस किट का कुल वजन 9 किलो है। इस किट में 3 उत्पाद शामिल हैं जो फसल के उचित विकास के लिए लाभदायक हैं। इन तीन उत्पादों में मेजर सोल [P 15% + K 15% + Mn 15% + Zn 2.5% + S 12%], माइक्रो पावर जिंक सल्फेट [जिंक सल्फेट], मैक्समाइको [समुद्री शैवाल, अमीनो अम्ल, ह्यूमिक अम्ल और माइकोराइजा ] शामिल हैं l

  • यह किट फसल के विकास एवं वृद्धि के साथ मिट्टी की गुणवत्ता सुधारक की तरह भी कार्य करता है।

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लहसुन की 25 दिन की अवस्था में इन आवश्यक सिफारिशों को जरूर अपनाएँ

Necessary recommendations 25 days after sowing in garlic crop
  • कंद वर्गीय फसल होने की वजह से लहसुन की फसल में पोषण प्रबंधन एवं रोग प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • इस समय फसल प्रबंधन करने से लहसुन की फसल में कवक जनित रोगों जैसे जड़ गलन, तना गलन, पीलापन आदि से फसल की सुरक्षा की जा सकती है। इसके लिए हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63%@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • लहसुन की फसल में लगने वाले कीटो से फसल की रक्षा करने के लिए लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS 250 मिली/एकड़ या जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • लहसुन की फसल की एक समान वृद्धि के लिए जल घुलनशील उर्वरक 19:19:19 या 20:20:20 @ 1 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। अच्छे परिणाम के लिए छिड़काव के साथ स्टिकर 5  मिली प्रति टैंक की दर से मिलाएं।

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चने की फसल को उकठा रोग से होगा नुकसान, जल्द करें बचाव

Gram crop will be damaged due to the wilt disease, protect it soon

उकठा रोग चने की फसल का एक प्रमुख कवक के द्वारा होने वाला रोग है जो की मिट्टी और बीज जनित रोग है। इसके कारण चने की फसल 60-80% तक खत्म हो जाती है। इस रोग के लिए जिम्मेदार फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरम नामक कवक है। अधिक मृदा तापमान (25*C से अधिक) और अधिक मृदा नमी इस रोग के प्रसार के लिए अनुकूल होते हैं।

रोग के लक्षण: इस रोग का संक्रमण फसल की अंकुरण अवस्था और फूल वाली अवस्था में देखा जाता है। इस रोग के मुख्य लक्षणों में पौधों का मुरझाना, पत्तियों का पीला पड़ना, डंठलों का गिरना, जड़ व तने पर फफूंद की वृद्वि आदि शामिल है जिसकी वजह से आखिर में पूरा पौधा सूख जाता है।

रोकथाम के उपाय: रोग के लक्षण दिखाई देने पर थायोफिनेट मिथाइल 70% WG (मिल्ड्यू विप या रोको) @ 300 ग्राम + जिब्रेलिक एसिड 0.001% (नोवामैक्स) @250 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। या ट्राइकोडर्मा विरिडी (राइजोकेयर) @500 ग्राम/एकड़ के हिसाब से खेत में 40-50 किलो अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ मिलाकर भुरकाव करें और हल्की सिंचाई करें।

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चने की फसल में जरूरी है खरपतवार प्रबंधन, ऐसे करें बचाव

Weed management is necessary in gram crop
  • चने की फसल में अनेक प्रकार के खरपतवार जैसे बथुआ, खरतुआ, मोरवा, प्याजी, मोथा, दूब इत्यादि उगते हैं।

  • ये खरपतवार फसल के पौधों के साथ पोषक तत्वों, नमी, स्थान एवं प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करके उपज को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त खरपतवारों के द्वारा फसल में अनेक प्रकार की बीमारियों एवं कीटों का भी प्रकोप होता है जो बीज की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं।

  • खरपतवारों द्वारा होने वाली हानि को रोकने के लिए समय पर नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है। चने की फसल में दो बार गुड़ाई करना पर्याप्त होता है। प्रथम गुड़ाई फसल बुवाई के 20-25 दिन पश्चात व दूसरी 50-55 दिनों बाद करनी चाहिए।

  • यदि मजदूरों की उपलब्धता न हो तो फसल बुवाई के के 1-3 दिन में पेंडीमेथलीन 38.7% EC 700 मिली प्रति एकड़ की दर से खेत में समान रूप से छिड़काव करें। फिर बुवाई के 20-25 दिनों बाद एक गुड़ाई कर दें।

  • इस प्रकार चने की फसल में खरपतवारों द्वारा होने वाली हानि की रोकथाम की जा सकती है।

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चने की फसल में लगने वाले कवक रोगों का प्रबंधन

How to manage fungal diseases in gram crop
  • चने की फसल रबी के मौसम की एक मुख्य फसल मानी जाती है।

  • रबी के मौसम में तापमान में होने वाले परिवर्तनों के कारण चने की फसल में कवक जनित रोगों का प्रकोप बहुत होता है। इसके अंतर्गत स्कोचायटा ब्लाइट, फ़ुज़ेरियम विल्ट, स्टेम रॉट जैसे रोग चने की फसल को बहुत प्रभावित करते हैं।

  • इन रोगों के नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग आवश्यक होता है।

  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • हेक्साकोनाज़ोल 5% SC@ 400 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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