ग्रीष्मकालीन सब्जियों की खेती के लिए आवश्यक सुझाव

👉🏻किसान भाइयों, ग्रीष्मकाल में जिस प्रकार तापमान में बढ़ोतरी होती है, इस कारण सब्जी वर्गीय फसलों को बहुत नुकसान पहुँचता है। 

👉🏻गर्मियों में सब्जियां उगाने के लिए पहले से तैयार किये गये पौधों का उपयोग करना चाहिये। 

सब्जी वर्गीय फसलों को गर्मियों में नेट या पॉली हाउस में लगाने से फसलों में होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। 

👉🏻सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था होनी चहिये, ताकि तापमान बढ़ने के बाद भी फसल में पानी की कमी के कारण तनाव की स्थिति ना हो। 

👉🏻फसल में फूल व फल वृद्धि के लिए समय समय पर उपाय करते रहना चाहिए l 

👉🏻गर्मियों में कद्दू वर्गीय फसलें, मिर्च, टमाटर, बैंगन,आदि सब्जियों की बुवाई कर सकते है।

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पशुओं को लू से बचाने के उपाय

👉🏻किसान भाइयों, पशुओं को लू से बचाने के ये कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए, जैसे –

👉🏻पशु आवास में स्वस्थ वायु आने व दूषित वायु बाहर निकलने के लिए रोशनदान होना चाहिए।

👉🏻गर्म दिनों में पशुओं को दिन में नहलाना चाहिए। विशेष तौर पर भैसों को ठन्डे पानी से नहलाना चाहिए।

👉🏻पशुओं को ठंडा पानी पर्याप्त मात्रा में पिलाना चाहिए।

👉🏻संकर नस्ल के पशु जिनको अधिक गर्मी सहन नहीं होती है उनके आवास में पंखे या कूलर लगाना चाहिए। 

👉🏻गर्मी में पशुओं को हरे चारे की अधिक मात्रा उपलब्ध करानी चाहिए, इसके दो फायदे हैं, एक तो पशु चाव से हरा चारा खाकर अपनी उदरपूर्ति करता है, दूसरा हरे चारे में 70 से 90 प्रतिशत पानी की मात्रा होती है, जो पशु में पानी की कमी को पूरा करती है। 

👉🏻गर्मी के मौसम में पशुओं को भूख कम व प्यास अधिक लगती है। पशुपालकों को पशुओं को इस समय दिन में कम से कम तीन बार पानी जरूर पिलाना चाहिए, इससे पशुओं के शरीर के तापक्रम को कम करने में मदद मिलती है।

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सब्सिडी पर मिलेंगे कृषि उपकरण, इस योजना से मिलेगा लाभ

e-Krishi Yantra Anudan Schem

भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। इसीलिए सरकार कृषि उत्पादन की बढ़ाने के लिए कई कदम उठाती रहती है। इन्हीं क़दमों में से एक है मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश के किसानों के लिए शुरू की गई ‘ई-कृषि यंत्र अनुदान योजना’

इस योजना के माध्यम से किसानों को कई प्रकार के कृषि यंत्रों पर सब्सिडी यानी की अनुदान दी जाती है। इसके लिए जारी सूची में नाम आ जाने पर किसान सब्सिडी पर कृषि यंत्र खरीद सकते हैं। इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को नई तकनीकी उपकरण से परिचित करवाना है ताकि इसके उपयोग से वे अपनी कृषि उपज बढ़ा सके।

इन योजना के अंतर्गत सरकार समय समय पर किसानों से आवेदन आमंत्रित करती रहती है और इसके माध्यम से किसान लाभ प्राप्त करते रहते हैं। किसान इस योजना में आवेदन करने के लिए ई-कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल (https://dbt.mpdage.org/index.htm) पर आवेदन की नई तिथि देखते रहें और नई तिथि आने पर तुरंत आवेदन कर दें। ग़ौरतलब है की जून महीने में भी कई किसानों ने इस योजना का लाभ उठाया है।

कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल: https://dbt.mpdage.org/index.htm

स्रोत: पत्रिका

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आइए जानते हैं, खेतों में सफेद ग्रब के प्रकोप का कारण

👉🏻किसान भाइयों खरीफ के मौसम में फसल व खेतों में सफेद लट का प्रकोप होता है l सफेद लट को गोजा लट के नाम से भी जाना जाता है। 

👉🏻इसके प्रकोप का कारण गर्मियों के समय खाली खेत में उपयोग किये जाने वाला कच्चा गोबर है।  

👉🏻जिस गोबर का उपयोग किया जाता है, वह पूरी तरह पकी हुई नहीं होती है।  

👉🏻इस गोबर में बहुत से हानिकारक कीट व कवक पाए जाते हैं, जो की सफेद लट के आक्रमण का कारण होता है। 

👉🏻इस तरह के गोबर के ढेर पर सफेद लट अंडे देती है व जब गोबर को खेत में डाला जाता है तो, सफेद लट मिट्टी में जाकर फसलों को नुकसान पहुंचाने लगती है। 

👉🏻इस कीट के नुकसान से बचाव के लिए गोबर को पूरी तरह सड़ाकर ही उपयोग करें या गोबर की खाद को खाली खेत में भुरकाव के बाद डिकम्पोज़र का उपयोग अवश्य करें।

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छोटे आकार की मिर्च की खेती के लिए खास किस्में

👉🏻किसान भाइयों मिर्च भारत की एक महत्तवपूर्ण मसाले वाली फसल है। भारत, विश्व में मिर्च उत्पादन करने वाले देशों में प्रमुश देश हैं। आइये आज कुछ छोटे आकार की मिर्च की किस्मों के बारे में जानते हैं। 

👉🏻दिव्या शक्ति (शक्ति – 51):- इस किस्म की पहली तुड़ाई प्रत्यारोपण के 42-50 दिनों में होती है। फल का रंग गहरा हरा होता है। फल की लम्बाई 6-8 सेंटीमीटर तक होती है। यह किस्म लीफ कर्ल वायरस (पर्ण कुंचन) के प्रति 100% प्रतिरोधी है। 

👉🏻स्टार फील्ड 9211 एवं स्टार फील्ड शार्क-1:-  इस किस्म की पहली तुड़ाई रोपण के 60-65 दिनों में होती है। फलों का रंग गहरा हरा, पके फलों का रंग गहरा लाल होता है फल की लम्बाई 8-9 सेंटीमीटर होती है l यह किस्में बहुत तीखी होती हैं। इस किस्म का फल सुखाकर बेचने के लिए उपयुक्त होता है फफूंद जनित रोगो के प्रति प्रतिरोधी किस्म है। 

👉🏻नुन्हेम्स इन्दु 2070:- फल की लम्बाई  8 सेमी होती है। लम्बे यातायात एवं भण्डारण के लिए उपयुक्त ठोस फल। 

👉🏻एडवांटा AK-47:- इस किस्म की पहली फल तुड़ाई बुबाई के 60-65 दिनों में होती है फल का रंग गहरा लाल एवं गहरा हरा होता है, फल की लम्बाई 6-8 सेंटीमीटर होती है l इस किस्म में तीखापन बहुत अधिक होता है l यह किस्म लीफ कर्ल वायरस के लिए प्रतिरोधी किस्म हैl

👉🏻सिजेंटा HPH 12:- इस किस्म की पहली तुड़ाई रोपाई के 50-55 दिनों में हो जाती है। फल चिकने, हरे रंग के होते हैं, और परिपक्वता के समय आकर्षक गहरे लाल रंग में बदल जाते हैं। फलों की औसत लंबाई 7-8 सेमी होती हैl 

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मिर्च की नर्सरी ऐसे तैयार कर स्वस्थ फसल पाएं

👉🏻किसान भाइयों इस समय सामान्य रूप से मिर्च की नर्सरी तैयार की जाती है ,क्योंकि नर्सरी में पौध तैयार करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं।   

👉🏻जुताई से पहले नर्सरी के लिए चयनित क्षेत्र को साफ कर लें।

👉🏻चयनित क्षेत्र अच्छी तरह से सूखा व जलभराव से मुक्त होना चाहिए और उचित धूप आनी चाहिए।

👉🏻नर्सरी में पानी एवं सिंचाई की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ताकि सिंचाई समय से हो सके। 

👉🏻नर्सरी क्षेत्र को पालतू और जंगली जानवरों से अच्छी तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए।

👉🏻इसके लिए कार्बनिक पदार्थ से भरपूर बालुई दोमट और दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। 

👉🏻स्वस्थ पौध के लिए मिट्टी रोगजनक से मुक्त होनी चाहिए।

👉🏻इसके बाद बेड की तैयारी से पहले हल से 2 बार खेत की जुताई करें।  

👉🏻बीज बोने के लिए आवश्यकतानुसार उठी क्यारियां (जैसे 33 फीट × 3 फीट × 0.3 फीट) बना लें।

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बैंगन में फल छेदक एवं तना भेदक कीट प्रकोप की ऐसे करें रोकथाम

Fruit and shoot borer pests in brinjal crop

  • किसान भाइयों बैंगन की फसल में फल छेदक एवं तना भेदक कीट एक अत्यधिक हानि पहुंचाने वाला कीट है।

  • इसकी अत्यधिक नुकसान पहुंचाने वाली अवस्था सूंडी होती है, जो शुरूआती अवस्था में बड़ी पत्तियों, कोमल टहनियों व तने को नुकसान पहुंचाता है, और बाद में कलियों एवं फलों पर गोल छेद कर के अंदर की सतह को खोखला बना देता है।

  • यह कीट बैंगन की फसल को 70 से 100% तक नुकसान पहुंचा सकता है। 

नियंत्रण के उपाय:

  • रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। 

  • रोग ग्रस्त पौधों और फलों को उखाड़कर खेत से बाहर फेक दें। 

  • फेरोमोन ट्रैप 10 प्रति एकड़ स्थापित करें।  

  • फसल में समयानुसार कीटनाशक दवाओ का छिड़काव करें।  

  • रासायनिक नियंत्रण: इस कीट के नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG [ईमानोवा] @ 100 ग्राम या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC [कोराजन] @ 60 मिली या स्पिनोसेड 45% SC [ट्रेसर] @ 60 मिली या क्युँनालफॉस 25% EC [सेलक्विन] @ 600 मिली 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। 

  • जैविक नियंत्रण: बवेरिया बेसियाना [बवे कर्ब ] @ 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से  छिड़काव करें।

फसल की बुआई के साथ ही अपने खेत को ग्रामोफ़ोन एप के मेरे खेत विकल्प से जोड़ें और पूरे फसल चक्र में पाते रहें स्मार्ट कृषि से जुड़ी सटीक सलाह व समाधान। लेख पसंद आया हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।

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आइये जानते हैं, क्या है कोकोपीट?

👉🏻किसान भाइयों बहुत से आवश्यक पोषक तत्व नारियल के रेशों में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं इन्ही नारियल के रेशों को कृत्रिम रूप से अन्य पोषक खनिज लवणों के साथ मिलाकर मिट्टी का निर्माण करने की प्रक्रिया को “कोकोपीट” कहते हैं।

👉🏻यह नारियल उद्योग का एक उत्पाद है और समुद्री इलाकों के लोगों को एक अतिरिक्त आय का स्रोत भी देता है। 

👉🏻नारियल के ऊपर के रेशे को सड़ाकर, उसके छिलके निकाल कर, बुरादा बनाकर इसे प्राप्त किया जाता है। 

👉🏻पीट मोस या कोकोपिट दोनों का उद्देश्य एक जैसा ही है, दोनों ही गमले की मिट्टी को हवादार बनाते हैं साथ ही उसमें नमी रोककर रखते हैं और यह बहुत हल्का भी रहता है l 

👉🏻किसान भाई इसका उपयोग मिर्च, टमाटर एवं सभी प्रकार की नर्सरी तैयार करने में भी कर सकते है।

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जीरो बजट खेती अपनाएं, कम लागत में अधिक उत्पादन पाएं

👉🏻किसान भाइयों जीरो बजट खेती एक प्रकार से प्राकृतिक खेती होती है।

👉🏻यह खेती देसी गाय के गोबर एवं गोमूत्र पर निर्भर होती है।

👉🏻इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक, रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती। 

👉🏻इसमें रासायनिक खाद के स्थान पर किसान गोबर से तैयार की हुई खाद बनाते हैं। 

👉🏻देसी गाय के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत तथा घनजीवामृत बनाया जाता है।

👉🏻इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। 

👉🏻जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। साथ ही जीवामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में भी किया जा सकता है।

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स्पीड कम्पोस्ट के इस्तेमाल से फसल अवशेष को खाद में बदले

👉🏻किसान दोस्तों स्पीड कम्पोस्ट एक उत्पाद है जिसका उपयोग फसल अपशिष्ट (गेहूं के डंठल/नरवाई, धान की पराली इत्यादि) से त्वरित खाद के निर्माण में किया जाता है। 

👉🏻यह 1 किलो उत्पाद 1 टन फसल अपशिष्ट को खाद में परिवर्तित कर देता है।  

👉🏻इसमें बेसिलस, एज़ोटोबैक्टर, ट्राइकोडर्मा, सेल्युलोलिटिक, एस्परजिलस, पेनिसिलियम इत्यादि जाति के सूक्ष्मजीव पाए जाते है जो त्वरित खाद निर्माण के अलावा मिट्टी में हानिकारक कवक को नष्ट करता है। अतः यह पौध संरक्षण का कार्य भी करता है।   

👉🏻सबसे पहले फसल के अवशेषों, को रोटोवेटर की सहायता से भूमि में मिला दें। 

👉🏻उसके बाद 4 किलो स्पीड कम्पोस्ट और 45 किलो यूरिया प्रति एकड़ की दर से खेत में बिखेर दें और तुरंत बाद पानी लगा दे। ताकि सूक्ष्मजीव अपना कार्य तेजी से कर सके।  

👉🏻लगभग 15-20 दिन बाद यह फसल अपशिष्ट खाद में बदल जाता है।

 

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