सोयाबीन में अधिक फलियों के उत्पादन के लिए जरुरी छिड़काव

सोयाबीन की फसल से अच्छी एवं भरपूर पैदावार लेने के लिए, सोयाबीन की फसल में अधिक फलियों के लिए ट्राई डिसॉल्व मैक्स @ 200 ग्राम + 00:00:50 @ 1 किग्रा प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

उपयोग के फायदे 

👉🏻ट्राई डिसॉल्व मैक्स जैव-उत्तेजक है, इसमें पोटेशियम, कैल्शियम, अन्य प्राकृतिक स्थिरक आदि तत्व पाए जाते हैं। यह फली की गुणवत्ता को बढ़ाने के साथ स्वस्थ और वानस्पतिक फसल वृद्धि को बढ़ावा देता है। जड़ विकास में मदद करता है, साथ ही विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा को भी बढ़ाता है।

👉🏻 यह पोटेशियम युक्त पानी में घुलनशील पोषक तत्व है, जो पत्तियों पर छिड़काव के लिए उत्तम है। पोटेशियम से फली का विकास ज्यादा होता है।

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मिर्च की फसल में सफेद मक्खी की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

सफेद मक्खी का प्रकोप 15-35 डिग्री सेल्सियस तापमान में अधिक होता है। इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ पत्तियों की निचली सतह पर चिपकर रस चूसते हैं। यह न केवल रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि पौधों पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं। जिससे काली फफूंद लग जाती है। इससे ग्रसित पौधे पीले व तैलीय दिखाई देते हैं। इसका प्रकोप होने पर पौधों की पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं। जिसे विभिन्न स्थानों में कुकड़ा या चुरड़ा-मुरड़ा रोग के नाम से जानते है। 

नियंत्रण के उपाय

👉🏻 खेत को खरपतवार मुक्त रखें। 

👉🏻 निर्धारित मात्रा में नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग करें। 

👉🏻 8-10 पीले स्टिकी ट्रैप स्थापित करें। 

👉🏻 जैविक नियंत्रण के लिए, बवे-कर्ब @ 500 ग्राम/एकड़ 150 -200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

👉🏻रासायनिक नियंत्रण के लिए मेओथ्रिन @ 100-136 मिली + सिलिकोमैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 -200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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सोयाबीन की फसल में फली झुलसा के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

प्रिय किसान भाइयों, सोयाबीन की फसल में फली झुलसा रोग का प्रकोप उच्च आर्द्रता और तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक होता है। सोयाबीन में फूल एवं दाने भरने की अवस्था में तने, पुष्प के डंठल व फलियों पर गहरे भूरे रंग अनियमित आकार के धब्बे पीलेपन लिए हुए दिखाई देते है। जो बाद में फफूंद की काली और काटें जैसे संरचनाओं से ढ़क जाते है। पत्तीयों का पीला-भूरा होना, मुड़ना एवं झड़ना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। फली झुलसा से ग्रसित बीज से अंकुरण नहीं होता है।

नियंत्रण के उपाय

👉🏻 जैविक नियंत्रण के लिए, मोनास-कर्ब @ 500 ग्राम + कॉम्बैट @ 500 ग्राम  +  सिलिकोमैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

👉🏻 रासायनिक नियंत्रण के लिए, टेसुनोवा @ 500 ग्राम या फोलिक्यूर @ 250 मिली + सिलिकोमैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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धान की फसल में जीवाणु झुलसा रोग एवं रोकथाम के उपाय

जीवाणु झुलसा रोग:- यह रोग जैन्थोमोनास ओराइजी नामक जीवाणु के कारण होता है, जिसमें पत्तियां नोक से या किनारों से सूखने लगती हैं। सूखे हुए किनारे अनियमित एवं टेढ़े मेढे होते हैं। रोग ग्रस्त पौधे कमजोर हो जाते हैं, उनमें कल्ले भी कम निकलते हैं। इससे ग्रसित पौधों की नयी पत्तियां हलके मटमैले रंग की हो जाती हैं, जो कि आपस में लिपटकर नीचे से झुलसकर पीली या भूरी हो जाती हैं। अंतत: पूरा पौधा सूखकर मर जाता है, इसका अधिक प्रकोप होने पर यह फसल को 50% या उससे भी अधिक तक नष्ट कर सकता है।

जैविक प्रबंधन:- कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें।

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मिर्च की फसल में फ्यूजेरियम विल्ट रोग की पहचान एवं रोकथाम के उपाय

फ्यूजेरियम विल्ट:- फ्यूजेरियम विल्ट मिर्च की फसल की सामान्य बीमारी है। यह बीज एवं मृदा जनित बीमारी है, जो फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरम नामक फफूंद से होता है। प्रभावित पौधे अचानक मुरझा कर धीरे-धीरे सूख जाते हैं। रोग ग्रसित पौधे हाथ से खींचने पर आसानी से उखड़ जाते हैं।

फ्यूजेरियम विल्ट रोग के कारण रोगी पौधों की जड़ें अंदर से भूरी व काली हो जाती हैं। रोगी पौधों को चीर कर देखने पर ऊतक काले दिखाई देते हैं। पौधों की पत्तियां मुरझा कर नीचे गिर जाती हैं। यह रोग हवा और जमीन में ज्यादा नमी व गर्मी होने के कारण एवं सिंचाई से सही नमी का वातावरण मिलने पर अधिक बढ़ता है।

जैविक प्रबंधन:- कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें।  तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के आधार पर 2 किलो कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी) फॉर्म्युलेशन को 50 किलो गोबर की खाद  के साथ मिलाएं, फिर उसके ऊपर पानी छिड़कें और एक पतली पॉलिथीन शीट से ढक दें। 15 दिनों के बाद जब ढेर पर मायसेलिया की वृद्धि दिखाई दे, तो मिश्रण को एक एकड़  क्षेत्र में प्रयोग करें।

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धान की फसल में बालियां निकलने के पहले पोषक तत्व प्रबंधन

किसान भाइयों, धान की अधिक पैदावार लेने के लिये बूटिंग अवस्था (बालियां निकलने के पहले) में पोषक तत्व प्रबंधन एक महत्वपूर्ण उपाय है। धान की फसल में बूटिंग अवस्था रोपाई के 60-65 दिनों में शुरू हो जाती है। इस अवस्था में पोषण प्रबंधन उचित तरीके से इस प्रकार करें:-  

पोषण प्रबंधन:- धान की अधिक पैदावार लेने के लिये, यूरिया 40 किलो + एमओपी 10 किग्रा + कैलबोर 5 किग्रा, प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करना बहुत आवश्यक है। 

यूरिया:- धान की फसल में यूरिया नाइट्रोज़न की पूर्ति का सबसे बड़ा स्त्रोत है। इसके उपयोग से, पत्तियो में पीलापन एवं सूखने की समस्या नहीं आती है। यूरिया प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को तेज़ करता है।

MOP (म्यूरेट ऑफ़ पोटाश):- पोटैशियम धान के पौधे में संश्लेषित शर्करा को पौधे के सभी भागो  तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पोटैशियम प्राकृतिक नाइट्रोजन की कार्य क्षमता को बढ़ावा देता है, साथ ही पौधों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है। 

कैलबोर:- इस उत्पाद में कैल्शियम 11% + मैग्नीशियम 1.0 % + सल्फर 12 % + पोटेशियम  1.7 +  बोरॉन  4% का मिश्रण शामिल है जो पोषण, विकास, प्रकाश संश्लेषण, शर्करा के परिवहन और कोशिका भित्ति निर्माण के लिए आवश्यक हैं। कैलबोर  आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले अधिकांश उर्वरकों और कृषि रसायनों के साथ संगत किया जा सकता है।

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मिर्च की फसल में मकड़ी के क्षति के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

क्षति के लक्षण:- यह बहुत ही छोटे कीट होते हैं, जो पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं। इस कारण पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती हैं। रस निकल जाने की वजह से पत्तियों के सतह पर सफेद से पीले रंग के धब्बे हो जाते हैं। संक्रमण के बढ़ने से पहले पत्तियाँ चांदी के रंग की दिखने लगती हैं और अंत में ये पत्तियां झड़ जाती हैं।

नियंत्रण के उपाय:- इसके नियंत्रण के लिए ओबेरोन (स्पाइरोमेसिफेन 22.90% एस सी) @ 160 मिली या ओमाइट (प्रोपरजाईट 57% EC) @ 600 मिली + सिलिकोमैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें।

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मिर्च की फसल में चिनोफोरा ब्लाइट रोग की पहचान एवं रोकथाम के उपाय

क्षति के लक्षण 

इस रोग का कारक चिनोफोरा कुकुर्बिटारम है, रोग के कवक आमतौर पर पौधे के ऊपरी हिस्से, फूल ,पत्तियों,नई शाखाओं और फलों को संक्रमित करते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में पानी से लथपथ क्षेत्र पत्ती पर विकसित होते हैं। प्रभावित शाखा सूख कर लटक जाती है | अधिक संक्रमण में  फल भूरे से काले रंग के हो जाते है,संक्रमित भाग पर कवक की परत देखी जा सकती है। 

जैविक प्रबंधन:- कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें।

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मिर्च की फसल में डाई बैक रोग की पहचान एवं रोकथाम के उपाय

डाई बैक:- मिर्च में डाई बैक एक प्रमुख समस्या है। यह रोग कोलेटोट्रिकम कैप्सिसि नामक फंगस की वजह से होता है। मिर्च के फल पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। जिस वजह से फल में सड़न होना शूरू हो जाती है। इस रोग के कारण कोमल टहनियों के सिरे पीछे की ओर से सड़ जाते हैं। शाखा या पौधे का पूरा शीर्ष मुरझा जाता है। प्रभावित टहनियों की सतह पर कई काले बिंदु बिखरे हुए दिखाई देते हैं। शीर्ष या कुछ किनारे की शाखाएं मृत हो जाती हैं, या फिर गंभीर संक्रमण की स्थिति में पूरा पौधा सूख जाता है। वहीं आंशिक रूप से प्रभावित पौधों में कम गुणवत्ता वाले फल लगते हैं। 

नियंत्रण के उपाय:- इसके नियंत्रण के लिए, स्कोर (डाइफेनोकोनाज़ोल 25% ईसी) @ 50 मिली प्रति 100 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। या इंडेक्स (माइक्लोबुटानिल 10% डब्ल्यू पी) @ 80 ग्राम + सिलिकोमैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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सोयाबीन की फसल में लगने वाली प्रमुख इल्लियां एवं उनके नियंत्रण के उपाय

सोयाबीन फली छेदक

यह कीट सोयाबीन की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है। इस कीट का आक्रमण सोयाबीन की फसल की शुरुआती अवस्था में ही हो जाता है। यह कीट पौधे के नरम भागों को सबसे पहले नुकसान पहुंचता है। उसके बाद सोयाबीन की फली, फिर बीज को नुकसान पहुंचाता है। यह इल्ली सोयाबीन की फली के अंदर घुसकर उसे नुकसान पहुंचाती है। 

चने की इल्ली

यह इल्ली पौधे के सभी हिस्सों पर आक्रमण करती है, लेकिन ये फूल और फली को खाना अधिक पसंद करते है। प्रभावित फली पर काला छिद्र दिखाई देता है, जिसमें से लार्वा भोजन करते दौरान फली से बाहर लटका हुआ दिखाई देता है। व्यस्क इल्ली पत्तियों के क्लोरोफिल को खुरच -खुरच कर खाती है, जिससे पत्तियाँ कंकाल में परिवर्तित हो जाती है। गंभीर संक्रमण की अवस्था में पत्तियां टूट कर गिरने लगती हैं, जिस कारण अंत में पौधा सूखकर मर जाता है।

तम्बाकू की इल्ली

इस कीट की इल्ली सोयाबीन की पत्तियों के क्लोरोफिल को खुरचकर खाती है, जिससे खाये गए पत्ते पर सफ़ेद पीले रंग की रचना दिखाई देती है। अत्यधिक प्रकोप होने पर ये तना, कलिया, फूल और फलों को भी नुकसान पहुंचाती है। जिस कारण अंत में पौधों पर सिर्फ डन्डीया ही दिखाई देती हैं। 

नियंत्रण के उपाय:-  इसके नियंत्रण के लिए, प्लेथोरा (नोवलूरॉन 05.25% + इंडोक्साकार्ब 4.50 % एससी) @ 350 मिली या फेम (फ्लुबेंडियामाइड 39.35% एससी) @ 60 मिली + सिलिकोमैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 -200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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