सल्फर का फसल के लिए क्या होता है महत्व, जानें इसके लाभ

Importance of Sulfur in crops
  • सल्फर (गंधक) फसलों में प्रोटीन के प्रतिशत को बढ़ाने में सहायक होता है साथ ही साथ यह पर्णहरित लवक के निर्माण में योगदान देता है जिसके कारण पत्तियां हरी रहती हैं तथा पौधों के लिए भोजन का निर्माण हो पाता है।

  • सल्फर पौधों में नाइट्रोजन की क्षमता और उपलब्धता को बढ़ाता है।

  • दलहनी फसलों में, सल्फर के कारण हीं जड़ों में अधिक गाठों का विकास होता है। इससे जड़ों में उपस्थित राइज़ोबियम नामक जीवाणु, वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को लेकर, फसलों को उपलब्ध कराते हैं।   

  • तम्बाकू, सब्जियों एवं चारे वाली फसलों की गुणवत्ता भी सल्फर के कारण बढ़ जाती है।

  • सल्फर का महत्वपूर्ण उपयोग तिलहन फसलों में प्रोटीन और तेल की मात्रा में वृद्धि करना है। 

  • सल्फर आलू की फसल में स्टार्च की मात्रा को बढ़ाता है।

  • सल्फर को मिट्टी का सुधारक भी कहा जाता है क्योंकि यह मिट्टी के पीएच को कम करता है।

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रबी फसलों में ऐसे करें दीमक का नियंत्रण

  • दीमक एक पोलीफेगस कीट होता है जिसका मतलब यह होता है की यह सभी फसलों को बर्बाद कर सकता है।

  • दीमक भूमि के अंदर फैली पौधों की जड़ों को बहुत नुकसान पहुँचाता है। इसका प्रकोप अधिक होने पर ये तने को भी नुकसान पहुंचाता है।

  • आलू, टमाटर, मिर्च, बैंगन, फूल गोभी, पत्ता गोभी, सरसों, राई, मूली, गेहू आदि फसलों को यह सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है।

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए निम्र प्रबंधन करना जरूरी है।

  • बीजों को कीटनाशकों के द्वारा बीज़ उपचार करके ही बोना चाहिए।

  • कीट नाशक मेट्राजियम से मिट्टी उपचार अवश्य करना चाहिए।

  • कच्ची गोबर की खाद का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि कच्चा गोबर इस कीट का मुख्य भोजन है।

  • दीमक को नियंत्रित करने के लिए क्लोरपायरीफोस 20% EC @ 1 लीटर को 4 किलो रेत में मिलाकर प्रति एकड़ खेत में बुआई के समय डालना चाहिए।

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भिंडी की फसल में पीला शिरा मोज़ेक वायरस प्रकोप के लक्षण एवं नियंत्रण

Symptoms and control of yellow vein mosaic virus in okra crop

पीला शिरा मोज़ेक दरअसल एक वायरस यानी विषाणु जनित रोग है जो फसल में उपस्थित रसचूसक कीट के कारण से और ज्यादा फैलता है। यह भिंडी की फसल के लिए वर्तमान समय में बेहद घातक हो सकता है।  

लक्षण: इस रोग के शुरुआती अवस्था में ग्रासित पौधे की पत्तियों की शिराएँ पीली पड़ने लगती हैं और जैसे ही रोग बढ़ता जाता है वैसे वैसे पीलापन पूरी पत्ती पर फैलता जाता है और इसके परिणाम से पत्तियाँ मुड़ने एवं सिकुड़ने लगती है, पौधे की वृद्धि रुक जाती है। प्रभावित पौधे के फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं।

नियंत्रण: यह रोग मुख्यत सफेद मक्खी से फैलता है, इसके नियंत्रण के लिए नोवासेटा (एसिटामिप्रिड 20% SP) @ 30 ग्राम प्रती एकड़ या पेजर (डायफैनथीयुरॉन 50% WP) 240 ग्राम/एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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आलू की फसल में मिट्टी उपचार से मिलते हैं कई फायदे

There are many benefits of soil treatment in potato crop
  • आलू की फसल में बुवाई के पहले मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक हैं।

  • मिट्टी की उर्वरता और पोषक तत्व प्रबंधन रोग मुक्त फसल एवं अच्छी उपज के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये फसल की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव डालते हैं।

  • रबी सीजन में आलू की बुवाई के पूर्व मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण कवक जनित रोगों एवं कीटों का बहुत अधिक प्रकोप होता है।

  • कवक जनित रोगों एवं कीटों के निवारण के लिए मिट्टी उपचार कवकनाशी एवं कीटनाशी से किया जाता है।

  • मिट्टी उपचार कवकनाशी एवं कीटनाशी से करने से आलू की फसल में कंद गलन जैसे रोग नहीं लगते है।

  • मिट्टी उपचार के द्वारा आलू में लगने वाले उकठा रोग से भी बचाव हो जाती है।

  • मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक है। इसके मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है।

  • मिट्टी उपचार करने से मिट्टी की सरचना में सुधार होता है एवं उत्पादन भी काफी हद तक बढ़ जाता है।

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पी के बैक्टीरिया का कंसोर्टिया फसल एवं खेत के लिए है महत्वपूर्ण

Importance of consortia PK bacteria
  • इसमें दो प्रकार के बैक्टीरिया फॉस्फोरस सोल्युबलाइज़िंग (PSB) और पोटाश मोबिलाइज़िंग बैक्टीरिया (KMB) का मिश्रण होता है।

  • यह मिट्टी और फसल में दो प्रमुख तत्वों पोटाश और फास्फोरस की आपूर्ति में मदद करता है। इसका उपयोग दलहनी फसलों में बहुत अधिक फायदेमद होता है।

  • यह जीवाणु जमीन में पाए जाने वाले अघुलशील पोटाश और फास्फोरस को घुलनशील रूप में परिवर्तित करके पौधों को प्रदान करते हैं।

  • इसके कारण पौधे को समय पर सभी आवश्यक तत्व मिल जाते हैं, और फसल का विकास अच्छा होता है।

  • इससे फसल उत्पादन बढ़ता है और साथ ही मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता भी बढ़ती है।

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आलू की फसल में बुआई के 1 से 5 दिनों में खरपतवार प्रबंधन

Weed Management in Potato Crop 1-5 Days of Sowing
  • बारिश के मौसम के बाद मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण आलू की फसल की बुआई के बाद खरपतवार बहुत अधिक मात्रा में उगने लगते हैं।

  • सभी प्रकार के खरपतवारों का नियंत्रण समय पर एवं उचित खरपतवार नाशी का उपयोग करके किया जा सकता है।

  • रासायनिक विधि: इस विधि में रसायनों का उपयोग करके खरपतवारों का नियंत्रण किया जाता है। इन रसायनों का उपयोग समय समय पर करने से खरपतवारों पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है।

  • बुआई के 1 से 3 दिनों बाद: खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण के लिए पेंडामेथलिन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ का छिड़काव करेंI

  • इस प्रकार छिड़काव करने से बुआई के बाद शुरूआती अवस्था में उगने वाले खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है।

  • बुआई के बाद दूसरा छिड़काव: मेट्रीब्युजीन 70% WP @ 100 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव बुआई के 3-4 दिन बाद या आलू का पौधा 5 सेमी. का होने से पहले करें।

  • खरपतवारनाशक के छिड़काव के समय पर्याप्त नमी का होना बहुत आवश्यक है।

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बीज उपचार क्यों है जरूरी, जानें इससे मिलने वाले लाभ

Why seed treatment is necessary
  • अच्छी खेती के लिए बीजों की बुआई से पहले बीज उपचार करना बहुत ही आवश्यक होता है। इससे बीज और मिट्टी जनित रोगों की रोकथाम होती है।  

  • देश में फसलों के 70 से 80% किसान बीज नहीं बदलते हैं और पुराने बीजों का ही इस्तेमाल करते हैं। 

  • इस कारण बीजों में कीटों और रोगों के प्रकोप का खतरा ज्यादा रहता है, फलस्वरूप खेती की लागत बढ़ जाती है।

  • सिर्फ बीजों का उपचार कर लेने से ही 6-10% तक उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है। 

  • बीजोपचार से अंकुरण अच्छा होने के साथ ही पौधों की वृद्धि भी बढ़िया होती है।

  • बीजोपचार से कीटनाशको का प्रभाव भी बढ़ जाता है तथा फसल 20 से 25 दिन के लिए सुरक्षित हो जाती है।

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घरेलू गोबर की खाद का कृषि में क्या है महत्व

Importance of cow dung in agriculture
  • गोबर की खाद मिट्टी की भौतिक संरचना में सुधार करता है एवं मिट्टी में वायु के आवागमन को बढ़ाता है।

  • यह जल धारण क्षमता को बढ़ाकर मिट्टी में जल के स्तर को सुधारता है।

  • इसके उपयोग से पौधों की जड़ों का विकास अच्छा होता है एवं पौधे पोषक तत्वों को अधिक मात्रा में ग्रहण करते हैं।

  • यह मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाने में सहायक होता है। इसके उपयोग से भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा में सुधार होता है।

  • मिट्टी की क्षार विनिमय क्षमता भी इसके उपयोग से बढ़ जाती है।

  • इससे मिट्टी में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है, जिससे फसल की पैदावार बहुत अच्छी होती है।

  • गोबर की खाद जटिल यौगिकों को सरल यौगिकों में परिवर्तित करने में सहायता करता है।

  • मिट्टी के कणों को आपस में चिपका कर भूमि के कटाव को भी इससे रोका जा सकता है।

  • इसमें नाइट्रोजन 0.5%, फास्फोरस 0.25% एवं पोटाश 0.5% पाया जाता है l

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जैविक कीटनाशक मेट्राजियम ऐनआइसोफिलि के द्वारा मिट्टी उपचार एवं इसके फायदे

Soil treatment and its benefits with the biological insecticide METARHIZIUM ANISOPLIAE
  • मेट्राजियम ऐनआइसोफिलि एक बहुत ही उपयोगी जैविक फफूंदी है। 

  • सफेद ग्रब, दीमक, ग्रासहोपर, प्लांट होपर, वुली एफिड, बग और बीटल आदि के करीब 300 कीट प्रजातियों को नियंत्रित करने के लिए इसका उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में किया जाता है।

  • इसका उपयोग 1 किलो/एकड़ की दर से 50 -100 किलो पकी हुई गोबर की खाद में मिलाकर बुआई से पहले खेत में भुरकाव करें।

  • इस फफूंदी के स्पोर पर्याप्त नमी में कीट के शरीर पर अंकुरित हो जाते हैं। 

  • यह फफूंदी परपोषी कीट के शरीर को खा जाती है। 

  • इसका उपयोग खड़ी फसल में छिड़काव के रूप भी किया जा सकता है। 

  • इसके उपयोग के पूर्व खेत में आवश्यक नमी का होना बहुत आवश्यक है।

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बुआई से पहले प्याज और लहसुन की फसल में बल्ब नेमाटोड की रोकथाम

Prevention of bulb nematodes in onion and garlic before sowing

  • बल्ब नेमाटोड यानी कंद सूत्रकृमि प्याज एवं लहसुन के पौधे में घाव उत्पन्न करते हैं या फिर रंध्रों के माध्यम से प्रवेश करते हैं। इसके साथ ही इनसे पौधों में गांठे बनती हैं और पौधें में विकृतियां पैदा हो जाती हैं।

  • यह कवक और जीवाणु जैसे रोगजनकों के आक्रमण के लिए भी परिस्थिति पैदा कर देते हैं। इनके प्रकोप के कारण प्याज एवं लहसुन की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है, कंदों में रंगहीनता और सूजन पैदा हो जाती है।

प्रबंधन:

  • सूत्रकृमि के बेहतर नियंत्रण के लिए कार्बोफ्यूरान 3% दानेदार कीटनाशक @ 8 किग्रा/एकड़ मिट्टी में दें।

  • सूत्रकृमि के जैविक नियंत्रण के लिए पेसिलोमायसिस लिनेसियस (निमेटोफ्री) @ 1 किलो/एकड़ या नीम खली @ 200 किग्रा/एकड़ जमीन से दें।

  • प्याज एवं लहसुन के जिन कंदो में रोग के लक्षण दिखाई दे रहे हों उनको बीज के लिए नहीं रखना चाहिए।

  • खेतों और उपकरणों की उचित स्वच्छता बनाए रखना भी आवश्यक है क्योंकि यह सूत्रकृमि संक्रमित पौधों और अवशेषों में जीवित रहता है और पुनः उत्पन्न हो सकता है।

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