जानें मूंग की फसल में क्या है राइज़ोबियम कल्चर का महत्व

Importance of rhizobium culture in moong crop

राइजोबियम एक सहजीवी जीवाणु है। जो विशेष कर दलहनी फसलों के जड़ों में पाया जाता है। यह एक विशिष्ट प्रजाति का जीवाणु है जो विशिष्ट पौधे के साथ रहता है जैसे सोयाबीन, मूंगफली, चना, मूंग, उड़द, मटर आदि। विभिन्न फसलों के राइजोबियम जीवाणु भी अलग होते हैं। राइजोबियम जीवाणु मुख्य रूप से सभी तिलहनी और दलहनी फसलों में सहजीवी के रूप में रहकर वायुमंडलीय नाइट्रोज़न को नाइट्रेट में परिवर्तित करके फसलों में नाइट्रोजन की पूर्ति करता है। राइजोबियम जीवाणु मिट्टी में जाने के बाद फसलों की जड़ों में प्रवेश करके छोटी छोटी छोटी गाठें बना लेते हैं। इन गाठों में जीवाणु बहुत अधिक मात्रा में रहता है। यह जीवाणु प्राकृतिक नाइट्रोजन को वायुमंडल से ग्रहण करके पोषक तत्वों में परिवर्तित कर के पौधों को उपलब्ध करवाते हैं। पौधे की जड़ों में अधिक गाठों का होना पौधे को स्वस्थ रखता है। राइजोबियम द्वारा नाइट्रोजन के स्थिरीकरण की प्रक्रिया में, एक अन्य उत्पाद और बनता हैं वह है हाइड्रोजन। राइजोबियम की कुछ विशेष किस्मे इस हाइड्रोज़न का उपयोग नाइट्रोज़न स्थिरीकरण की प्रक्रिया में ही कर लेती हैं। 

राइजोबियम जीवाणु का उपयोग फसलों के लिए दो प्रकार से किया जा सकता है, बीज़ उपचार और मिट्टी उपचार के तौर पर। 

बीज़ उपचार: नाइट्रोज़न स्थिरीकरण जीवाणु की 5 ग्राम मात्रा/किलो बीज़ के हिसाब से लेकर बीजों के ऊपर लेप बनाकर बीज़ उपचार करें एवं बीज़ उपचार किये गये बीजों को तुरंत बुवाई के लिए उपयोग करें। 

मिट्टी उपचार: नाइट्रोज़न स्थिरीकरण जीवाणु की 1 किलो/एकड़ मात्रा लेकर पकी हुई गोबर की खाद या खेत की मिट्टी में मिलाकर बुवाई से पहले खाली खेत में भुरकाव करें। 

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जानिए फसल उत्पादन बढ़ाने में मधुमक्खी कैसे होती है मददगार?

Know how bees are helpful in increasing crop production

मधुमक्खियां मनुष्य को ना केवल शहद देती हैं, बल्कि यह फसलों व वृक्षों में परागण कर उनका उत्पादन बढ़ाने में भी सहायक होती हैं। फल सब्जियों व फसलों से मधुमक्खियां पराग और मकरंद जमा करती हैं। इससे मधुमक्खियां अनजाने में ही परागण क्रिया कर इनकी उपज में बढ़ोतरी कर देती हैं। पालतू व जंगली मधुमक्खियां परागण क्रिया में 80 प्रतिशत तक का योगदान करती हैं। 

मधुमक्खियों द्वारा पैदावार में बढ़ोतरी से होने वाली आय इससे प्राप्त शहद व मोम से कई गुना ज्यादा होती है। एक मधुमक्खी एक बार में लगभग 100 फूलों पर जाती हैं। इस प्रकार वे एक फूल से दूसरे फूल पर पराग ले जाकर परागण करती रहती हैं। इससे बीज व दाने बनने की क्रिया तेज हो जाती है। मधुमक्खी फसलों को कोई हानि नहीं पहुंचाते तथा इन्हें हम अपनी इच्छा से जरूरत के अनुसार परागण के लिए फसलों में रख सकते हैं। मधुमक्खियां अपने निवास स्थान से लगभग एक किलोमीटर क्षेत्र में आने वाली फसलों में परागण करती हैं।

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कद्दूवर्गीय फसल में एन्थ्रक्नोस के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of anthracnose in cucurbit crops

यह रोग कोलीटोट्राइम लेजीनेरियम नामक फफूँद से फैलता है। यह रोग अधिकतर खरबूजे, लौकी व खीरे में अधिक हानि पहुंचता है। इस रोग में पत्तियों के शिराओं पर धब्बे दिखाई देते है, जो बाद में 1 सेंटीमीटर व्यास के हो जाते है। इनका रंग भूरा तथा आकार कोणीय होता है। ग्रासित पौधों की पत्तियों में धब्बे बढ़ते हैं पर आपस में मिल जाते है, परिणामस्वरूप पत्तियां सूखने लगती हैं। अनुकूल वातावरण में यह धब्बे पौधों व अन्य भागों व फलों पर भी पाए जाते हैं।

नियंत्रण: इस रोग के लक्षण दिखाई देते ही बाविस्टिन (कार्बेन्डाझिम 50% डब्लू पी) @ 120 ग्राम /एकड़ या इंडोफिल जेड 78 (झायनेब 75% डब्लू पी) @ 600- 800 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

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धान की फसल में तना छेदक कीट का ऐसे करें नियंत्रण

Stem borer attacks in paddy crop
  • इस कीट की सुंडी अवस्था ही धान की फसल में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। 

  • अंडे से निकलने के बाद सुंडियां मध्य कलिकाओं की पत्तियों को छेदकर तने में घुस जाती हैं। जिसके बाद ये सुंडियां तने को अंदर ही अंदर खाती हुई गांठ तक पहुंच जाती हैं। 

  • पौधों की बढ़वार की अवस्था में इस कीट का प्रकोप होने पर बालियाँ नहीं निकलती हैं। 

  • वहीं बाली निकलने वाली अवस्था में प्रकोप होने पर बालियाँ सूखकर सफेद हो जाती हैं, जिस वजह से दाने नहीं बनते हैं।

  • इसके नियंत्रण के लिए सुपर- डी (क्लोरोपाइरीफोस 50% + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी) @ 500 मिली या प्रोफेनोवा (साइपरमैथिन 4% + प्रोफेनोफॉस 40% ईसी) @ 400 मिली एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • कैलडन (कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड 4% जीआर) @ 8 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी में उपयोग करें।  

  • जैविक नियंत्रण के लिए बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना) @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें l

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भिंडी की फसल में फल छेदक के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of fruit borer in okra crop

इस कीट के शरीर पर हलके पीले संतरी, भूरे रंग के धब्बे होते हैं। आरंभिक अवस्था में ये सूंडियां कोपलों में छेद करके अंदर पनपती हैं, जिसकी वजह से कोपलें मुरझा जाती हैं और सूख जाती हैं। बाद में ये सुंडियां कलियों और फूलों को नुकसान पहुंचाती हैं। ये फल में छेद बनाकर अंदर घुसकर फल का गूदा खाती हैं, इसके कारण ग्रासित फल यानी भिंडी खाने योग्य नहीं रहती है।  

नियंत्रण के उपाय

  • क्षतिग्रस्त पौधों के तने तथा फलों को एकत्रित करके नष्ट कर दें।

  • फल छेदक कीट की निगरानी एवं नियंत्रण के लिए 5 -10 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर लगाएं।

  • लक्षण दिखाई देने पर, फेम (फ्लुबेंडियामाइड 39.35% डब्ल्यू/डब्ल्यू एस सी) @ 60 – 70 मिली प्रति एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। 

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जानिए कैसे बचाएं मकड़ी के प्रकोप से मिर्च की फसल!

Know how to save chilli crop from mite attack

इस कीट के नवजात और वयस्क दोनों अवस्थाएं नई पत्तियों को निचली सतह से और पौधों के बढ़ते सिरों से रस चूसते हैं। इसके कारण, पत्तियां नीचे की ओर मुड़कर सिकुड़ जाती हैं, एवं उलटे नाव के आकार का रूप ले लेती हैं। संक्रमित पौधे के फल छोटे रह जाते हैं। 

रोकथाम- इन कीटों का प्रकोप दिखाई देते ही बचाव के लिए, ओमाइट (प्रोपरजाइट 57% ईसी)  @ 600 मिली प्रति एकड़ या पेजर (डायफेंथियूरॉन 50% डब्लूपी) @ 240 ग्राम प्रति एकड़ या इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 05 % एसजी) @ 80 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150 -200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

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सब्जियों वाली फसल में ऐसे करे खरपतवार प्रबंधन

How to do weed management in vegetable crop

सब्जियों वाली फसलों में खरपतवारों को यदि उचित समय पर नियंत्रित नहीं किया जाए तो यह सब्जियों की उपज एवं गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। खरपतवार न केवल उपज कम करते हैं बल्कि सब्जियों के बीजों के साथ अगर खरपतवारों के बीज मिल गए तो बीज की गुणवत्ता को भी खराब कर देते हैं, जिससे उनका मूल्य प्रभावित होता है। ज्यादातर सब्जी वाली फसलों में शुरूआती अवस्था में खरपतवारों के प्रकोप से बचाना अति आवश्यक होता है, क्योंकि इस समय हुआ नुकसान फसल की बढ़वार एवं उत्पादन दोनों को प्रभावित करता है।

खरपतवार प्रबंधन: 

  • फसल की बुआई करते समय खरपतवार मुक्त शुद्ध एवं प्रमाणित बीज/पौध का प्रयोग करें।

  • पूर्ण रूप से सड़ी गोबर व कम्पोस्ट खाद का ही प्रयोग करें अन्यथा सबसे ज्यादा मात्रा में खरपतवार के बीज खेत में आने की संभावना इसी से ही रहती है।

  • कृषि यंत्रों को लगी मिट्टी एक खेत से दूसरे खेत में प्रयोग करने से पहले साफ़ जरूर कर लें।

  • नर्सरी के स्थान को खरपतवार मुक्त रखें।

  • खेत के आस-पास की मेड़, पानी के स्त्रोत व नालियों को खरपतवार मुक्त रखें।

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भिंडी की फसल में सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग के लक्षण व नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control measures of Cercospora leaf spot disease in okra crop

यह रोग सर्कोस्पोरा मालाएंसिस नामक फफूंद के कारण होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर कोणीय से लेकर अनियमित भूरे धब्बे बनते हैं। अधिक संक्रमण की स्थिति में यह धब्बे पूरी पत्तियों पर फ़ैल जाते हैं, और पत्तियां मुरझाने लगती है जिसके कारण प्रभावित पत्तियाँ जल्दी ही झड़ने लगती हैं।

नियंत्रण के उपाय: ब्लू कॉपर (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% डब्लूपी) @ 1 किलो प्रति एकड़ या इंडोफिल जेड 78 (झायनेब 75% डब्लूपी) @ 600-800 ग्राम प्रति एकड़ + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली + नोवामैक्स (जिबरेलिक एसिड 0. 001%) @ 300 मिली प्रति एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें।

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लौकी की फसल में डाउनी मिल्ड्यू रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of downy mildew disease in bottle gourd crop

लौकी के पौधे में डाउनी मिल्ड्यू की समस्या पानी की अनियमितता और जमीन में नमी की मात्रा के कारण होता है। डाउनी मिल्ड्यू लौकी के पौधे में होने वाला एक गंभीर रोग है, जो स्यूडो पेरोनोस्पोरा क्यूबेंसिस नामक कवक के कारण होता है। यह रोग पौधों को किसी भी अवस्था में प्रभावित कर सकता है। इस रोग में पत्तियों पर भूरे व पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में पत्तियों की शिराओं तक फैल जाते हैं जिससे पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं।

नियंत्रण: इस रोग की रोकथाम के लिए पौधे को अधिक पानी देने से बचाएं। पौधे में पानी देते समय पत्तियों को गीला करने से बचें एवं लक्षण दिखाई देने पर जटायु (क्लोरोथॅलोनिल 75% डब्लूपी) @ 200 ग्राम प्रति एकड़ या नोवैक्सिल (मेटालैक्सिल 8% + मैंकोजेब 64% डब्लूपी) @ 800 – 1000 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150 से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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गेहूँ की फसल में कटाई का उचित समय एवं सावधानियां

Appropriate time and precautions for harvesting wheat crop

गेहूँ की फसल में साधारणत: फसल पकने पर पत्तियां सूखने लगती हैं, कभी-कभी एक-दो पत्तियां हरी भी रह सकती हैं एवं बाली के नीचे का भाग सुनहरा हो जाता है। साथ ही यदि दाने को अंगूठे से दबाया जाए तो दूध नहीं निकलता तथा दानों में कड़ापन आ जाता है। इसके अतिरिक्त जब दानों में 25-30 प्रतिशत तक नमी होती है, तब फसल की कटाई की जा सकती है। 

फसल पकने के तुरंत बाद काट लेना चाहिए, क्योंकि कटाई देर से करने पर कुछ किस्मों में दाने झडने लगते है, एवं चूहों तथा चिडियों से भी नुकसान हो सकता है। कभी-कभी फसल काटने में देर करने से गेहूँ के दाने की गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अगर कटाई समय से न करें तो उपज में भी कमी आ सकती है, क्योंकि 5-10 प्रतिशत दानों की हानि झड़ने से, चिडियों और चूहों के खाने से तथा मौसम की खराबी से होती है।  

गेहूँ की फसल में कटाई से पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए, साथ ही फसल को गिरने से बचाना भी अति आवश्यक होता है। कटाई के बाद 4-5 दिन गठ्ठर को धूप में सुखना चाहिए, क्योंकि अगर कटाई के समय दानों में मिट्टी मिल जाए तो गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

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