इस रोग का जीवाणु ज्यादातर वातावरण में नमी और हलकी-हलकी बारिश होने पर या उच्च आद्रता के कारण सक्रिय होता है। प्रभावित पौधों की पत्तियों पर पीले घेरे वाले छोटे, भूरे, पानी से भरे, गोलाकार धब्बे दिखाई देते हैं। पुरानी पत्तियां झड़ने लगती हैं साथ हीं हरे फलों पर छोटे, पानी से भरे धब्बे बन जाते हैं और इन धब्बों का केंद्र अनियमित, हलके भूरे रंग का और पपड़ीदार सतह वाला हो जाता है।
नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए जैसे हीं रोग का प्रकोप दिखाई दे तब, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% एसपी) @ 20-24 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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