धान की फसल में ब्राउन प्लांट हॉपर यानी भूरा माहू का नियंत्रण

Brown plant hopper will cause heavy loss in paddy crop
  • इस कीट का निम्फ और व्यस्क जो की भूरे से सफेद रंग का होता है पौधे के तने के आधार के पास रहता हैं तथा वहां से पौधे को नुकसान पहुँचाता है।

  • इसके अंडे व वयस्क द्वारा पत्तियों के मुख्य शिरा के पास दिए जाते हैं।

  • अंडो का आकार अर्ध चंद्राकार होता है एवं निम्फ का रंग सफ़ेद से हल्का भूरा रहता है।

  • भूरे माहू द्वारा किया गया नुकसान पौधे में पीलेपन के रूप में दिखाई देता है।

  • ये पौधे का रस चूसते हैं और इसके कारण फसल घेरे में सूख जाती है जिसे हॉपर बर्न कहते हैं।

  • इसके नियंत्रण के लिए थियामेंथोक्साम 75% SG @ 60 ग्राम/एकड़ या बुप्रोफिज़िन 15% + एसीफेट 35 % WP@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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क्यों, कब और कैसे खेत में माइकोराइजा डालने से होगा लाभ?

Mycorrhiza effect on chilli plant
  • माइकोराइजा पौधे की जड़ की वृद्धि और विकास में सहायक है।

  • यह फॉस्फेट को मिट्टी से फसलों तक पहुंचाने में मदद करता हैं।

  • साथ ही नाइट्रोजन, पोटैशियम, लोहा, मैंगनीज, मैग्नीशियम, तांबा, जस्ता, बोरान, सल्फर और मोलिब्डेनम जैसे पोषक तत्वों को मिट्टी से जड़ों तक पहुंचाने का कार्य करता है जिससे पौधों को अधिक मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त हो पाते हैं।

  • यह पौधों को मजबूती प्रदान करता हैं जिससे यह कई रोग, पानी की कमी आदि के लिए कुछ हद तक सहिष्णु हो जाते हैं।

  • फसल की प्रतिरक्षा शक्ति में वृद्धि करता है परिणाम स्वरूप उत्पाद की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

  • माइकोराइजा जड़ क्षेत्र को बढ़ाता हैं इसलिए फसल अधिक स्थान से जल ग्रहण कर पाती है।

  • मिट्टी उपचार: 50 किलो अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट/वर्मी कम्पोस्ट/खेत की मिट्टी में @ 2 किलो माइकोराइजा को मिला कर फिर यह मात्रा प्रति एकड़ की दर से फसल बुवाई/रोपाई से पहले मिट्टी में मिला दें।

  • बुआई के 25-30 दिन बाद खड़ी फसल में उपरोक्त मिश्रण का भुरकाव करें।

  • ड्रिप सिंचाई द्वारा: माइकोराइजा को ड्रिप सिंचाई के रूप में बुआई के 25-30 दिन बाद खड़ी फसल में 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

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जौ की खेती करने से पहले जान लें बेहद जरूरी जानकारियां

Know very important information before cultivating barley
  • जौ की खेती में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसके बीजों की बुआई का सबसे उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर है। हालांकि परिस्थिति एवं चारे की आपूर्ति के अनुसार इसकी बुआई दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक भी की जा सकती है।

  • कम तापमान के कारण बुआई में देरी से अंकुरण देर से होता है। इसे हल या सीड ड्रिल से 25 सेमी की दूरी पर पंक्तियों में बोना चाहिए।

  • बीज को 4 से 5 सेमी की गहराई पर बोना चाहिए। कतारों में बोई गई फसल में खरपतवारों पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है। बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% (करमानोवा) @ 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने से अंकुरण अच्छा होता है और फसल बीज जनित रोगों से मुक्त रहती है।

  • चारे के लिए बोई जाने वाली फसल के लिए 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर बोना चाहिए। लेकिन अनाज के लिए प्रति हेक्टेयर 80 किलोग्राम बीज की ही आवश्यकता होती है।

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मेथी की खेती करने से पहले जान लें बेहद जरूरी जानकारियां

Know essential information before cultivating fenugreek
  • मेथी की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है बशर्ते मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ उच्च मात्रा में जरूर हो। हालाँकि यह अच्छे निकास वाली बालुई और रेतली बालुई मिट्टी में अच्छे परिणाम देती है। यह मिट्टी की 5.3 से 8.2 पी एच मान को सहन कर सकती है।

  • बात इसके बीज दर की मात्रा की करें तो एक एकड़ खेत में बिजाई के लिए 12 किलोग्राम प्रति एकड़ बीजों का प्रयोग करना चाहिए।

  • इसके खेत की तैयारी के लिए मिट्टी के भुरभुरा होने तक खेत की दो से तीन बार जुताई करें और फिर ज़मीन को समतल कर लें। आखिरी जुताई के समय 10 से 15 टन प्रति एकड़ अच्छी तरह से गली हुई गोबर की खाद डालें। बिजाई के लिए 3×2 मीटर समतल बीज बैड तैयार करें।

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मटर में माहू के प्रकोप से होगा भारी नुकसान, जानें बचाव के उपाय

Pea aphid outbreak can cause huge losses
  • माहु (एफिड) एक छोटे आकार के कीट होते हैं जो पत्तियों का रस चूसते हैं जिसके फलस्वरूप पत्तियाँ सिकुड़ कर पीली हो जाती हैं।

  • इसके प्रभाव के बाद में पत्तियाँ कड़क हो जाती हैं और कुछ समय बाद सूखकर गिर जाती हैं।

  • मटर के जिस पौधे पर एफिड प्रकोप होता है उस पौधे का विकास ठीक से नहीं होता है एवं पौधा रोग ग्रस्त दिखाई देता है।

  • इसके प्रबंधन के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 100 मिली/एकड़ या थियामेंथोक्साम 25% WG@ 100 ग्राम/एकड़ या ऐसीफेट 75% SP@ 300 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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मटर की फसल में चूर्णिल आसिता रोग का प्रबंधन

Prevention of Powdery Mildew in Pea crop
  • इस रोग के लक्षण सबसे पहले पुरानी पत्तियों पर नजर आते हैं और धीरे धीरे पौधे के अन्य भाग पर असर दिखाई देने लगता है।

  • इसके कारण मटर की पत्तियों के दोनो सतहों पर पाउडर जमा हो जाता है।

  • इसके प्रभाव के कारण बाद में कोमल तनों, फली आदि पर चूर्णिल धब्बे बनते हैं।

  • इसके कारण पौधे की सतह पर भी सफ़ेद चूर्ण दिखाई देता है और पौधे में फल या तो लगते नहीं हैं या फिर छोटे रह जाते हैं।

  • इससे बचाव के लिए प्रतिरोधी किस्म का उपयोग करें। इस बीमारी के कुछ प्रतिरोधी किस्मों में प्रमुख हैं अर्का अजीत, PSM-5, जवाहर मटर-4, जेपी-83, जेआरएस-14 इत्यादि। 

  • इसके प्रकोप को खत्म करने के लिए हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या सल्फर 80% WDG @ 500 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम की दर छिड़काव करें।

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मिर्च की फसल में कॉलर रॉट की समस्या एवं रोकथाम के उपाय

Problem and prevention of collar rot in chilli crops

इस रोग का प्रकोप अधिक बारिश होने के बाद तेज धूप होने पर होता है। फंगस सबसे पहले तना एवं जड़ के बीच कॉलर को ग्रसित करता है, जिस कारण मिट्टी के आस पास कॉलर पर एक सफेद फफूंद एवं काले फफूंद दिखने लगते हैं। इसके अलावा तने के ऊतक हल्के भूरे और नरम हो जाता है और धीरे-धीरे मुरझाने लगता है। प्रकोप की अनुकूल परिस्थिति में यह रोग अन्य भाग को भी प्रभावित कर सकता है। अंत में रोग से फसल मुरझाकर मर जाती है। 

रोकथाम के उपाय 

इस रोग के रोकथाम के लिए, मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 1.0% डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम +  कॉम्बैट (ट्राईकोडरमा विरिडी 1.0% डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से, जड़ क्षेत्र में ड्रेंचिंग करें।

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फसलों की सुरक्षा के लिए कवक जनित रोगों का नियंत्रण है जरूरी

Control of fungal diseases is necessary for the protection of crops
  • किसी भी फसल से अच्छे उत्पादन की प्राप्ति के लिए फसल में कवक जनित रोगों का नियंत्रण करना बहुत आवश्यक होता है।

  • कवक जनित रोगों की रोकथाम में ‘सावधानी ही सुरक्षा है’ का मूल मंत्र काम करता है।

  • इस रोग का प्रकोप होने से पहले हीं उपचार करना बहुत आवश्यक होता है। अर्थात इसके लिए बुआई के पूर्व ही नियंत्रण कर लेना बहुत आवश्यक होता है।

  • सबसे पहले बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।

  • मिट्टी उपचार के बाद बीजों को कवक रोगों से बचाव के लिए कवकनाशी से बीज़ उपचार करना बहुत आवश्यक है।

  • बुआई के 15-25 दिनों में कवकनाशी का छिड़काव करें जिससे की फसल को अच्छी शुरुआत मिल जाए एवं जड़ों विकास अच्छे से हो जाए।

  • इसके अधिक प्रकोप की स्थिति में हर 10 से 15 दिनों में छिड़काव करते रहें।

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रासायनिक उर्वरकों के साथ वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग होगा लाभकारी

Use of vermicompost along with chemical fertilizers will be beneficial
  • वर्मीकम्पोस्ट में सभी पोषक तत्व, हार्मोन और एंजाइम पाए जाते हैं जो पौधों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जबकि उर्वरकों में केवल नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश ही मिलते हैं।

  • इसका प्रभाव बहुत दिनों तक खेत में रहता है और पोषक तत्व धीरे-धीरे पौधों को प्राप्त होते रहते हैं।

  • यह फसलों के लिये संपूर्ण पोषक खाद है जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक होती है। इससे भूमि में जल शोषण और जल धारण की शक्ति बढ़ती है एवं भूमि के कटाव को भी यह रोकने में मददगार साबित होता है।

  • इसमें हयूमिक एसिड होता है, जो जमीन के पी एच मान को कम करने में सहायक होता है। अनउपजाऊ भूमि को सुधारने में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है।

  • इसके प्रयोग से भूमि के अंदर पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्म जीवों को भोजन मिलता है, जिससे ये अधिक क्रियाशील रहते हैं।

  • ये सभी फसलों के लिये प्राकृतिक उर्वरक के रूप में काम करते हैं और इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है।

  • इससे उपज की क्वालिटी जैसे आकार, रंग, चमक तथा स्वाद में सुधार होता है साथ हीं जमीन की उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है।

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चाहिए गेहूँ की बंपर उपज तो बुआई से पहले जरूर करें बीज उपचार

If you want bumper yield of wheat then do seed treatment before sowing
  • बुआई के पहले बीजों का सही तरीके से उपचार कर लेने से बुआई के बाद गेहूँ के सभी बीजों का एक सामान अंकुरण होता है।

  • इससे मिट्टी जनित एवं बीज जनित रोगों से गेहूँ की फसल की सुरक्षा हो जाती है।

  • बीज उपचार करने से करनाल बंट, गेरुआ, लुज स्मट, ब्लाइट जैसे घातक रोगों से गेहूँ की फसल की रक्षा होती है।

  • गेहूँ की फसल में हम रासायनिक और जैविक दो विधियों से बीज उपचार कर सकते हैं।

  • रासायनिक उपचार के लिए बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो + PSB @ 2 ग्राम/किलो बीज़ या PSB @ 2 ग्राम + माइकोराइजा @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।

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