सरसों में विरल अर्थात थिनिंग करना है बेहद जरूरी, जानें इसके फायदे!

Why thinning is necessary in mustard crops
  • सरसों की फसल की बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर तक बनाए रखने के लिए अतिरिक्त जन्में पौधों को निकाल देने की प्रक्रिया विरल या थिनिंग कहलाती है।

  • यह प्रक्रिया फसलों में अधिक शाखा आने एवं स्वस्थ पौध विकास के लिए बहुत जरूरी होती है और सभी किसानों को यह जरूर करना चाहिए।

  • इससे प्रक्रिया के उपयोग से फसल में बीमारी एवं कीटों का प्रकोप कम होता है तथा फसल में फली एवं दाने का आकार बड़ा होता है।

  • जो फसलें एक दूसरे से सही दूरी पर नहीं बोई जाती हैं, उनमें पतला करने की यह प्रक्रिया बेहत आवश्यक होती है।

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मटर में पाउडरी मिल्ड्यू की समस्या एवं नियंत्रण के उपाय!

Powdery mildew problem and control measures in pea crop

क्षति के लक्षण: पाउडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण पत्तियों, कलियों, टहनियों व फूलों पर सफेद पाऊडर के रूप में दिखाई देता हैं। पत्तियों की दोनों सतह पर सफेद रंग के छोटे-छोटे धब्बे नजर आते हैं जो धीरे-धीरे फैलकर पत्ती की दोनों सतह पर फैल जाते है। रोगी पत्तियां सख्त होकर मुड़ जाती हैं। अधिक संक्रमण होने पर पत्तियां सूख कर झड़ जाती हैं।

नियंत्रण के उपाय: इस रोग के नियंत्रण के लिए, धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी) @ 100 ग्राम या वोकोविट (सल्फर 80% डब्ल्यूडीजी) @ 1 किलो + सिलिकोमैक्स गोल्ड @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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मुख्य खेत में रोपाई के पहले जरूर करें प्याज के पौध का उपचार

onion seedlings
  • प्याज की पौध की मुख्य खेत में रोपाई के लिए सबसे पहले स्वस्थ पौध का चयन करें एवं 12 से 14 सेमी लंबी या नर्सरी में बुवाई के 5-6 सप्ताह पुरानी पौध की हीं रोपाई करें।

  • कभी कभी प्याज के पौध.. मिट्टी, जलवायु और सिंचाई के आधार पर 6-7 सप्ताह में भी रोपाई के योग्य हो जाते हैं।

  • बहरहाल रोपाई के पूर्व प्याज की पौध की जड़ों को राइजोकेअर (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0 % डब्ल्यूपी) @ 2.5 ग्राम या स्प्रिंट (कार्बेन्डाजिम 25%+ मैनकोजेब 50% डब्ल्यूएस) @ 3 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से तैयार घोल में 10 मिनट तक डूबा कर रखें।

  • इससे प्रारंभिक अवस्था में आने वाले रोग जैसे- आद्र गलन, जड़ गलन से फसल को बचाया जा सकता है।

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मिर्च की फसल में चिनोफोरा ब्लाइट रोग की पहचान एवं रोकथाम के उपाय

choanephora blight disease

मिर्च की फसल में इस रोग का कारक चिनोफोरा कुकुर्बिटारम है। इस रोग के कवक आमतौर पर पौधे के ऊपरी हिस्से, फूल ,पत्तियों,नई शाखाओं और फलों को संक्रमित करते हैं। प्रारम्भिक अवस्था में पानी से लथपथ क्षेत्र पत्ती पर विकसित होते हैं। जिस कारण प्रभावित शाखा सूखकर लटक जाती है। अधिक संक्रमण बढ़ने पर फल भूरे से काले रंग के हो जाते हैं, संक्रमित भाग पर कवक की परत देखी जा सकती है। 

जैविक प्रबंधन:- कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें।

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मिर्च की फसल में फ्यूजेरियम विल्ट के लक्षण एवं रोकथाम के उपाय

Fusarium wilt disease

मिर्च की फसल में होने वाला फ्यूजेरियम विल्ट रोग एक घातक रोग है। यह बीज एवं मृदा जनित बीमारी है। इस रोग से प्रभावित पौधे अचानक मुरझा कर धीरे-धीरे सूखने लगते हैं। ऐसे पौधे हाथ से खींचने पर आसानी से उखड़ जाते हैं। फ्यूजेरियम विल्ट रोग के कारण रोगी पौधों की जड़ें अंदर से भूरी व काली हो जाती हैं।

रोगी पौधों को चीर कर देखने पर ऊतक काले दिखाई देते हैं। पौधों की पत्तियां मुरझा कर नीचे गिर जाती हैं। हवा और जमीन में ज्यादा नमी व गर्मी होने के कारण एवं सिंचाई से नमी का वातावरण मिलने पर यह रोग बढ़ता है।

जैविक प्रबंधन

  • कॉम्बैट (ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम या मोनास कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1 % डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम, प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें।

2 किलो कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी) फॉर्म्युलेशन को 50 किलो गोबर की खाद  के साथ मिलाएं, फिर उसके ऊपर पानी छिड़कें और एक पतली पॉलिथीन शीट से ढक दें 15 दिनों के बाद जब ढेर पर माय सेलिया की वृद्धि दिखाई दे, तो मिश्रण को एक एकड़  क्षेत्र में प्रयोग करें।

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बुआई से पहले जरूर करें गेहूँ के बीजों का उपचार

seed treatment in wheat
  • गेहूँ के बीजों का उपचार करके बुआई करने पर यह पौधों को मिट्टी और बीज जनित रोग जैसे स्मट, बंट रोग से बचाता है।

  • यह उपचार जड़ माहु के आक्रमण से भी बचाव करता है और फसल को स्वस्थ रखता है। 

  • इस प्रक्रिया को करने से बीज ख़राब नहीं होते हैं, जिससे अधिक बीज का अंकुरण होता है और स्वस्थ पौधों का विकास होता है। 

  • बीज उपचार करने से कृषि लागत कम आती है एवं उत्पादन में वृद्धि होती है। 

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भिंडी के लिए खेत की तैयारी एवं पोषक तत्व प्रबंधन

Nutrient management for okra

पौधो की अच्छी अंकुरण एवं जड़ विकास के लिए, मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है। पिछली फसल की कटाई के बाद एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें एवं इसके बाद गोबर की खाद 4 टन + स्पीड कम्पोस्ट 4 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में समान रूप से भुरकाव करें तथा 2-3 जुताई हैरो की सहायता से करें। अगर मिट्टी में नमी कम हो तो पहले पलेवा करें फिर खेत की तैयारी करें और आखिरी में पाटा चलाकर खेत समतल बना लें। 

पोषक तत्व प्रबंधन 

फसल बुवाई के समय या बुवाई के 25 दिन के अंदर, डीएपी 75 किलोग्राम + एमओपी 30 किलोग्राम + ट्राई कोट मैक्स (जैविक कार्बन 3%, ह्यूमिक, फुल्विक, जैविक पोषक तत्वों का एक मिश्रण) @ 4 किलोग्राम + टीबी 3 (नाइट्रोजन स्थिरीकरण बैक्टीरिया, फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया, और पोटेशियम गतिशील बैक्टीरिया) @ 3 किलोग्राम + ताबा जी (जिंक घुलनशील बैक्टीरिया) @ 4 किलोग्राम + नीम केक 50 किलोग्राम + एग्रोमीन ((जिंक, आयरन, मैग्नीज, कॉपर, बोरॉन और मोलिब्डेनम) @ 5 किलोग्राम + मैग्नीशियम सल्फेट @ 5 किलोग्राम इन सभी को आपस में मिलाकर एक एकड़ के हिसाब से समान रूप से भुरकाव करें।

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चने की फसल में उकठा रोग की पहचान व बचाव के उपाय

Fusarium wilt in gram crops

रोग की पहचान:- चने की फसल में यह फफूंद जनित रोग सबसे विनाशकारी साबित होता है। यह रोग किसी भी अवस्था में फसल को प्रभावित कर सकता है। इस रोग के चलते पत्तियां नीचे से ऊपर की ओर पीली और भूरी पड़ जाती हैं। अंत में पौधा मुरझाकर सूख जाता है।

तने को चीर कर देखने से आंतरिक उत्तक भूरे रंग का दिखाई देता है, जिस कारण से पोषक तत्व एवं पानी पौधों के सभी भाग तक नहीं पहुँच पाता है और पौधे मरने लगते हैं। पौधों को उखाड़ कर देखने पर कॉलर एवं जड़ क्षेत्र गहरा भूरा या काला रंग का दिखाई देता है। 

रोकथाम के उपाय:- इस रोग से बचने के लिए बुवाई के समय कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यू.पी.) @ 10 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित करके बोना चाहिए एवं अभी इसकी रोकथाम के लिए कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1.0% डब्ल्यू.पी.) @ 1 किग्रा प्रति एकड़ के हिसाब से मिट्टी में समान रूप से भुरकाव कर हल्की सिंचाई करें।

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आलू में सिंचाई प्रबंधन एवं क्रांतिक अवस्थाओं को समझें

Know irrigation management and critical stages in potato crop
  • आलू की फसल में एक बार में थोड़ा पानी कम अंतराल पर देना उपज के लिए अधिक लाभदायक है। 

  • रोपनी के 10 दिन बाद परन्तु 20 दिन के अंदर ही प्रथम सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से अकुरण शीघ्र होगा तथा प्रति पौधा कंद की संख्या बढ़ जाती है जिसके कारण उपज में दोगुनी वृद्धि हो जाती है। 

  • प्रथम सिंचाई समय पर करने से खेत में डाले गए खाद का उपयोग फसलों द्वारा प्रारंभ से ही आवश्यकतानुसार होने लगता है। 

  • दो सिंचाई के बीज का समय खेत की मिट्टी की दशा एवं अनुभव के आधार पर घटाया बढ़ाया जा सकता है। फिर भी दो सिंचाई के बीच 20 दिन से ज्यादा का अंतर न रखें।

  • खुदाई के 10 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर दें। ऐसा करने से, खुदाई के समय कंद स्वच्छ निकलेंगे। ध्यान रखें, प्रत्येक सिंचाई में आधी नाली तक ही पानी दें l 

  • वृद्धि के कुछ चरणों (क्रांतिक अवस्थाएँ) में जल प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है-

1) अंकुरण अवस्था

2) कंद स्थापित अवस्था

3) कंद बढ़वार अवस्था

4) अंतिम फसल अवस्था

5) खुदाई के पूर्व 

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खेत में भूल कर भी न जलाएं पराली, मिट्टी को होंगे कई नुकसान

Damage to soil due to burning in stubble field

  • पराली जलाने से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है और प्रदूषण बढ़ता है।

  • फसल का कचरा जलाने के कारण खेत में पाए जाने वाले लाभकारी सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं।

  • इससे फसलों की पैदावार कम हो जाती है और मिट्टी की उर्वरता में कमी आती है।

  • पराली जलाने कारण वातावरण में मीथेन, कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड आदि जैसे गैसों का काफी उत्सर्ज़न होता है जिसके कारण वायुमंडल में कोहरा सा छा जाता है।

  • पराली जलाने के कारण मिट्टी में कार्बनिक पदार्थो की सरचना गड़बड़ा जाती है।

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