जानें लहसुन की फसल में समय से पहले कंद अंकुरण के कारण

Know the reasons for premature tuber sprouting in the main field in garlic crop

लहसुन की फसल में कभी-कभी बल्ब की परिपक्व होने की अवस्था के शुरुआत में लहसुन के बल्ब खेत में ही अंकुरित होते देखे जाते है, यह स्थिति खासकर के सर्दियों के मौसम में बारिश होने पर या फिर मिट्टी में अधिक नमी होने से एवं नाइट्रोजन की आपूर्ति के कारण होती है। साथ हीं लहसुन में यह समस्या फसल में सामान्य आवश्यकता की तुलना में अधिक बार सिचाई करने से भी होती है। 

इस समस्या से लंबी अवधि की किस्मों की तुलना में कम अवधि वाली किस्में अधिक संवेदनशील होती हैं। बारिश के मौसम में देरी से कटाई करने से कंदों का समय से पहले अंकुरण और फूटना बढ़ जाता है। साथ ही रोपण के समय कलियों में अधिक दूरी होने से एक-एक पौधों द्वारा नाइट्रोजन और पानी का शोषण बढ़ता है जिसके परिणामस्वरूप समय से पहले अंकुरण की समस्या होती है।

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तरबूज की फसल में में एन्थ्रक्नोस रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of anthracnose disease in watermelon

एन्थ्रक्नोस के लक्षण पत्तियों एवं फल दोनों पर दिखाई देते हैं। शुरूआती अवस्था में पत्तियों पर पीले, गोल जलयुक्त धब्बे दिखाई देते हैं, बाद में यह धब्बे आपस में मिलकर बड़े व भूरे रंग के हो जाते हैं। ग्रसित पत्तियां सूख जाती है, और फलों पर भी गोलाकार जलयुक्त एवं हल्के भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं तथा फल कठोर हो जाते हैं।

नियंत्रण: इस रोग के नियंत्रण के लिए बुआई के लिए उपचारित बीज का हीं उपयोगकरें। बीज उपचार बाविस्टिन (कार्बेन्डाझिम 50 डब्लू पी) @ 2 ग्राम पर किलो बीज के दर से करें एवं रोग का प्रकोप दिखाई देने पर एम-45 (मैन्कोजेब 75% डब्लू पी) @ 2 ग्राम/लीटर पानी के दर से छिड़काव करें।

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तरबूज में रेड पम्पकिन बीटल से होने वाले नुकसान एवं रोकथाम के उपाय

Damage caused by red pumpkin beetle in watermelon and preventive measures

इस कीट की नवजात एवं वयस्क दोनों ही अवस्था फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। नवजात पौधों की जड़, भूमिगत तना एवं जमीन से लगे फल खाते है, जिससे पौधे मुरझाने लगते हैं या पौधों में सड़न भी हो सकती है। वयस्क कीट पौधों की पत्तियों में छेद करते हैं जिसके कारण पौधे का विकास नहीं होता एवं प्रकोप बढ़ने पर पौधे भी जाते हैं। इससे खेत में फसलों पर जले जले से धब्बे दिखाई पड़ते हैं। यह कीट फूल की अवस्था में भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे फल धारणा कम होती है, और गंभीर अवस्था में उत्पादन में 90 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। 

रोकथाम के उपाय: इस कीट के रोकथाम के लिए फसल की कटाई के तुरंत बाद खेतों की जुताई करें और सुप्तावस्था में रहने वाले वयस्क कीटों को नष्ट कर दें। प्रकोप दिखाई देने पर इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एसजी) @ 100 ग्राम/एकड़ या टफगोर (डायमेथोएट 30% इसी) @ 200 मिली प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें। 

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लूज़ स्मट से गेहूँ की फसल को होगा नुकसान, जानें लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of loose smut in wheat crop

लूज़ स्मट गेहूँ की फसल में लगने वाला एक बीज़ जनित रोग है। इस रोग के लक्षण बाली आने पर ही दिखाई देते हैं। रोगी पौधों की बालियों में दानों की जगह रोग जनक के बीजाणु काले पाउडर के रूप पाए जाते हैं एवं ये बीजाणु एक पतली झिल्ली से ढके होते हैं। ग्रसित पौधे आमतौर पर पहले परिपक्व होते हैं और उनकी ऊंचाई कम होती है।  

लूज़ स्मट रोग के रोकथाम के उपाय 

इस रोग के नियंत्रण का सबसे अच्छा उपाय बीज़ उपचार है। पत्तियों के पीले पड़ने पर संक्रमित बालियों को निकाल दें। इसके आलावा इस रोग के नियंत्रण के लिए करमानोवा  (कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63%) @ 600 ग्राम/एकड़ या टेसूनोवा (टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG)@ 500 ग्राम, प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

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भिंडी की फसल में पाउडरी मिल्डू रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of powdery mildew disease in okra crop

पाउडरी मिल्डू रोग के लक्षण पौधे की पुरानी पत्तियों एवं तने दोनों पर साफ दिखाई देते हैं। प्रभावित पौधों की पत्तियों एवं तने पर इसके कारण सफ़ेद रंग के चूर्णीले धब्बे बन जाते हैं।संक्रमण बढ़ने पर पत्तियां पीली पड़ कर झड़ने लगती हैं। ग्रसित पौधों के फल आकार में छोटे रह जाते हैं, और इससे उत्पादन भी बहुत कम होता है। वातावरण में अधिक आद्रता होने पर रोग का प्रकोप बढ़ जाता है। 

नियंत्रण:  इसके नियंत्रण के लिए बाविस्टिन (कार्बेन्डाझिम 50% डब्लू पी) @ 200 ग्राम प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी या सल्फर 80% डब्लू पी @ 1.2 किलो प्रति एकड़ के दर से 300-400 लीटर पानी में छिड़काव करें।

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फसल में ब्यूवेरिया बैसियाना के इस्तेमाल से मिलते है कई फ़ायदे

Benefits of Beauveria bassiana in crops

ब्यूवेरिया बैसियाना एक फफूंद पर आधारित जैविक कीटनाशक है। यह कवक दुनिया के अधिकांश हिस्सों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। साथ ही इस कवक के बीजाणु कीट की त्वचा के संपर्क में आते ही अंकुरित हो जाते हैं, और कीट के शरीर पर फैल जाते हैं, जिससे कीट के पूरे शरीर में कवक फैल जाता है और 48 से 72 घंटे के भीतर कीट मर जाते हैं।

ब्यूवेरिया बैसियाना अधिक आद्रता एवं कम तापमान में भी प्रभावी होते हैं। यह विभिन्न प्रकार की फसलें एवं सब्जियों में लगने वाले कीट जैसे फली छेदक, पत्ती लपेटक, पत्ती खाने वाले कीट, रस चूसने वाले कीट, भूमि में रहने वाले दीमक एवं सफेद लट आदि की रोकथाम के लिए लाभकारी हैं। साथ ही यह कवक के कारण होने वाले कीट को भी नियंत्रित करता है। 

प्रयोग की विधि:

  • मिट्टी से प्रयोग के लिए 1 किलो प्रति एकड़ के दर से लगभग 75 किलो गोबर की खाद में मिलाकर अंतिम जुताई के समय प्रयोग करना चाहिए।

  • खड़ी फसल में अगर कीट का प्रकोप दिखाई दे तब 250-500 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करें। 

  • एक बात ध्यान रखने वाली है की ब्यूवेरिया बैसियाना के प्रयोग से पहले एवं बाद में रासायनिक फफूंदीनाशक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 

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मिर्च में फली छेदक के प्रकोप से होने वाले नुकसान एवं नियंत्रण के उपाय

Damage and control of pod borer in chilli

यह एक पॉलीफेगस कीट है। इस कीट की इल्ली अक्सर फल में छेद करके फसल को नुकसान पहुंचाती है। शुरूआती अवस्था में युवा लार्वा (इल्लियां) फूलों की कलियों एवं युवा फल को गोलाकार छेद बनाकर खाते हैं। बाद में, यही इल्लियां फल के अंदर अपना सिर डालकर फल को अंदर से खाते हैं। संक्रमण बढ़ने पर फल सड़कर झड़ने लगते हैं।

नियंत्रण:  इस कीट के नियंत्रण के लिए इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एससी) @ 80 मिली प्रति एकड़ या कवर (क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18. 50 % एससी) @ 60 मिली प्रति एकड़ साथ ही बवे कर्ब (ब्यूवेरिया बेसियाना) @ 250 ग्राम प्रति एकड़ के दर से 150-200 लीटर पानी में छिड़काव करें। 

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तरबूज की फसल में फल नोक सड़न के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय

Symptoms and control of blossom end rot in watermelon crop

ब्लॉसम एंड रोट पौधे में कैल्शियम की कमी के कारण होता है। जब इसके लक्षण दिखाई देते है, तब यह हो सकता है की मिट्टी में पर्याप्त कैल्शियम नहीं है, या कैल्शियम मौजूद है लेकिन पौधों की जड़ वो कैल्शियम अवशोषित नहीं कर पाती है। इस रोग में फल के सिरे पर गहरा भूरा या काला धब्बा दिखाई देता है, जो बाद में सूख जाता है, या चमड़े जैसा हो जाता है। शुरुआती अवस्था में यह हल्का हरा होता है लेकिन जैसे -जैसे फल परिपक्व होते है यह भूरा एवं काला हो जाता है।

नियंत्रण: इसके नियंत्रण के लिए चिलेटेड कैल्शियम @ 1 – 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के दर से छिड़काव करें, या यारा लिवा कैल्सिनेट (कैल्शियम नाइट्रेट) @ 0.5 – 1.25 किलोग्राम प्रति दिन प्रति एकड़ के दर से ड्रिप के माध्यम से एक सप्ताह के लिए उपयोग करें। साथ ही खेत में लगातार पर्याप्त नमी बनाए रखें।

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आलू की खुदाई के समय इन सावधानियों से उपज को नहीं होगा नुकसान

The yield will not be harmed by these precautions at the time of potato digging

आलू की खुदाई ज्यादातर फरवरी से शुरू होकर मार्च के दूसरे सप्ताह तक की जाती है और आलू की फसल में खुदाई का सही प्रबंधन बहुत आवश्यक होता है, ताकि आलू के कंद को कम से कम नुकसान पहुंचे। अक्सर खुदाई के दौरान आलू के कंदों के ऊपरी हिस्से पर कई बार कटे का निशान लग जाता है, जिसके कारण भंडारण के दौरान आलू के खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। इससे बचने के लिए खुदाई के समय कुछ सावधानियां बरतने की जरुरत होती है। 

सावधानियां:

  • आलू की खुदाई फसल बुवाई के 80 से 90 दिनों के बाद जब फसल परिपक्व हो जाए, एवं पौधों की पत्तियां पीली पड़ जाए तब करनी चाहिए। 

  • तापमान लगभग 30 डिग्री सेंटीग्रेट होने से पहले ही खुदाई कर लेनी चाहिए। 

  • खुदाई करते समय, मौसम सूखा रहना जरुरी होता है।

  • खुदाई के 2 सप्ताह पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। 

  • खुदाई के बाद आलू के कंदों को कुछ दिनों तक खुली हवा में रखना चाहिए, इससे कंदों के छिलके कड़े हो जाते हैं।

  • अगर खुदाई करते समय कुछ कंद कट जाए तो कटे हुए कंदो को छटाई के दौरान हटा देना चाहिए। 

  • आलू के कंदों को धूप में न सुखाएं, अगर कंदों को धूप में सुखाया तो उनकी भंडारण क्षमता प्रभावित होती है।

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कई प्रकार से होती है मल्चिंग वाली खेती, जानें इसके लाभ

Benefits and types of plastic mulching

प्लास्टिक मल्चिंग दरअसल प्लास्टिक फिल्म के साथ पौधों के चारों ओर की मिट्टी को व्यवस्थित रूप से ढकने की प्रक्रिया है। आइये जानते हैं इस विधि से खेती करने से क्या लाभ आपको मिलते हैं।

प्लास्टिक मल्चिंग के लाभ:

  • प्लास्टिक मल्चिंग से मिट्टी में नमी लंबे समय तक बनी रहती है और इसके कारण पानी की भी बचत होती है।

  • मल्चिंग से मिट्टी के तापमान को नियंत्रित रखने में भी मदद मिलती है।

  • इससे फसल में खरतपवार उगने की संभावना कम होती है और जड़ विकास तेजी से होता है।

  • इससे फसलों को पाले से बचाने में भी मदद मिलती है।

  • इससे मिट्टी का कटाव नहीं होता, साथ ही यह मिट्टी को भुरभुरा एवं मुलायम बनाए रखने में भी मदद करता है।

  • इससे उत्पादन में वृद्धि होती है, साथ ही उपज की गुणवत्ता में सुधार होता है।

प्लास्टिक मल्चिंग के प्रकार:

  • काली मल्चिंग: यह मल्चिंग अधिकतर बागवानी फसलों में खरपतवार नियंत्रण के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसके काले रंग के कारण सूर्य का प्रकाश मिट्टी में प्रवेश नहीं करता जिससे खरपतवारों का प्रकाश संश्लेषण नहीं हो पाता है तथा उनकी वृद्धि मल्च के नीचे ही रुक जाती है।

  • नीली मल्चिंग: नीले रंग की मल्च फसलों में माहु तथा थ्रिप्स के प्रकोप को कम करता है। इसके इस्तेमाल से कद्दूवर्गीय फसलों में फलों की अधिक संख्या प्राप्त होती है।

  • पारदर्शी मल्चिंग: इस प्रकार के मल्चिंग का उपयोग अधिकतर मिट्टी में सौर उपचार के लिए किया जाता है। साथ ही सर्दियों के मौसम में सब्जियों की खेती के लिए इसका उपयोग  किया जा सकता है।

प्लास्टिक मल्चिंग की मोटाई: मल्च फिल्म की मोटाई फसल के प्रकार एवं उम्र के अनुसार निश्चित किया जाता है। मल्च की मोटाई फसल के जीवन चक्र को पूरा करने वाली होनी चाहिए। अधिकतर सब्जी वाली फसलों में पलवार की मोटाई 25 माइक्रोन और फल वाली फसलों में 100 माइक्रोन की होनी चाहिए।

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