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- आलू की तरह ही इसके छिलके में भी भरपूर मात्रा में पोटैशियम पाया जाता है जो ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में बहुत मदद करता है।
- यह यूवी किरणों से बचाव तथा त्वचा की सुरक्षा करता है।
- मेटाबॉलिज्म के लिए भी यह फ़ायदेमंद होता है।
- शरीर को अच्छी मात्रा में आयरन दिलाता है, जिससे एनीमिया होने का खतरा कम हो जाता है।
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- प्याज, लहसुन के अधिक समय तक भण्डारण के लिए भण्डारगृहों के तापमान तथा आद्रता का ध्यान रखना चाहिए।
- जुलाई से सितम्बर तक नमी 70 प्रतिशत से अधिक होती है, इसकी वजह से इसमें सड़न बढ़ जाती है।
- अक्टूबर-नवंबर में कम तापमान से सुषुप्तावस्था टूट जाती एवं प्रस्फुटन की समस्या बढ़ जाती है।
- अच्छे भण्डारण के लिए भंडार गृहों का तापमान 25-30 डिग्री सें. तथा आर्द्रता 65-70 प्रतिशत के मध्य होनी चाहिए।
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- प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पोटेशियम स्टोमेटा के खुलने एवं बंद होने को नियंत्रित करता है।
- पौधों में प्रोटीन और स्टार्च बनने में पोटेशियम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- यह फसल को सूखे से लड़ने में मदद करता है।
- पौधों में विकास के लिए उपयोगी एंजाइमों की सक्रियता में पोटेशियम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- पोटेशियम पौधे में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है।
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- प्रारंभिक अवस्था में भूमि को भुरभुरी बनाने के लिए खेत की जुताई 4-5 बार करें और अंतिम जुताई के पूर्व 10 -15 टन अच्छी पकी हुई गोबर की खाद को प्रति एकड़ भूमि में मिला दें।
- यदि भूमि में निमेटोड या सफ़ेद चीटी या लाल चीटी का प्रकोप हो तो कार्बोफुरान का 10 कि.ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिडकाव करें।
- खेत को समतल करने के दौरान 60 से.मी. चौड़ाई वाली नालियों का निर्माण 2- 2.5 से.मी. की दूरी पर करना चाहिए।
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- इसके बीजों की बुआई मेढ़ो पर की जाती है और पौधों के बीच की दूरी 1 से 1.5 मीटर के लगभग रखी जाती है।
- जब खीरे को मण्डप आकार वाले ढाँचे का सहारा देकर उगाया जाता है तब इसे 3*1 मीटर की दूरी पर उगाया जाता है।
- बीजों की बुआई 0.5 से 75 मीटर की दूरी पर की जाती है तो प्रत्येक गड्ढे में 4-6 बीज को बोया जाता है।
- गड्ढे के सभी बीजों के उग जाने के बाद उसमे से दो पौधे को ही वृद्धि के लिए रखा जाता है।
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- करेले की फसल सूखे एवं अत्यधिक पानी वाले क्षेत्रों के प्रति सहनशील नहीं होती है।
- रोपण या बुआई के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिये और फिर तीसरे दिन एवं उसके बाद सप्ताह में एक बार भूमि में नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए।
- भूमि की ऊपरी सतह (50 सेमी.तक) पर नमी बनाए रखनी चाहिए। इस क्षेत्र में जड़ें अधिक संख्या में होती हैं।
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- पहली सिंचाई बुआई के तुरंत बाद करनी चाहिए।
- दूसरी सिंचाई पहली सिंचाई के चार दिन बाद करनी चाहिए।
- इसके बाद प्रति 7-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।
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- प्रभावित पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर दें।
- रोग प्रतिरोधी किस्मों की बीज को लगाएं।
- फसल चक्र को अपना कर एवं खेत की सफाई कर रोग की आक्रामकता को कम कर सकते हैं।
- मेटालैक्सिल 4% + मैंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से घोल बना कर जड़ों के पास छिड़काव करें।
- थियोफैनेट मिथाइल 70% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से घोल बना कर जड़ों के पास छिड़काव करें।
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- इसके कारण पत्तियों की निचली सतह पर जल रहित धब्बे बन जाते हैं।
- जब पत्तियों के उपरी सतह पर कोणीय धब्बे बनते है प्राय: उसी के अनुरूप ही निचली सतह पर भी जल रहित धब्बे बनते है।
- जैसे-जैसे रोग बढ़ता हैं धब्बे पीले और भूरे रंग के हो जाते हैं।
- ग्रसित लताओं पर फल नहीं लगते हैं।
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- सुरक्षित भंडारण हेतु गेहूं के दानों में 10-12% से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए।
- अनाज को बोरियों, कोठियों या कमरे में रखने के बाद एल्युमिनियम फास्फाइड 3 ग्राम की दो गोली प्रति टन की दर से रखकर बंद कर देना चाहिए।
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