तरबूज की फसल में मृदुरोमिल आसिता रोग की पहचान 

  • पत्तियों की निचली सतह पर जल रहित धब्बे बन जाते हैं।
  • जब पत्तियों के ऊपरी सतह पर कोणीय धब्बे बनते है प्राय: उसी के अनुरूप ही निचली सतह पर जल रहित धब्बे बनते हैं।
  • धब्बे सबसे पहले पुरानी पत्तियों पर बनते हैं और धीरे धीरे यह नई पत्तियों पर भी बनने लगते हैं।
  • इस समस्या से ग्रसित लताओं पर फल नहीं लगते हैं।
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मूंग की फसल हेतु भूमि की तैयारी के लिए ग्रामोफ़ोन लेकर आया है ‘मूंग समृद्धि किट’

  • इस किट में वो सभी आवश्यक तत्व शामिल किये गए हैं जो की मूंग की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए आवश्यक होते हैं।
  • इस ‘मूंग समृद्धि किट’ में कई प्रकार के लाभकारी जीवाणु मौजूद रहते हैं।
  • इन जीवाणुओं में पोटाश एवं फॉस्फोरस के बैक्टीरिया, ट्रायकोडर्मा विरिडी, हुमीक सीवीड एवं राइजोबियम बैक्टीरिया प्रमुख हैं।
  • इन सभी सूक्ष्म जीवाणुओं को मिलाकर यह किट तैयार की गयी है ।
  • इस किट का कुल वज़न 6 किलो है जिसका प्रति एक एकड़ की दर से उपयोग किया जाता है।
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खीरे की खेती के दौरान किये जाने वाले महत्वपूर्ण कार्य:

  • खीरा एक उथली जड़ वाली फसल है इस कारण इसमें अधिक गहरी अन्तर शस्य क्रियाएँ आवश्यक नही होती है।
  • छँटाई करने हेतु सभी द्वितीयक शाखाओं को पाँच गाँठों के साथ काट देने से इसकी फलों की गुणवत्ता में सुधार होता हैं एवं उपज बढ़ती है।
  • पौधे को सहारा देकर उगाया जाता है, जिससे फलों में सड़न की समस्या कम हो जाती है।
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तरबूज की फसल में मल्चिंग/पलवार का महत्व

  • प्लास्टिक मल्चिंग तरबूज की फसल में लगने वाले कीड़ों, बीमारियों और खरपतवारों से बचाती है।
  • काले रंग की पॉलिथीन के द्वारा खरपतवारों का नियंत्रण किया जाता है और साथ ही हवा, बारिश व सिंचाई से होने वाले मृदा कटाव को भी यह रोकती है।
  • पारदर्शी पॉलीथिन का उपयोग मृदा जनित रोगों और नमी संरक्षण को नियंत्रित करने में किया जाता है।
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तोरई की उन्नत खेती से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जो बेहतर उत्पादन में होंगे सहायक

  • तोरई कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन ए का अच्छा स्रोत है। 
  • इसकी खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में की जाती है। 
  • इसके लिए तापमान 32-38 डिग्री सेंटीग्रेड का होना चाहिए।  
  • तोरई की बुआई के लिए नाली विधि ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है।
  • गर्मी के दिनों में इसकी फसल को लगभग 5-6 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई देनी चाहिए।
  • इसकी तुड़ाई में अगर देरी हो तो इसके फलों में कड़े रेशे बन जाते हैं।
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तुरई की आरती किस्म (VNR SEEDS) की खेती से किसानों को होगी बेहतर आमदनी

क्र. तुरई की आरती किस्म (VNR SEEDS)
1. बुआई का समय मार्च
2. बीज की मात्रा 1-2 किलो/एकड़
3. पंक्ति के बीच की दूरी की 120 -150 सेमी
4. पौधों के बीच की दूरी 90 सेमी
5 बुआई की गहराई 2- 3 सेमी
6. रंग आकर्षक हरा
7 आकार लम्बाई 24-25 सेमी, चौड़ाई 2.4 इंच
8 भार 200-225 ग्राम
9 पहली तुड़ाई 55 दिन
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जाने कद्दु, करेला, ककड़ी, तरबूज, खरबूज, लौकी और गिल्की की खेती के लिये उपयुक्त जलवायु कैसी होनी चाहिए?

  • गर्म एवं नमी युक्त मौसम इस फसल के लिये उपयुक्त होता है।
  • इस फसल की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिये रात व दिन का तापमान 18-22 C एवं 30-35 C के मध्य होना चाहिये।
  •  25-30 C तापमान पर बीज अंकुरण बहुत तेजी से होता हैं।
  • अनुकूल तापमान होने पर मादा फुलो एवं फलो की संख्या प्रति पौधा मे वृद्धि होती है।
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आलू के छिलकों को फेंकने के बजाय सेवन करें, मिलेंगे आश्चर्यजनक फ़ायदे

source- https://www.peakpx.com/604825/potato-peels
  • आलू की तरह ही इसके छिलके में भी भरपूर मात्रा में पोटैशि‍यम पाया जाता है जो ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में बहुत मदद करता है।
  • यह यूवी किरणों से बचाव तथा त्वचा की सुरक्षा करता है।
  • मेटाबॉलिज्म के लिए भी यह फ़ायदेमंद होता है।
  • शरीर को अच्छी मात्रा में आयरन दिलाता है, जिससे एनीमिया होने का खतरा कम हो जाता है।
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प्याज व लहसुन के कंद को सड़न से बचाने हेतु इन बातों का रखें ध्यान

  • प्याज, लहसुन के अधिक समय तक भण्डारण के लिए भण्डारगृहों के तापमान तथा आद्रता का ध्यान रखना चाहिए।
  • जुलाई से सितम्बर तक नमी 70 प्रतिशत से अधिक होती है, इसकी वजह से इसमें सड़न बढ़ जाती है।
  • अक्टूबर-नवंबर में कम तापमान से सुषुप्तावस्था टूट जाती एवं प्रस्फुटन की समस्या बढ़ जाती है।
  • अच्छे भण्डारण के लिए भंडार गृहों का तापमान 25-30 डिग्री सें. तथा आर्द्रता 65-70 प्रतिशत के मध्य होनी चाहिए।
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जानें गेहूं की फसल में पोटेशियम युक्त उर्वरक के स्प्रे से होने वाले फायदे  

  • प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पोटेशियम स्टोमेटा के खुलने एवं बंद होने को नियंत्रित करता है।
  • पौधों में प्रोटीन और स्टार्च बनने में पोटेशियम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • यह फसल को सूखे से लड़ने में मदद करता है।
  • पौधों में विकास के लिए उपयोगी एंजाइमों की सक्रियता में पोटेशियम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • पोटेशियम पौधे में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता है।
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