- मोजेक वायरस से बचाव के लिए खेत में उपस्थित खरपतवार आदि को उखाड़कर नष्ट करें।
- फसल चक्र अपनाएँ।
- मोज़ेक वायरस से बचाव के लिए सवेंदनशील मौसम व क्षेत्रों में फसल को ना उगायें।
- 10-15 दिन के अंतराल पर एसिटामिप्रिड 20% एसपी @ 100 ग्राम/एकड़ का स्प्रे करें साथ ही स्ट्रेप्टोमाईसीन 20 ग्राम प्रति पम्प का स्प्रे करें तथा शुरुआती संक्रमण से फसल को बचाएँ।
- 10-15 दिन के अंतराल पर ऐसीफेट 75% एसपी @ 80-100 ग्राम/एकड़ प्रति पम्प स्प्रे करें साथ ही स्ट्रेप्टोमाईसीन 20 ग्राम प्रति एकड़ का स्प्रे करें तथा शुरुआती संक्रमण से फसल को बचाएँ।
गिलकी में मोज़ेक वायरस से होने वाले रोग की पहचान:
- यह वायरस जनित रोग एफिड कीट द्वारा फैलती है, जो पौधे का रस चूसकर बीमारी फैलाते हैं।
- इससे ग्रसित पौधे की नयी पत्तियों की शिराओं के बीच में पीलापन आ जाता है, एवं पत्तियाँ बाद में ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं।
- पुरानी पत्तियों के ऊपर उभरे हुए गहरे रंग की फफोलेनुमा संरचना दिखाई देती है। प्रभावित पत्तियाँ तन्तुनुमा हो जाती हैं।
- पौधा आकार में छोटा हो जाता है बीमारी से पौधे की वृद्धि, फल-फूल के विकास एवं उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- इसके समस्या से ज्यादा प्रभावित पौधे पर फल नहीं लगते हैं।
तरबूज की फसल में मृदुरोमिल आसिता रोग का नियंत्रण
- प्रभावित पत्तियों को तोड़कर नष्ट कर दें।
- रोग प्रतिरोधी किस्मों को लगाएं।
- फसल चक्र को अपना कर एवं खेत की सफाई कर रोग की आक्रामकता को कम कर सकते हैं।
- मेटालैक्सिल 4% + मैंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से घोल बना कर जड़ों के पास छिड़काव करें।
- थायोफनेट मिथाइल 70% WP 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- सूडोमोनास फ्लोरसेंस 500 ग्राम/एकड़ की दर से प्रति एकड़ छिड़काव करें।
तरबूज की फसल में मृदुरोमिल आसिता रोग की पहचान
- पत्तियों की निचली सतह पर जल रहित धब्बे बन जाते हैं।
- जब पत्तियों के ऊपरी सतह पर कोणीय धब्बे बनते है प्राय: उसी के अनुरूप ही निचली सतह पर जल रहित धब्बे बनते हैं।
- धब्बे सबसे पहले पुरानी पत्तियों पर बनते हैं और धीरे धीरे यह नई पत्तियों पर भी बनने लगते हैं।
- इस समस्या से ग्रसित लताओं पर फल नहीं लगते हैं।
मूंग की फसल हेतु भूमि की तैयारी के लिए ग्रामोफ़ोन लेकर आया है ‘मूंग समृद्धि किट’
- इस किट में वो सभी आवश्यक तत्व शामिल किये गए हैं जो की मूंग की फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए आवश्यक होते हैं।
- इस ‘मूंग समृद्धि किट’ में कई प्रकार के लाभकारी जीवाणु मौजूद रहते हैं।
- इन जीवाणुओं में पोटाश एवं फॉस्फोरस के बैक्टीरिया, ट्रायकोडर्मा विरिडी, हुमीक सीवीड एवं राइजोबियम बैक्टीरिया प्रमुख हैं।
- इन सभी सूक्ष्म जीवाणुओं को मिलाकर यह किट तैयार की गयी है ।
- इस किट का कुल वज़न 6 किलो है जिसका प्रति एक एकड़ की दर से उपयोग किया जाता है।
खीरे की खेती के दौरान किये जाने वाले महत्वपूर्ण कार्य:
- खीरा एक उथली जड़ वाली फसल है इस कारण इसमें अधिक गहरी अन्तर शस्य क्रियाएँ आवश्यक नही होती है।
- छँटाई करने हेतु सभी द्वितीयक शाखाओं को पाँच गाँठों के साथ काट देने से इसकी फलों की गुणवत्ता में सुधार होता हैं एवं उपज बढ़ती है।
- पौधे को सहारा देकर उगाया जाता है, जिससे फलों में सड़न की समस्या कम हो जाती है।
तरबूज की फसल में मल्चिंग/पलवार का महत्व
- प्लास्टिक मल्चिंग तरबूज की फसल में लगने वाले कीड़ों, बीमारियों और खरपतवारों से बचाती है।
- काले रंग की पॉलिथीन के द्वारा खरपतवारों का नियंत्रण किया जाता है और साथ ही हवा, बारिश व सिंचाई से होने वाले मृदा कटाव को भी यह रोकती है।
- पारदर्शी पॉलीथिन का उपयोग मृदा जनित रोगों और नमी संरक्षण को नियंत्रित करने में किया जाता है।
तोरई की उन्नत खेती से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य जो बेहतर उत्पादन में होंगे सहायक
- तोरई कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन ए का अच्छा स्रोत है।
- इसकी खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में की जाती है।
- इसके लिए तापमान 32-38 डिग्री सेंटीग्रेड का होना चाहिए।
- तोरई की बुआई के लिए नाली विधि ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है।
- गर्मी के दिनों में इसकी फसल को लगभग 5-6 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई देनी चाहिए।
- इसकी तुड़ाई में अगर देरी हो तो इसके फलों में कड़े रेशे बन जाते हैं।
तुरई की आरती किस्म (VNR SEEDS) की खेती से किसानों को होगी बेहतर आमदनी
क्र. | तुरई की आरती किस्म (VNR SEEDS) | |
1. | बुआई का समय | मार्च |
2. | बीज की मात्रा | 1-2 किलो/एकड़ |
3. | पंक्ति के बीच की दूरी की | 120 -150 सेमी |
4. | पौधों के बीच की दूरी | 90 सेमी |
5 | बुआई की गहराई | 2- 3 सेमी |
6. | रंग | आकर्षक हरा |
7 | आकार | लम्बाई 24-25 सेमी, चौड़ाई 2.4 इंच |
8 | भार | 200-225 ग्राम |
9 | पहली तुड़ाई | 55 दिन |
जाने कद्दु, करेला, ककड़ी, तरबूज, खरबूज, लौकी और गिल्की की खेती के लिये उपयुक्त जलवायु कैसी होनी चाहिए?
- गर्म एवं नमी युक्त मौसम इस फसल के लिये उपयुक्त होता है।
- इस फसल की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिये रात व दिन का तापमान 18-22 C एवं 30-35 C के मध्य होना चाहिये।
- 25-30 C तापमान पर बीज अंकुरण बहुत तेजी से होता हैं।
- अनुकूल तापमान होने पर मादा फुलो एवं फलो की संख्या प्रति पौधा मे वृद्धि होती है।