- जिस खेत या क्यारी में प्याज़ के बीज की बुआई की जानी उस खेत या क्यारी का बुआई पूर्व मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।
- मिट्टी उपचार करने से मिट्टी जनित कीटों एवं कवकों से पौध की रक्षा हो जाती है।
- आपको पता होगा की फसलों के जो अवशेष खेत में रह जाते है उन अवशेषों में हानिकारक कवकों एवं कीटों के उत्पन्न होने संभावना बनी रहती है।
- इन्हीं कवकों एवं कीटों के नियंत्रण लिए बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है। मिट्टी उपचार हम रासायनिक एवं जैविक दो विधियों से कर सकते हैं।
- रासायनिक उपचार: फिप्रोनिल 0.3% GR@ 25 ग्राम/नर्सरी उपचारित करना चाहिए।
- जैविक उपचार: FYM @ 10 किलो/नर्सरी और ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 25 ग्राम/नर्सरी और सीवीड, एमिनो, मायकोराइज़ा@ 25 ग्राम/नर्सरी उपचारित करें।
प्याज़ की फसल में ऐसे करें बीज़ उपचार
- जिस प्रकार बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार बुआई के पूर्व बीज उपचार भी बहुत आवश्यक होता है।
- बीज उपचार करने से बीज जनित रोगों का नियंत्रण होता है। साथ ही अंकुरण भी अच्छा होता है।
- बीज उपचार रासायनिक और जैविक दो विधियों से किया जाता है
- रासायनिक उपचार: बुआई से पहले प्याज़ के बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करें।
- जैविक उपचार: ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो + PSB @ 2 ग्राम/किलो बीज़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर बीज उपचार करें।
कपास की फसल में फूल गिरने की समस्या का कैसे करें निदान
- कपास की फसल में फूल आने की अवस्था बहुत महत्वपूर्ण अवस्था होती है।
- इस समय तापमान, फसल में लगने वाले कीटों एवं कवकों के कारण भी फूल गिरने की समस्या हो जाती है।
- इस समस्या के निवारण के लिए समय पर उपाय करना बहुत जरुरी होता है।
- यदि कपास की फसल में फूल गिरने की समस्या है तो होमोब्रेसिनोलाइड@ 100 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। इसके उपयोग से कपास में फूल गिरने से रोका जा सकता है।
- इसी के साथ एमिनो एसिड @ 300 मिली/एकड़ और जिब्रेलिक एसिड@ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करने से फूल निर्माण एवं डेंडू निर्माण को बढ़ाया जा सकता है।
मिर्च की फसल में फल छेदक कीट का प्रबंधन
- मिर्ची में फसल में फल छेदक कीट काफी नुकसान पहुँचाते हैं अतः इनका नियंत्रण अति आवश्यक होता है।
- चने की इल्ली और तम्बाकू की इल्ली के द्वारा यह नुकसान पहुँचाया जाता है।
- यह इल्ली छोटी अवस्था से ही मिर्च की फसल पर नए विकसित फल को खाती हैं तथा जब फल परिपक्व हो जाते हैं तब यह बीजों को खाना पसंद करती है।
- इस दौरान इल्ली अपने सिर की फल के अंदर रख कर बीजों को खाती है एवं इल्ली का बाकी शरीर फल के बाहर रहता है।
- इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 20% WG@ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC@ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
बायो NPK का उपयोग कब और कैसे करें?
- यह उत्पाद तीन प्रकार के बैक्टीरिया ‘नत्रजन फिक्सेशन बैक्टीरिया, PSB और KMB’ से बना है।
- यह मिट्टी और फसल में तीन प्रमुख तत्वों नत्रजन, पोटाश और फास्फोरस की आपूर्ति में मदद करता है।
- एन पी के बैक्टीरिया की मदद से पौधे को समय पर आवश्यक तत्व मिलते हैं, विकास अच्छा होता है, फसल उत्पादन बढ़ता है और साथ ही मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता भी बढ़ती है।
- इसका उपयोग तीन प्रकार से किया जा सकता है
- मिट्टी उपचार: इसका उपयोग बुआई के पहले मिट्टी उपचार के रूप में 50 किलो अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट/वर्मी कम्पोस्ट/खेत की मिट्टी में सुझाई गयी मात्रा को मिलाकर उपयोग करें।
- बुआई के समय: यदि मिट्टी उपचार नहीं कर पाए हैं तो बुआई के समय 50 किलो अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट/वर्मी कम्पोस्ट/खेत की मिट्टी में सुझाई गयी मात्रा को मिलाकर उपयोग करें।
- बुआई के 20-25 दिनों में: बुआई के 20-25 दिनों में NPK का उपयोग पुनः भुरकाव के रूप में 50 किलो अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट/वर्मी कम्पोस्ट/खेत की मिट्टी में सुझाई गयी मात्रा को मिला कर उपयोग करें।
- इसका उपयोग बुआई के बाद ड्रैंचिंग एवं छिड़काव के रूप भी किया जा सकता है।
मायकोराइज़ा का उपयोग कब और कैसे करें
- यह पौधों को मज़बूती प्रदान करता हैं जिससे कई प्रकार के रोग, पानी की कमी आदि के प्रति पौधे सहिष्णु हो जाते हैं।
- फसल की प्रतिरक्षा शक्ति में वृद्धि करता है जिसके परिणाम स्वरूप उत्पादन की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
- माइकोराइजा पौधे के जड़ क्षेत्र को बढ़ाता है और इसके कारण जड़ों में जल अवशोषण की क्षमता बढ़ जाती है।
माइकोराइजा का उपयोग तीन प्रकार से किया जा सकता है
- मिट्टी उपचार: 50 किलो अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट/वर्मी कम्पोस्ट/खेत की मिट्टी में मिलाकर @ 4 किलो माइकोराइजा को मिला कर फिर यह मात्रा प्रति एकड़ की दर से फसल बुआई/रोपाई से पहले मिट्टी में मिला दें।
- भुरकाव: बुआई के 25-30 दिन बाद खड़ी फसल में माइकोराइजा को 50 किलो अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद/कम्पोस्ट/वर्मी कम्पोस्ट/खेत की मिट्टी में मिलाकर @ 4 किलो माइकोराइजा को मिला कर फिर यह मात्रा प्रति एकड़ की दर से फसल बुआई/रोपाई से पहले मिट्टी में बुरकाव करें।
- ड्रिप सिंचाई द्वारा: माइकोराइजा को ड्रिप सिचाई के रूप में बुआई के 25-30 दिन बाद खड़ी फसल में 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
प्याज़ की नर्सरी की तैयारी कैसे करें?
- खेत में प्याज़ के पौध की रोपाई से पूर्व इसके बीजों की बुआई नर्सरी में की जाती है।
- नर्सरी में बेड का आकार 3’ x 10’ और 10-15 सेमी ऊंचाई में रखा जाता है साथ ही दो बेड के बीच लगभग 70 सेमी की दूरी रखी जाती है।
- जब प्याज़ की नर्सरी तैयार की जा रही हो तब इस बात का ध्यान रखें की निराई सिंचाई आदि कार्य आसानी से हो सके।
- जिस खेत में भारी मिट्टी होती है वहाँ पर जल भराव की समस्या से बचने के लिए बेड की ऊंचाई अधिक रखी जानी चाहिए।
- बुआई से पहले प्याज़ के बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
- नर्सरी की बुआई के पूर्व नर्सरी में मिट्टी उपचार करना भी बहुत आवश्यक होता है। यह उपचार मिट्टी जनित रोगों की रोकथाम के लिए किया जाता है।
- इसके लिए फिप्रोनिल 0.3% GR@ 10 किलो/नर्सरी और ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 25 ग्राम/नर्सरी और सी वीड + एमिनो + मायकोराइज़ा@ 25 ग्राम/नर्सरी से उपचारित करें।
- इस प्रकार बीजों को पूरी तरह से उपचारित करके ही लगाना चाहिए एवं बुआई के समय भूमि में पर्याप्त नमी होना चाहिए।
पावडरी मिल्ड्यू एवं डाउनी मिल्ड्यू के लक्षण एवं प्रबंधन
- पावडरी मिल्ड्यू एवं डाउनी मिल्ड्यू एक कवक जनित रोग हैं जो मिर्च की फसल की पत्तियों को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। इसके प्रकोप से होने वाले रोग को भभूतिया रोग के नाम से भी जाना जाता है।
- पावडरी मिल्ड्यू के कारण मिर्च के पौधे की पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद पावडर दिखाई देता है।
- डाउनी मिल्ड्यू रोग पत्तियों की निचली सतह पर पीले धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं और कुछ समय बाद यह धब्बे बड़े होकर कोणीय हो जाते हैं एवं भूरे रंग के पाउडर में बदल जाते हैं।
- जो भूरा पाउडर पत्तियों पर जमा होता उसके कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बहुत प्रभावित होती है।
- इस रोग के नियंत्रण के लिए एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC@ 300 मिली/एकड़ या एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 23% SC@ 200 मिली/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
प्याज़ और लहसुन समृद्धि किट के उपयोग की विधि
- ग्रामोफ़ोन की पेशकश प्याज़/लहसुन समृद्धि किट का उपयोग मिट्टी उपचार के रूप में किया जाता है।
- इस किट की कुल मात्रा 3.2 किलो है और यह मात्रा एक एकड़ के लिए पर्याप्त है।
- इसका उपयोग यूरिया, DAP में मिलाकर किया जा सकता है।
- इसका उपयोग 50 किलो पकी हुई गोबर की खाद, या कम्पोस्ट या मिट्टी में भी मिलाकर कर सकते हैं।
- इसके उपयोग के समय खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है।
- अगर बुआई समय इस किट का उपयोग नहीं कर पाएं है तो बुआई बाद 15 से 20 दिनों के अंदर इसका उपयोग मिट्टी में भुरकाव के रूप में कर सकते हैं।
ग्रामोफ़ोन की पेशकश प्याज़ और लहसुन समृद्धि किट के इस्तेमाल से फसल को मिलेगी बेहतर बढ़वार
- प्याज़ एवं लहसुन की अच्छी पैदावार के लिए ग्रामोफ़ोन लेकर आया है प्याज़/लहसुन समृद्धि किट।
- यह किट भूमि सुधारक की तरह कार्य करती है।
- इस किट को चार आवश्यक बैक्टीरिया NPK एवं ज़िंक को मिलाकर बनाया गया है, जो मिट्टी में NPK की पूर्ति करके फसल की वृद्धि में सहायता करते हैं एवं ज़िंक का जीवाणु मिट्टी में अधुलनशील जिंक को घुलनशील रूप में फसल को प्रदान करने का कार्य करता है।
- इस किट में जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी है जो मृदा जनित रोगजनकों को मारता है जिससे जड़ सड़न, तना गलन आदि जैसी गंभीर बीमारियों से पौधे की रक्षा होती है।
- इस किट में समुद्री शैवाल, एमिनो एसिड, ह्यूमिक एसिड एवं मायकोराइज़ा जैसी सामग्री का संयोजन है जो मिट्टी की विशेषताओं और गुणवत्ता में काफी सुधार करेगा, साथ ही मायकोराइज़ा सफेद जड़ के विकास में मदद करेगा।
- ह्यूमिक एसिड प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में सुधार करके प्याज़/लहसुन की फसल के बेहतर वनस्पति विकास में सहायता करता है।
