प्याज़ की नर्सरी में छिड़काव प्रबंधन

  • प्याज़ की नर्सरी में बुआई के सात दिनों के अंदर छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
  • यह छिड़काव कवक जनित बीमारियों, कीट के नियंत्रण, एवं पोषण प्रबंधन लिए किया जाता है।
  • इस समय छिड़काव करने से प्याज़ की नर्सरी को एक अच्छी शुरुआत मिलती है।
  • कवक जनित रोगों लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 30 ग्राम/पंप की दर छिड़काव करें।
  • कीट प्रबंधन के लिए थियामेंथोक्साम 25% WG@ 10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।
  • पोषण प्रबंधन के लिए ह्यूमिक एसिड@ 10 ग्राम/पंप की दर से छिड़काव करें।
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मिट्टी समृद्धि किट का महत्व

  • ग्रामोफोन लेकर आया है रबी फसलों के लिए मिट्टी समृद्धि किट।
  • यह किट मिट्टी में पाए जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों को घुलनशील रूप में परिवर्तित करके पौधे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह किट मिट्टी को अघुलनशील रूप में पाए जाने वाले पोषक तत्वों को घुलनशील रूप में बदल कर पौधे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • मिट्टी में पाए जाने वाले हानिकारक कवकों को खत्म करके पौधे को होने वाले नुकसान से बचाती है।
  • यह उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक अवयवों से बना है और यह मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाने में सहायक है।
  • मिट्टी के पीएच को बेहतर बनाने में मदद करता है और जड़ों को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करता है, ताकि जड़ पूरी तरह से विकसित हो जाए। ऐसे होने से फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है।
  • यह किट मिट्टी की संरचना में सुधार करके मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को कम नहीं होने देता है। यह जड़ प्रणाली द्वारा पोषक तत्वों में सुधार करता है और जड़ के विकास को बढ़ावा देता है।
  • जड़ों के द्वारा मिट्टी से पोषक तत्वों के अवशोषण में भी यह किट मदद करता है और मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की गतिविधि को बढ़ावा देता है।
  • खेत में पड़ी पुरानी फसलों के अवशेषों को नष्ट करके उपयोगी खाद में बदल कर फसलों के विकास में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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सोयाबीन की फसल में गर्डल बीटल का प्रबंधन

Girdle beetle in soybean
  • इस कीट की मादा पौधे के तने के अंदर अंडे देती है और जब अंडे से शिशु निकलते हैं तो वे तने को खाकर कमजोर कर देते हैं।
  • इससे तना बीच में से खोखला हो जाता है जिसके कारण खनिज तत्व पत्तियों तक नहीं पहुंच पाते एवं पत्तियां सुख जाती हैं।
  • इस कारण फसल के उत्पादन में भी काफी कमी आ जाती है।
    यांत्रिक प्रबंधन:
  • गर्मियो के समय खाली खेत में गहरी जुताई करें। अधिक घनी फसल की बुआई ना करें।
  • अधिक नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का उपयोग ना करें, यदि संक्रमण बहुत अधिक हो तो उचित रसायनों का उपयोग करें।
    रासायनिक प्रबंधन:
  • लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @400 मिली/एकड़ का उपयोग करें। 
  • क्युँनालफॉस 25% EC @400 मिली/एकड़ या बायफैनथ्रिन 10% EC  @300 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
  • थियामेंथोक्साम 25% WG  @ 100 ग्राम/एकड़ + फेनप्रोप्रेथ्रिन 10% EC @ 400 मिली/एकड़ का उपयोग करें।

जैविक प्रबंधन:

  • बवेरिया  बेसियाना @500 ग्राम /एकड़ की दर से छिड़काव करे 
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ट्राइकोडर्मा क्या है

  • ट्राइकोडर्मा एक जैविक कवकनाशी है जो फसलों में होने वाले रोगों के प्रबंधन के लिए एक बहुत ही प्रभावी जैविक साधन है।
  • ट्राइकोडर्मा एक शक्तिशाली बायोकंट्रोल एजेंट हैं और इसका उपयोग मृदा जनित बीमारियों जैसे फ्यूजेरियम, फाइटोपथोरा, स्क्लेरोशिया आदि के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है।
  • ट्राइकोडर्मा फसल वृद्धि कारक की तरह भी कार्य करता है। यह सुरक्षात्मक रूप में डाला जाये तो निमेटोड का भी नियंत्रण कर लेता है।
  • इसका उपयोग बीज़ उपचार के लिए भी किया जाता है। बीज़ उपचार करने से अंकुरण तो बहुत जल्दी से होता है साथ ही बीज़ जनित बीमारियों से भी सुरक्षा होती है।
  • ट्राइकोडर्मा का उपयोग जड़ गलन, तना गलन, उकठा रोग आदि के प्रभावी नियंत्रक के रूप में किया जाता है।
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नाइट्रोजन बैक्टीरिया की आलू की फसल के लिए उपयोगिता

  • नाइट्रोजन बैक्टीरिया आलू की फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण बैक्टीरिया है।
  • नाइट्रोजन बैक्टीरिया का उपयोग बुआई से पहले मिट्टी उपचार के रूप में करने से फसल को बहुत लाभ मिलता है।
  • यह बैक्टेरिया मिट्टी व पौधों की जड़ों के आसपास मुक्त रूप से रहते हुए वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पोषक तत्वों में परिवर्तित करके पौधों को उपलब्ध कराते हैं।
  • नाइट्रोजन बैक्टीरिया आलू के पौधों की पैदावार को बढ़ाने वाले हार्माेन भी बनाते हैं, जो फसल के विकास में सहायक होते हैं।
  • इनके प्रयोग से फसल की पैदावार में 10-20 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है।
  • इस जैविक उर्वरक से पौधों की नाइट्रोजन की आवश्यकता आंशिक रूप से पूरी हो सकती है।
  • नाइट्रोजन बैक्टीरिया के प्रयोग से लगभग 15 से 20 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की बचत की जा सकती है।
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आलू समृद्धि किट का महत्व

Potato
  • ग्रामोफ़ोन की नई पेशकश आलू समृद्धि किट मिट्टी में पाए जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों को घुलनशील रूप में परिवर्तित करके पौधे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • इस किट के माध्यम से मिट्टी में पाए जाने वाले हानिकारक कवकों को खत्म करके पौधे को होने वाले नुकसान से बचाती है।
  • यह उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक अवयवों से बना है, यह मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाने में सहायक है।
  • यह मिट्टी के पीएच को बेहतर बनाने में मदद करता है और जड़ों को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करता है। इससे जड़ पूरी तरह से विकसित होती है, जो फसल के अच्छे उत्पादन का कारण बनती है।
  • यह किट मिट्टी की संरचना में सुधार करके मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को कम नहीं होने देता है। यह जड़ प्रणाली द्वारा पोषक तत्वों में सुधार कर के जड़ विकास को बढ़ावा देता है।
  • जड़ों के द्वारा मिट्टी से पोषक तत्वों के अवशोषण में भी यह मदद करता है और मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की गतिविधि को बढ़ावा देता है।
  • यह खेत में पड़ी पिछली फसल के अवशेषों को नष्ट करके उपयोगी खाद में बदल कर फसलों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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आलू की उन्नत खेती में मददगार होगी ग्रामोफ़ोन आलू समृद्धि किट

Potato Samriddhi Kit
  • आलू की फसल से अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए ग्रामोफोन लेकर आया है आलू समृद्धि किट।
  • यह किट भूमि सुधारक की तरह कार्य करती है। इस किट में चार आवश्यक बैक्टीरिया NPK एवं ज़िंक हैं, जो मिट्टी में NPK की पूर्ति करके फसल के विकास में मदद करते हैं।
  • ज़िंक का जीवाणु मिट्टी में अधुलनशील जिंक को घुलनशील रूप में फसल को प्रदान करने का कार्य करता है।
  • इस किट में जैविक फफूंदनाशक ट्राइकोडर्मा विरिडी है जो मृदा जनित रोगजनकों को मारता है जिससे जड़ सड़न, तना गलन आदि जैसी गंभीर बीमारियों से पौधे की रक्षा होती है।
  • इस किट में समुद्री शैवाल, एमिनो एसिड ह्यूमिक एसिड एवं मायकोराइज़ा जैसी सामग्री का संयोजन है जो मिट्टी की विशेषताओं और गुणवत्ता में काफी सुधार करेगा, साथ ही मायकोराइज़ा सफेद जड़ के विकास में मदद करेगा।
  • ह्यूमिक एसिड प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में सुधार करके आलू की फसल के बेहतर वानस्पतिक विकास में सहायता करता है।
  • कम्पोस्टिंग बैक्टेरिया खेत में पड़े पिछली फसल अवशेषों को सड़ा कर एवं गला कर डिकम्पोस्ट कर देता है एवं लाभकारी खाद में बदल देता है यह उत्पाद लाभकारी जीवाणु की संख्या में वृद्धि करता है।
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निमेटोड का नियंत्रण कैसे करें?

What is Nematode
  • निमेटोड यानी सूत्रकृमि पतले धागे के समान होते है। इनका शरीर लंबा बेलनाकार व बिना खंडों का होता है।
  • निमाटोड मिट्टी के अंदर रहकर फसल की जड़ों में गाठ बनाकर रहता है एवं फसल को नुकसान पहुँचाता है।
  • इस कीट के नियंत्रण के लिए जैविक उपचार ही सबसे अच्छा समाधान होता है।
  • इस कीट के नियंत्रण के लिए मिट्टी उपचार करना सबसे अच्छा उपाय है।
  • रासायनिक उपचार के रूप में कारबोफुरान 3% GR @ 10 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
  • फसल की बुआई के पूर्व 50-100 किलो FYM में पेसिलोमायसीस लिनेसियस (नेमेटोफ्री) @ 1 किलो/एकड़ की दर से मिलाकर खाली खेत में भुरकाव करें।
  • जब भी इस उत्पाद का उपयोग किया जाये तब इस बात का ध्यान रखें की खेत में पर्याप्त नमी हो।
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लहसुन की फसल में मिट्टी उपचार कैसे करें

  • लहसुन की फसल में बुआई से पहले मिट्टी उपचार करने से मिट्टी जनित रोगों का नियंत्रण हो जाता है। मिट्टी उपचार के पहले 50-100 किलो FYM के साथ मेट्राजियम @ 1 किलो कल्चर को मिलाकर खाली खेत में भुरकाव करें।
  • इसके अलावा दूसरे आवश्यक तत्व यूरिया @ 40 किलो/एकड़ + डीएपी @ 20 किलो/एकड़ + एसएसपी @ 60 किलो/एकड़ + पोटाश @ 40 किलो/एकड़ की दर से बुआई से पूर्व खेत में भुरकाव करें।
  • यह सभी तत्व लहसुन की बुआई के समय अच्छे अंकुरण के लिए बहुत आवश्यक होते हैं।
  • इसके साथ ही ग्रामोफ़ोन लेकर आया है लहसुन समृद्धि किट, इस किट में कई उत्पाद संलग्न हैं, जैसे एनपीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया, ज़िंक सोलुब्लाइज़िंग बैक्टीरिया, ट्राइकोडर्मा विरिडी, ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल, अमीनो एसिड एवं मायकोराइज़ा।
  • इन सभी उत्पादों को मिलाकर इस किट को तैयार किया गया है। इस किट का कुल वज़न 3.2 किलो है जो एक एकड़ के खेत के लिए पर्याप्त है।
  • इसे बुवाई के पहले 50-100 किलो FYM के साथ मिलाकरखाली खेत में भुरकाव करें।
  • यह किट लहसुन की फसल को सभी जरूरी पोषक तत्व प्रदान करती है।
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लहसुन की फसल में बीज़ उपचार कैसे करें?

  • लहसुन की उन्नत खेती के लिए बुआई से पहले बीज उपचार करना बहुत आवश्यक माना जाता है।
  • ऐसा करने से फसल को बहुत प्रकार की कवक जनित बीमारियों के प्रकोप से बचाया जा सकता है साथ ही फसल को एक अच्छी शुरुआत भी मिलती है।
  • हम बीज उपचार रासायनिक एवं जैविक दो विधियों से कर सकते हैं।
  • रासायनिक उपचार: बुआई से पहले प्याज़ के बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
  • जैविक उपचार: ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम + PSB बैक्टेरिया @ 2 ग्राम/किलो बीज या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर बीज उपचार करें।
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