- उकठा रोग में पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाता है साथ ही साथ शीर्ष शाखाओं की पत्तियाँ घुमावदार होकर मुड़ जाती हैं।
- पत्तियां पीली से लाल में बदल जाती हैं और समय से पहले झड़ जाती हैं।
- नई पत्तियों का निर्माण नहीं हो पाता है एवं टहनियाँ खाली हो जाती हैं और अंत में सूख जाती हैं।
- बाग में उचित स्वच्छता का बहुत ध्यान रखे एवं संक्रमित पेड़ों को उखाड़ दें।
- इस रोग के निवारण के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 -10 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 2.5-5 ग्राम प्रति 5 किलो दर से गोबर खाद में मिलाकर, पौधा लगाते समय तथा 10 किलोग्राम प्रति गढ्ढा या पुराने पौधों में गुड़ाई कर डालें।
- ट्राइकोडर्मा विरिडी 5-10 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 2.5-5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलकर पौधे पर छिड़काव करें।
- अमरूद के पौधे के चारों ओर थाले बनाएं और उसमें कार्बेन्डाजिम 45% WP@ 2 ग्राम/लीटर पानी या कॉपर हाइड्रॉक्साइड 50% WP @ 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर उससे थाले में डेचिंग करें।
भिंडी की उन्नत किस्में जिनकी खेती से मिलेगी अच्छी उपज
- आज हम बता रहे हैं भिंडी की कुछ मुख्य किस्में जिनकी खेती से किसान अच्छी उपज की प्राप्ति कर सकते हैं।
- ये किस्में हैं स्वर्ण | मोना | 002 |, ह्यवेज सोना, स्वर्ण | वीनस और कुमार सीड्स KOH 339.
- ये सभी हाइब्रिड किस्म हैं और इनके पौधे खड़ी अवस्था में होते हैं, पत्ते मध्यम कटे हुए होते हैं तथा इंटरनोड छोटे होते हैं।
- इन किस्मों की शाखाएं 2 से 4 होती है एवं 45-51 दिनों में फलों की पहली तुड़ाई की जा सकती है।
- इन किस्मों के फलों का आकार 5 लकीरों के साथ 12 से 14 सेमी होता है तथा व्यास 1.5 से 1.8 सेमी होता है।
- इस किस्म में अच्छी शेल्फ लाइफ के साथ गहरे हरे रंग के कोमल फल होते जिनका वज़न 12 से 15 ग्राम होता है।
- यह सभी किस्में लीफ कर्ल वायरस एवं पित्त शिरा वायरस की प्रतिरोधी होती है।
टमाटर के पौधे में कैल्शियम की कमी के लक्षण
- पौधे के उतकों में कैल्शियम की बहुत कम गतिशीलता के कारण इसकी कमी के लक्षण तेजी से पौधे में वृद्धि करते हुए दिखाई देते हैं।
- कैल्शियम की कमी के लक्षण पत्तियों पर दिखाई देते हैं, इसके कारण पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और धीरे-धीरे सूखने लगती हैं। कैल्शियम की कमी के लक्षण पत्तियों के आधार वाले भागों में दिखाई देते हैं।
- कैल्शियम की कमी के लक्षण पौधे के तने पर सूखे मृत धब्बो के रूप में दिखाई देते हैं।
- शुरुआत में ऊपरी पत्तियों का रंग गहरा हरा होता है और बाद में पत्तियों के किनारे पीले रंग में परिवर्तित होने लगते हैं तथा अंत में पौधे मृत हो जाते हैं।
- कैल्सियम की कमी की वजह से फलों के ऊपर ब्लॉसम एन्ड रॉट के लक्षण दिखाई देते हैं।
एमिनो एसिड का कृषि में क्या है महत्व?
- यह उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाला प्राकृतिक अवयव है, यह मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाने में सहायक है
- एमिनो एसिड पोधो में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को बढ़ावा देता है
- मिट्टी के पीएच को बेहतर बनाने में मदद करता है और जड़ों को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करता है, जिससे जड़ पूरी तरह से विकसित होती है , जो फसल के अच्छे उत्पादन का कारण बनती है।
- मिट्टी की संरचना में सुधार करके मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को कम नहीं होने देता है
- जड़ो के द्वारा मिट्टी से पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद करता है
- यह पौधों के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण वृद्धि नियामक में से एक है।
ट्रायाकॉन्टेनॉल का कृषि में महत्व
- ट्रायाकॉन्टेनॉल पौधे की वृद्धि का एक प्राकृतिक नियामक है जिसका उपयोग फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है।
- यह जड़, फूल एवं पत्तियों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- फसलों को इसकी बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
- यह फसलों के उन भागों पर अपनी क्रिया करते हैं जो जड़ विकास, फल विकास, फूल उत्पादन, आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- जो फसलें छोटी रह जाती हैं उनके विकास में ट्रायाकॉन्टेनॉल सहायक होते हैं और उन फसलों के तने की लंबाई में वृद्धि करके फसल की बेहतर बढ़वार में मदद करते हैं।
- कोशिका विभाज़न को प्रेरित कर बीजों में उत्पन्न प्रसुप्ति को तोड़ने में भी यह सहायक होते हैं।
पशुपालन से किसानों की आय बढ़ाने हेतु सरकार ने लांच किया ई-गोपाला ऐप
किसानों को पशुपालन के लिए प्रोत्साहित करने एवं उनकी आय में वृद्धि हेतु सरकार द्वारा कई योजनाओं की शुरुआत की जा रही है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार में मछली उत्पादन, डेयरी, पशुपालन और कृषि में अध्ययन एवं अनुसंधान से संबंधित पीएम मत्स्य सम्पदा योजना, ई-गोपाला ऐप और कई अन्य योजनाओं का शुभारम्भ किया है।
इस अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दिए गए अपने संबोधन में पीएम ने कहा कि आज इन सभी योजनाओं के शुभारम्भ का उद्देश्य हमारे गांवों को सशक्त बनाना और 21वीं सदी में आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है।
ई-गोपाला ऐप के माध्यम से पशुधन का प्रबंधन किया जाएगा। इस प्रबंधन में गुणवत्तापूर्ण प्रजनन सेवाओं की उपलब्धता और पशु पोषण के लिए किसानों का मार्गदर्शन करना, उचित पशु चिकित्सा दवा का उपयोग करते हुए जानवरों का उपचार आदि की जानकारी मिलेगी।
स्रोत: किसान समाधान
Shareमटर की उन्नत खेती के लिए बुआई से पहले करें बीज़ उपचार
- जिस प्रकार बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार बुआई के पूर्व बीज उपचार भी बहुत आवश्यक होता है।
- बीज उपचार करने से बीज जनित रोगों का नियंत्रण होता है साथ ही बीजों का अंकुरण भी अच्छा होता है
- बीज उपचार हम रासायनिक एवं जैविक दो विधियो से कर सकते हैं।
- रासायनिक उपचार: बुआई से पहले मटर के बीजो को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 17.5% + थायरम 17.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज से उपचारित करें।
- जैविक उपचार: ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो + PSB @ 2 ग्राम/किलो बीज़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर बीज उपचार करें।
जल्दी पकने वाली मटर की किस्में
मास्टर हरिचंद्र PSM-3 एवं सीडएक्स PSM-3
यह मटर की दो मुख्य किस्में हैं जिनको PSM-3 किस्म के नाम से भी जाना जाता है। इनकी फसल अवधि 60 दिनों की होती है और तुड़ाई 1 बार होती है। PSM-3 एक जल्दी पकने वाली किस्म है जिसे आर्केल एंड जीसी 141 के क्रॉस से विकसित किया गया है। इस किस्म के पौधे बौने होते हैं तथा पत्ते गहरे हरे होते हैं। इस किस्म की फली 6-8 बीजों से भरी होती है। इसकी पैदावार 3 टन/एकड़ तक होती है।
मास्टर हरिचंद्र AP3
इस किस्म की फसल अवधि 60-70 दिनों की होती है तुड़ाई 1 बार होती है। इसकी फली 6-8 बीजों से भरी होती है। यह एक जल्दी पकने वाली किस्म है और बुआई के 70 दिनों के बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। अगर यह अक्टूबर के दूसरे सप्ताह में बोई जाए तो यह औसतन 2 टन/एकड़ की पैदावार देगी।
Shareमटर की इन दो अर्केल किस्मों का करें चुनाव और पाएं उच्च उत्पादन
- मालव सुपर अर्केल
- मालव अर्केल
- यह मटर की दो मुख्य किस्मे है जिनको अर्केल किस्म के नाम से भी जाना जाता है।
- इनकी फसल अवधि 60-70 दिनों की होती है।
- इनकी तुड़ाई 2-3 बार की जा सकती है।
- इनके बीजों की संख्या (फली में) 6-8 रहती है।
- इस किस्म के पौधे बौने होते हैं एवं उच्च उत्पादन देते हैं। इनकी फलियां गहरे हरे रंग की होती है।
- यह किस्में पाउडरी मिल्डयू के लिए प्रतिरोधी होती है।
- इस किस्म की पहली तुड़ाई 55-60 दिनों में की जा सकती है एवं इसकी उपज 2 टन/एकड़ तक रहती है।
बेहतर उपज के लिए उपयोगी मटर की तीन पेंसिल किस्में
- मालव वेनेज़िया
- यूपीएल / एडवांता / गोल्डन जीएस – 10
- मालव MS10
- यह मटर की तीन मुख्य किस्में है जिनको पेंसिल किस्म के नाम से भी जाना जाता है।
- यह खाने में मीठी होती हैं।
- इनकी फसल अवधि 75-80 दिनों की होती है।
- इनकी तुड़ाई 2-3 बार की जा सकती है।
- इसके बीजों की संख्या (फली में) 8-10 रहती है।
- इस किस्म का पौधा मध्यम आकार का होता है एवं शाखाएँ फैली हुई होती हैं।
- यह 4 टन प्रति एकड़ उपज देती है एवं पाउडरी मिल्डयू के लिए प्रतिरोधी होती है।
