- मटर की फसल में मिट्टी जनित कीटों के नियंत्रण लिए बुआई पहले खाली खेत में 50-100 किलो FYM के साथ मेट्राजियम @ 1 किलो कल्चर को मिलाकर खाली खेत में भुरकाव करें इससे मिट्टी जनित कीटों के नियंत्रण में सहायता मिलती है।
- इसके अलावा दूसरे आवश्यक तत्व यूरिया @ 25 किलो/एकड़ + डीएपी @ 20 किलो/एकड़ + एसएसपी @ 100 किलो/एकड़ + पोटाश @ 20 किलो/एकड़ की दर से बुआई से पूर्व खेत में भुरकाव करें।
- ये सभी तत्व मटर की बुआई के समय अच्छे अंकुरण के लिए बहुत आवश्यक होते हैं।
- यह सभी मिट्टी उपचार के रूप में मटर की बुआई के समय दिए जाते हैं।
- इसके साथ ही ग्रामोफ़ोन लेकर आया है मटर स्पेशल ‘समृद्धि किट’, इस किट में कई उत्पाद संलग्न हैं, जैसे पीके बैक्टीरिया का कंसोर्टिया, ट्राइकोडर्मा विरिडी, ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल, अमीनो एसिड एवं मायकोराइज़ा।
- इन सभी उत्पादों को मिलाकर इस मटर समृद्धि किट को तैयार किया गया है। इस किट का कुल वज़न 3.5 किलो है जो एक एकड़ के लिए पर्याप्त है।
- इसे बुआई के पहले 50-100 किलो FYM के साथ इस किट को मिलाकर खाली खेत में भुरकाव करें।
- यह किट मटर की फसल को सभी जरूरी पोषक तत्व प्रदान करती है।
मंडी भाव: मध्य प्रदेश के अलग अलग मंडियों में क्या है प्याज, टमाटर और अन्य सब्जियों का भाव?
इंदौर के गौतमपुरा मंडी में प्याज़ का भाव 850 रूपये प्रति क्विंटल चल रहा है और बड़वानी जिले के सेंधवा मंडी में टमाटर का भाव 925 रूपये प्रति क्विंटल है। सेंधवा मंडी में ही पत्ता गोभी, फूलगोभी, बैंगन, भिण्डी और लौकी का भाव क्रमशः 750, 950, 825, 925, 600 रूपये प्रति क्विंटल चल रहा है।
ग्वालियर के भिण्ड मंडी की बात करें तो यहाँ गेहूं और सरसों का भाव क्रमशः 1560, 4770 रूपये प्रति क्विंटल चल रहा है। इसके अलावा ग्वालियर के ही खनियाधाना मंडी में मिल क्वालिटी की गेहूं का भाव 1925 रूपये प्रति क्विंटल चल रहा है और भोपाल के बाबई मंडी में मूंग का भाव 4000 रूपये प्रति क्विंटल चल रहा है।
स्रोत: किसान समाधान
Shareजिंक तत्व का कृषि में क्या है महत्व?
- जिंक (Zn) फसल के अच्छे उत्पादन के लिए सबसे महत्व पूर्ण कारक माना जाता है एवं भारत में उपज की कमी के लिए चौथा सबसे महत्वपूर्ण तत्व माना जाता हैं | यह आठ आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों में से एक है।
- ज़िंक की कमी से फसल की पैदावार और गुणवत्ता बहुत हद तक प्रभावित होती है और फसल की उपज में 20% तक की कमी आ जाती हैं।
- जिंक पौधे के विकास के लिए अहम होता है। यह पौधों में, कई एंजाइमों और प्रोटीनों के संश्लेण में प्रमुख भूमिका निभाता है।
- इसके साथ साथ ज़िंक वृद्धि हार्मोन के निर्माण में भी महत्वर्ण योगदान करता है जिसके परिणाम स्वरुप इंटर्नोड का आकार बढ़ता है।
- इसकी कमी प्रायः क्षारीय, पथरीली मिट्टी में होती है।
- इसकी कमी के कारण नई पत्तियाँ छोटे आकार की एवं शिराओं के मध्य का हिस्सा चितकबरे रंग का हो जाता है।
- भूमि में जिंक सल्फेट 20 किलो ग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करके इससे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
सरसों की बुआई एवं उर्वरक प्रबंधन संबंधी जानकारी
- सरसों की बुआई सितम्बर के अंतिम सप्ताह से अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक की जाती हैं।
- सामन्यतः सरसों के लिए कतार से कतार की दूरी 30-45 सेमी रखते हैं तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी रखी जाती है।
- खेत की तैयारी के समय 6-8 टन गोबर की खाद डालें और DAP@ 40 किलो, यूरिया@ 25 किलो, पोटाश@ 30 किलो प्रति एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में बुआई के समय उपयोग करें।
अमरुद में उकठा रोग के लक्षण एवं निवारण के उपाय
- उकठा रोग में पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाता है साथ ही साथ शीर्ष शाखाओं की पत्तियाँ घुमावदार होकर मुड़ जाती हैं।
- पत्तियां पीली से लाल में बदल जाती हैं और समय से पहले झड़ जाती हैं।
- नई पत्तियों का निर्माण नहीं हो पाता है एवं टहनियाँ खाली हो जाती हैं और अंत में सूख जाती हैं।
- बाग में उचित स्वच्छता का बहुत ध्यान रखे एवं संक्रमित पेड़ों को उखाड़ दें।
- इस रोग के निवारण के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 -10 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 2.5-5 ग्राम प्रति 5 किलो दर से गोबर खाद में मिलाकर, पौधा लगाते समय तथा 10 किलोग्राम प्रति गढ्ढा या पुराने पौधों में गुड़ाई कर डालें।
- ट्राइकोडर्मा विरिडी 5-10 ग्राम या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 2.5-5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलकर पौधे पर छिड़काव करें।
- अमरूद के पौधे के चारों ओर थाले बनाएं और उसमें कार्बेन्डाजिम 45% WP@ 2 ग्राम/लीटर पानी या कॉपर हाइड्रॉक्साइड 50% WP @ 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर उससे थाले में डेचिंग करें।
भिंडी की उन्नत किस्में जिनकी खेती से मिलेगी अच्छी उपज
- आज हम बता रहे हैं भिंडी की कुछ मुख्य किस्में जिनकी खेती से किसान अच्छी उपज की प्राप्ति कर सकते हैं।
- ये किस्में हैं स्वर्ण | मोना | 002 |, ह्यवेज सोना, स्वर्ण | वीनस और कुमार सीड्स KOH 339.
- ये सभी हाइब्रिड किस्म हैं और इनके पौधे खड़ी अवस्था में होते हैं, पत्ते मध्यम कटे हुए होते हैं तथा इंटरनोड छोटे होते हैं।
- इन किस्मों की शाखाएं 2 से 4 होती है एवं 45-51 दिनों में फलों की पहली तुड़ाई की जा सकती है।
- इन किस्मों के फलों का आकार 5 लकीरों के साथ 12 से 14 सेमी होता है तथा व्यास 1.5 से 1.8 सेमी होता है।
- इस किस्म में अच्छी शेल्फ लाइफ के साथ गहरे हरे रंग के कोमल फल होते जिनका वज़न 12 से 15 ग्राम होता है।
- यह सभी किस्में लीफ कर्ल वायरस एवं पित्त शिरा वायरस की प्रतिरोधी होती है।
टमाटर के पौधे में कैल्शियम की कमी के लक्षण
- पौधे के उतकों में कैल्शियम की बहुत कम गतिशीलता के कारण इसकी कमी के लक्षण तेजी से पौधे में वृद्धि करते हुए दिखाई देते हैं।
- कैल्शियम की कमी के लक्षण पत्तियों पर दिखाई देते हैं, इसके कारण पत्तियाँ पीली हो जाती हैं और धीरे-धीरे सूखने लगती हैं। कैल्शियम की कमी के लक्षण पत्तियों के आधार वाले भागों में दिखाई देते हैं।
- कैल्शियम की कमी के लक्षण पौधे के तने पर सूखे मृत धब्बो के रूप में दिखाई देते हैं।
- शुरुआत में ऊपरी पत्तियों का रंग गहरा हरा होता है और बाद में पत्तियों के किनारे पीले रंग में परिवर्तित होने लगते हैं तथा अंत में पौधे मृत हो जाते हैं।
- कैल्सियम की कमी की वजह से फलों के ऊपर ब्लॉसम एन्ड रॉट के लक्षण दिखाई देते हैं।
एमिनो एसिड का कृषि में क्या है महत्व?
- यह उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाला प्राकृतिक अवयव है, यह मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाने में सहायक है
- एमिनो एसिड पोधो में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया को बढ़ावा देता है
- मिट्टी के पीएच को बेहतर बनाने में मदद करता है और जड़ों को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करता है, जिससे जड़ पूरी तरह से विकसित होती है , जो फसल के अच्छे उत्पादन का कारण बनती है।
- मिट्टी की संरचना में सुधार करके मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को कम नहीं होने देता है
- जड़ो के द्वारा मिट्टी से पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद करता है
- यह पौधों के विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण वृद्धि नियामक में से एक है।
ट्रायाकॉन्टेनॉल का कृषि में महत्व
- ट्रायाकॉन्टेनॉल पौधे की वृद्धि का एक प्राकृतिक नियामक है जिसका उपयोग फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है।
- यह जड़, फूल एवं पत्तियों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- फसलों को इसकी बहुत कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
- यह फसलों के उन भागों पर अपनी क्रिया करते हैं जो जड़ विकास, फल विकास, फूल उत्पादन, आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- जो फसलें छोटी रह जाती हैं उनके विकास में ट्रायाकॉन्टेनॉल सहायक होते हैं और उन फसलों के तने की लंबाई में वृद्धि करके फसल की बेहतर बढ़वार में मदद करते हैं।
- कोशिका विभाज़न को प्रेरित कर बीजों में उत्पन्न प्रसुप्ति को तोड़ने में भी यह सहायक होते हैं।
पशुपालन से किसानों की आय बढ़ाने हेतु सरकार ने लांच किया ई-गोपाला ऐप
किसानों को पशुपालन के लिए प्रोत्साहित करने एवं उनकी आय में वृद्धि हेतु सरकार द्वारा कई योजनाओं की शुरुआत की जा रही है। इसी कड़ी में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार में मछली उत्पादन, डेयरी, पशुपालन और कृषि में अध्ययन एवं अनुसंधान से संबंधित पीएम मत्स्य सम्पदा योजना, ई-गोपाला ऐप और कई अन्य योजनाओं का शुभारम्भ किया है।
इस अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से दिए गए अपने संबोधन में पीएम ने कहा कि आज इन सभी योजनाओं के शुभारम्भ का उद्देश्य हमारे गांवों को सशक्त बनाना और 21वीं सदी में आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करना है।
ई-गोपाला ऐप के माध्यम से पशुधन का प्रबंधन किया जाएगा। इस प्रबंधन में गुणवत्तापूर्ण प्रजनन सेवाओं की उपलब्धता और पशु पोषण के लिए किसानों का मार्गदर्शन करना, उचित पशु चिकित्सा दवा का उपयोग करते हुए जानवरों का उपचार आदि की जानकारी मिलेगी।
स्रोत: किसान समाधान
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