मौसम की मार से परेशान किसानों को म.प्र. सरकार देगी 4000 करोड़ का मुआवजा

MP Government will give compensation of 4000 crores to farmers distressed due to weather

इस साल भारी बारिश की वजह से बाढ़ आने और कीट-रोग के प्रकोप के कारण फ़सलों को काफी नुकसान हुआ है। फसल को हुए नुकसान के आकलन हेतु केंद्र सरकार के ने एक टीम को भेजा था। मध्यप्रदेश में आकलन का काम पूर्ण हो चुका है अब सिर्फ किसानों को सहायता राशि मिलने का इंतजार है।

इस विषय पर सीएम शिवराज चौहान ने कहा है कि “प्रदेश में बाढ़ एवं कीट-व्याधि से प्रभावित हुए किसानों को हर हालत में पूरी सहायता राशि उपलब्ध कराई जाएगी।” ग़ौरतलब है की प्रदेश में बाढ़ एवं कीट व्याधि से लगभग 40 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फसलें प्रभावित हुई हैं, जिनके लिए लगभग 4,000 करोड़ रुपए का मुआवजा संभावित है। गत वर्ष प्रदेश में लगभग 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें खराब हुईं थी तथा किसानों को 2000 करोड़ रुपए का मुआवजा वितरित किया गया था।

स्रोत: किसान समाधान

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पॉलीहाउस (पौधा घर) क्या होता है, जानें इसके लाभ

polyhouse
  • पॉलीहाउस वह ढाँचा है, जिसकी ऊपरी छत पारदर्शी या पारदर्शक सामग्री से ढकी रहती है।
  • इसमें उगाई जाने वाली फसल को नियंत्रित वातावरण में इस तरह उगाया जाता है कि, इसमें कार्य करने वाला व्यक्ति आसानी से अंतरशस्य क्रियाएँ कर सके।
  • पॉलीहाउस में उगाई जाने वाली सब्जीयों की अनुकूलता के आधार पर नियंत्रित वातावरण प्रदान करके चार से पाँच सब्जीयों को वर्ष भर में आसानी से उगाया जा सकता है।
  • इसके द्धारा प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है साथ ही उच्च गुणवत्ता वाले फल प्राप्त होते हैं।
  • पॉलीहाउस में पानी, उर्वरकों, बीजों एवं रसायनिक दवाईयों का उपयोंग अधिक बेहतर ढंग से किया जा सकता हैं।
  • इसमें कीडे़ एवं बीमारियों का नियंत्रण भी आसानी से किया जा सकता हैं।
  • पॉलीहाउस में बीजों के अंकुरण का प्रतिशत अधिक होता है।
  • जब पॉलीहाउस में सब्जीयों को उगाया नहीं जाता है इस दशा में पॉलीहाउस द्धारा शोषित की गई उष्मा का उपयोग उत्पादकों को सुखाने एवं अन्य संबंधित कार्यों को करने में किया जाता है।
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मिट्टी उपचार के द्वारा उकठा रोग का प्रबंधन कैसे करें

How to manage wilt disease with help of soil treatment
  • यह एक जीवाणु एवं कवक जनित रोग है जो फसल को सब से ज्यादा नुकसान पहुँचाते हैं।
  • इसे अंग्रेजी में बैक्टीरियल विल्ट कहते हैं और इसके संक्रमण के लक्षण संक्रमित पौधों के सभी भागों पर देखे जा सकते हैं।
  • इसके कारण पत्तियां पीली हो जाती हैं, पौधा सूखने लगता है और आखिर में मर जाता है।
  • इसके कारण फसल गोल घेरे में सूखना शुरू हो जाती है।
  • इस रोग के निवारण के लिए मिट्टी उपचार सबसे कारगर उपाय है।
  • जैविक उपचार के रूप मायकोराइजा @ 4 किलो/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 1 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
  • ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 5 ग्राम/किलो बीज़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 5 ग्राम/ किलो बीज़ की दर से बीज़ उपचार करें।
  • स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
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गोभी की फसल में डायमंड बैक मोथ की समस्या का नियंत्रण कैसे करें?

How to control diamondback moth in cabbage crop
  • डायमण्ड बैक मोथ के अंडे सफ़ेद-पीले रंग के होते हैं।
  • इसकी इल्लियाँ 7-12 मिमी लम्बी, व इसके पूरे शरीर पर बारीक रोयें होते हैं।
  • इसके वयस्क 8-10 मिमी लम्बे मटमैले भूरे रंग के व हल्के गेहुएं रंग के होते है। इसके अलावा वयस्क की पीठ पर चमकीले धब्बे भी होते हैं।
  • वयस्क मादा पत्तियों पर एक एक कर या समूह में अंडे देती है।
  • छोटी पतली हरी इल्लियाँ अण्डों से निकलने के बाद पत्तियों की बाहरी परत को खाकर छेद कर देती हैं।
  • अधिक आक्रमण होने पर पत्तियां पूरी तरह से ढांचानुमा आकार में रह जाती हैं।
  • इसके नियंत्रण के लिए लैम्डा साइहेलोथ्रिन 4.6% + क्लोरानिट्रानिलीप्रोल 9.3% ZC@ 80 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% +इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC@ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक नियंत्रण के रूप में हर छिड़काव के साथ बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
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आलू की फसल में मिट्टी उपचार के फ़ायदे

Benefits of soil treatment in potato crop
  • आलू की फसल में बुआई के पहले मिट्टी उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।
  • मिट्टी की उर्वरता, पोषक तत्व प्रबंधन, फसल की अच्छी उपज एवं रोग मुक्त फसल के लिए बहुत सारे महत्वपूर्ण कारक होते हैं जो फसल की उपज और गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव डालते हैं।
  • रबी के मौसम में आलू की बुआई के पूर्व मिट्टी में बहुत अधिक नमी होने के कारण कवक जनित रोगों एवं कीट का बहुत अधिक प्रकोप होता है।
  • कवक जनित रोगों एवं कीटों के निवारण के लिए कवकनाशी एवं कीटनाशी से मिट्टी उपचार किया जाता है।
  • कवकनाशी एवं कीटनाशी से मिट्टी उपचार करने से आलू की फसल में कन्द गलन जैसे रोग नहीं लगते हैं।
  • मिट्टी उपचार के द्वारा आलू में लगने वाले उकठा रोग से भी बचाव होता है।
  • मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी मिट्टी उपचार बहुत आवश्यक होते हैं। इसके लिए मुख्य पोषक तत्वों का उपयोग किया जाता है।
  • मिट्टी उपचार करने से मिट्टी की सरचना में सुधार होता है एवं उत्पादन भी काफी हद तक बढ़ जाता है।
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आलू की फसल में अगेती अंगमारी रोग का नियंत्रण

Control of early blight disease in potato crop
  • यह रोग आल्तेरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंदी के कारण लगता है।
  • यह रोग कंद निर्माण से पहले ही लग सकता है नीचे वाली पत्तियों पर सबसे पहले प्रकोप होता है जहाँ से रोग बाद में ऊपर कि ओर बढ़ता है।
  • पत्तियों पर गोल अंडाकार या छल्ले युक्त धब्बे बन जाते हैं जो भूरे रंग के होते हैं।
  • इन धब्बों का आकार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है जो बाद में पूरी पत्ती को ढक लेता है और आखिर में रोगी पौधा मर जाता है।
  • इसके नियंत्रण के लिए मैनकोज़ेब 75% WP@ 600 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63%@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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प्याज़ एवं लहसुन की फसल में कैल्शियम का महत्व

Importance of calcium in onion and garlic crops
  • कैल्शियम प्याज़ एवं लहसुन की फसल के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण तत्व है।
  • प्याज़ एवं लहसुन की फसल में जड़ों की स्थापना और जड़ों के बढ़ाव के साथ-साथ फसल की जल्दी वृद्धि में भी कैल्शियम अहम भूमिका निभाते हैं।
  • यह प्याज़ एवं लहसुन के पौधे की ऊँचाई और ताक़त बढ़ाता है।
  • सभी प्रकार की बीमारियों और अजैविक तनाव जैसे कि ठंड लगना या लवणता के खिलाफ प्याज़ एवं लहसुन के बल्बों की रक्षा करने में भी यह मददगार होता है।
  • कैल्शियम की कमी से पत्ती की लंबाई कम रह जाती है, पत्ती बिना पीलेपन के ही मर जाती है।
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मानसून के आखिरी चरण में इन राज्यों में है बारिश की संभावना

weather forecast

मानसून अपने आखिरी पड़ाव पर है और अक्टूबर माह की शुरुआत के साथ मानसून के अंतिम चरण की बारिश देश के कुछ राज्यों में देखने की मिल रही है। ज्यादातर राज्यों से मानसून ने विदाई ले ली है।

भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक राजधानी दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और उत्तरी भारत के ज्यादातर हिस्सों से दक्षिण पश्चिमी मानसून के लौटने की स्थिति नजर आ रही है जबकि झारखंड, बिहार और यूपी के कई हिस्सों में हल्के से मध्यम बारिश हो सकती है।

आने वाले 24 घंटों के दौरान तटीय ओडिशा, आंध्र प्रदेश और गंगीय पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश के साथ कुछ स्थानों पर भारी बारिश जारी रह सकती है। इसके अलावा दक्षिणी छत्तीसगढ़, विदर्भ, मध्य प्रदेश के दक्षिणी हिस्सों और दक्षिणी राजस्थान के साथ-साथ जम्मू कश्मीर के उत्तरी भागों में भी एक-दो स्थानों पर हल्की बारिश की उम्मीद है।

स्रोत: कृषि जागरण

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धान की फसल में भूरा माहू का नियंत्रण

Control of brown plant hopper in paddy crop
  • इस कीट का निम्फ और व्यस्क रूप भूरे से सफेद रंग का होता है। यह पौधे के तने के आधार के पास रहता है तथा और वहीं से पौधे को नुकसान पहुँचाता है।
  • वयस्क कीट के द्वारा पत्तीयों के मुख्य शिरा के पास अण्डा दिया जाता है|
  • अंडो का आकार अर्ध चंद्र होता है एवं निम्फ का रंग सफ़ेद से हल्का भूरा रहता हैं।
  • प्लांटहॉपर द्वारा किया गया नुकसान पौधे में पीलेपन के रूप में दिखता हैं।
  • भूरा माहु पौधे का रस चूसते हैं जिसके कारण फसल घेरे में सूख जाती है जिसे हॉपर बर्न कहते हैं।
  • थियामेंथोक्साम 75% SG @ 60 ग्राम/एकड़ या बुप्रोफिज़िन 15% + एसीफेट 35% WP@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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लौकी की फसल में लीफ माइनर (पत्ती का सुरंगी कीट) नियंत्रण

Control of Leaf Miner in Bottle Gourd
  • यह कीट मुख्य रूप से लौकी की फसल को नुकसान पहुँचाता है। इस कीट की सुंडी व कैटरपिलर सबसे पहले लौकी के पौधे की पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं।
  • अंडे से सुंडी निकलने के बाद सुंडी रेशमी धागे के साथ पत्तियों पर एक घुमावदार जाली बना देती है और शिराओं के बीच से पत्ती को खाती है।
  • इस कीट के नियंत्रण के लिए एबामेक्टिन 1.9% EC @ 150 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC@ 70 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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