- गाजर की मक्खी गाजर की फसल के आसपास और किनारों के चारो तरफ अण्डे देती है।
- लगभग 10 मिमी लम्बाई वाली यह इल्ली गाजर की जड़ों के बाहरी भाग को मुख्यतः अक्टूबर-नवम्बर महीने के दौरान नुकसान पहुँचाती है।
- यह धीरे-धीरे जड़ों में प्रवेश कर जड़ों के आंतरिक भागों को नुकसान पहुंचाने लगती है।
- इसके कारण गाजर के पत्ते सूखने लग जाते हैं। पत्तियां कुछ पीले रंग के साथ लाल रंग की हो जाती है। परिपक्व जड़ों की बाहरी त्वचा के नीचे भूरे रंग की सुरंगें दिखाई देने लगती हैं।
- इस इल्ली के प्रबंधन के लिए कारबोफुरान 3% GR@ 10 किलो/एकड़ या फिप्रोनिल 0.3% GR@ 10 किलो/एकड़ का उपयोग करें।
- इसके जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से मृदा उपचार करें।
- इन सभी उत्पादों का उपयोग मृदा उपचार के रूप में किया जाता है।
प्याज की फसल में स्टेमफाईलम झुलसा रोग के लक्षण एवं नियंत्रण
- इस रोग के कारण प्याज़ के पत्तों पर छोटे पीले से नारंगी रंग के धब्बे या धारियां बन जाती है जो बाद में अंडाकार हो जाती हैं।
- इन धब्बे के चारो ओर गुलाबी किनारे नजर आते हैं जो इस समस्या के मुख्य लक्षण हैं।
- धब्बे पत्तियों के किनारे से नीचे की और बढ़ते हैं और आपस में मिलकर बढ़ते हैं जिसके कारण पत्तियां झुलसी हुई दिखाई देती हैं।
- रोपाई के बाद 10 से 15 दिन के अंतराल पर बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर फफूंदनाशियों जैसे थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 250 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- हेक्सकोनाज़ोल 5% SC @ 400 मिली, प्रति एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- क्लोरोथालोनिल 75% WP@ या 250 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी @500 ग्राम/एकड़ के रूप में उपयोग करें।
भिन्डी की फसल में पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक) का प्रबंधन
- भिन्डी की फसल में पीला शिरा रोग (यलो वेन मोजैक) का प्रबंधन
- यह रोग सफ़ेद मक्खी नामक कीट के कारण होती है और यह भिंडी की फसल को सभी अवस्था में प्रभावित करता है।
- इस रोग में पत्तियों की शिराएँ पीली दिखाई देने लगती है और पीली होने के बाद पत्तियाँ मुड़ने लग जाती हैं।
- इस रोग से प्रभावित फल हल्के पीले, विकृत और सख्त हो जाते हैं।
- इस वायरस से ग्रसित पौधों को उखाड़ के नष्ट कर देना चाहिए।
- ग्रसित पौधे को खेत में न छोड़ें, इन्हें एकत्रित कर के जला दें या फिर खाद के गड्ढे में डाल दें।
- सफ़ेद मक्खी के नियंत्रण के लिए फेरामोन ट्रैप का उपयोग कर सकते हैं।
- इसके अलावा एसिटामिप्रीड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़ या डायफैनथीयुरॉन 50% WP@ 250 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
खीरे की फसल को माहू के प्रकोप से कैसे बचाएं?
- माहु कीट के शिशु व वयस्क रूप कोमल नाशपाती के आकार के तथा काले रंग के होते हैं।
- इसके शिशु एवं वयस्क रूप समूह में पत्तियों की निचली सतह पर चिपके रहते हैं, जो पत्तियों का रस चूसते हैं।
- इस कीट से ग्रसित भाग पीला होकर सिकुड़ जाता है और मुड़ जाता है।
- इसके अत्यधिक आक्रमण की अवस्था में पत्तियाँ सूख जाती हैं व धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है।
- इसके कारण फलों का आकार एवं गुणवत्ता कम हो जाती है।
- माहू के द्वारा पत्तियों की सतह पर मधुरस का स्त्राव किया जाता है जिससे फंगस का विकास हो जाता है, जिसके कारण पौधे की प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है, और अंततः पौधे की वृद्धि रूक जाती है।
- इससे बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL@ 100 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP@ 300 ग्राम/एकड़ या एसिटामिप्राइड 20% SP @ 200 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
इस योजना के अंतर्गत खरीदें सिंचाई उपकरण, मिलेगी 80 से 90% की सब्सिडी
कृषि कार्यों में फसल की सिंचाई का एक अहम स्थान होता है और इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत किसानों को सिंचाई उपकरणों की खरीदी पर सब्सिडी मिलती है।
इस योजना के अंतर्गत जहाँ सामान्य किसानों को 80% तक की सब्सिडी प्रदान की जाती दी है, तो वहीं लघु और सूक्ष्म किसानों को 90 प्रतिशत तक की सब्सिडी दी जाती है। इस योजना के लिए किसान ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं।
किसानों को पंजीकृत फर्म से सिंचाई उपकरण खरीदने के बाद आवेदन के साथ बिल दफ्तर में जमा करना होता है। जब आवेदन स्वीकृत हो जाता है, तो किसानों को लागत पर 80 से 90% सब्सिडी दी जाती है। इस योजना के लिए केंद्र द्वारा 75% अनुदान दिया जाता है तो वहीं 25% खर्च राज्य सरकार द्वारा किया जाता है।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareलहसुन की फसल में फ्यूजेरियम बेसल रॉट रोग का प्रकोप
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इस रोग की वजह से पौधे की बढ़वार रुक जाती है तथा पत्तियों पर पीलापन आ जाता है और पौधा ऊपर से नीचे की ओर सूखता चला जाता हैं।
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संक्रमण के प्रारंभिक चरण में, पौधों की जड़ें गुलाबी हो जाती हैं और सड़ने लगती हैं।
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बल्ब के निचले सिरे सड़ने लगते हैं और अंततः पूरा पौधा मर जाता है।
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नम मिट्टी और 27 डिग्री सेल्सियस तापमान इस रोग के विकास के लिए अनुकूल होता है।
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इस रोग के निवारण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ या 300 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
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जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से पौधों के पास जमीन के माध्यम से दें।
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जीवाणु जनित रोगों से फसल एवं मिट्टी की रक्षा कैसे करें?
- फसल एवं मिट्टी में अधिक नमी एवं तापमान के परिवर्तन के कारण जीवाणु जनित रोगों के प्रकोप का खतरा बहुत होता है।
- इन रोगों में कुछ मुख्य रोग जैसे ब्लैक रॉट, स्टेम रॉट, जीवाणु धब्बा रोग, पत्ती धब्बा रोग, उकठा रोग।
- इन रोगों में से कुछ रोग मिट्टी जनित होते हैं जो फसल के साथ – साथ मिट्टी को भी संक्रमित करके नुकसान पहुंचाते हैं।
- फसलों के उत्पादन पर रोगों के कारण बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है एवं मिट्टी का pH भी इन जीवाणु जनित रोगों के कारण असंतुलित हो जाता है।
- इन रोगों के निवारण के लिए बुआई पूर्व मिट्टी उपचार एवं बीज़ उपचार करना बहुत आवश्यक होता है।
- बुआई के समय एवं बुआई के 15-25 दिनों के अंदर एक छिड़काव जीवाणु जनित रोगों के प्रबधन के लिए करना चाहिए।
फसलों में एस्कोचायटा ब्लाइट (फुट रॉट) या फल सड़ांध की रोकथाम कैसे करें?
- एस्कोचायटा ब्लाइट को एस्कोचायटा फुट रॉट के नाम से भी जाना जाता है।
- इस रोग के कारण फसलों पर छोटे और अनियमित आकार के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं।
- इसके कारण अक्सर पौधे के आधार पर बैंगनी/नीला-काला घाव हो जाता है।
- इसके गंभीर संक्रमण के कारण फलों पर सिकुड़न हो जाती है और फल सूखने लगते हैं जिससे बीज की सिकुड़न और गहरे भूरे रंग के विघटन के कारण बीज की गुणवत्ता में कमी हो सकती है।
- इस रोग का मुख्य कारक मिट्टी में अत्यधिक नमी का होना होता है। इससे ग्रसित पौधे के तने एवं टहनियाँ सक्रमण के कारण गीली दिखाई देती हैं।
- इन रोगों के निवारण के लिए क्लोरोथालोनिल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 500ग्राम/एकड़ या मेटिराम 55% + पायरोक्लोरेस्ट्रोबिन 5% WG@600 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- टेबूकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% WG@ 100ग्राम/एकड़ या ऐजोस्ट्रोबिन 11% + टेबूकोनाज़ोल 18.3% SC@ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
फसलों की रक्षा के लिए फेरोमोन ट्रैप का करें उपयोग
- फेरोमोन ट्रैप एक जैविक प्रपंच है जिसका फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े के वयस्क रूप को पकड़ने के लिए उपयोग किया जाता है।
- इस फेरोमोन ट्रैप में एक रसायन युक्त कैप्सूल लगा होता है। कीट इस रासायन की खुशबू से आकर्षित होकर ट्रैप में आते हैं और कैद हो जाते हैं।
- इस कैप्सूल में एक प्रकार की विशेष गंध होती है। यह गंध नर पतंगों को आकर्षित करती है।
- विभिन्न कीटों को अलग अलग गंध पसंद होती है इसलिए अलग-अलग कीटों के लिए अलग-अलग कैप्सूल का इस्तेमाल किया जाता है।
- इस प्रक्रिया से नर कीट ट्रैप हो जाता है और मादा कीट अंडा देने से वंचित रह जाते हैं।
अधिक नमी के कारण मिट्टी एवं फसल को होने वाले नुकसान
- कभी कभी मौसम परिवर्तन के कारण जब अधिक बारिश होती है, तब खेत की मिट्टी में बहुत अधिक नमी हो जाती है।
- अधिक नमी के कारण मिट्टी में कवक जनित रोगों एवं जीवाणु जनित रोगों का प्रकोप होने की बहुत अधिक संभावना रहती है।
- अधिक नमी के कारण मिट्टी में कीटों का प्रकोप भी बहुत अधिक होने लगता है।
- अधिक बारिश के कारण मिट्टी का कटाव होता है जिसके कारण मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
- फसलों में पीलापन, पत्ते मुड़ना, फसल का समय से पहले मुरझाना, फलों का अपरिपक्व अवस्था में ही गिरना, फलों पर अनियमित आकार के धब्बे हो जाना अदि सभी प्रभाव खेत में अधिक नमी के कारण होता है।
- खेत की मिट्टी में अत्यधिक नमी होने से फसल में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है जिसके कारण फसल उत्पादन बहुत प्रभावित होता है।