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- यह उत्पाद दो प्रकार के बैक्टीरिया ‘PSB और KMB’ से बना है जो मिट्टी और फसल में दो प्रमुख तत्वों पोटाश और फास्फोरस की आपूर्ति में मदद करता है। जिसके कारण पौधे को समय पर आवश्यक तत्व मिलते हैं और विकास अच्छा होता है।
- इसमें एक जैविक कवकनाशी ट्राइकोडर्मा विरिडी भी है, जो मिट्टी में पाए जाने वाले अधिकांश हानिकारक कवक को रोकने में सक्षम है। यह मिट्टी में लाभकारी कवक की संख्या को बढ़ाता है और जड़ के चारों ओर एक सुरक्षा कवच का निर्माण करता है।
- एमिनो ह्यूमिक सी वीड मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाने में सहायक है, यह मिट्टी के पीएच को बेहतर बनाने में मदद करता है। इसमें उपस्थित माइकोराइजा एक ऐसा कवक है जो पौधे की जड़ों और उनके आस-पास की मिट्टी के बीच एक विशाल संबंध बनाने में सक्षम है।
- यह पौधे के लिए नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्वों प्रदान करता है। राइज़ोबियम कल्चर चने के पौधों की जड़ों में सहजीवी के रूप में रहता है और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को सरल रूप में परिवर्तित करता है, जिसे पौधे द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है।
- यह किट पौधों को अच्छी तरह से विकसित करने में मदद करता है। इसके उपयोग से चने की उपज में 50-60 फीसदी तक का इज़ाफा होता है।
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- गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए ग्रामोफ़ोन लेकर आया है गेहूं समृद्धि किट।
- यह किट भूमि सुधारक की तरह कार्य करती है।
- इस किट को चार आवश्यक बैक्टीरिया NPK एवं ज़िंक को मिलाकर बनाया गया है, जो की मिट्टी NPK की पूर्ति करके फसल की वृद्धि में सहायता करते हैं एवं ज़िंक का जीवाणु मिट्टी में मौजूद अधुलनशील जिंक को घुलनशील रूप में फसल को प्रदान करने का कार्य करता है।.
- इस किट में समुद्री शैवाल, एमिनो एसिड ह्यूमिक एसिड एवं मायकोराइज़ा जैसी सामग्री का संयोजन है जो मिट्टी की विशेषताओं और गुणवत्ता में काफी सुधार करता है, साथ ही साथ मायकोराइज़ा सफेद जड़ के विकास में भी मदद करता है। ह्यूमिक एसिड प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में सुधार करके गेहूं की फसल के बेहतर वनस्पति विकास में सहायता करता है।
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- लहसुन की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुआई के बाद समय-समय पर छिड़काव प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- इसके द्वारा लहसुन की फसल को अच्छी शुरुआत मिलती है साथ ही लहसुन की फसल रोग रहित रहती है।
- कवक जनित रोगों के निवारण के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक कवक नाशी के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- कीट नियंत्रण के लिए एसीफेट 75% SP@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक कीटनाशक के रूप में बवेरिया बेसियाना@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- पोषक तत्व प्रबधन लिए सीवीड@ 400 मिली/एकड़ या जिब्रेलिक एसिड@ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- इन सभी छिड़काव के साथ सिलिकॉन आधारित स्टीकर 5 मिली/15 लीटर पानी का उपयोग अवश्य करें।
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- जिस प्रकार कवकनाशकों से बीज़ उपचार करने से फसल की अंकुरण क्षमता बढ़ती है ठीक उसी तरह कीटनाशकों के द्वारा बीज़ उपचार करने से फसल में अंकुरण क्षमता बढ़ती है।
- कीटनाशकों के द्वारा बीज़ उपचार करने से फसल में मिट्टी जनित कीटों के साथ-साथ रस चुसक कीटो का भी नियंत्रण होता है।
- जैविक कीटनाशक से बीज़ उपचार करने से भूमि में दीमक एवं सफेद ग्रब आदि की रोकथाम के लिए लाभकारी है।
- कीटनाशकों में प्रमुख रूप से इमिडाक्लोप्रिड 48% FS एवं थियामेंथोक्साम 30% FS उत्पाद का उपयोग किया जाता है।
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- यह रोग एक जीवाणु एवं कवक जनित रोग है जो फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाता है।
- जीवाणु जनित विल्ट या कवक जनित विल्ट संक्रमण के लक्षण संक्रमित पौधों के सभी भागों पर देखे जा सकते हैं।
- शुरूआती अवस्था में इसके कारण पत्तियाँ लटक जाती हैं, पत्तियां पीली हो जाती हैं, फिर पूरा पौधा सूख जाता है और मर जाता है।
- इसके कारण फसल गोल घेरे में सूखना शुरू हो जाती है।
- इस रोग के निवारण के लिए मिट्टी उपचार सबसे कारगर उपाय है।
- जैविक उपचार के रूप मायकोराइजा @ 4 किलो/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 1 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें।
- इससे बचाव के लिए स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
- रासायनिक उपचार के रूप में कासुगामायसिन 5% + कॉपरआक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ याथायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 250 ग्राम/एकड़ के दर से ड्रैंचिंग करें।
- इन सभी उत्पादों को 100 -50 किलो FYM के साथ मिलाकर मिट्टी उपचार भी किया जा सकता है।
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- बैगन की फसल में इस रोग का प्रकोप अत्यधिक नमी की वजह से होती है।
- इसके कारण फलों पर जलीय सूखे हुये धब्बे दिखाई देते है जो बाद में धीरे धीरे दूसरे फलो में फैल जाते हैं।
- प्रभावित फलों की ऊपरी सतह भूरे रंग की हो जाती है जिस पर सफ़ेद रंग के कवक का निर्माण हो जाता है।
- इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों एवं अन्य भागों को तोड़कर नष्ट कर दें।
- इस रोग के निवारण के लिए फसल पर मेंकोजेब 75% WP @ 600 ग्राम/एकड़, या कासुगामायसिन 5% + कॉपरआक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़
- हेक्साकोनाज़ोल 5% SC@ 300 ग्राम/एकड़ या स्ट्रेप्टोमायसिन सल्फेट 90% + टेट्रासायक्लीन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W@ 30 ग्राम/एकड़ की दर से छिडकाव करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी @500 ग्राम/एकड़ के रूप में उपयोग करें।
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- इस बीमारी के लक्षण पत्तियों, तने एवं फलों पर दिखाई देते हैं।
- इसके कारण नये फलों के ऊपर अण्डाकार जल रहित धब्बे निर्मित होते है जो आपस में मिलकर बहुत बड़े हो जाते हैं।
- अत्यधिक नमी के कारण इन धब्बों का निर्माण होता है और इन धब्बों से गुलाबी चिपचिपा पदार्थ निकलने लगता है।
- इस बीमारी में प्रभावित भागों पर अंगमारी रोग के समान लक्षण निर्मित हो जाते हैं।
- खेतों को साफ रखे एवं उचित फसल चक्र अपनाकर इस बीमारी को फैलने से रोकें।
- बुआई से पहले बीजों को कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP से 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
- इस रोग के निवारण के लिए मैनकोज़ेब 75% WP@ 500 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ के रूप में उपयोग करें।
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- लहसुन की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खरपतवार प्रबधन समय -समय पर करना बहुत आवश्यक होता है।
- लहसुन की फसल में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडिमेथालीन 38.7% CS @ 700 मिली/एकड़ की दर से बुआई के 3 दिनों के बाद उपयोग करना चाहिए।
- ऑक्साडायर्जिल 80% WP @ 50 ग्राम/एकड़ की दर से बुआई के 10-15 दिनों के बाद लहसुन में प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयोग करें।
- प्रोपेक़्युज़ाफॉप 5% + ऑक्सीफ़्लोर्फिन 12% EC @ 250-350 मिली/एकड़ फसल में लगाने के 25-30 दिनों के बाद और 40-45 दिन बाद उपयोग करें।
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- मकड़ी आकार में छोटे एवं लाल रंग के होते हैं जो फसलों के कोमल भागों जैसे पत्तियों पर भारी मात्रा में पाए जाते हैं।
- जिन पौधों पर मकड़ी का प्रकोप होता है उन पौधे पर जाले दिखाई देते हैं। यह कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर उनको कमज़ोर कर देते हैं जिसके कारण अंत में पौधा मर जाता है।
- लहसुन की फसल में मकड़ी कीट के नियंत्रण के लिए प्रोपरजाइट 57% EC @ 400 मिली/एकड़ या स्पाइरोमैसीफेन 22.9% SC @200 मिली/एकड़ या ऐबामेक्टिन 1.8% EC @150 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में मेट्राजियम @ 1 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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- गाजर की मक्खी गाजर की फसल के आसपास और किनारों के चारो तरफ अण्डे देती है।
- लगभग 10 मिमी लम्बाई वाली यह इल्ली गाजर की जड़ों के बाहरी भाग को मुख्यतः अक्टूबर-नवम्बर महीने के दौरान नुकसान पहुँचाती है।
- यह धीरे-धीरे जड़ों में प्रवेश कर जड़ों के आंतरिक भागों को नुकसान पहुंचाने लगती है।
- इसके कारण गाजर के पत्ते सूखने लग जाते हैं। पत्तियां कुछ पीले रंग के साथ लाल रंग की हो जाती है। परिपक्व जड़ों की बाहरी त्वचा के नीचे भूरे रंग की सुरंगें दिखाई देने लगती हैं।
- इस इल्ली के प्रबंधन के लिए कारबोफुरान 3% GR@ 10 किलो/एकड़ या फिप्रोनिल 0.3% GR@ 10 किलो/एकड़ का उपयोग करें।
- इसके जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से मृदा उपचार करें।
- इन सभी उत्पादों का उपयोग मृदा उपचार के रूप में किया जाता है।
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