गोभी एवं पत्तागोभी की फसल में डायमंड बैक मोथ की पहचान एवं नियंत्रण

Diamondback Moth in Cabbage and cauliflower
  • इस कीट की इल्लियाँ पत्तों के हरे पदार्थ को खाती हैं तथा खाई गई जगह पर केवल सफेद झिल्ली रह जाती है जो बाद में छेदों में बदल जाती है।
  • रासायनिक नियंत्रण हेतु स्पिनोसेड 45% SC @ 300 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 1 किलोग्राम पानी में घोलकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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फल छेदक से भिंडी की फसल को 22-37% तक हो सकता है नुकसान

How to control fruit borers in Okra crops
  • फल छेदक हेलिकोवर्पा आर्मीजेरा की इल्ली है और यह भिंडी की फसल का मुख्य कीट है। इसे सही समय पर यदि नियंत्रण ना किया जाये तो यह 22-37 प्रतिशत तक फसल को नुकसान पहुंचाता है।
  • यह कीट पत्ते, फूल और फल खाता है। यह फलों पर गोल छेद बनाता है और इसके गुद्दे को खाता है।
  • इसके नियंत्रण के लिए निम्न उत्पादों के उपयोग करें।
  • फिरोमोन ट्रैप द्वारा कीट संख्या के फैलाव या प्रकोप की निगरानी की जा सकती है। फिरोमोन ट्रैप विपरीत लिंग के कीटों को आकर्षित करता है।
  • प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ या नोवालूरान 5.25% +इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC@ 600 मिली/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना 1 किलोग्राम पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
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तरबूज की उन्नत खेती के लिए ऐसे करें में खेत की तैयारी एवं मिट्टी उपचार

Field preparation and soil treatment in water melon before sowing
  • तरबूज की उन्नत खेती के लिए आवश्यकता अनुसार जुताई करके खेत को ठीक प्रकार से तैयार कर लेना चाहिए तथा छोटी-छोटी क्यारियां बना लेनी चाहिए।
  • खेत को भारी मिट्टी को ढेले रहित कर बीज बोना चाहिए। रेतीली भूमि के लिये अधिक जुताइयों की आवश्यकता नहीं पड़ती। इस प्रकार से 3-4 जुताई पर्याप्त होती हैं।
  • तरबूज को खाद की आवश्यकता पड़ती है। मिट्टी उपचार के लिये बुआई से पहले सॉइल समृद्धि किट के द्वारा मिट्टी उपचार किया जाना चाहिए।
  • इसके लिए सबसे पहले 50-100 किलो FYM या पकी हुई गोबर की खाद या खेत की मिट्टी में मिलाकर बुआई से पहले खाली खेत में भुरकाव करें।
  • बुआई के समय DAP@ 50 किलो/एकड़ + एसएसपी@ 75 किलो/एकड़ + पोटाश@ 75 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी भुरकाव करें।
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प्याज एवं लहसुन में लगने वाले कवक रोगों का नियंत्रण है जरूरी

Control of fungal diseases in onion and garlic
  • प्याज व लहसुन से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसमें लगने वाले हानिकारक रोगों की रोकथाम आवश्यक है।
  • वैसे तो प्याज व लहसुन की फसल पर अनेक रोगों का प्रकोप होता है परन्तु कुछ रोग आर्थिक दृष्टि काफी हानि पहुंचाते हैं।
  • प्याज़ एवं लहसुन की फसल में लगने वाले कवक जनित रोगों में प्रमुख हैं आधारीय विगलन (बेसल रॉट), सफेद गलन (व्हाइट रॉट), बैंगनी धब्बा (पर्पल ब्लाच, स्टेम्फीलियम झुलसा (स्टेम्फीलियम ब्लाईट) आदि।
  • इन रोगों के निवारण हेतु निम्न उत्पादों का उपयोग करना लाभकारी होता है।
  • थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% @ 300 ग्राम/एकड़ या हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% EC @ 200 मिली/एकड़ या क्लोरोथायोनिल 75% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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गेहूँ में लगने वाले कवक रोग से फसल को होगा नुकसान, ऐसे करें बचाव

Control of fungal disease in wheat
  • गेहूँ की फसल में लगने वाले कवक एवं जीवाणु जनित रोगों के प्रकोप की वजह से फसल की बढ़वार कम होने के साथ ही कल्ले भी कम निकलते हैं।
  • इसलिए सही वक्त पर इन रोगों की पहचान कर समुचित फसल प्रबंधन करना बेहद जरूरी होता है। ऐसा करने से उपज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • गेहूँ में लगने वाले रोगों में प्रमुख हैं पत्ती धब्बा रोग, करनाल बन्ट, गेरुआ या रतुआ रोग, अनावृत्त कण्डुआ इत्यादि।
  • इन रोगों के नियंत्रण के लिए निम्न उत्पादों का उपयोग करना लाभकारी होता है।
  • हेक्साकोनाज़ोल 5% SC@ 400 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC@ 200 मिली/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC @ 200 मिली/एकड़  की छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार रूप  में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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मटर की फसल में स्पाइन पॉड बोरर का नियंत्रण

How to control spiny pod borer in pea crop
  • स्पाइन पॉड बोरर का लार्वा शुरुआत में हरे रंग का होता है और धीरे-धीरे गुलाबी रंग का हो जाता है।
  • इसका वयस्क रूप भूरे स्लेटी रंग का होता है एवं इसका मुख भाग नारंगी रंग का होता है।
  • यह कीट फूल और युवा फली को बहुत नुकसान पहुँचाता है तथा इसके कारण कलियाँ अपरिपक्व अवस्था में ही गिर जाती हैं।
  • इल्ली फलियों के अंदर प्रवेश करके बहुत अधिक नुकसान पहुँचाती है। जिस जगह से फली में इल्ली प्रवेश करती है वहाँ भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं।
  • बायफैनथ्रिन 10% EC@ 300 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • हर छिड़काव के साथ स्टिकर का उपयोग अवश्य करें। जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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खरपतवारों के प्रकोप से चने की फसल का करें बचाव

Management of weeds in Gram crop
  • चने की फसल में वार्षिक घास, चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार और सकरी पत्ती वाले खरपतवार अधिक मात्रा में उगते हैं।
  • इन खरपतवारों का नियंत्रण समय पर करना बहुत आवश्यक होता है नहीं तो यह फसल को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं और उत्पादन भी कम कर सकते हैं।
  • बुआई के 1-3 दिनों में खरपतवार प्रबंधन हेतु पेन्डीमेथलीन 38.7% EC @ 700 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • इसी के साथ समय समय पर हाथ से निदाई करते रहने से खरपतवार का प्रकोप कम होता है एवं फसल उत्पादन अधिक होता है।
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पाले की समस्या के नियंत्रण में मददगार होता है स्यूडोमोनास बैक्टीरिया

Role of pseudomonas bacteria in prevention of frost in crops
  • स्यूडोमोनास एक जैविक कवकनाशी है जो जीवाणुनाशी की तरह भी कार्य करता है।
  • स्यूडोमोनास दरअसल पौधे में लगने वाले हानिकारक कवक के साथ-साथ रबी मौसम में लगाई जाने वाली फसलों को प्रभावित करने वाले पाले की समस्या से भी बचाती है।
  • यह एक ऐसा बैक्टीरिया है जो बहुत अधिक कम तापमान में भी जीवित रह लेता है जिसके कारण फसलों में लगने वाले पाले से फसल की सुरक्षा होती है।
  • आपको पता होगा की पाले का प्रकोप तापमान में गिरावट के कारण होता है और स्यूडोमोनास पाले के प्रभावी नियंत्रण में काफी लाभकारी सिद्ध होता है।
  • स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से बुआई के 15-30 दिनों में छिड़काव के रूप में एवं मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
  • स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से बुआई के 30-40 दिनों में छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
  • तापमान अचानक से कम होने की स्थिति में या कोहरा अधिक होने की स्थिति में आवश्यकता होने पर ही इसका उपयोग करें।
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टमाटर के लिए अति महत्वपूर्ण है कैल्शियम, जानें इसके फायदे

Importance of Calcium in Tomato crop
  • टमाटर की फसल के लिए महत्वपूर्ण तत्वों में से एक होता है कैल्शियम।
  • कैल्शियम दरअसल टमाटर की फसल में कोशिका विभाजन की प्रक्रिया को बढ़ाता है।
  • इस प्रक्रिया के कारण टमाटर की फसल में फल उत्पादन बहुत अच्छा होता है।
  • कैल्शियम तत्व टमाटर में होने वाले फल सड़न रोग (ब्लॉसम एन्ड रॉट) की रोकथाम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • टमाटर की फसल में ऊतकों की गतिशीलता को बढ़ाने में भी कैल्शियम बहुत मदद करता है।
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लहसुन की फसल में जलेबी बनने की समस्या एवं बचाव के उपाय

Management of leaf curling disease in garlic crop
  • लहसुन की फसल में जलेबी बनने की समस्या थ्रिप्स कीट के प्रकोप के कारण होती है।
  • यह थ्रिप्स कीट सबसे पहले लहसुन की पत्तियों के नाजुक भाग को खुरच कर उसके रस को चूसने का काम करता है।
  • इसके परिणाम स्वरूप लहसुन की पत्तियों के किनारे जलने की शिकायत आने लगती है और पूरे पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है। इस तरह पौधा धीरे-धीरे सूखने लगता है।
  • इसके कारण लहसुन की पत्तियां जलेबी के आकार में मुड़ने लगती हैं इसीलिए इस समस्या को जलेबी बनने की समस्या कहते हैं।
  • इस रोग के निवारण के लिए प्रोफेनोफोस 50% EC@ 500 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 250 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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