- ज़िंक घोलक जीवाणु मृदा में ऐसे जैविक अम्ल का निर्माण करता है जो अघुलनशील ज़िंक को घुलनशील अवस्था में बदलने में मदत करते हैं।
- ये घुलनशील ज़िंक बहुत ही आसानी से पौधों को उपलब्ध हो जाते हैं जिसकी वजह से पौधों को अनेक रोगों से बचाया जा सकता है। इनके उपयोग से उपज बढ़ती है साथ ही मृदा की स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।
- जिंक पौधों में विभिन्न धात्विक एंजाइम में उत्प्रेरक के रूप में एवं उपापचय की क्रियाओं के लिए आवश्यक होता है।
- पौधे के वृद्धि एवं विकास में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ग्रामोफोन ताबा- जी एवं SKB ZnSB के नाम से यह उपलब्ध कराता है।
तरबूज की फसल में बुआई के समय रूट गाँठ निमेटोड का ऐसे करें नियंत्रण
- रूट गांठ निमेटोड की मादा जड़ के अंदर या जड़ के ऊपर अंडे देती है।
- इन अण्डों से निकले नवजात जड़ की ओर आ जाते हैं और जड़ की कोशिकाओं को खा कर जड़ों में गांठ का निर्माण करते हैं।
- सूत्रकृमि से ग्रसित पौधों की वृद्धि रुक जाती है एवं पौधा छोटा ही रहता है।
- पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाता है।
- अधिक संक्रमण होने पर पौधा सूख कर मर जाता है।
- इसके नियंत्रण के लिए ग्रीष्म ऋतु में भूमि की गहरी जुताई करें।
- नीम की खली का 80-100 किलो प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।
- पेसिलोमायसीस लिनेसियस 1% डब्लू पी की 2-4 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत की तैयारी के समय उपयोग कर के भी रूट गाँठ निमेटोड का प्रभावी नियंत्रण किया जाता है।
फास्फोरस घोलक जीवाणु का तरबूज की फसल में होता है काफी महत्व
- ये जीवाणु फास्फोरस के साथ साथ Mn, Mg, Fe, Mo, B, Zn और Cu जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों को भी पौधे को उपलब्ध करवाने में सहायक होते हैं।
- ये तेजी से जड़ों का विकास करने में सहायक होते हैं जिससे पानी और पोषक तत्व आसानी से पौधों को प्राप्त होता है।
- पीएसबी कुछ खास जैविक अम्ल बनाते हैं जैसे मैलिक, सक्सेनिक, फ्यूमरिक, साइट्रिक, टार्टरिक और एसिटिक एसिड। ये अम्ल फॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ाते हैं।
- रोगों और सूखे के प्रति प्रतिरोध क्षमता को भी ये बढ़ने का काम करते हैं।
- इसका उपयोग करने से 25-30% फॉस्फेटिक उर्वरक की आवश्यकता कम होती।
आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग का नियंत्रण
- इस रोग के कारण आलू के पौधों की पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे बन जाते हैं।
- यह पत्तियों के शीघ्र गिरने का कारण बनते है और इन धब्बों के कारण पत्तियों पर भूरे रंग की परत बन जाती है जो कि पौधे के भोजन निर्माण की प्रक्रिया को बाधित कर देती है।
- प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होने के कारण पौधे भोजन का निर्माण नहीं कर पाते हैं जिसके कारण पौधे का विकास भी सही से नहीं हो पाता है एवं पौधा समय से पूर्व सूख जाता है।
रासायनिक उपचार:
एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC@ 300 मिली/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% EC@ 300 मिली/एकड़ या मेटालैक्सिल 4% + मैनकोज़ेब 64% WP@ 600 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
जैविक उपचार:
स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
गेहूँ की फसल में खरपतवार का प्रबंधन कर नुकसान से बचें
- गेहूँ की फसल को खरपतवार भारी नुकसान पहुंचाते हैं। वे सीधे मिट्टी और पौधे से पोषक तत्वों और नमी की आवश्यकता को पूरा करते हैं।
- इस प्रकार प्रकाश और स्थान के लिए फसल के साथ खरपतवार प्रतिस्पर्धा करते हैं, जिससे फसल की पैदावार कम हो जाती है।
- बथुआ (चेनोपोडियम एल्बम), गेहूँ का मामा (फलारिस माइनर), जंगली जई (एवेना फटुआ), प्याज़ी पियाजी (एस्फोडेल टेन्यूफोलियस) आदि गेहूँ के खेतों में गंभीर समस्या पैदा करते हैं। इनके अतिरिक्त दुब (सिनोडोन डाइक्टाइलोन) एक प्रमुख बारहमासी खरपतवार है।
इन खरपतवारों के नियंत्रण के लिए निम्न उत्पादों का उपयोग बहुत आवश्यक होता है।
- 2,4-D अमाइन साल्ट 58% @ 400 मिली/एकड़ का छिड़काव बुआई के 25-30 दिनों में करें।
- मेटसल्फयूरॉन मिथाइल 20% WP @ 8 ग्राम/एकड़ की दर से बुआई के 30 दिनों के अंदर छिड़काव करें। इसके उपयोग के बाद 3 सिंचाई अवश्य करें।
- क्लोडिनाफॉप प्रोपार्गिल 15% + मेटसल्फयूरॉन मिथाइल 1% WP @ 160 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- क्लोडिनाफॉप प्रोपार्गिल 15% WP @ 160 ग्राम/एकड़ की दर से 30-35 दिनों में छिड़काव करें।
ऐसे करें लहसुन में जड़ सड़न की समस्या का निदान
- लहसुन की फसल में मौसम में हो रहे परिवर्तन एवं वातावरण में नमी के कारण बहुत सारी समस्या आ रही है।
- इसके कारण लहसुन की पौधों में जड़ सड़न की समस्या बहुत ज्यादा देखने को मिल रही है।
- इस रोग के कारण पौधे की बढ़वार रुक जाती है तथा पत्तियों पर पीलेपन को समस्या सामने आती है तथा पौधा ऊपर से नीचे की ओर सूखता चला जाता है।
- संक्रमण के प्रारंभिक चरण में, पौधों की जड़ें सूखने लगती हैं, बल्ब के निचले सिरे सड़ने लगते हैं और अंततः पूरा पौधा मर जाता है।
- इस समस्या के समाधान के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ या 400 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम की दर छिड़काव करें।
दिसंबर के शुरुआत में आलू को अगेती झुलसा रोग से होगा नुकसान
- आलू की फसल में पौधे जलने की समस्या अगेती झुलसा रोग के कारण होती है।
- इस रोग का प्रकोप दिसंबर महीने की शुरुआत में आलू की फसल में होता है।
- यह रोग आल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंदी के कारण होता है।
- इसके कारण पत्तियों पर गोल अंडाकार या छल्ले युक्त धब्बे बन जाते हैं जो भूरे रंग के होते हैं।
- ये धब्बे धीरे-धीरे आकार में बढ़ने लगते हैं और पूरी पत्ती को ढक लेते हैं जिससे आखिर में रोगी पौधा मर जाता है।
रासायनिक उपचार:
एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC@ 300 मिली/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या मेटालैक्सिल 4% + मैनकोज़ेब 64% WP@ 600 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
जैविक उपचार:
ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
फसल से अच्छी उपज प्राप्ति में सफ़ेद जड़ों का होता है अहम योगदान
- फसल के अच्छे उत्पादन के लिए सफ़ेद जड़ों का विकास बहुत अच्छा होना आवश्यक होता है।
- सफेद जड़ मिट्टी में अच्छे से अपनी पकड़ बना कर रखती है जिसके कारण मिट्टी का कटाव नहीं होता है।
- इनकी वजह से पोषक तत्वों का परिवहन पौधों के ऊपरी हिस्से में आसान हो जाता है।
- सफ़ेद जड़ों के अच्छे विकास के लिए जमीन में फॉस्फोरस की निश्चित मात्रा का होना बहुत आवश्यक है इसलिए फॉस्फोरस जमीन की तैयारी के समय डालना उचित रहता है।
- सफ़ेद जड़ें लम्बी एवं बहुत सारे भागों में विभाजित होती हैं जो जल संचरण में सहायक होती हैं।
पौधे के लिए सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों में से एक है मैग्नीशियम, जाने इसका महत्व
- मैग्नीशियम पौधों में होने वाली खाना बनाने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा यह पत्तियों के हरेपन का प्रमुख तत्व है।
- मैग्नीशियम सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों में से एक है, जो पौधों में कई एंजाइम गतिविधियों और पादप ऊतकों को बनाने में अहम भूमिका निभाता है।
- मैग्नीशियम की मात्रा मिट्टी में औसतन 0.5 – 40 ग्राम/किलोग्राम तक होती है, परन्तु वर्तमान समय में अधिकांश मिट्टी में मैग्नीशियम की मात्रा 0.33 -25 ग्राम/किलोग्राम तक ही पायी जाती है।
- पौधों पर मैग्नीशियम की कमी के पहले लक्षण नीचे की पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इसके कारण पत्तियों की शिराएं गहरे रंग एवं शिराओं के बीच का भाग पीले लाल रंग का हो जाता है।
- भूमि में नाइट्रोजन की कमी, मैग्नीशियम की कमी को बढ़ा देती है।
- खेत की तैयारी करते समय बेसल डोज के साथ 10 किलोग्राम/एकड़ की दर से मैग्नीशियम सल्फेट (9.5%) की मात्रा को मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाकर दें।
- मैग्नेशियम की कमी को दूर करने के लिये 250 ग्राम/एकड़ की दर से मैग्नेशियम सल्फेट का घोल बनाकर दो बार सप्ताहिक अंतराल से पत्तियों पर छिड़काव करें।
गेहूँ की फसल में सिंचाई की विभिन्न अवस्थाएं
- पहली सिंचाई बुआई के 20-25 दिन बाद (ताजमूल अवस्था) में करें।
- दूसरी सिंचाई बुआई के 40-50 दिन पर (कल्ले निकलते समय) करें।
- तीसरी सिंचाई बुआई के 60-65 दिन पर (गांठ बनते समय) करें।
- चौथी सिंचाई बुआई के 80-85 दिन पर (पुष्प अवस्था) करें।
- पांचवी सिंचाई बुआई के 100-105 दिन पर (दुग्ध अवस्था) करें।
- छठीं सिंचाई बुआई के 115-120 दिन पर (दाना भरते समय)करें।
- तीन सिंचाई होने की स्थिति में ताजमूल अवस्था, बाली निकलने के पूर्व और दुग्ध अवस्था पर सिंचाई करें।