स्पाइन पॉड बोरर का लार्वा शुरुआत में हरे रंग का होता है और धीरे-धीरे गुलाबी रंग का हो जाता है।
इसका वयस्क रूप भूरे स्लेटी रंग का होता है एवं इसका मुख भाग नारंगी रंग का होता है।
यह कीट फूल और युवा फली को बहुत नुकसान पहुँचाता है तथा इसके कारण कलियाँ अपरिपक्व अवस्था में ही गिर जाती हैं।
इल्ली फलियों के अंदर प्रवेश करके बहुत अधिक नुकसान पहुँचाती है। जिस जगह से फली में इल्ली प्रवेश करती है वहाँ भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं।
बायफैनथ्रिन 10% EC@ 300 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
हर छिड़काव के साथ स्टिकर का उपयोग अवश्य करें। जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
लहसुन की फसल में जलेबी बनने की समस्या थ्रिप्स कीट के प्रकोप के कारण होती है।
यह थ्रिप्स कीट सबसे पहले लहसुन की पत्तियों के नाजुक भाग को खुरच कर उसके रस को चूसने का काम करता है।
इसके परिणाम स्वरूप लहसुन की पत्तियों के किनारे जलने की शिकायत आने लगती है और पूरे पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है। इस तरह पौधा धीरे-धीरे सूखने लगता है।
इसके कारण लहसुन की पत्तियां जलेबी के आकार में मुड़ने लगती हैं इसीलिए इस समस्या को जलेबी बनने की समस्या कहते हैं।
इस रोग के निवारण के लिए प्रोफेनोफोस 50% EC@ 500 मिली/एकड़ या एसीफेट 75% SP @ 300 ग्राम/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 250 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ या एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP @ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
प्याज़ एवं लहसुन की फसल में बुआई के 30-40 दिनों बाद फसल पूर्ण वर्द्धि अवस्था में रहती है जिसके कारण प्याज़/लहसुन की फसल में कीट एवं कवक जनित रोगों का प्रकोप बहुत होता है। इनके नियंत्रण हेतु निम्र उपाय किया जाना बहुत आवश्यक है।
कवक रोग नियंत्रण के लिए थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
कीट नियंत्रण लिए फिप्रोनिल 5% SC@ 400 मिली/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC@ 80 ग्राम/एकड़ कीदर से छिड़काव करें।
फसल के अच्छे वृद्धि एवं विकास के लिए यूरिया @ 25 किलो/एकड़ + सूक्ष्म पोषक तत्व @ 10 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
इन सभी उत्पादों का उपयोग करने से प्याज़ एवं लहसुन की फसल का अच्छा विकास होता है एवं उत्पादन बहुत हद तक बढ़ जाता है।
प्याज की फसल के लिए ग्रामोफोन लेकर आया है प्याज़ समृद्धि किट।
यह किट मिट्टी में पाए जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों को घुलनशील रूप में परिवर्तित करके पौधे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इससे मिट्टी में पाए जाने वाले हानिकारक कवक खत्म होते हैं और पौधे को होने वाले नुकसान से भी बचाव होती है।
यह उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक अवयवों से बना है, यह मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाने में सहायक है।
यह मिट्टी के पीएच को बेहतर बनाने में मदद करता है और जड़ों को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करता है, जिससे जड़ पूरी तरह से विकसित होती है, जो फसल के अच्छे उत्पादन का कारण बनती है।
यह किट मिट्टी की संरचना में सुधार करके पोषक तत्वों की उपलब्धता को कम नहीं होने देता है और जड़ प्रणाली द्वारा पोषक तत्वों में सुधार कर के जड़ विकास को बढ़ावा देता है।
यह जड़ों के द्वारा मिट्टी से पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद करता है और मिट्टी में सूक्ष्म जीवो की गतिविधि को बढ़ावा देता है।
यह समृद्धि किट दरअसल खेत की मिट्टी में पाए जाने वाले आवश्यक पोषक तत्वों को घुलनशील रूप में परिवर्तित करके पौधे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मिट्टी में पाए जाने वाली हानिकारक कवकों को खत्म करके यह पौधे को होने वाले नुकसान से बचाती है।
यह उत्पाद उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक अवयवों से बना है, यह मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि को बढ़ाने में सहायक है।
यह मिट्टी के पीएच को बेहतर बनाने में मदद करता है और जड़ों को एक अच्छी शुरुआत प्रदान करता है। इससे जड़ पूरी तरह से विकसित होती हैं, और फसल के अच्छे उत्पादन का कारण बनती हैं।
मिट्टी की संरचना में सुधार करके मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता को भी यह कम नहीं होने देता है। यह जड़ प्रणाली द्वारा पोषक तत्वों में सुधार से जड़ विकास को बढ़ावा देता है।
जड़ों के द्वारा यह मिट्टी से पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद करता है, मिट्टी में सूक्ष्म जीवो की गतिविधि को बढ़ावा देता है।
चने की फसल कीट प्रकोप के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होती है क्योंकि यह रबी के कम तापमान वाले मौसम में लगायी जाती है।
चने की फसल में हरी इल्ली का बहुत अधिक प्रकोप होता है, यह इल्ली हरे और भूरे रंग की हो सकती है। यह इल्ली चने की फसल की पत्तियों के पर्णहरित को खुरच कर खा जाती है।
इसके प्रकोप के कारण चने की पत्तियों को बहुत अधिक नुकसान होता है एवं अविकसित फलों एवं फूलों को भी यह कीट बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।
इस कीट के निवारण के लिए क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC@ 60 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC@ 600 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ की दर छिड़काव करें।
जैविक उपचार रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।