- फल छेदक या पोड बोरर मटर की फसल का एक प्रमुख कीट है जो फसल को भारी नुकसान पहुंचाता है।
- यह मटर की फसल की फलियों को बहुत अधिक नुकसान पहुँचाता है। यह कीट मटर की फली में छेद करके उसके अंदर के दाने को खाकर नुकसान पहुँचता है।
- इसके नियंत्रण के लिए इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ या फ्लूबेण्डामाइड 39.35% SC @ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
लहसुन की फसल में 60-65 दिनों में जरूर करें पोषण प्रबंधन
- लहसुन की फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए पोषण प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- सही समय पर पोषक तत्वों की पूर्ति करने से लहसुन की फसल में कंद का निर्माण बहुत अच्छा होता है।
- लहसुन की फसल में 60-65 दिनों में पोषण प्रबंधन करने के लिए कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो/एकड़ + पोटाश @ 20 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
- लहसुन की फसल में 60-65 दिनों में पोषण प्रबंधन करने के बाद खेत में सिंचाई अवश्य करें।
जुगाड़ से बने इस मशीन से करें प्याज की रोपाई, घंटों का काम हो जायेगा मिनटों में
जुगाड़ तकनीक से बनाये गए इस मशीन से प्याज के पौध की खेत में रोपाई का कार्य बड़ी ही आसानी से और बहुत ही कम समय में पूरा कर देता है। इस मशीन पर कुछ लोग बैठ जाते हैं और प्याज के पौध को मशीन में डालते हैं। मशीन एक ही बार में कई पौधे खेत में रोप देता है।
वीडियो स्रोत: एग्री टेक
Shareफसल से अच्छी उपज प्राप्ति के लिए ऐसे करें तापमान का नियंत्रण
खेतों की सिंचाई जरूरी: जब भी तापमान कम होने की संभावना हो या मौसम विभाग ने पूर्वानुमान में पाले की चेतावनी दी गई हो तो फसल में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। इससे तापमान 0 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं गिरेगा और फसलों को तापमान कम होने से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है। सिंचाई करने से 0.5–2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान में बढ़ोतरी हो जाती हैं।
पौधे को ढकें: तापमान कम होने का सबसे अधिक नुकसान नर्सरी में होता है। नर्सरी में पौधों को रात में प्लास्टिक की चादर से ढकने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से प्लास्टिक के अन्दर का तापमान 2-3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है। इससे सतह का तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुंच पाता। पॉलीथिन की जगह पर पुआल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। पौधों को ढकते समय इस बात का ध्यान जरूर रखें कि पौधों का दक्षिण पूर्वी भाग खुला रहे, ताकि पौधों को सुबह व दोपहर को धूप मिलती रहे।
वायु अवरोधक: ये अवरोधक शीत लहरों की तीव्रता को कम करके फसल को होने वाले नुकसान से बचाते हैं। इसके लिए खेत के चारों ओर ऐसी फसलों की बुआई करनी चाहिए जिनसे की हवा कुछ हद तक रोका जा सके जैसे चने के खेत में मक्का की बुआई करनी चाहिए। फलवृक्षों की पौध को पाले से बचाने के लिए पुआल या किसी अन्य वस्तु से धूप आने वाली दिशा को छोड़कर ढक देना चाहिए।
खेत के पास धुंआ करें: तापमान नियंत्रण के लिए आप अपने खेत में धुंआ पैदा कर दें, जिससे तापमान जमाव बिंदु तक नहीं गिरेगा और फसलों को नुकसान से बचाया जा सकेगा।
Shareप्याज़ की फसल में कंद बनते समय ऐसे करें पोषण प्रबधन
- प्याज की फसल में अंकुरण होने के बाद और जब तक पौधे में 3 पत्ती नहीं निकलती, तब तक फसल जमीन के ऊपर और जमीन के नीचे धीरे-धीरे बढ़ती है।
- एक बार 3 पत्ती निकलने के बाद, फसल का विकास तेज हो जाता है। यह विकास जमीन के अंदर होता है।
- इस दौरान पौधे प्रकाश संश्लेषण की गतिविधि को बढ़ाते है, बड़े पत्तों का उत्पादन करते हैं और बल्ब बनाने के लिए आवश्यक पदार्थों का भंडार करने लगते हैं।
- इस स्तर पर पौधों में पोषण प्रबंधन बल्ब के गठन, फसल के विकास और अंतिम पैदावार की शुरुआत के लिए महत्वपूर्ण है।
- इस समय छिड़काव के रूप में पैक्लोब्यूट्राजोल 40% SC@ 30 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- कैल्शियम नाइट्रेट@ 10 किलो/एकड़ + पोटाश@ 25 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
गेहूँ की फसल में उर्वरकों के उपयोग में इन बातों का रखें ध्यान
सही समय एवं सही उर्वरकों के उपयोग के द्वारा गेहूँ की फसल में उत्पादन को बहुत अधिक मात्रा में बढ़ाया जा सकता है।
गेहूँ की फसल में तीन अवस्थाओं में उर्वरक प्रबंधन किया जाता है जो निम्नलिखित हैं।
1. बुआई के समय उर्वरक प्रबंधन
2. बुआई के 20-30 दिनों में उर्वरक प्रबंधन
3. बुआई के 50-60 दिनों में उर्वरक प्रबंधन
- बुआई के समय उर्वरक प्रबंधन करने से गेहूँ की फसल का अंकुरण अच्छा होता है साथ ही सभी पौधों की एक समान वृद्धि होती है।
- बुआई के 20-30 दिनों में उर्वरक प्रबंधन से जड़ों की अच्छी वृद्धि और कल्लों में सुधार होता है।
- बुआई के 50-60 दिनों में उर्वरक प्रबंधन करने से बालियां अच्छे से निकलती है एवं बालियों के दानों में दूध अच्छे से भरता है साथ ही दानों का निर्माण भी बहुत अच्छा होता है।
ककड़ी की फसल में होता है जिंक घुलनशील बैक्टीरिया का ख़ास महत्व
- ज़िंक घोलक जीवाणु मृदा में ऐसे जैविक अम्ल का निर्माण करता है जो अघुलनशील ज़िंक को घुलनशील अवस्था में बदलने में मदत करते हैं।
- ये घुलनशील ज़िंक बहुत ही आसानी से पौधों को उपलब्ध हो जाते हैं जिसकी वजह से पौधों को अनेक रोगों से बचाया जा सकता है। इनके उपयोग से उपज बढ़ती है साथ ही मृदा की स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।
- जिंक पौधों में विभिन्न धात्विक एंजाइम में उत्प्रेरक के रूप में एवं उपापचय की क्रियाओं के लिए आवश्यक होता है।
- पौधे के वृद्धि एवं विकास में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ग्रामोफोन ताबा- जी एवं SKB ZnSB के नाम से यह उपलब्ध कराता है।
तरबूज की फसल में बुआई के समय रूट गाँठ निमेटोड का ऐसे करें नियंत्रण
- रूट गांठ निमेटोड की मादा जड़ के अंदर या जड़ के ऊपर अंडे देती है।
- इन अण्डों से निकले नवजात जड़ की ओर आ जाते हैं और जड़ की कोशिकाओं को खा कर जड़ों में गांठ का निर्माण करते हैं।
- सूत्रकृमि से ग्रसित पौधों की वृद्धि रुक जाती है एवं पौधा छोटा ही रहता है।
- पत्तियों का रंग हल्का पीला हो जाता है।
- अधिक संक्रमण होने पर पौधा सूख कर मर जाता है।
- इसके नियंत्रण के लिए ग्रीष्म ऋतु में भूमि की गहरी जुताई करें।
- नीम की खली का 80-100 किलो प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें।
- पेसिलोमायसीस लिनेसियस 1% डब्लू पी की 2-4 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से अच्छे से सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर खेत की तैयारी के समय उपयोग कर के भी रूट गाँठ निमेटोड का प्रभावी नियंत्रण किया जाता है।
फास्फोरस घोलक जीवाणु का तरबूज की फसल में होता है काफी महत्व
- ये जीवाणु फास्फोरस के साथ साथ Mn, Mg, Fe, Mo, B, Zn और Cu जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों को भी पौधे को उपलब्ध करवाने में सहायक होते हैं।
- ये तेजी से जड़ों का विकास करने में सहायक होते हैं जिससे पानी और पोषक तत्व आसानी से पौधों को प्राप्त होता है।
- पीएसबी कुछ खास जैविक अम्ल बनाते हैं जैसे मैलिक, सक्सेनिक, फ्यूमरिक, साइट्रिक, टार्टरिक और एसिटिक एसिड। ये अम्ल फॉस्फोरस की उपलब्धता बढ़ाते हैं।
- रोगों और सूखे के प्रति प्रतिरोध क्षमता को भी ये बढ़ने का काम करते हैं।
- इसका उपयोग करने से 25-30% फॉस्फेटिक उर्वरक की आवश्यकता कम होती।
आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग का नियंत्रण
- इस रोग के कारण आलू के पौधों की पत्तियों पर अनियमित आकार के धब्बे बन जाते हैं।
- यह पत्तियों के शीघ्र गिरने का कारण बनते है और इन धब्बों के कारण पत्तियों पर भूरे रंग की परत बन जाती है जो कि पौधे के भोजन निर्माण की प्रक्रिया को बाधित कर देती है।
- प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया बाधित होने के कारण पौधे भोजन का निर्माण नहीं कर पाते हैं जिसके कारण पौधे का विकास भी सही से नहीं हो पाता है एवं पौधा समय से पूर्व सूख जाता है।
रासायनिक उपचार:
एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC@ 300 मिली/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ या कीटाजिन 48% EC@ 300 मिली/एकड़ या मेटालैक्सिल 4% + मैनकोज़ेब 64% WP@ 600 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
जैविक उपचार:
स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
