धान में लीफ ब्लास्ट रोग की पहचान कर जल्द अपनाएं बचाव के उपाय

Identify leaf blast disease in paddy and adopt preventive measures soon
  • लीफ ब्लास्ट रोग धान की फसल को किसी भी अवस्था में संक्रमित कर सकता हैं।

  • संक्रमण की गंभीर अवस्था में यह रोग पत्ती के सतही भाग को कम कर देता हैं जिससे दाने कम भरते हैं परिणामस्वरूप उपज कम होती हैं।

  • इसके शुरूआती लक्षणों के रूप में सफेद से धूसर हरे रंग के धब्बे पत्तियों पर नजर आते हैं जिसके किनारे गहरे हरे रंग के होते हैं।

  • पुराने धब्बे अण्डाकार या धुरी के आकार के होते हैं जिसका केंद्र सफ़ेद से धूसर रंग का तथा लाल से भूरे रंग की परिगलित किनारे होते हैं।

नियंत्रण के उपाय

  • बीजों को 2.5 ग्राम/किग्रा करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैन्कोजेब 63% WP) से उपचारित करें।

  • जून-जुलाई के दौरान ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई के बाद संक्रमित पौधों के मलबे को निकालकर जला दें।

  • नाइट्रोजन और फॉस्फेटिक उर्वरकों की संतुलित खुराक के साथ पोटाश की बढ़ी हुई खुराक डालें।

  • 100 टन/हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद या अन्य जैविक खाद की भारी मात्रा डालें।

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धान में शीथ ब्लाइट पहुंचाएगा भारी नुकसान, जल्द करें रोकथाम

Sheath Blight will cause heavy loss in paddy
  • शीथ ब्लाइट एक फफूंद जनित रोग है, और इस रोग का कारक राइजोक्टोनिया सोलेनाई है। अधिक पैदावार देने वाली एवं अधिक उर्वरक उपभोग करने वाली प्रजातियों के विकास से यह रोग धान के रोगों में अपना प्रमुख स्थान रखता है। इसका इतना असर है क‍ि यह उपज में 50 प्रतिशत तक नुकसान कर सकता है।

  • इस रोग का संक्रमण नर्सरी से ही दिखना शुरू हो जाता है, जिससे पौधे नीचे से सड़ने लगते हैं। मुख्य खेत में ये लक्षण कल्ले बनने की अंतिम अवस्था में प्रकट होते हैं। लीफ शीथ पर जल सतह के ऊपर से धब्बे बनने शुरू होते हैं। इन धब्बों की आकृति अनियमित तथा किनारा गहरा भूरा व बीच का भाग हल्के रंग का होता है।

  • इससे पत्तियों पर घेरेदार धब्बे बनते हैं और कई छोटे-छोटे धब्बे मिलकर बड़े धब्बे बनाते हैं। इसके कारण शीथ, तना, ध्वजा पत्ती पूर्ण रूप से ग्रसित हो जाती है और पौधे मर जाते हैं। खेतों में यह रोग अगस्त एवं सितंबर में अधिक तीव्र हो जाता है। संक्रमित पौधों में बाली कम निकलती है तथा दाने भी नहीं बनते हैं।

  • इस रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखते ही नोवाकोन (हैक्साकोनाजोल 5% EC) 400 ml या शीथमार (वैलिडामाइसिन 3% L) 600 – 800 ml प्रति एकड़ की दर से छिडक़ाव करें।

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सोयाबीन के स्वस्थ बढ़वार एवं फूल-फल विकास के लिए जरूरी छिड़काव

Necessary spraying for proper growth and flowering in soybean

सोयाबीन खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन, दलहन फसलों में से एक है। सोयाबीन की उच्च पैदावार के लिए उचित पोषण प्रबंधन बहुत ही आवश्यक है।

सोयाबीन में उचित वृद्धि और विकास के लिए निम्न दो उत्पादों का उपयोग बेहद जरूरी होता है। 

ट्राई कोट मैक्स – यह एक पौध वृद्धि प्रोत्साहक है। इसमें जैविक कार्बन 3% (ह्यूमिक, फुलविक, कार्बनिक पोषक तत्वों का मिश्रण) होता है। यह पौधों की जड़ों एवं तने के अच्छे विकास में मददगार साबित होता है और साथ ही साथ पौधों के प्रजनन प्रक्रिया को भी बढ़ाता है।  

उपयोग विधि – 4 किलो ग्राम ट्राई कोट मैक्स प्रति एकड़ के हिसाब से उस समय दिए जाने वाले पोषक तत्व के साथ मिलाकर भुरकाव करें।

न्यूट्रीफूल मैक्स: यह भी ख़ास पौध वृद्धि प्रवर्तक है। इसमें फुलविक एसिड अर्क – 20% + कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटाश सूक्ष्म मात्रा में 5% + अमीनो एसिड आदि तत्व पाए जाते हैं। यह फूलों की संख्या बढ़ाता है और उन्हें गिरने से बचाता है। फलों की गुणवत्ता को बढ़ाता है, साथ ही पोषक तत्वों की उपलब्धता को भी बढ़ाता है। सूखे, पाले आदि के खिलाफ रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ावा देता है।

उपयोग विधि: 250 मिली न्यूट्रीफूल मैक्स प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें

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सोयाबीन की फसल को गेरुआ रोग के प्रकोप से जल्द दें सुरक्षा

Give protection to soybean crop from the outbreak of Rust disease

यह रोग केकोप्सोरा पैकीराईजी नामक फफूंद के द्वारा होता है। लगातार बारिश होने से तापमान जब 18 से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच रहे या फिर अपेक्षित आद्रता 80 प्रतिशत के आसपास रहे या फिर पत्तियां गीली बनी रहे तो ऐसी दशा में गेरुआ रोग की संभावना बढ़ जाती है।

इस रोग से ग्रसित पौधों की पत्तियों पर निचली सतह में सुई की नोक के आकार के मटमैले भूरे व लाल धब्बे दिखाई देते हैं। कुछ ही समय में यह धब्बे समूह में बढ़ने लगते हैं व पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं। इनसे कत्थई रंग का पाउडर निकलता है जो स्वस्थ पत्तियों पर गिरकर रोग की तीव्रता को बढ़ाता है।

इस रोग की प्रारम्भिक अवस्था पर नोवाकोन (हैक्साकोनाजोल 5% EC) 300 ml या गैलीलियो (पिकोक्सीस्ट्रोबिन 22.52% w/w SC) 160 मिली/एकड़ 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

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धान की फसल के तेज ग्रोथ एवं कल्लो के अधिक फुटाव हेतु जरूरी पोषक तत्व प्रबंधन

Tri Dissolve Paddy Maxx

किसान भाइयों, धान की अधिक पैदावार लेने के लिये पोषक तत्व प्रबंधन एक महत्वपूर्ण उपाय हैं। जिसमें रासायनिक उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व, जैविक उर्वरक, हरी-नीली शैवाल, गोबर की खाद एवं हरी खाद आदि का समुचित उपयोग किया जाता हैं। 

धान की बुवाई या रोपाई के समय दिए गए नाईट्रोजन की शेष 1/4 मात्रा कल्ले निकलने (कंसे फूटने) की अवस्था में दे। अगर रोपाई के समय जिंक सल्फेट का उपयोग नहीं किया गया तो जिंक सल्फेट 10 किग्रा प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।

वहीं गंधक की कमी वाले क्षेत्रों में गंधक युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फास्फेट या सल्फर आदि का प्रयोग करें। इसके अलावा फसल की अच्छी गुणवत्ता के लिए ट्रॉय डिज़ाल्व पैडी मैक्स का उपयोग जरूर करें। 

ट्राई डिज़ाल्व पैडी मैक्स:- यह एक जैव उत्तेजक पोषक तत्व है। जिसमें जैविक कार्बन, पोटेशियम, कैल्शियम, अन्य प्राकृतिक स्थिरक, आदि तत्व पाए जाते हैं। यह स्वस्थ और वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा देता है, प्रारंभिक अवस्था में जड़ का विकास करता है। इसके साथ ही विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ाता है। 

उपयोग की विधि:-   ट्राई डिज़ाल्व पैडी मैक्स का उपयोग 400 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से उस समय दिए जाने वाले पोषक तत्व के साथ मिलकर भुरकाव करें एवं 200 ग्राम ट्राई डिसॉल्व पैडी मैक्स प्रति एकड़, 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

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सोयाबीन में बढ़ेगा पीला मोजेक रोग, जानें नियंत्रण के उपाय

Yellow mosaic disease will increase in soybean

इस रोग की शुरूआती अवस्था में पतियों पर गहरे पीले रंग के धब्बे नजर आने शुरू होते हैं। ये धब्बे धीर धीरे फैलकर आपस में मिल जाते हैं। जिससे पूरी पत्ती हीं पीली पड़ जाती हैं। पत्तियों के पीले पड़ने के कारण अनेक जैविक क्रियांए प्रतिकुल रूप से प्रभावित होती हैं तथा पौधो में आवश्यक भोज्य पदार्थ का संश्लेषण नही हो पाता है। इस वजह से पौधों पर फूल कम आते हैं एवं फलियां लगती भी हैं तो उनमें दानों का विकास नही हो पाता हैं। सफेद मक्खी इस वायरस (विषाणु) के वाहक होते हैं और ये रोग को पूरे फसल में फैलाते भी हैं।

पीला मोजेक रोग पर नियंत्रण के उपाय

इस रोग के नियंत्रण के लिए प्रारंभिक अवस्था में ही अपने खेत में जगह-जगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप लगाएं जिससे इसका संक्रमण फैलाने वाली सफेद मक्खी का नियंत्रण होने में सहायता मिले। इसके रोकथाम के लिए फसल पर पीला मोजेक रोग के लक्षण देखते ही ग्रसित पौधों को अपने खेत से बाहर निकाल दें। ऐसे खेत में सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए अनुशंसित पूर्व मिश्रित सम्पर्क रसायन जैसे स्पेर्टो (एसिटामिप्रिड 25% + बिफेन्थ्रिन 25% WG) 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिडक़ाव करें।

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सोयाबीन की फसल में तना मक्खी प्रकोप का ऐसे करें निदान

This is how to diagnose stem fly infestation in soybean crop
  • इस कीट की मैगट सफेद रंग के तने के अंदर रहती हैं। व्यस्क कीट चमकीले काले रंग का दो मिलीमीटर आकार के होते हैं।

  • इस कीट की मादा पत्तियों पर पीले रंग के अंडे देती हैं जिनसे मैगट निकलकर पत्तियों की शिराओं में छेद कर सुरंग बनाती हुई तने में प्रवेश करती है तथा तने को खोखला कर देती हैं।

  • इसके कारण पौधे की पत्तियां शुरूआती अवस्था में पीली दिखाई देने लगती हैं और बाद में पूरा पौधा पीला पड़ जाता है।

  • तना मक्खी से बचाव के लिए नोवालक्सम (लेम्बडासाइलोथ्रिन 9.5% + थायोमिथाक्सॉम 12.9 प्रतिशत ZC) 50 मिली प्रति एकड़ या कवर (क्लोरएन्ट्रानिलीप्रोल 18.5% SC) 60 मिली प्रति एकड़ का उपयोग करें।

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कपास में सफेद मक्खी प्रकोप को पहचानें और करें नियंत्रण

Identify and control whitefly infestation in cotton
  • सफ़ेद मक्खी अपनी शिशु व वयस्क अवस्था में कपास के पौधे का रस चूसकर, उसका विकास रोक देते हैं। यह कीट शिशु एवं वयस्क दोनों ही अवस्था में, कपास की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।

  • इस कीट द्वारा उत्सर्जित “मधुरस”, काली कवक के विकास में सहायक होता है। इसके अत्यधिक प्रकोप की दशा में, कपास की सम्पूर्ण फसल काली पड़ जाती है तथा पत्तियां जली-सी प्रतीत होती है।

  • कई बार फसल के पूर्ण विकसित हो जाने पर भी, इस कीट का प्रकोप हो जाने से, कपास की फसल की पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं। यह कीट वायरस जनित पर्ण-कुंचन (पत्ती मुड़ाव रोग/वायरस ) बीमारी के फैलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • रासायनिक प्रबंधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामिड 50% WG @ 60 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक प्रबधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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कपास की फसल में हरा तेला की समस्या एवं नियंत्रण के उपाय

Jassid problem and control measures in cotton crop

क्षति के लक्षण

इस कीट की शिशु और प्रौढ़ दोनों ही फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। यह कीट पौधों के तनों, पत्तियों और फूलों से रस चूसकर पौधों की वृद्धि को रोकते हैं। जिससे पौधे कमजोर, छोटे और बौने रह जाते हैं। इस कारण उपज कम हो जाती है और इस कीट द्वारा रस चूसने से पत्तियां सिकुड़ जाती हैं। इनके अधिक प्रकोप होने पर पौधा मर जाता है।

नियंत्रण के उपाय:-

  • किसान भाई कीट प्रकोप की जानकारी के लिए, पीले चिपचिपे ट्रैप (येलो स्टिकी ट्रैप) @ 8-10 प्रति एकड़, के हिसाब से खेत में स्थापित करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए, ब्रिगेड बी (बवेरिया बेसियाना 1.15% डब्ल्यूबी) @ 1 किग्रा/एकड़ 150 -200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए, मीडिया (इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल) @ 50 मिली या थियामिथोक्साम 25% डब्ल्यू जी @ 40 ग्राम, या लांसर गोल्ड (ऐसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी) @ 400 ग्राम + (सिलिकोमैक्स) @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन का क्या होता है महत्व?

Importance of Organic Carbon for soil
  • ऑर्गेनिक कार्बन मिट्टी में ह्यूमस के निर्माण में सहायता करता है। इससे मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है और उर्वरता को बनाए रखता है।

  • मिट्टी में इसकी अधिकता होने से मिट्टी की भौतिक और रासायनिक गुणवत्ता बढ़ जाती है। मिट्टी की भौतिक गुणवत्ता जैसे मिट्टी की संरचना, जल धारण क्षमता, आदि को कार्बनिक कार्बन द्वारा बढ़ाया जाता है।

  • इसके अतिरिक्त पोषक तत्वों की उपलब्धता, स्थानांतरण एवं रूपांतरण और सूक्ष्मजीवी पदार्थों व जीवों की वृद्धि के लिए भी जैविक कार्बन बहुत उपयोगी होता है।

  • यह पोषक तत्वों की लिंचिंग (भूमि में नीचे जाना) को भी रोकता है।

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