ऐसे करें खेत से निकलने वाले कचरे का उचित प्रबंधन

How to properly manage farm waste
  • किसान भाई खेतों में कई प्रकार की फसलें लगाते हैं और जितने प्रकार की फसलें होती हैं उतनी ही प्रकार के फसल अवशेष यानी कचरा भी खेत से निकलता है।
  • खेत से निकलने वाले इस कचरे का उचित तरीके से प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
  • अतः खेत में बिखरे कचरे को एक स्थान पर इकट्ठा करके रखना चाहिए।
  • खरपतवार का कचरा जिसमें खरपतवार के बीज़ होते हैं उन्हें खेत से दूर ले जाकर रखना चाहिए।
  • फसलों के जो अवशेष होते है उनको खेत के एक कोने में इकठ्ठा करके रखना चाहिए।
  • जानवरों के खाने लायक कचरे को अलग करके रखें।
  • आजकल बाजार में बहुत से ऐसे उत्पाद उपलब्ध हैं जिनका उपयोग करके इस कचरे को सड़ा कर खाद में बदल कर उपयोग कर सकते हैं।
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समन्वित पौध प्रबंधन करने से मिलते हैं कई फायदे

What is Integrated Plant management
  • समन्वित पौध प्रबंधन से आशय यह है की पौधो को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचाए बिना उनका सही तरीके से प्रबंधन करना।
  • इसके अंतर्गत इस बात का ध्यान रखा जाता है की किसी भी रसायन के उपयोग से फसल के लिए लाभकारी कीटों को कोई नुकसान नहीं हो।
  • कीट प्रतिरोधी एवं रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करके बुआई करें।
  • फसल चक्र अपनाकर फसल की बुआई करें। एक ही कुल की फसलों की बुआई एक ही खेत में ना करें।
  • खेत की अच्छे से जुताई करके एवं बीज़ उपचार तथा मिट्टी उपचार करके ही बुआई करें।
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डेरी फॉर्मिंग में साइलेज़ की मदद से दुग्ध उत्पादन को बढ़ाएं

Increase milk production with the help of silage in dairy farming
  • अच्छी गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन करने के लिए दुग्ध उत्पादकों को पूरे वर्ष अच्छी गुणवत्ता वाले हरे चारे की आवश्यकता होती है।
  • यदि दुग्ध उत्पादक हरे चारे के लिए मक्का की खेती करते हैं, तो यह हरा चारा जानवरों को केवल 10 से 30 दिनों तक मिलता है।
  • परन्तु यदि दुग्ध उत्पादक साइलेज़ का उपयोग करते हैं तो पूरे वर्ष जानवरों को हरा चारा मिलता रहता है।
  • साइलेज का उपयोग करने से किसान के लिए श्रम लागत कम हो जाती है।
  • अच्छा साइलेज़ बनाने के लिए मक्का, जई, बाजरा, लूसर्न जैसी फसलों का उपयोग किया जाता है जिन्हें साइलेज बनाने के लिए एकदम सही माना जाता है।
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जानिए क्या है मेवाती गाय की पहचान

Know what is the identity of Mewati cow
  • भारत में गाय की कई प्रकार की नस्लें पाई जाती हैं।
  • गाय की एक नस्ल मेवाती (Mewati Cow) है, जो मेवात क्षेत्र में पाई जाती है।
  • यह मेवाती गाय राजस्थान के भरतपुर जिले, पश्चिम उत्तर प्रदेश के मथुरा और हरियाणा के फ़रीदाबाद और गुरुग्राम जिलों पाई जाती है।
  • मेवाती नस्ल के पशुओं की गर्दन सामान्यतः सफेद होती है।
  • इनका चेहरा लंबा व पतला होता है, आंखे उभरी हुई और काले रंग की होती हैं।
  • इनके ऊपरी होंठ मोटे व लटके हुए होते हैं। इनके नाक का ऊपरी भाग सिकुड़ा हुआ प्रतीत होता है।
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सोलर जल पंप से होगा किसानों को लाभ, कृषि लागत में आएगी कमी

Solar water pump will benefit farmers, agricultural costs will come down
  • डीजल तथा बिजली की बढ़ती कीमतों के कारण किसानों को इन माध्यमों से जल पम्प के इस्तेमाल में खर्च बहुत ज्यादा हो जाता है। इसीलिए किसान इनके विकल्प के रूप में सौर ऊर्जा संचालित पंप का उपयोग कर सकते हैं। 
  • सौर जल पंप प्रणाली में बिजली या तो एक या फिर कई फोटो वोल्टेइक (पीवी) पैनलों के माध्यम से मिलती है।
  • सौर ऊर्जा से चलने वाली इस पंपिंग प्रणाली में एक सौर पैनल होता है। यह सौर पैनल एक इलेक्ट्रिक मोटर को ऊर्जा प्रदान करती है। यही मोटर पंप को शक्ति देता है।
  • इन पंपों के रखरखाव की लागत भी काफी कम होती है और इसका इस्तेमाल भी लंबे समय तक किया जा सकता है।
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गेहूँ की फसल में नुकसान पहुंचाने वाले कीट जड़ माहू का नियंत्रण

How to control the root aphid in wheat crop
  • वर्तमान समय में मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण गेहूँ की फसल में जड़ माहू कीट का काफी प्रकोप हो रहा है।
  • जड़ माहू कीट कीट हल्के पीले रंग से गहरे पीले रंग का होता है। गेहूँ के पौधों को जड़ से उखाड़ कर देखने पर यह कीट जड़ों के ऊपर तने वाले भाग में आसानी से दिखाई देता है।
  • यह कीट गेहूँ के पौधों की जड़ों के ऊपर तने वाले भाग से रस चूसता है, जिसके कारण पौधा पीला पड़ने लगता है और धीरे-धीरे सूखने लगता है। शुरुआत में इसके प्रकोप के कारण खेतों में जगह-जगह पीले पड़े हुए पौधें दिखाई देते हैं।
  • अभी कुछ जगहों पर गेहूँ की बुआई चल रही है या होने वाली है इस समय गेहूँ की बुआई के पहले खेत के मिट्टी का उपचार करना बहुत आवश्यक है। अतः थियामेंथोक्साम 25% WG@ 200-250 ग्राम/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें। साथ ही जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • गेहूँ के बीजों का बीज़ उपचार करके ही बुआई करें। इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड 48% FS @ 1.0 मिली/किलो बीज़ या थियामेंथोक्साम 30% FS @ 4 मिली/किलो बीज़ को बीज़ उपचार रूप उपयोग करें।
  • जिन जगहों पर गेहूँ की बुआई हो चुकी है एवं जड़ माहू का बहुत अधिक प्रकोप दिखाई दे रहा है वैसे जगहों पर इसके नियंत्रण के लिए थियामेंथोक्साम 25% WG@ 100 ग्राम/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें। साथ ही जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • इस प्रकार समय समय पर नियंत्रण के उपाय करके जड़ माहू का नियंत्रण किया जा सकता है।
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इन उपायों से आलू की फसल में बढ़ाएं कंद का आकार

What prevention do for tuber formation in potato
  • आलू की फसल में बुआई के 40 दिनों बाद कंद का आकार बढ़ाने के लिए उपाय किये जाने चाहिए।
  • कंद बढ़ाने के लिए सबसे पहला छिड़काव 00:52:34 @ 1 किलो/एकड़ की दर से किया जाना चाहिए।
  • इसके बाद दूसरा छिड़काव आलू निकालने के 10-15 दिन पहले 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ एवं इसके साथ पिक्लोबूट्राज़ोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ की दर से करना चाहिए।
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चने की फसल में 55-60 दिनों में करें ये छिड़काव, मिलेंगे कई फायदे

Benefits of spraying gram crop in 55 - 60 days
  • चने की फसल में 55 -60 दिनों की अवस्था में फल लगने लगते हैं और इस अवस्था में कीट एवं कवक रोगों का प्रकोप अधिक होता है।
  • चने की फसलों में भारी फल उत्पादन बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए समय पर पोषण प्रबंधन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है।
  • कवक जनित रोगों के लिए: थायोफिनेट मिथाइल 70 WP@ 300 ग्राम/एकड़ या प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC @ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • कीट प्रबंधन के लिए: इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC@60 मिली/एकड़ या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC@ 600 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • पोषण प्रबंधन के लिए: 00:00: 50@ 1 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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गेहूँ में बालियों की अच्छी वृद्धि हेतु जरूर अपनाएं ये उपाय

What measure should be done at the stage of spikes development of wheat
  • गेहूँ की फसल में 60 से 90 दिनों की अवस्था बाली निकलने एवं बालियों में दाना भरने की अवस्था होती है।
  • इस अवस्था में गेहूँ की फसल में फसल प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है, इसके लिए निम्र उपाय करना बहुत आवश्यक होता है।
  • होमब्रेसीनोलाइड 0.04% @ 100 मिली/एकड़ + 00:52:34 @ 1 किलो/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • किसान भाई 00:52:34 के बदले मजेरसोल @ 5 किलो/एकड़ मिट्टी उपचार के रूप में एवं 800 ग्राम/एकड़ छिड़काव के रूप में उपयोग कर सकते हैं।
  • बालियाँ निकले की अवस्था में गेहूँ की फसल में कवक जनित रोगों का प्रकोप अधिक होने की सम्भावना होती है। इसके लिए निम्र उत्पादों का उपयोग जरूरी होता है।
  • कवक जनित रोगों से रक्षा के लिए हेक्साकोनाज़ोल 5% SC 400 मिली/एकड़ दर से छिड़काव करें।
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बैगन की फसल में पत्ते पीले होने का कारण एवं नियंत्रण के उपाय

What causes brinjal leaves to become yellow
  • मौसम में बदलाव एवं कीट तथा कवक के प्रकोप के कारण बैगन के पत्ते पीले पड़ने लगते हैं।
  • इस अवस्था में बैगन के पत्ते झुलसे हुए दिखाई देते हैं।
  • कवक के प्रकोप के कारण बैगन की पत्तियों के किनारों से पीलेपन की समस्या शुरू होती है।
  • कीट पत्तियों के हरे भाग से रस चूस जाते हैं जिसके कारण पत्तियों में पीलापन दिखाई देता है।
  • पोषक तत्व की कमी के कारण भी पत्तियां पीली नजर आने लगती है।
  • इसके निवारण के लिए कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़
    पोषक तत्वों की कमी के कारण होने पर सीवीड @ 400 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
  • कीटों के प्रकोप के कारण होने वाले पीलेपन के लिए प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG@ 80 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
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