सामग्री पर जाएं
- लहसुन के पौधे में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया को बढ़ाने में बड़े पत्ते महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और लहसुन की गाँठ को बढ़ाने के लिए आवश्यक पदार्थों का भंडार करने लगते हैं।
- इस स्तर पर पौधों में पोषण प्रबंधन कर के गाँठ को बढ़ाने के साथ साथ फसल के विकास को भी बढ़ाया जा सकता है।
- कैल्शियम नाइट्रेट @ 10 किलो/एकड़ + पोटाश @ 20 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में बुआई के 60-70 दिनों में उपयोग करें।
- बुआई के 120-140 दिनों में छिड़काव के रूप में पैक्लोब्यूट्राजोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
Share
- मौसम में हो रहे परिवर्तनों के कारण लहसुन की फसल में बहुत अधिक समस्या आ रही है।
- इसके कारण लहसुन के पौधों की वृद्धि एवं विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ रहा है।
- लहसुन का पीलापन कवक जनित, कीट जनित एवं पोषण संबधी समस्या के कारण भी हो सकता है।
- यदि यह कवक जनित रोगों के कारण होता है तो कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/W@ 300 ग्राम/एकड़ उपयोग करें।
- पोषक तत्वों की कमी के कारण पीलापन होने पर सीवीड@ 400 मिली/एकड़ या ह्यूमिक एसिड 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- कीटों के प्रकोप के कारण पीलापन होने पर प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC@ 400 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG@ 80 ग्राम/एकड़ की दर उपयोग करें।
Share
- आलू की उपज बहुत जल्दी ख़राब हो जाती है अतः इसके भण्डारण की उचित व्यवस्था होना बहुत आवश्यक होता है।
- पर्वतीय क्षेत्रों में कम तापमान होने के कारण वंहा भण्डारण कि कोई विशेष समस्या नहीं आती है।
- भण्डारण की सबसे ज्यादा समस्या मैदानी भागों एवं ऐसे जगहों पर होती है जहाँ तापमान अधिक होता है।
- आलू के भण्डारण के पूर्व इस बात का विशेष ध्यान रखें की आलू का कंद पूरी तरह से परिपक्व हो।
- मैदानी क्षेत्रो में आलू को ख़राब होने से बचाने के लिए आलू को शीत गृहों में रखने कि आवश्यकता होती है।
- इन शीत भंडार गृहों में तापमान 1 से 2.5 डिग्री सेल्सियस और आपेक्षिक आद्रता 90-95% होना चाहिए।
- भण्डारण के बाद समय समय पर आलू की जांच करते रहना चाहिए जिससे की जो आलू खराब हो गया है उसको अच्छे आलू से अलग कर लिया जा सके।
Share
- गेहूँ की फसल में होने वाला यह रोग एक जीवाणु एवं कवक जनित रोग है जो फसल को काफी नुकसान पहुँचाता है।
- बैक्टीरियल विल्ट संक्रमण के लक्षण संक्रमित पौधों के सभी भागों पर देखे जा सकते हैं।
- इसके कारण पत्तियां पीली हो जाती हैं। आगे चलकर पूरा पौधा सूख जाता है और मर जाता है।
- इसके कारण गेहूँ की फसल गोल घेरे में सूखना शुरू हो जाती है।
- इसके नियंत्रण हेतु कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ छिड़काव के रूप में उपयोग करें।
Share
- तरबूज की फसल में गमी स्टेम ब्लाइट नामक घातक रोग के लक्षण पहले पत्तियों पर और फिर तने पर गहरे भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं।
- इसके घाव पत्ती की मार्जिन पर पहले विकसित होते हैं, लेकिन अंततः पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं।
- तने पर गमोसिस ब्लाइट के लक्षण घाव के रूप में दिखायी देते हैं। ये आकार में गोलाकार होते हैं और भूरे रंग के होते हैं।
- गमोसिस ब्लाइट या गमी स्टेम ब्लाइट का एक मुख्य लक्षण यह है की इस रोग से ग्रसित तने से गोंद जैसा चिपचिपा प्रदार्थ निकलता है।
- कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या क्लोरोथालोनिल 75% WP @ 300 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 25.9% EC @ 200 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ के रूप में प्रति माह उपयोग करें।
Share
- रासायनिक उपचार: बुआई पूर्व तरबूज़ के बीजों को कवकनाशी कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% DS @ 2.5 ग्राम/किलो बीज से बीज़ उपचार करें।
- जैविक उपचार: ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम + PSB बैक्टेरिया @ 2 ग्राम/किलो बीज या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
- बीज उपचार करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें की बीज उपचार के बाद उपचारित बीजों को उसी दिन बुआई के लिए उपयोग कर लिया जाए। उपचारित बीजों को संगृहीत करके ना रखें।
Share
- यह इल्ली गेहूँ की फसल की पत्तियों पर आक्रमण करती है और पत्तियों के हरे हिस्से को खरोंच कर नष्ट कर देती है।
- इस कीट का लार्वा कोमल पत्तियों पर फ़ीड करता है।
- जिन पत्तियों पर यह कीड़ा हमला करता है, उन पर एक जालीनुमा संरचना बन जाती है।
- प्रोफेनोफोस 40% + सायपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिलीग्राम/एकड़
या इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG @100 ग्राम/एकड़
या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC@ 60 मिली/एकड़
या नोवालूरान 5.25% + इमामेक्टिन बेंजोएट 0.9% SC @ 600 मिली/एकड़ का उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
Share
- इस रोग के शुरुआती लक्षणों में पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे नजर आते हैं।
- बाद में यह लक्षण पत्तियों के अंदर एवं तने कि ओर बढ़ने लगते हैं।
- यही लक्षण ब्लैक रॉट को उकठा रोग से भिन्न करता है।
- जैसे-जैसे रोग बढ़ता है गोभी के पत्ते भूरे होते चले जाते हैं।
- इस बीमारी के प्रभावी नियंत्रण के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन @ 20 ग्राम/एकड़ वेलीडामाइसीन 3% SI @ 300 मिली एकड़
या कॉपर हाइड्राक्साइड 77% WP 750 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
या कासुगामाईसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP) 400 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
Share
- इसके प्रकोप के शुरूआती समय में टमाटर के पौधे की नई पत्तियों पर बैगनी-भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और धीरे-धीरे यह धब्बे छल्लों में बदल जाते हैं।
- यह धब्बे आपस में मिलकर बड़े धब्बों में बदल जाते हैं एवं पत्तियो के ऊतकों को नष्ट करने लगते है।
- इसके अधिक संक्रमण की स्थिति में टमाटर के फल अधपके रह जाते हैं।
- अधपके फलों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनने लगते हैं। यह धब्बे धीरे-धीरे बड़े आकर के धब्बों में परिवर्तित हो जाते हैं।
- इसके निवारण के लिए फिप्रोनिल 5% SC@ 400 मिली/एकड़ या लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 4.9% CS@ 200 मिली/एकड़ या स्पिनोसेड 45% SC@ 75 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
Share
- यह एक गंभीर बीमारी है जो फाइटोफथोरा नमक कवक के कारण फैलता है और इससे टमाटर की फसल गंभीर रूप से प्रभावित हो जाती है।
- यह रोग 5 दिनों के अंदर टमाटर के पौधों की हरी पत्तियों को नष्ट कर देता है।
- इसमें पत्तियों के किनारों पर सबसे पहले धब्बे बनना प्रारंभ होते हैं और धीरे-धीरे पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं। इसके प्रभाव से शाखाएं एवं तने भी ग्रसित हो जाते हैं। पत्तियों की निचली सतहों पर सफेद रंग के गोले धब्बे बन जाते हैं, जो बाद में भूरे व काले हो जाते हैं।
- इससे बचाव हेतु क्लोरोथलोनील 75% WP @ 400 ग्राम/एकड़ या मेटालैक्सिल 8% + मैनकोज़ेब 64% WP @ 600 ग्राम/एकड़ या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
Share