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- तरबूज की फसल में बुआई के पहले खेत की जुताई के बाद उर्वरक की आपूर्ति करना बहुत आवश्यक होता है।
- बुआई के पहले उर्वरकों का प्रबंधन करने से तरबूज़ की फसल को अंकुरण के लिए पोषक तत्वों की पूर्ति आसानी से हो जाती है।
- बुआई पूर्व उर्वरक प्रबंधन करने के लिए DAP@ 50 किलो/एकड़ + एसएसपी @ 75 किलो/एकड़ + पोटाश @ 75 किलो/एकड़ + जिंक सल्फ़ेट@ 10 किलो/एकड़ + मैगनेशियम सल्फ़ेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- इसी के साथ किसान चाहे तो तरबूज समृद्धि किट का उपयोग भी मिट्टी उपचार के रूप में कर सकते हैं।
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- खरपतवार हर फसल के लिए एक बहुत बड़ी समस्या होती है।
- खरपतवार को खेत से निकालने के लिए खरपतवार निकलने वाले यंत्र का उपयोग बहुत लाभकारी होता है।
- यह हुक टाइप का एक ऐसा हस्तचालित यंत्र होता है जो फसल की पंक्तियों के बीच खरपतवार को नष्ट करता है।
- इसमें एक रोलर होता है जिसमें लोहे की रॉड द्वारा फिट की गई दो डिस्क लगी होती है। रॉड पर छोटे समचतुर्भुज आकार के हुक जुड़े होते हैं। इस यंत्र का रोलर नरम लोहे से निर्मित होता है।
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- समन्वित कीट प्रबंधन से आशय यह है की कीटों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने से पहले ही कीटों का नियंत्रण करना।
- समन्वित कीट प्रबंधन के अंतर्गत लाभकारी कीटों की पहचान करके उनके सरक्षण के उपाय किये जाते हैं।
- इसके अंतर्गत फसल में कीट लगने के पहले ही उनके नियंत्रण के लिए प्रयास किये जाते हैं एवं उपयोग किये जाने वाले रसायनों को बदल बदल कर उपयोग किया जाता है।
- जैविक उत्पादों जैसे फेरामोन ट्रैप लगाकर समन्वित कीट प्रबंधन किया जा सकता है।
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- किसान भाई खेतों में कई प्रकार की फसलें लगाते हैं और जितने प्रकार की फसलें होती हैं उतनी ही प्रकार के फसल अवशेष यानी कचरा भी खेत से निकलता है।
- खेत से निकलने वाले इस कचरे का उचित तरीके से प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।
- अतः खेत में बिखरे कचरे को एक स्थान पर इकट्ठा करके रखना चाहिए।
- खरपतवार का कचरा जिसमें खरपतवार के बीज़ होते हैं उन्हें खेत से दूर ले जाकर रखना चाहिए।
- फसलों के जो अवशेष होते है उनको खेत के एक कोने में इकठ्ठा करके रखना चाहिए।
- जानवरों के खाने लायक कचरे को अलग करके रखें।
- आजकल बाजार में बहुत से ऐसे उत्पाद उपलब्ध हैं जिनका उपयोग करके इस कचरे को सड़ा कर खाद में बदल कर उपयोग कर सकते हैं।
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- समन्वित पौध प्रबंधन से आशय यह है की पौधो को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचाए बिना उनका सही तरीके से प्रबंधन करना।
- इसके अंतर्गत इस बात का ध्यान रखा जाता है की किसी भी रसायन के उपयोग से फसल के लिए लाभकारी कीटों को कोई नुकसान नहीं हो।
- कीट प्रतिरोधी एवं रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करके बुआई करें।
- फसल चक्र अपनाकर फसल की बुआई करें। एक ही कुल की फसलों की बुआई एक ही खेत में ना करें।
- खेत की अच्छे से जुताई करके एवं बीज़ उपचार तथा मिट्टी उपचार करके ही बुआई करें।
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- अच्छी गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन करने के लिए दुग्ध उत्पादकों को पूरे वर्ष अच्छी गुणवत्ता वाले हरे चारे की आवश्यकता होती है।
- यदि दुग्ध उत्पादक हरे चारे के लिए मक्का की खेती करते हैं, तो यह हरा चारा जानवरों को केवल 10 से 30 दिनों तक मिलता है।
- परन्तु यदि दुग्ध उत्पादक साइलेज़ का उपयोग करते हैं तो पूरे वर्ष जानवरों को हरा चारा मिलता रहता है।
- साइलेज का उपयोग करने से किसान के लिए श्रम लागत कम हो जाती है।
- अच्छा साइलेज़ बनाने के लिए मक्का, जई, बाजरा, लूसर्न जैसी फसलों का उपयोग किया जाता है जिन्हें साइलेज बनाने के लिए एकदम सही माना जाता है।
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- भारत में गाय की कई प्रकार की नस्लें पाई जाती हैं।
- गाय की एक नस्ल मेवाती (Mewati Cow) है, जो मेवात क्षेत्र में पाई जाती है।
- यह मेवाती गाय राजस्थान के भरतपुर जिले, पश्चिम उत्तर प्रदेश के मथुरा और हरियाणा के फ़रीदाबाद और गुरुग्राम जिलों पाई जाती है।
- मेवाती नस्ल के पशुओं की गर्दन सामान्यतः सफेद होती है।
- इनका चेहरा लंबा व पतला होता है, आंखे उभरी हुई और काले रंग की होती हैं।
- इनके ऊपरी होंठ मोटे व लटके हुए होते हैं। इनके नाक का ऊपरी भाग सिकुड़ा हुआ प्रतीत होता है।
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- डीजल तथा बिजली की बढ़ती कीमतों के कारण किसानों को इन माध्यमों से जल पम्प के इस्तेमाल में खर्च बहुत ज्यादा हो जाता है। इसीलिए किसान इनके विकल्प के रूप में सौर ऊर्जा संचालित पंप का उपयोग कर सकते हैं।
- सौर जल पंप प्रणाली में बिजली या तो एक या फिर कई फोटो वोल्टेइक (पीवी) पैनलों के माध्यम से मिलती है।
- सौर ऊर्जा से चलने वाली इस पंपिंग प्रणाली में एक सौर पैनल होता है। यह सौर पैनल एक इलेक्ट्रिक मोटर को ऊर्जा प्रदान करती है। यही मोटर पंप को शक्ति देता है।
- इन पंपों के रखरखाव की लागत भी काफी कम होती है और इसका इस्तेमाल भी लंबे समय तक किया जा सकता है।
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- वर्तमान समय में मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण गेहूँ की फसल में जड़ माहू कीट का काफी प्रकोप हो रहा है।
- जड़ माहू कीट कीट हल्के पीले रंग से गहरे पीले रंग का होता है। गेहूँ के पौधों को जड़ से उखाड़ कर देखने पर यह कीट जड़ों के ऊपर तने वाले भाग में आसानी से दिखाई देता है।
- यह कीट गेहूँ के पौधों की जड़ों के ऊपर तने वाले भाग से रस चूसता है, जिसके कारण पौधा पीला पड़ने लगता है और धीरे-धीरे सूखने लगता है। शुरुआत में इसके प्रकोप के कारण खेतों में जगह-जगह पीले पड़े हुए पौधें दिखाई देते हैं।
- अभी कुछ जगहों पर गेहूँ की बुआई चल रही है या होने वाली है इस समय गेहूँ की बुआई के पहले खेत के मिट्टी का उपचार करना बहुत आवश्यक है। अतः थियामेंथोक्साम 25% WG@ 200-250 ग्राम/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें। साथ ही जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- गेहूँ के बीजों का बीज़ उपचार करके ही बुआई करें। इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड 48% FS @ 1.0 मिली/किलो बीज़ या थियामेंथोक्साम 30% FS @ 4 मिली/किलो बीज़ को बीज़ उपचार रूप उपयोग करें।
- जिन जगहों पर गेहूँ की बुआई हो चुकी है एवं जड़ माहू का बहुत अधिक प्रकोप दिखाई दे रहा है वैसे जगहों पर इसके नियंत्रण के लिए थियामेंथोक्साम 25% WG@ 100 ग्राम/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें। साथ ही जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- इस प्रकार समय समय पर नियंत्रण के उपाय करके जड़ माहू का नियंत्रण किया जा सकता है।
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- आलू की फसल में बुआई के 40 दिनों बाद कंद का आकार बढ़ाने के लिए उपाय किये जाने चाहिए।
- कंद बढ़ाने के लिए सबसे पहला छिड़काव 00:52:34 @ 1 किलो/एकड़ की दर से किया जाना चाहिए।
- इसके बाद दूसरा छिड़काव आलू निकालने के 10-15 दिन पहले 00:00:50 @ 1 किलो/एकड़ एवं इसके साथ पिक्लोबूट्राज़ोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ की दर से करना चाहिए।
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