- लहुसन की फसल की जड़ों में एक सफ़ेद रंग के कीड़े का प्रकोप देखने को मिलता है।
- इस कीड़े के कारण लहसनु का कंद पूरी तरह सड़ जाता है।
- यह कीड़ा लहसुन के कंद के अंदर जाकर पूरी तरह से कंद को खाकर नुकसान पहुँचाता है।
- इस कीड़े के नियंत्रण के लिए कारबोफुरान 3% GR@ 7.5 किलो/एकड़ या कारटॉप हाइड्रोक्लोराइड 50% SP@ 7.5 किलो/एकड़ मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
- क्लोरपायरीफोस 50% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
इस विधि से तैयार करें अच्छी कम्पोस्ट खाद
- अच्छी कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए खेत से निकले कचरे को एक जगह इक्कठा कर लेना चाहिये।
- इसके बाद 15 से 20 फुट लम्बा, 5-6 फुट चौड़ा, 3-3 ½ फुट गहरा गड्ढा बना लेना चाहिए।
- सारे कचरे को आपस में अच्छे से मिलाकर गड्ढे में एक परत बिछा दें और उसके ऊपर गीला गोबर फैला दें।
- यही क्रम तब तक दोहराते रहें जबतक की कचरे का स्तर भूमि की सतह से 2-2½ फुट ऊँचा ना हों जाए।
- यदि गर्मी के मौसम में कम्पोस्ट तैयार कर रहे हैं तो 15-20 दिन के अन्तर पर 1-2 बार गड्ढे में पानी चला देना चाहिए ताकि कचरे को गलाने के लिए पर्याप्त नमी बनी रहे।
- वर्षा एवं सर्दी के मौसम में ज्यादा पानी डालने की आवश्यकता नहीं होती है।
- इस पूरी प्रक्रिया के बाद जो खाद बनकर तैयार होती है उसमें 0.5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.15 प्रतिशत फास्फोरस तथा 0.5 प्रतिशत पोटाश की मात्रा होती है।
पोटैशियम से करें फसल का पोषण प्रबंधन, मिलेंगे कई लाभ
- पोटैशियम फसल की पत्तियों में शर्करा और स्टार्च के निर्माण में सहायता करता है एवं पत्तियों के कार को भी बढ़ाता है।
- पोटैशियम कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण को बढ़ाता है एवं जल संचरण में सहायता करता है।
- इसके अतिरिक्त पौधों की विभिन्न क्रियाओं को नियंत्रित करने वाले एन्जाइमों को सुचारु रूप से चलाने में भी यह सहायक होता है।
- पोटैशियम फसल में रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है एवं पौधे में लौह तत्व की मात्रा को संतुलित बनाये रखता है।
- इससे पौधे के तने को मज़बूती मिलती है।
मटर की फसल में एस्कोचाईटा ब्लाईट के लक्षण एवं नियंत्रण
- इस रोग से प्रभावित होकर मटर की फसल में पौधे मुरझा जाते हैं।इसके कारण पौधों की जड़ें भूरी हो जाती हैं, पत्ते तथा तने पर भी भूरे धब्बे पड़ जाते हैं।
- इस बीमारी से फसल कमजोर हो जाती है।
रासायनिक उपचार: इसके निवारण के लिए क्लोरोथालोनिल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 500 ग्राम/एकड़ या ऐजोस्ट्रोबिन 11% + टेबूकोनाज़ोल 18.3% SC@ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
जैविक उपचार: जैविक उपचार के रूप में रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
Shareगेहूँ की फसल में दीमक के प्रकोप की पहचान, लक्षण एवं प्रबंधन
- दीमक पोलीफेगस कीट होता है और यह सभी फसलों को नुकसान पहुँचाता है।
- गेहूँ की फसल में भी दीमक के कारण बहुत नुकसान होता है।
- दीमक गेहूँ के अंकुरित पौधों को चट कर जाती हैं।
- यह कीट जमीन में सुरंग बनाकर पौधों की जड़ों को खाते हैं। इसके प्रकोप अधिक होने पर ये तने को भी खाते हैं।
- इस कीट का वयस्क मोटा होता है, जो धूसर भूरे रंग का होता है।
- यह कीट दरारों या गिरी हुई पत्तियों के नीचे छिप जाते हैं और रात में तने और पत्तियों का नरम हिस्सा खाते हैं।
- जिस खेत में कच्ची खाद का उपयोग किया जाता है वहाँ दीमक का प्रकोप बहुत ज्यादा होता है।
- बुआई के पहले खेत में गहरी जुताई करें।
- खेत में अच्छी सड़ी हुई खाद का ही उपयोग करें।
- इसके नियंत्रण के लिए क्लोरपायरीफोस 50% EC@ 500 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव के रूप में उपयोग करें या कारटॉप हाइड्रोक्लोराइड 4% GR@ 7.5 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
- इसके अलावा क्लोरोपायरीफोस 20% EC @ 1 लीटर/एकड़ को किसी भी उर्वरक के साथ मिलाकर जमीन से दें और सिंचाई कर दें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
तरबूज़ की फसल में सफ़ेद मक्खी का प्रकोप एवं नियंत्रण की विधि
- सफ़ेद मक्खी के शिशु एवं वयस्क रूप तरबूज के पौधों की पत्तियों के निचले सतह से रस चूसते हैं एवं मधु-श्राव का उत्सर्जन करते हैं जिससे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं ।
- इसके कारण पत्तियाँ रोगग्रस्त दिखती हैं और सूटी मोल्ड से ढक जाती हैं।
- यह कीट पत्ती मोड़क विषाणु रोग का वाहक होकर इसे फैलाता है।
- इसके नियंत्रण हेतु डायमेथोएट 30% ईसी @ 300 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफॉस 50% ईसी @ 400 मिली/एकड़ का छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर करें।
तरबूज की फसल में एफिड एवं जैसिड के प्रकोप से होगा नुकसान
- एफिड एवं जेसिड छोटे एवं नरम शरीर वाले कीट होते हैं जो पीले, भूरे, हरे या काले रंग के हो सकते हैं।
- ये आमतौर पर तरबूज की फसल की छोटी पत्तियों और टहनियों के कोनों पर समूह बनाकर पौधे से रस चूसते हैं तथा चिपचिपा मधु रस (हनीड्यू) छोड़ते हैं। इससे फफूंदजनित रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती है।
- गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियां और टहनियां कुम्हला सकती हैं या पीली पड़ सकती हैं।
- एफिड एवं जेसिड कीट से बचाव हेतु थायोमेथोक्सोम 25% WG@100 ग्राम/एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL@100 मिली/एकड या फ्लूनेकामाइड 50% WG @ 60 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
तरबूज़ की फसल के बेहतर बढ़वार हेतु बुआई पूर्व जरूर करें इन उर्वरकों का उपयोग
- तरबूज की फसल में बुआई के पहले खेत की जुताई के बाद उर्वरक की आपूर्ति करना बहुत आवश्यक होता है।
- बुआई के पहले उर्वरकों का प्रबंधन करने से तरबूज़ की फसल को अंकुरण के लिए पोषक तत्वों की पूर्ति आसानी से हो जाती है।
- बुआई पूर्व उर्वरक प्रबंधन करने के लिए DAP@ 50 किलो/एकड़ + एसएसपी @ 75 किलो/एकड़ + पोटाश @ 75 किलो/एकड़ + जिंक सल्फ़ेट@ 10 किलो/एकड़ + मैगनेशियम सल्फ़ेट @ 10 किलो/एकड़ की दर से उपयोग करें।
- इसी के साथ किसान चाहे तो तरबूज समृद्धि किट का उपयोग भी मिट्टी उपचार के रूप में कर सकते हैं।
इस हस्तचालित यंत्र से आसानी से निकल जाएगा खेतों का खरपतवार
- खरपतवार हर फसल के लिए एक बहुत बड़ी समस्या होती है।
- खरपतवार को खेत से निकालने के लिए खरपतवार निकलने वाले यंत्र का उपयोग बहुत लाभकारी होता है।
- यह हुक टाइप का एक ऐसा हस्तचालित यंत्र होता है जो फसल की पंक्तियों के बीच खरपतवार को नष्ट करता है।
- इसमें एक रोलर होता है जिसमें लोहे की रॉड द्वारा फिट की गई दो डिस्क लगी होती है। रॉड पर छोटे समचतुर्भुज आकार के हुक जुड़े होते हैं। इस यंत्र का रोलर नरम लोहे से निर्मित होता है।
समन्वित कीट प्रबंधन से फसल में कीटों के प्रकोप से पाएं छुटकारा
- समन्वित कीट प्रबंधन से आशय यह है की कीटों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने से पहले ही कीटों का नियंत्रण करना।
- समन्वित कीट प्रबंधन के अंतर्गत लाभकारी कीटों की पहचान करके उनके सरक्षण के उपाय किये जाते हैं।
- इसके अंतर्गत फसल में कीट लगने के पहले ही उनके नियंत्रण के लिए प्रयास किये जाते हैं एवं उपयोग किये जाने वाले रसायनों को बदल बदल कर उपयोग किया जाता है।
- जैविक उत्पादों जैसे फेरामोन ट्रैप लगाकर समन्वित कीट प्रबंधन किया जा सकता है।
