मिट्टी में उपस्थित अति सूक्ष्म पोषक तत्वों से क्या लाभ मिलता है?

What is the benefit from the micro nutrients present in the soil?
  • सूक्ष्म पोषक तत्व या पोषक तत्व दरअसल वे तत्व हैं जिनका मिट्टी में अच्छी मात्रा में होना एक अच्छी मिट्टी की पहचान होती है।
  • मिट्टी में इन तत्वों की उपस्थिति बहुत जरूरी होती है हालाँकि इन तत्वों की आवश्यकता बहुत कम मात्रा में होती है।
  • इन सूक्ष्म पोषक तत्वों में लोहा, कोबाल्ट, क्रोमियम, तांबा, आयोडीन, मैंगनीज, सेलेनियम, जस्ता और मोलिब्डेनम आदि शामिल होते हैं।
  • इन तत्वों की संतुलित मात्रा मिट्टी की उर्वरा शक्ति एवं फसल उत्पादन को बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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चने की 30-40 दिनों की अवस्था में ऐसे करें फसल प्रबंधन

How to manage gram crop during the period of 30-40 days

चने की फसल में फूल अवस्था के समय अच्छे फूल उत्पादन एवं फल उत्पादन के लिए पोषण प्रबधन करना बहुत जरूरी होता है।

कवक जनित  रोगो  के  लिए: हेक्साकोनाज़ोल 5% SC @ 400 ग्राम/एकड़ या थायोफिनेट मिथाइल 70% W/P@ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

जैविक उपचार के  रूप में  स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर  से उपयोग करें। 

कीट प्रबंधन के लिए: इमामेक्टिन बेंजोएट 5% SG@ 100 ग्राम/एकड़ या क्लोरानट्रानिलीप्रोल 18.5% SC@ 60 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।   

पोषण प्रबंधन के लिए: होमब्रेसीनोलाइड 0.04% @ 100 मिली/एकड़ या पिक्लोबूट्राज़ोल 40% SC @ 30 मिली/एकड़ या सूक्ष्म पोषक तत्व @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।  

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भिंडी की फसल में बुआई पूर्व खेत की तैयारी एवं मिट्टी उपचार

How to prepare the soil and soil treatment before sowing in okra crop

सब्जियों की खेती करने वाले ज्यादातर किसान भाई भिंडी की खेती कर के काफी कम कृषि लागत में अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। अच्छा मुनाफ़ा प्राप्त करने के लिए भिंडी की फसल की बुआई से पहले ही कुछ बातों का ख़ास ध्यान रखने की जरुरत होती है। भिंडी की फसल के बुआई से पहले खेत की अच्छे से तैयारी की जानी चाहिए और मिट्टी उपचार के साथ साथ उर्वरकों के प्रबंधन का भी ध्यान रखना चाहिए। 

खेत की तैयारी

भिंडी की फसल को हर प्रकार की मिट्टी में अच्छे से उगाया जा सकता है। फसल की बुआई से पहले खेत की मिट्टी में गोबर की खाद को अच्छी तरह मिलाना चाहिए एवं गोबर के साथ नीम खली को मिलाकर मिट्टी में मिलाना चाहिए। खेत की मिट्टी का पी. एच. मान 5.5-7.0 के बीच होना चाहिए। भूमि की तैयारी के दौरान आवश्यकता अनुसार जुताई करके खेत को ठीक प्रकार से तैयार कर लेना चाहिए तथा साथ ही साथ छोटी-छोटी क्यारियां भी बना लेना चाहिए। भारी मिट्टी को ढेले रहित करने के बाद ही बुआई करनी चाहिए। रेतीली भूमि के लिये अधिक जुताइयों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस प्रकार से 3-4 जुताई पर्याप्त होती हैं।

मिट्टी उपचार

भिंडी की फसल के बुआई से पहले मिट्टी उपचार करना भी बहुत जरूरी होता है। इससे भिंडी  की फसल के बीमारी रहित रहती है और उत्पादन भी अच्छा होता है। मिट्टी उपचार के लिए सबसे पहले 50-100 किलो FYM या पकी हुई गोबर की खाद या खेत की मिट्टी में मिलाकर बुआई से पहले खाली खेत में भुरकाव करें। इसके बाद ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से कवक जनित रोगों के लिए उपयोग करें। इसी के साथ कम्पोस्टिंग बैक्टीरिया @ 4 किलो/एकड़ की दर से खाली खेत में पुरानी फसलों के अवशेषों को सड़ाने के लिए भुरकाव के रूप में इस्तेमाल करें। इन दोनों उत्पादों को 50 किलो FYM के साथ मिलाकर भुरकाव के रूप में उपयोग कर सकते हैं। इसके उपयोग के समय खेत में नमी होना बहुत आवश्यक है।

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तरबूज की फसल में बुआई के 10 से 15 दिनों में प्रबंधन के उपाय

Management measures in 10-15 days sowing in watermelon crop

तरबूज़ की फसल के बुआई के 10 से 15 दिनों में कवक रोगों के प्रकोप तथा एवं कीट प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा उपाय किये जाते हैं। दरअसल इस दौरान अंकुरण की शुरुआतों अवस्था में तरबूज़ की फसल में कवक रोगों का नियंत्रण बहुत ही आवश्यक होता है। अंकुरण की शुरूआती अवस्था में पौधे गलने लगते हैं, पत्ते पीले पड़ने लगते हैं एवं अच्छे से अंकुरण भी नहीं हो पाता है। इसके नियंत्रण के लिए निम्र उत्पादों का उपयोग आवश्यक होता है। 

कवक रोगो के लिए: क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।  

कीटों के नियंत्रण के लिए: फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG @ 40 ग्राम/एकड़ या थियामेंथोक्साम 12.6% + लैम्ब्डा साइहेलोथ्रिन 9.5% ZC@ 80 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें। जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।

पोषण प्रबधन: यूरिया @ 75 किलो/एकड़ + सूक्ष्म पोषक तत्व @ 8 किलो/एकड़ + सल्फर @ 5 किलो/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें। ह्यूमिक एसिड @ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव के रूप में उपयोग करें।

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आलू की खेती के बाद उसी खेत में गेहूँ लगाएं तो फॉस्फोरस की मात्रा का ध्यान रखें

How much phosphorus to use at the time of sowing wheat after potato cultivation
  • आलू की फसल में फॉस्फोरस की काफी आवश्यकता होती है अतः जब आप आलू की खेती के बाद उसी खेत में अगर गेहूँ की फसल लगाना चाहते हैं तो फॉस्फोरस की मात्रा मिट्टी की आवश्यकता के अनुसार ही उपयोग करना चाहिए।
  • गेहूँ की फसल लगाने के समय फॉस्फोरस की कुल मात्रा 50 किलो/एकड़ होती है।
  • इस प्रकार किसान अपने गेहूँ की फसल से कम लागत में ही अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
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देसी नस्ल की बेहतरीन गाय है गीर, जानें इनकी विशेषताएं

What is the specialty of Gir Cow
  • भारतीय देसी नस्ल की गायों में गीर एक प्रसिद्ध दुग्ध उत्पादक नस्ल है।
  • यह गुजरात राज्य के गीर वन क्षेत्र और महाराष्ट्र तथा राजस्थान के आसपास के जिलों में पाई जाती है।
  • गीर गाय का औसत वजन 385 किलोग्राम तथा ऊंचाई 130 सेंटीमीटर होती है।
  • यह गाय अच्छी दुग्ध उत्पादताकता के लिए जानी जाती है।
  • इस गाय की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अच्छी होती है।
  • यह नियमित रूप से बछड़ा देती है और पहली बार यह 3 साल की उम्र में बछड़ा देती है।
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गाजर घास नामक खरपतवार को अपने खेतों में ऐसे करें नियंत्रित

What are the measures to be taken to control of congress grass
  • अगर आपके खेत में भी गाजर घास नाम की घातक खरपतवार उगी हुई है तो इसके कारण आपकी फसल प्रभावित हो सकती है। अतः वहां पर इन खरपतवारों को उगने न दें और इनमे फूल आने से पहले ही इन्हे जड़ से उखाड़कर गड्ढे में दबा दें।
  • जिन जगहों पर यह घास बहुत अधिक मात्रा में लगी हुई हो वहां पर इसमें फूल आने से पहले ही इसको उखड़कर खेत से बाहर कर देना चाहिए।
  • उखाड़े गये पौधों को 6 से 3 फुट के गड्ढों में गोबर के साथ मिलाकर दबा देना चाहिए। ऐसा करने से अच्छी किस्म की खाद तैयार होती है।
  • इस घास के रासायनिक नियंत्रण के लिए 2,4डी @ 40 मिली/पंप का उपयोग करें। जब गाजर घास के पौधे 3-4 पत्तों कि अवस्था में हो तभी छिड़काव कर देना चाहिए।
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ऐसे करें लहसुन की फसल में लगे सफेद कीड़े की रोकथाम

white worms in garlic crop
  • लहुसन की फसल की जड़ों में एक सफ़ेद रंग के कीड़े का प्रकोप देखने को मिलता है।
  • इस कीड़े के कारण लहसनु का कंद पूरी तरह सड़ जाता है।
  • यह कीड़ा लहसुन के कंद के अंदर जाकर पूरी तरह से कंद को खाकर नुकसान पहुँचाता है।
  • इस कीड़े के नियंत्रण के लिए कारबोफुरान 3% GR@ 7.5 किलो/एकड़ या कारटॉप हाइड्रोक्लोराइड 50% SP@ 7.5 किलो/एकड़ मिट्टी उपचार के रूप में उपयोग करें।
  • क्लोरपायरीफोस 50% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
  • जैविक उपचार के रूप में बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
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इस विधि से तैयार करें अच्छी कम्पोस्ट खाद

How to prepare good compost manure
  • अच्छी कम्पोस्ट खाद बनाने के लिए खेत से निकले कचरे को एक जगह इक्कठा कर लेना चाहिये।
  • इसके बाद 15 से 20 फुट लम्बा, 5-6 फुट चौड़ा, 3-3 ½ फुट गहरा गड्ढा बना लेना चाहिए।
  • सारे कचरे को आपस में अच्छे से मिलाकर गड्ढे में एक परत बिछा दें और उसके ऊपर गीला गोबर फैला दें।
  • यही क्रम तब तक दोहराते रहें जबतक की कचरे का स्तर भूमि की सतह से 2-2½ फुट ऊँचा ना हों जाए।
  • यदि गर्मी के मौसम में कम्पोस्ट तैयार कर रहे हैं तो 15-20 दिन के अन्तर पर 1-2 बार गड्ढे में पानी चला देना चाहिए ताकि कचरे को गलाने के लिए पर्याप्त नमी बनी रहे।
  • वर्षा एवं सर्दी के मौसम में ज्यादा पानी डालने की आवश्यकता नहीं होती है।
  • इस पूरी प्रक्रिया के बाद जो खाद बनकर तैयार होती है उसमें 0.5 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.15 प्रतिशत फास्फोरस तथा 0.5 प्रतिशत पोटाश की मात्रा होती है।
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पोटैशियम से करें फसल का पोषण प्रबंधन, मिलेंगे कई लाभ

Potassium contributes to plant nutritional management
  • पोटैशियम फसल की पत्तियों में शर्करा और स्टार्च के निर्माण में सहायता करता है एवं पत्तियों के कार को भी बढ़ाता है।
  • पोटैशियम कोशिकाओं में प्रोटीन संश्लेषण को बढ़ाता है एवं जल संचरण में सहायता करता है।
  • इसके अतिरिक्त पौधों की विभिन्न क्रियाओं को नियंत्रित करने वाले एन्जाइमों को सुचारु रूप से चलाने में भी यह सहायक होता है।
  • पोटैशियम फसल में रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है एवं पौधे में लौह तत्व की मात्रा को संतुलित बनाये रखता है।
  • इससे पौधे के तने को मज़बूती मिलती है।
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