- यह एक दैहिक विकार है जो कैल्शियम की कमी से फलों में होता है।
- रोपाई के 15 दिन पहले मुख्य खेत में गोबर की ठीक से सड़ी हुई खाद का उपयोग करें।
- कमी के लक्षण दिखाई देने पर कैल्शियम EDTA @ 150 ग्राम/एकड़ की दर से दो बार छिड़काव करें। या
- मेटालैक्सिल 4% + मैन्कोजेब 64% डब्लू.पी 30 ग्राम और कासुगामायसिन 3% एस.एल 25 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा चौथे दिन चिलेटेड कैल्सियम 15 ग्राम + बोरोन 15 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
क्या अम्फान का मानसून पर भी होगा असर, वैज्ञानिकों में मतभेद, जानें कब आएगा मानसून
अंफन (अम्फान) चक्रवात इस सदी के पहले सुपर साइक्लोन में परिवर्तित हो गया है और इसके कारण भारत के पूर्वी हिस्से में भीषण बरसात और तूफानी हवाएं चलीं। इस सुपर साइक्लोन का कितना असर आने वाले मानसून पर पड़ेगा इसको लेकर मौसम वैज्ञानिकों के बीच थोड़े मतभेद हैं।
जहाँ कुछ मौसम वैज्ञानिकों ने इस तूफ़ान की वजह से मानसून के आगमन में 4 दिन के देरी की संभावना व्यक्त की थी वहीं मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली निजी एजेंसी स्काइमेट के वैज्ञानिकों का मनना है कि मॉनसून इस साल भी अपनी रफ्तार पर रहेगा और तय तारीख 1 जून से दो दिन पहले यानी 28 मई को केरल तट पर दस्तक देगा।
स्काइमेट के प्रबंध निदेशक जतिन सिंह ने इस विषय पर कहा की, “दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अंडमान सागर और आसपास के इलाकों में अपने समय से 5 दिन पहले पहुंच चुका है। इसको केरल के तट पर पहुंचने में अमूमन 10 दिन और लगते हैं। हालांकि, अंडमान सागर और केरल में मॉनसून के आगमन का देश के बाकी हिस्सों में आने से संबंध नहीं है।”
स्रोत: आजतक
Shareथ्रिप्स के हमले से मिर्च की पौध को कैसे रखें सुरक्षित?
- थ्रिप्स कीट के वयस्क (एडल्ट) और शिशु (निम्फ) दोनों ही रूप पौधें को नुकसान पहुँचाते हैं। इनके वयस्क रूप छोटे, पतले और भूरे रंग के पंख वाले होते है, वही निम्फ सूक्ष्म आकार के पीलापन लिए हुए होते है।
- थ्रिप्स से संक्रमित मिर्च की पत्तियों में झुर्रियां दिखाई देती हैं तथा ये पत्तियाँ ऊपर की ओर मुड़ जाती हैं।
- इसके प्रभाव के प्रारंभिक अवस्था में पौधों का विकास, फूल का उत्पादन एवं फलों का बनना रुक जाता है।
- इसके नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफॉस 50% EC @ 30 मिली या एसीफेट 75% SP @ 18 ग्राम या फिप्रोनिल 5% SC @ 25 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
जानें कपास की फसल में अंतर-फसल (इंटर क्रॉपिंग) पद्धति के क्या हैं फायदे?
- एक ही खेत में दो या दो से अधिक फ़सलों की अलग-अलग कतारों में एक साथ एक ही समय में खेती करना इंटर क्रॉपिंग या अंतर-फसल पद्धति कहलाती है।
- कपास की पंक्तियों के बीच जो खाली जगह रहती है उनके बीच उथली जड़ वाली और कम समय में तैयार होने वाली मूंग या उड़द जैसी फसल उगाई जा सकती है।
- अंतर-फसल करने से अतिरिक्त मुनाफ़ा भी बढ़ेगा और खाली जगह पर खरपतवार भी नहीं लगेंगे।
इंटरक्रॉपिंग से बरसात के दिनों में मिट्टी का कटाव रोकने में मदद मिलती है। - इस पद्धति द्वारा फ़सलों में विविधता से रोग व कीट प्रकोप से फसल सुरक्षित रहती है।
- यह पद्धति अधिक या कम बारिश में फ़सलों की विफलता के खिलाफ एक बीमा के रूप में कार्य करती है। जिससे किसान जोखिम से बच जाते हैं, क्योंकि एक फसल के नष्ट हो जाने के बाद भी सहायक फसल से उपज मिल जाती है।
मिर्च की नर्सरी में आर्द्र गलन रोग की पहचान और बचाव के उपाय
- यह बीमारी नर्सरी में दो चरणों में आ सकती है। पहले चरण में अंकुरण से पहले मिर्च का बीज फंगस से सड़ जाता है, दूसरे चरण में अंकुरण के बाद तने का आधार सड़ने लगता है।
- जिससे कमजोर और चिपचिपे तने पर पानी से भरे, कत्थई या काले घाव दिखाई देने लगते है।
- इसके बाद की अवस्था में तना सिकुड़ जाता है और पौधा जमीन पर गिर कर मर जाता है।
- इसके बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 5 ग्राम या कार्बोक्सिन 37.5% + थायरम 37.5% WP 3 ग्राम प्रति किलो बीज उपचार करें।
- इसके बचाव के लिए 30 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 30 ग्राम मेटालैक्सील 4% + मैंकोजेब 64% WP नाम की दवा को 15 लीटर पानी में मिलाकर मिट्टी में छिड़काव करें।
महातूफान अम्फान से हो सकती है बारिश और ओलावृष्टि, किसान बरतें ये सावधानियां
बंगाल की खाड़ी से उठे चक्रवाती तूफान अम्फान ने सोमवार को बेहद विकराल रूप ले लिया है। करीब 195 किलोमीटर प्रति घंटे की तीव्र रफ्तार से यह तूफान 20 मई की शाम को पश्चिम बंगाल के तट पर दस्तक देगा। इसका प्रभाव पश्चिम बंगाल के अलावा ओडिशा, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के क्षेत्रों में भी देखने को मिल सकता हैं।
हालांकि मध्यप्रदेश तक पहुँचते पहुँचते तूफान की रफ्तार घटकर 35 से 40 किमी प्रति घंटा रह जाएगी परन्तु इसके बाद भी तेज हवा चलने के साथ बारिश और ओलावृष्टि की संभावना बनी रहेगी। मौसम विभाग का मानना है कि अगले 24 घंटे में यह तूफान मध्यप्रदेश में दस्तक देगा।
बहरहाल 35 से 40 किमी प्रति घंटा वाली तेज हवा के साथ बारिश और ओले कृषि को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ग़ौरतलब है की आजकल भारी मात्रा में कृषि उपज मंडी और खरीदी केंद्रों पर पहुँच रही है। खरीदी केंद्रों पर इन दिनों हजारों क्विंटल गेहूं खुले में रखा है जिसे नुकसान हो हो सकता है। साथ तेज हवा के साथ बारिश होने से प्याज सहित अन्य सब्जियों को भी नुकसान हो सकता है।
चक्रवात के असर को देखते हुए किसान बरतें ये सावधानियां
- ग्रीष्म मूंग की फसल के पकने की अवस्था पर तुरंत कटाई शुरू कर दें या जल निकास के उचित प्रबंधन के लिए पास में एक फीट गहरी नाली खोद दें ताकि पानी खेत में ज्यादा देर तक ना ठहरे और ज़मीन जल्दी सुख जाए।
- बारिश होने के बाद या पहले डीकम्पोजर के रूप में 4 किलो स्पीड कम्पोस्ट और 45 किलो यूरिया प्रति एकड़ की दर से खेत में बिखेर दें ताकि फसल अवशेष जल्दी से सड़ कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ा सके।
- जहाँ मूंग/उड़द की फसल हरी अवस्था में है वहां इस तूफान के बाद आसमान साफ़ होने पर रोगों से बचाव के लिए 30 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 250 मिली एजॉक्सीस्ट्रोबीन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3 SC या 300 ग्राम क्लोरोथेलोनिल 75 WP नामक दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर दें।
- इल्ली दिखाई देने पर मूंग/उड़द की फसल 100 मिली लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.6% + क्लोरेन्थानिलीप्रोल 9.3% ZC दवा को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ छिड़काव कर दें।
- फसल कटाई के बाद उपज को खुले खेत में न रखकर किसी छपरे, कमरे, गोदाम अथवा ऐसी जगह रखें जहाँ बारिश का पानी न आये तथा आसमान साफ होने पर तेज धुप में इन्हे सूखा लें ताकि नमी से मूंग/उड़द के दाने खराब न हों।
- कपास और मिर्च की नर्सरी में भी जल निकास का उचित प्रबंधन करें ताकि खेत में पानी ज्यादा देर तक न रुक सके।
- आसमान के साफ़ होने पर कपास और मिर्च नर्सरी में कवकनाशी (फफूंदनाशी) का प्रयोग करें। जिसमें 30 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 30 ग्राम मेटालैक्सील 4% + मैंकोजेब 64% WP नाम की दवा को 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। और कीट आक्रमण न हो इसके लिए 100 ग्राम थायोमेथोक्सोम 25% WG या 100 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% SP प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
- सब्जियों के खेत में भी जल निकास का अच्छा प्रबंधन कर लें और रोग से बचाव के लिए 300 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 70% WP या 250 मिली एजॉक्सीस्ट्रोबीन 11% + टेबुकोनाजोल 18.3 SC या 300 ग्राम क्लोरोथेलोनिल 75 WP नामक दवा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव कर दें।
- सब्जियों की फसल में इल्ली दिखाई देने पर 100 मिली लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.6% + क्लोरेन्थानिलीप्रोल 9.3% ZC दवा को 200 लीटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव कर दें।
ग्रीष्मकालीन मूंग की कटाई एवं गहाई कैसे करें?
- मूंग की फसल 65 से 70 दिन में पक जाती है, अर्थात मार्च- अप्रैल माह में बोई गई फसल मई-जून माह तक तैयार हो जाती है।
- इसकी फलियाँ पक कर हल्के भूरे रंग की अथवा काली होने पर कटाई योग्य हो जाती हैं।
- पौधें में फलियाँ असमान रूप से पकती हैं। यदि पौधे की सभी फलियों के पकने की प्रतीक्षा की जाये तो ज्यादा पकी हुई फलियाँ चटकने लगती हैं। अतः फलियों की तुड़ाई हरे रंग से काला रंग होते ही 2-3 बार में कर लें एंव बाद में फसल को पौधें के साथ काट लें।
- अपरिपक्व अवस्था में फलियों की कटाई करने से दानों की उपज एवं गुणवत्ता दोनो खराब हो जाते हैं।
- हॅंसिए से फसल काटकर खेत में एक दिन सुखाने के उपरान्त खलियान में लाकर सुखाते हैं। सुखाने के उपरान्त डडें से पीट कर या वर्तमान में थ्रेसर का उपयोग कर गहाई कार्य किया जा सकता है।
- फसल अवशेष को रोटावेटर चलाकर भूमि में मिला दें ताकि यह हरी खाद का काम करें। इससे मृदा में लगभग 10 से 12 किलो प्रति एकड़ नाइट्रोजन की पूर्ति आगामी फसल के लिए हो जाती है।
अगेती फूलगोभी की नर्सरी में मिट्टी उपचार कैसे करें?
- नर्सरी की क्यारियों को बनाते समय गोबर की खाद 8-10 किलो प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिला दें। आद्रगलन रोग से बचाव हेतु 25 ग्राम ट्राईकोडर्मा विरिडी प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाना चाहिये। या
- आद्रगलन बीमारी द्वारा पौध को होने वाली हानि से बचाने के लिए मेटालैक्सिल 4% + मैन्कोजेब 64% WP का 3 ग्राम या थायोफिनेट मिथाइल 75 WP का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर ड्रेंचिंग करें।
- पौधों को रसचूसक कीटों के आक्रमण से बचाने के लिए थायोमेथोक्सम 25% WG का 0.5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से नर्सरी तैयारी के समय डालें।
भारतीय कृषि की आधारभूत संरचना के विकास पर खर्च होंगे एक लाख करोड़ रुपये
भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है और आज भी भारत कई फ़सलों के उत्पादन में पूरी दुनिया में नंबर एक का स्थान रखता है। ऐसा तब है जब भारतीय कृषि क्षेत्र का इंफ्रास्ट्रक्चर यानी आधारभूत ढ़ांचा अन्य विकसित देशों की तरह आधुनिक नहीं है। बहरहाल सरकार अब इसी कृषि के आधारभूत ढांचे को और ज्यादा आधुनिक और विकसित बनाने के लिए अग्रसर होने वाली है।
कोरोना महामारी से उपजे आर्थिक संकट से निपटने के लिए पीएम मोदी द्वारा घोषित आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कृषि के आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए एक लाख करोड़ रुपये के पैकेज का पिछले शुक्रवार को ऐलान किया है।
एक लाख करोड़ रुपये के इस बड़े पैकेज से देश भर में कृषि क्षेत्र का विकास किया जाएगा। इसके अंतर्गत कोल्ड चेन, वैल्यू चेन विकसित करने में मदद मिलेगी। इसका लाभ किसान उत्पादन संघ, कृषि उद्यमी, स्टार्टअप आदि को फार्मगेट पर मिल सकेगा।
वित्त मंत्री सीतारमण ने पिछले कुछ दिनों में कृषि को लेकर कई बड़ी घोषणाएँ की हैं जो किसानों के मन में नया विश्वास जगा रही हैं। यह घोषणाएँ अगर घरातल पर साकार होती हैं तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को भी अच्छी रफ़्तार मिल जायेगी।
Shareकपास की फसल के साथ अंतर फसलों की खेती होगी फायदेमंद
कपास की फसल अन्तरसस्य फसलों के लिए अच्छी मानी जाती हैं क्योंकि कपास की फ़सल शुरुआत में धीरे-धीरे बढ़ती हैं एवं खेत में लम्बे समय तक रहती हैं जो अन्य अन्तरसस्य फसलों के लिए अच्छा माना जाता हैं। अन्तरसस्य का मुख्य उद्देश्य अतिरिक्त फसल के साथ कपास की फसल की अधिकतम उपज प्राप्त करना होता है।
सिंचित क्षेत्रों के लिए अन्तरसस्य फसलें:
- कपास + मिर्च (1: 1 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + प्याज़ (1: 5 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + सोयाबीन (1: 2 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + सनई (हरी खाद के रूप में) (1: 2 पंक्ति के अनुपात में)
अन्तरसस्य फसलें को वर्षा आधारित क्षेत्रों में लगाने के लिए:
- कपास + प्याज़ (1: 5 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + मिर्च (1: 1 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + मूंगफली (1: 3 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + मूंग (1: 3 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + सोयाबीन (1: 3 पंक्ति के अनुपात में)
- कपास + अरहर (1:1 पंक्ति के अनुपात में)