पपीते की फसल में पर्ण कुंचन रोग की पहचान व कारण

Know the cause and identity of leaf curl disease in Papaya crop
  • पर्ण-कुंचन (लीफ कर्ल) रोग के लक्षण केवल पत्तियों पर दिखायी पड़ते हैं। रोगी पत्तियाँ छोटी एवं क्षुर्रीदार हो जाती हैं। 
  • पत्तियों का विकृत होना एवं इनकी शिराओं का रंग पीला पड़ जाना रोग के सामान्य लक्षण हैं। 
  • रोगी पत्तियाँ नीचे की तरफ मुड़ जाती हैं और फलस्वरूप ये उल्टे प्याले के अनुरूप दिखायी पड़ती है जो पर्ण कुंचन रोग का विशेष लक्षण है। 
  • पतियाँ मोटी, भंगुर और ऊपरी सतह पर अतिवृद्धि के कारण खुरदरी हो जाती हैं। रोगी पौधों में फूल कम आते हैं। रोग के प्रभाव से पतियाँ गिर जाती हैं और पौधे की बढ़वार रूक जाती है।
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अश्वगन्धा के औषधीय गुण

Medicinal properties of Ashwagandha
  • अश्वगंधा में मौजूद एन्टीऑक्सीडेंट गुण के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता (इम्युन सिस्टम) बढ़ाने में मदद मिलती है।  
  • अश्वगंधा में एंटी-स्ट्रेस गुण पाए जाते है जिससे मानसिक तनाव, अवसाद (डिप्रेशन) तथा चिंता को कम करने में मदद मिलती है।   
  • इसका उपयोग यौन दुर्बलता दूर करने में किया जाता है। 
  • अश्वगंधा वाइट ब्लड सेल्स और रेड ब्लड सेल्स दोनों को बढ़ाने का काम करता है, जो कई गंभीर शारीरिक समस्याओं में लाभदायक है।
  • अश्वगंधा का सेवन करने से ह्रदय की मांसपेशियाँ मजबूत और खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद मिलती है।
  • अश्वगंधा को बतौर कैंसर के इलाज के रूप में इस्तेमाल होने वाली कीमोथेरेपी के नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने में किया जाता है। 
  • मोतियाबिंद के खिलाफ इसका सेवन प्रभावशाली तरीके से काम करता है। साथ ही आंखों की रोशनी बढ़ाने में भी यह बेहतरीन विकल्प है।
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कपास के खेत में अतिरिक्त पौधे हटाने और अतिरिक्त पौधे लगाने का महत्व जानें

  • खेत में कपास की बुआई करने के 10 दिनों बाद कुछ बीज उग नहीं पाते हैं और कुछ पौधे उगने के बाद मर जाते हैं। 
  • यह अनेक कारणों से हो सकता है जैसे- बीज का सड़ जाना, बीज को अधिक गहराई में बोया जाना, किसी कीट के द्वारा बीज को खा लेना या पर्याप्त नमी का न मिलना आदि।
  • इन खाली स्थानों पर पौधे न उगने पर उत्पादन में सीधा असर पड़ता है अतः इन स्थानों पर फिर से बीज को बोना चाहिए। इस क्रिया को गैप फिलिंग कहा जाता है। 
  • कपास के खेत में कतारों में पौधों के बीच की दूरी एक सामान होनी चाहिए। इसी खाली जगह को भरने की प्रक्रिया को गैप फिलिंग कहते है।
  • गैप फिलिंग करने से पौधों के बीच की दूरी एक सामान रहती है। जिससे कपास का उत्पादन अच्छा मिलता है।
  • वहीं दूसरी तरफ बुआई के समय एक ही स्थान पर एक से अधिक बीज गिर जाता है तो एक ही जगह पर अधिक पौधे उग आते हैं। 
  • अगर इन पौधों को समय रहते न निकाला जाये तो इसका सीधा नकारात्मक प्रभाव हमारे उत्पादन के ऊपर पड़ता है।
  • इन अतिरिक्त पौधों को हटाने की क्रिया को थिन्निंग कहा जाता है। कपास की फसल में थिन्निंग बुआई के 15 दिन बाद की जाती है। ताकि पौधों को सही मात्रा में खाद और उर्वरक मिल सके और पौधों की उचित वृद्धि हो पाए।
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बैंगन की फसल में सूत्रकृमि (निमाटोड) का प्रकोप

Outbreak of nematode in Brinjal crop
  • मिट्टी में रहने वाले सूत्रकृमि के कारण बैंगन के पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती है। 
  • इसका प्रकोप होने पर पौधें की जड़ पोषक तत्व अवशोषित नहीं कर पाती है। इस कारण फूल और फलों की संख्या में कमी आती है।
  • पत्तियां पीली पड़कर सुकड़ने लगती है और पूरा पौधा बौना रह जाता है। 
  • अधिक संक्रमण होने पर पौधा सुखकर मर जाता है।
  • जिस खेत में यह समस्या होती है वहाँ 2-3 साल तक बैंगन, मिर्च और टमाटर की फसल न लगाए। 
  • रोगग्रस्त खेत में गर्मी में गहरी जुताई अवश्य करें। 
  • बैंगन की फसल की 1-2 कतार के बीच गेंदा लगा दें।
  • कार्बोफ्यूरान 3% दानों को रोपाई पूर्व 10 किलो प्रति एकड़ की दर से मिला दें। 
  • निमाटोड के जैविक नियंत्रण के लिए 200 किलो नीम खली या 2 किलो वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम या 2 किलो पैसिलोमयीसिस लिलसिनस या 2 किलो ट्राइकोडर्मा हरजिएनम को 100 किलो अच्छी सड़ी गोबर के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से भूमि में मिला दें।
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कपास की फसल में जड़ गलन रोग की पहचान और उपचार

Identification and treatment of root rot disease in cotton crop
  • कपास के पौधों का मुरझाना इस रोग का पहला लक्षण है।
  • इसके कारण गंभीर मामलों में सारी पत्तियां झड़ सकती हैं या पौधा गिर सकता है।
  • इस रोग में जड़ की छाल पीली पड़ने के बाद फट जाती है जिससे पानी और पोषक तत्व ठीक से पौधे तक नहीं पहुँच पाते हैं। 
  • इससे पूरा जड़ तंत्र सड़ जाता है और पौधे को आसानी से उखाड़ा जा सकता है। 
  • शुरुआत में खेत में केवल कुछ पौधें प्रभावित होते हैं, फिर समय के साथ रोग का प्रभाव इन पौधों के चारों तरफ बढ़ता है और धीरे धीरे पूरे खेत में फैल जाता है।
  • रोग से बचाव के लिए जैविक माध्यम से 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी या 10 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस प्रति किलो की दर से बीज उपचारित करना चाहिए। या 
  • बीजों को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP प्रति किलो की दर से उपचारित करें।  
  • बचाव हेतु जैविक माध्यम से 4 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में 2 किलो ट्राइकोडर्मा विरिडी मिलाकर एक एकड़ के खेत में बिखेरें। 
  • रोग नियंत्रण हेतु 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मेंकोजेब 63% WP या 300 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 75% WP या 600 ग्राम मेटालैक्सिल 4% + मैन्कोजेब 64% WP 200 लीटर पानी में मिलाकर दवा को पौधे के तने के पास डालें (ड्रेंचिंग करें)।
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मित्र फफूंद ट्राइकोडर्मा का कब, कैसे और क्यों करें उपयोग?

When, how and why to use Friend Fungal Trichoderma
  • यह एक जैविक फफूंदनाशी/कवकनाशी है जो कई प्रकार के रोगजनकों को मारता है। जिससे फसलों में लगने वाले जड़ सड़न, तना सड़न, उकठा, आर्द्र गलन जैसे रोगों से सुरक्षा होती है। 
  • ट्राइकोडर्मा सभी प्रकार की फसलों में बीज उपचार, मिट्टी उपचार, जड़ों का उपचार और ड्रेंचिंग के लिए उपयोग किया जा सकता है। 
  • बीज उपचार के लिए 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो दर से काम आता है। यह बीज उपचार बुआई से पहले किया जाता है। 
  • जड़ों के उपचार के लिए 10 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 100 लीटर पानी मिला कर घोल तैयार करें फिर इसमें 1 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर तीनों का मिश्रण तैयार कर लें। अब इस मिश्रण में पौध की जड़ों को रोपाई के पहले 10 मिनट के लिए डुबोएं।
  • मिट्टी उपचार हेतु 2 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति एकड़ की दर से 4 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद के साथ मिला खेत में मिलाया जाता है।    
  • खड़ी फसल में उपयोग करने के लिए एक लीटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाकर तना क्षेत्र के पास की मिट्टी में ड्रेंचिंग करें।
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ग्रामोफ़ोन की सलाह ने किसान को कपास की खेती से दिलवाया डबल प्रॉफिट

भारत की भूमि काफी उपजाऊ है और शायद इसीलिए भारत हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है। किसान भाइयों को उचित मार्गदर्शन मिले तो इसी उपजाऊ भूमि से 100% तक लाभ उठाया जा सकता है। कुछ ऐसा ही लाभ ग्रामोफ़ोन के द्वारा मिले मार्गदर्शन से बड़वानी के किसान भाई श्री शिव कुमार चौहान ने उठाया।

ग्रामोफ़ोन के कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर शिव कुमार ने कपास की उन्नत खेती की और फसल से ज़बरदस्त उत्पादन प्राप्त किया। इस उत्पादन से उन्हें कुल 22 लाख रूपये की कमाई हुई। यहाँ आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की इससे पहले कपास की खेती से इनकी कमाई 11 लाख तक ही रहती थी। पर ग्रामोफ़ोन के साथ जुड़ाव और कृषि विशेषज्ञों के मार्गदर्शन ने कमाई को एक ही साल में दोगुना कर दिया।

ग़ौरतलब है की कपास की खेती के दौरान शिव कुमार ने कई बार ग्रामोफ़ोन के कृषि विशेषज्ञों से सलाह ली और साथ ही बीज, उर्वरक और दवाइयाँ भी मंगाई। आखिर में जब उन्होंने उत्पादन देखा तो वे आश्चर्यचकित रह गए। उनका उत्पादन तो दोगुना हुआ ही साथ ही साथ उनकी उपज की क्वालिटी भी पहले से काफी बेहतर थी।

आज शिव कुमार ग्रामोफ़ोन को धन्यवाद करते हुए सभी किसानों को ग्रामोफ़ोन से जुड़ने की सलाह देते हैं ताकि उनकी ही तरह अन्य किसान भी लाभ उठा पाएं और अपनी कृषि को उन्नत कर पाएं।

आप भी ग्रामोफ़ोन के साथ जुड़ कर अपनी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के लिए आप हमारे टोल फ्री नंबर 18003157566 पर मिस्डकॉल कर सकते हैं या फिर ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप पर लॉगिन कर सकते हैं।

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ऑपरेशन ग्रीन के तहत 500 करोड़ का प्रावधान, जानें किन किसानों को मिलेगा फायदा

Provision of 500 crores under Operation Green, know which farmers will benefit

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना त्रासदी से पैदा हुए हालात से निपटने के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के अंतर्गत 20 लाख करोड़ रूपये की घोषणा की थी। इस बड़े पैकेज़ का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में लगाया जाने वाला है जिसकी घोषणा बाद में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने की। इसी कड़ी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि ऑपरेशन ग्रीन को और ज्यादा बढ़ावा दिया जाएगा।

बता दें की इस योजना के अंतर्गत पहले टमाटर, प्याज और आलू आते थे पर अब इसके अंतर्गत बाकी सभी फल और सब्जियों को भी लाया जाएगा। इसके अलावा इस योजना के लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया जाएगा जो बहुत सारे किसानों को लाभ पहुँचाएगा।

इस योजना से जो खाद्य पदार्थ नष्ट हो जाते हैं उन्हें बचाया जा सकेगा साथ ही साथ किसानों को विपरीत परिस्थितियों में कम मूल्य पर अपनी फसल नहीं बेचनी पड़ेगी। इस योजना के अंतर्गत सभी फल सब्जियों के परिवहन पर 50% और स्टोरेज पर भी 50% की सब्सिडी दी जाएगी।

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कपास के फसल की शुरुआती अवस्था में रस चूसक कीटों का प्रबंधन

Management of sucking pests in early stage of Cotton crop
  • कपास की फसल के अंकुरण के 10 से 12 दिनों के बाद रसचूसक कीट थ्रिप्स व एफिड्स का आक्रमण हो सकता है।
  • ये कीट कोमल तनों और पत्तियों पर चिपक कर रस चूसते रहते हैं जिससे पौधा कमजोर रह जाता है और वृद्धि नहीं कर पाता है। 
  • इन थ्रिप्स व एफिड्स से बचाव हेतु 100 ग्राम थायोमेथोक्सोम 25% WG  या 100 ग्राम एसिटामिप्रिड 20% SP प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
  • जैविक माध्यम से बवेरिया बेसियाना 1 किलो प्रति एकड़ का उपयोग करें या उपरोक्त कीटनाशक के साथ मिला कर भी प्रयोग कर सकते हैं।

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टमाटर की फसल को नोक की सड़न रोग (ब्लॉसम एन्ड रॉट) से कैसे बचाएं?

Tomatoes Blossom End Rot disease
  • यह एक दैहिक विकार है जो कैल्शियम की कमी से फलों में होता है। 
  • रोपाई के 15 दिन पहले मुख्य खेत में गोबर की ठीक से सड़ी हुई खाद का उपयोग करें।
  • कमी के लक्षण दिखाई देने पर कैल्शियम EDTA @ 150 ग्राम/एकड़ की दर से दो बार छिड़काव करें। या 
  • मेटालैक्सिल 4% + मैन्कोजेब 64% डब्लू.पी 30 ग्राम और कासुगामायसिन 3% एस.एल 25 मिली प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा चौथे दिन चिलेटेड कैल्सियम 15 ग्राम + बोरोन 15 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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