- दोपहर के समय पौधे मुरझाए देखे जा सकते है और रात में स्वस्थ दिखते है किंतु पौधे जल्द ही मर जाते है।
- पौधों का गल जाना, बौना रह जाना, पत्तियों का पीला हो जाना और अंत में पूरे पौधे का मर जाना इस बीमारी के विशेष लक्षण है।
- इस बीमारी का प्रकोप सामान्यतः फूल या फल बनने की अवस्था में होता है
- पौधों के गलने से पहले नीचे की पत्तियां सुख कर गिर जाती है।
- जड़ों और तने के निचले हिस्से का रंग गहरा भूरा हो जाता है।
- काटने पर तने में सफेद -पीले तरह का दूधिया रिसाव देखा जा सकता है।
मिर्च की फसल में एफिड (माहु) कीट की पहचान और बचाव
- एफिड छोटे, नरम शरीर के कीट है जो पीले, भूरे या काले रंग के हो सकते हैं।
- ये आमतौर पर छोटी पत्तियों और टहनियों के कोनों पर समूह बनाकर पौधे से रस चूसते है तथा चिपचिपा मधुरस (हनीड्यू) छोड़ते हैं जिससे फफूंदजनित रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती है।
- गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियां और टहनियां कुम्हला सकती है या पीली पड़ सकती हैं।
- एफिड कीट से बचाव हेतु थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL 80 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
- जैविक माध्यम से बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें या उपरोक्त कीटनाशक के साथ मिला कर भी प्रयोग कर सकते हैं।
म.प्र में 27 साल बाद टिड्डियों का बड़ा हमला, करोड़ों की मूंग की फसल पर मंडराया ख़तरा
फ़सलों का सबसे बड़े दुश्मन टिड्डी दल ने कई सालों बाद इस बार मध्यप्रदेश में ज़ोरदार दस्तक दी है। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है की टिड्डियों का इतना बड़ा हमला मध्यप्रदेश में 27 साल बाद हुआ है। यही नहीं अभी इस हमले के मानसून तक जारी रहने की आशंका भी जताई जा रही है।
पाकिस्तान से राजस्थान और राजस्थान से मध्यप्रदेश में प्रवेश करने वाले ये टिड्डी दल मालवा निमाड़ होते हुए मध्यप्रदेश के कई क्षेत्रों में फ़ैल रहे हैं। इससे बचने के लिए किसान ढोल, थाली, पटाखे ओर स्प्रे का इस्तेमाल कर रहे हैं ताकि ये दल भाग जाएँ।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार अगर समय रहते इस समस्या पर नियंत्रण नहीं हो पाता है तो इससे 8000 करोड़ रुपये की मूंग की फसल बर्बाद हो सकती है। यही नहीं इसका खतरा कपास और मिर्च की हाल ही में लगाई गई फसल पर भी बना हुआ है।
बहरहाल इस समस्या से बचने के लिए किसानों को रात के समय अपने स्तर पर समूह बनाकर खेतों में निगरानी करनी चाहिए क्योंकि टिड्डी दल शाम 7 से 9 बजे आराम करने के लिए खेतों में बैठते हैं और रात भर में फसल को खूब नुकसान पहुँचाते हैं।
इसके अलावा टिड्डी दल के आने पर खेतों में तेज आवाज़ जैसे थालियां बजाकर , ढोल बजाकर, डीजे बजा कर, खाली टिन के डिब्बे बजाकर, पटाखे फोड़ कर, ट्रैक्टर का साइलेंसर निकालकर आवाज करके टिड्डी दल को आगे की तरफ भगा सकते हैं।
स्रोत: NDTV
Shareपपीते की फसल में पर्ण कुंचन रोग का कारण और नियंत्रण कैसे करें?
- यह पर्ण कुंचन रोग विषाणु के कारण होता है तथा इस रोग का फैलाव रोगवाहक सफेद मक्खी के द्वारा होता है।
- यह मक्खी रोगी पत्तियों से रस-शोषण करते समय विषाणुओं को भी प्राप्त कर लेती है और स्वस्थ्य पत्तियों से रस-शोषण करते समय उनमें विषाणुओं को संचारित कर देती है।
- इससे नियंत्रण हेतु डाइफेनथूरोंन 50% WP @ 15 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर पत्तियों पर छिडकाव करें। या
- पायरिप्रोक्सिफ़ेन 10% + बाइफेन्थ्रिन 10% EC @ 15 मिली या एसिटामिप्रिड 20% SP @ 8 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर पत्तियों पर छिडकाव करें।
पपीते की फसल में पर्ण कुंचन रोग की पहचान व कारण
- पर्ण-कुंचन (लीफ कर्ल) रोग के लक्षण केवल पत्तियों पर दिखायी पड़ते हैं। रोगी पत्तियाँ छोटी एवं क्षुर्रीदार हो जाती हैं।
- पत्तियों का विकृत होना एवं इनकी शिराओं का रंग पीला पड़ जाना रोग के सामान्य लक्षण हैं।
- रोगी पत्तियाँ नीचे की तरफ मुड़ जाती हैं और फलस्वरूप ये उल्टे प्याले के अनुरूप दिखायी पड़ती है जो पर्ण कुंचन रोग का विशेष लक्षण है।
- पतियाँ मोटी, भंगुर और ऊपरी सतह पर अतिवृद्धि के कारण खुरदरी हो जाती हैं। रोगी पौधों में फूल कम आते हैं। रोग के प्रभाव से पतियाँ गिर जाती हैं और पौधे की बढ़वार रूक जाती है।
अश्वगन्धा के औषधीय गुण
- अश्वगंधा में मौजूद एन्टीऑक्सीडेंट गुण के कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता (इम्युन सिस्टम) बढ़ाने में मदद मिलती है।
- अश्वगंधा में एंटी-स्ट्रेस गुण पाए जाते है जिससे मानसिक तनाव, अवसाद (डिप्रेशन) तथा चिंता को कम करने में मदद मिलती है।
- इसका उपयोग यौन दुर्बलता दूर करने में किया जाता है।
- अश्वगंधा वाइट ब्लड सेल्स और रेड ब्लड सेल्स दोनों को बढ़ाने का काम करता है, जो कई गंभीर शारीरिक समस्याओं में लाभदायक है।
- अश्वगंधा का सेवन करने से ह्रदय की मांसपेशियाँ मजबूत और खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद मिलती है।
- अश्वगंधा को बतौर कैंसर के इलाज के रूप में इस्तेमाल होने वाली कीमोथेरेपी के नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने में किया जाता है।
- मोतियाबिंद के खिलाफ इसका सेवन प्रभावशाली तरीके से काम करता है। साथ ही आंखों की रोशनी बढ़ाने में भी यह बेहतरीन विकल्प है।
कपास के खेत में अतिरिक्त पौधे हटाने और अतिरिक्त पौधे लगाने का महत्व जानें
- खेत में कपास की बुआई करने के 10 दिनों बाद कुछ बीज उग नहीं पाते हैं और कुछ पौधे उगने के बाद मर जाते हैं।
- यह अनेक कारणों से हो सकता है जैसे- बीज का सड़ जाना, बीज को अधिक गहराई में बोया जाना, किसी कीट के द्वारा बीज को खा लेना या पर्याप्त नमी का न मिलना आदि।
- इन खाली स्थानों पर पौधे न उगने पर उत्पादन में सीधा असर पड़ता है अतः इन स्थानों पर फिर से बीज को बोना चाहिए। इस क्रिया को गैप फिलिंग कहा जाता है।
- कपास के खेत में कतारों में पौधों के बीच की दूरी एक सामान होनी चाहिए। इसी खाली जगह को भरने की प्रक्रिया को गैप फिलिंग कहते है।
- गैप फिलिंग करने से पौधों के बीच की दूरी एक सामान रहती है। जिससे कपास का उत्पादन अच्छा मिलता है।
- वहीं दूसरी तरफ बुआई के समय एक ही स्थान पर एक से अधिक बीज गिर जाता है तो एक ही जगह पर अधिक पौधे उग आते हैं।
- अगर इन पौधों को समय रहते न निकाला जाये तो इसका सीधा नकारात्मक प्रभाव हमारे उत्पादन के ऊपर पड़ता है।
- इन अतिरिक्त पौधों को हटाने की क्रिया को थिन्निंग कहा जाता है। कपास की फसल में थिन्निंग बुआई के 15 दिन बाद की जाती है। ताकि पौधों को सही मात्रा में खाद और उर्वरक मिल सके और पौधों की उचित वृद्धि हो पाए।
बैंगन की फसल में सूत्रकृमि (निमाटोड) का प्रकोप
- मिट्टी में रहने वाले सूत्रकृमि के कारण बैंगन के पौधों की जड़ों में गांठे बन जाती है।
- इसका प्रकोप होने पर पौधें की जड़ पोषक तत्व अवशोषित नहीं कर पाती है। इस कारण फूल और फलों की संख्या में कमी आती है।
- पत्तियां पीली पड़कर सुकड़ने लगती है और पूरा पौधा बौना रह जाता है।
- अधिक संक्रमण होने पर पौधा सुखकर मर जाता है।
- जिस खेत में यह समस्या होती है वहाँ 2-3 साल तक बैंगन, मिर्च और टमाटर की फसल न लगाए।
- रोगग्रस्त खेत में गर्मी में गहरी जुताई अवश्य करें।
- बैंगन की फसल की 1-2 कतार के बीच गेंदा लगा दें।
- कार्बोफ्यूरान 3% दानों को रोपाई पूर्व 10 किलो प्रति एकड़ की दर से मिला दें।
- निमाटोड के जैविक नियंत्रण के लिए 200 किलो नीम खली या 2 किलो वर्टिसिलियम क्लैमाइडोस्पोरियम या 2 किलो पैसिलोमयीसिस लिलसिनस या 2 किलो ट्राइकोडर्मा हरजिएनम को 100 किलो अच्छी सड़ी गोबर के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से भूमि में मिला दें।
कपास की फसल में जड़ गलन रोग की पहचान और उपचार
- कपास के पौधों का मुरझाना इस रोग का पहला लक्षण है।
- इसके कारण गंभीर मामलों में सारी पत्तियां झड़ सकती हैं या पौधा गिर सकता है।
- इस रोग में जड़ की छाल पीली पड़ने के बाद फट जाती है जिससे पानी और पोषक तत्व ठीक से पौधे तक नहीं पहुँच पाते हैं।
- इससे पूरा जड़ तंत्र सड़ जाता है और पौधे को आसानी से उखाड़ा जा सकता है।
- शुरुआत में खेत में केवल कुछ पौधें प्रभावित होते हैं, फिर समय के साथ रोग का प्रभाव इन पौधों के चारों तरफ बढ़ता है और धीरे धीरे पूरे खेत में फैल जाता है।
- रोग से बचाव के लिए जैविक माध्यम से 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी या 10 ग्राम स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस प्रति किलो की दर से बीज उपचारित करना चाहिए। या
- बीजों को 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP प्रति किलो की दर से उपचारित करें।
- बचाव हेतु जैविक माध्यम से 4 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में 2 किलो ट्राइकोडर्मा विरिडी मिलाकर एक एकड़ के खेत में बिखेरें।
- रोग नियंत्रण हेतु 400 ग्राम कार्बेन्डाजिम 12% + मेंकोजेब 63% WP या 300 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल 75% WP या 600 ग्राम मेटालैक्सिल 4% + मैन्कोजेब 64% WP 200 लीटर पानी में मिलाकर दवा को पौधे के तने के पास डालें (ड्रेंचिंग करें)।
मित्र फफूंद ट्राइकोडर्मा का कब, कैसे और क्यों करें उपयोग?
- यह एक जैविक फफूंदनाशी/कवकनाशी है जो कई प्रकार के रोगजनकों को मारता है। जिससे फसलों में लगने वाले जड़ सड़न, तना सड़न, उकठा, आर्द्र गलन जैसे रोगों से सुरक्षा होती है।
- ट्राइकोडर्मा सभी प्रकार की फसलों में बीज उपचार, मिट्टी उपचार, जड़ों का उपचार और ड्रेंचिंग के लिए उपयोग किया जा सकता है।
- बीज उपचार के लिए 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो दर से काम आता है। यह बीज उपचार बुआई से पहले किया जाता है।
- जड़ों के उपचार के लिए 10 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 100 लीटर पानी मिला कर घोल तैयार करें फिर इसमें 1 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर तीनों का मिश्रण तैयार कर लें। अब इस मिश्रण में पौध की जड़ों को रोपाई के पहले 10 मिनट के लिए डुबोएं।
- मिट्टी उपचार हेतु 2 किलो ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति एकड़ की दर से 4 टन अच्छी सड़ी गोबर की खाद के साथ मिला खेत में मिलाया जाता है।
- खड़ी फसल में उपयोग करने के लिए एक लीटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाकर तना क्षेत्र के पास की मिट्टी में ड्रेंचिंग करें।
