धान की फसल के तेज ग्रोथ एवं कल्लो के अधिक फुटाव हेतु जरूरी पोषक तत्व प्रबंधन

Tri Dissolve Paddy Maxx

किसान भाइयों, धान की अधिक पैदावार लेने के लिये पोषक तत्व प्रबंधन एक महत्वपूर्ण उपाय हैं। जिसमें रासायनिक उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्व, जैविक उर्वरक, हरी-नीली शैवाल, गोबर की खाद एवं हरी खाद आदि का समुचित उपयोग किया जाता हैं। 

धान की बुवाई या रोपाई के समय दिए गए नाईट्रोजन की शेष 1/4 मात्रा कल्ले निकलने (कंसे फूटने) की अवस्था में दे। अगर रोपाई के समय जिंक सल्फेट का उपयोग नहीं किया गया तो जिंक सल्फेट 10 किग्रा प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।

वहीं गंधक की कमी वाले क्षेत्रों में गंधक युक्त उर्वरकों जैसे सिंगल सुपर फास्फेट या सल्फर आदि का प्रयोग करें। इसके अलावा फसल की अच्छी गुणवत्ता के लिए ट्रॉय डिज़ाल्व पैडी मैक्स का उपयोग जरूर करें। 

ट्राई डिज़ाल्व पैडी मैक्स:- यह एक जैव उत्तेजक पोषक तत्व है। जिसमें जैविक कार्बन, पोटेशियम, कैल्शियम, अन्य प्राकृतिक स्थिरक, आदि तत्व पाए जाते हैं। यह स्वस्थ और वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा देता है, प्रारंभिक अवस्था में जड़ का विकास करता है। इसके साथ ही विभिन्न पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ाता है। 

उपयोग की विधि:-   ट्राई डिज़ाल्व पैडी मैक्स का उपयोग 400 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से उस समय दिए जाने वाले पोषक तत्व के साथ मिलकर भुरकाव करें एवं 200 ग्राम ट्राई डिसॉल्व पैडी मैक्स प्रति एकड़, 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

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सोयाबीन में बढ़ेगा पीला मोजेक रोग, जानें नियंत्रण के उपाय

Yellow mosaic disease will increase in soybean

इस रोग की शुरूआती अवस्था में पतियों पर गहरे पीले रंग के धब्बे नजर आने शुरू होते हैं। ये धब्बे धीर धीरे फैलकर आपस में मिल जाते हैं। जिससे पूरी पत्ती हीं पीली पड़ जाती हैं। पत्तियों के पीले पड़ने के कारण अनेक जैविक क्रियांए प्रतिकुल रूप से प्रभावित होती हैं तथा पौधो में आवश्यक भोज्य पदार्थ का संश्लेषण नही हो पाता है। इस वजह से पौधों पर फूल कम आते हैं एवं फलियां लगती भी हैं तो उनमें दानों का विकास नही हो पाता हैं। सफेद मक्खी इस वायरस (विषाणु) के वाहक होते हैं और ये रोग को पूरे फसल में फैलाते भी हैं।

पीला मोजेक रोग पर नियंत्रण के उपाय

इस रोग के नियंत्रण के लिए प्रारंभिक अवस्था में ही अपने खेत में जगह-जगह पर पीला चिपचिपा ट्रैप लगाएं जिससे इसका संक्रमण फैलाने वाली सफेद मक्खी का नियंत्रण होने में सहायता मिले। इसके रोकथाम के लिए फसल पर पीला मोजेक रोग के लक्षण देखते ही ग्रसित पौधों को अपने खेत से बाहर निकाल दें। ऐसे खेत में सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए अनुशंसित पूर्व मिश्रित सम्पर्क रसायन जैसे स्पेर्टो (एसिटामिप्रिड 25% + बिफेन्थ्रिन 25% WG) 100 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिडक़ाव करें।

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सोयाबीन की फसल में तना मक्खी प्रकोप का ऐसे करें निदान

This is how to diagnose stem fly infestation in soybean crop
  • इस कीट की मैगट सफेद रंग के तने के अंदर रहती हैं। व्यस्क कीट चमकीले काले रंग का दो मिलीमीटर आकार के होते हैं।

  • इस कीट की मादा पत्तियों पर पीले रंग के अंडे देती हैं जिनसे मैगट निकलकर पत्तियों की शिराओं में छेद कर सुरंग बनाती हुई तने में प्रवेश करती है तथा तने को खोखला कर देती हैं।

  • इसके कारण पौधे की पत्तियां शुरूआती अवस्था में पीली दिखाई देने लगती हैं और बाद में पूरा पौधा पीला पड़ जाता है।

  • तना मक्खी से बचाव के लिए नोवालक्सम (लेम्बडासाइलोथ्रिन 9.5% + थायोमिथाक्सॉम 12.9 प्रतिशत ZC) 50 मिली प्रति एकड़ या कवर (क्लोरएन्ट्रानिलीप्रोल 18.5% SC) 60 मिली प्रति एकड़ का उपयोग करें।

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कपास में सफेद मक्खी प्रकोप को पहचानें और करें नियंत्रण

Identify and control whitefly infestation in cotton
  • सफ़ेद मक्खी अपनी शिशु व वयस्क अवस्था में कपास के पौधे का रस चूसकर, उसका विकास रोक देते हैं। यह कीट शिशु एवं वयस्क दोनों ही अवस्था में, कपास की फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाते हैं।

  • इस कीट द्वारा उत्सर्जित “मधुरस”, काली कवक के विकास में सहायक होता है। इसके अत्यधिक प्रकोप की दशा में, कपास की सम्पूर्ण फसल काली पड़ जाती है तथा पत्तियां जली-सी प्रतीत होती है।

  • कई बार फसल के पूर्ण विकसित हो जाने पर भी, इस कीट का प्रकोप हो जाने से, कपास की फसल की पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं। यह कीट वायरस जनित पर्ण-कुंचन (पत्ती मुड़ाव रोग/वायरस ) बीमारी के फैलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • रासायनिक प्रबंधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए डायफैनथीयुरॉन 50% WP @ 250 ग्राम/एकड़ या फ्लोनिकामिड 50% WG @ 60 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रीड 20% SP @ 100 ग्राम/एकड़ या पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC @ 250 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

  • जैविक प्रबधन: इस कीट के नियंत्रण के लिए बवेरिया बेसियाना @ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

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कपास की फसल में हरा तेला की समस्या एवं नियंत्रण के उपाय

Jassid problem and control measures in cotton crop

क्षति के लक्षण

इस कीट की शिशु और प्रौढ़ दोनों ही फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। यह कीट पौधों के तनों, पत्तियों और फूलों से रस चूसकर पौधों की वृद्धि को रोकते हैं। जिससे पौधे कमजोर, छोटे और बौने रह जाते हैं। इस कारण उपज कम हो जाती है और इस कीट द्वारा रस चूसने से पत्तियां सिकुड़ जाती हैं। इनके अधिक प्रकोप होने पर पौधा मर जाता है।

नियंत्रण के उपाय:-

  • किसान भाई कीट प्रकोप की जानकारी के लिए, पीले चिपचिपे ट्रैप (येलो स्टिकी ट्रैप) @ 8-10 प्रति एकड़, के हिसाब से खेत में स्थापित करें।

  • जैविक नियंत्रण के लिए, ब्रिगेड बी (बवेरिया बेसियाना 1.15% डब्ल्यूबी) @ 1 किग्रा/एकड़ 150 -200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए, मीडिया (इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एसएल) @ 50 मिली या थियामिथोक्साम 25% डब्ल्यू जी @ 40 ग्राम, या लांसर गोल्ड (ऐसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी) @ 400 ग्राम + (सिलिकोमैक्स) @ 50 मिली प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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मिट्टी में ऑर्गेनिक कार्बन का क्या होता है महत्व?

Importance of Organic Carbon for soil
  • ऑर्गेनिक कार्बन मिट्टी में ह्यूमस के निर्माण में सहायता करता है। इससे मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है और उर्वरता को बनाए रखता है।

  • मिट्टी में इसकी अधिकता होने से मिट्टी की भौतिक और रासायनिक गुणवत्ता बढ़ जाती है। मिट्टी की भौतिक गुणवत्ता जैसे मिट्टी की संरचना, जल धारण क्षमता, आदि को कार्बनिक कार्बन द्वारा बढ़ाया जाता है।

  • इसके अतिरिक्त पोषक तत्वों की उपलब्धता, स्थानांतरण एवं रूपांतरण और सूक्ष्मजीवी पदार्थों व जीवों की वृद्धि के लिए भी जैविक कार्बन बहुत उपयोगी होता है।

  • यह पोषक तत्वों की लिंचिंग (भूमि में नीचे जाना) को भी रोकता है।

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जैविक खेती में ह्यूमिक एसिड होता है बेहद महत्वपूर्ण

Humic acid is very important in organic farming
  • ह्यूमिक एसिड खदान से उत्पन्न एक बहुपयोगी खनिज है। इसे सामान्य भाषा में मिट्टी का कंडीशनर भी कहा जा सकता है।

  • यह बंजर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है तथा मिट्टी की संरचना को सुधार कर एक नया जीवनदान देता है।

  • इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य मिट्टी को भुरभुरा बनाना है जिससे जड़ों का विकास अधिक हो सके।

  • ये प्रकाश संलेषण की क्रिया को तेज करता है जिससे पौधे में हरापन आता है और शाखाओं में वृद्धि होती है।

  • यह पौधों की तृतीयक जडों का विकास करता है जिससे की मिट्टी से पोषक तत्वों का अवशोषण अधिक होता है।

  • पौधों की चयापचयी क्रियाओं में वृद्धि कर मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी यह बढाता है।

  • पौधों में फलों और फूलों की वृद्धि कर फसल की उपज को बढ़ाने में भी यह सहायक होता है।

  • यह बीज की अंकुरण क्षमता बढाता है तथा पौधों को प्रतिकूल वातावरण से भी बचाता है।

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मिलेगी प्याज की उपज बेमिसाल, पंचरत्न के पुष्कर बीज हैं कमाल

Pushkar seeds of Pancharatna are amazing

प्याज की पावरफुल उपज पाने के लिए आप पंचरत्न के पुष्कर बीज का चुनाव कर सकते हैं। आइये जानते हैं इस बीज की क्या हैं खूबियां?

  • खरीफ और पछेती खरीफ किस्म

  • 2.5 से 3 किलोग्राम बीज दर

  • गहरे लाल अंडाकार कंद

  • 80 से 100 ग्राम वज़नदार कंद

  • 80 से 90 दिन की फसल अवधि

  • 2 महीने की भंडारण क्षमता

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मिर्च की 20 से 30 दिनों की फसल अवस्था में ऐसे करें उर्वरकों का प्रबंधन

Know how to manage fertilizers in 20 to 30 days crop stage of chilli
  • जिस प्रकार मिर्च की रोपाई के समय उर्वरक प्रबंधन आवश्यक होता है ठीक उसी प्रकार रोपाई के 20 से 30 दिनों के बाद भी उर्वरक प्रबंधन करना बहुत आवश्यक होता है।

  • यह प्रबंधन मिर्च की फसल की अच्छी बढ़वार एवं रोगों के विरुद्ध पौधों में  प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है।

  • रोपाई के बाद इस समय में ही पौधे की जड़ ज़मीन में फैलती है और इसीलिए इस समय जड़ों की अच्छी बढ़वार सुनिश्चित करने के लिए उर्वरक प्रबंधन बहुत आवश्यक होता है।

  • इस समय उर्वरक प्रबंधन के लिए यूरिया @ 45 किलो/एकड़ DAP @ 50 किलो/एकड़, मैग्नेशियम सल्फेट @15 किलो/एकड़, सल्फर@ 5 किलो/एकड़, जिंक सल्फेट @ 5 किलो/एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करें।

  • इस बात का भी ध्यान रखें की उर्वरकों के उपयोग के समय खेत में नमी जरूर हो।

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पर्ण कुंचन रोग से मिर्च की फसल को होगा नुकसान, जानें बचाव के उपाय

Chilli crop will be damaged due to leaf curl disease
  • मिर्च के पौधों में पर्ण कुंचन रोग के कारण पत्तियां ऊपर और नीचे की ओर मुड़ने लगती हैं। पत्ती के किनारे हल्के हरे से लेकर पीले रंग के हो जाते हैं, जो आखिर में शिराओं तक फैल जाते हैं। इसके कारण नोड्स और इंटरनोड्स आकार में छोटे हो जाते हैं। संक्रमित पौधे झाड़ीदार दिखाई देते हैं, विकास गंभीर रूप से अवरुद्ध हो जाता है, पीलेपन की समस्या भी दिखाई देती है और संक्रमित पौधों के फल भी छोटे रह जाते हैं।

  • इस रोग का फैलाव सफेद मक्खी की वजह से होता है। यह रोग तापमान और सापेक्ष आर्द्रता में तेजी के साथ बढ़ता है। इसके विषाणु मुख्य रूप से खरपतवारों पर रहते हैं। गर्म और शुष्क मौसम इस रोग-प्रसार का पक्षधर है।

  • इसके नियंत्रण हेतु नायलॉन-नेट कवर (50 मेश) के नीचे नर्सरी उगाएं, खेत से जल्दी संक्रमित पौधों और खरपतवारों को हटा लें, मक्का ज्वार या बाजरा के साथ फसल की दो पंक्तियाँ रोग-प्रसार को कम करती हैं।

  • इसके रासायनिक नियंत्रण के लिए आप  फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% SC) 320-400 मिली/एकड़ का उपयोग करें।

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