- यह कीट दिन में मिट्टी के ढेलों, पुआल, खर-पात के ढेरों में छिप जाता है और रात भर फसलों को खाता रहता है। प्रभावित खेत/फसल में इसकी संख्या काफी देखी जा सकती है। इस कीट की प्रवृति बड़ी तेजी से खाने की होती है और काफी कम समय में यह पूरे खेत की फसल को खाकर प्रभावित कर सकता है। अतः इस कीट का प्रबंधन/नियंत्रण आवश्यक है।
- आर्मी वर्म (सैनिक कीट) एक साथ समूह में फसल पर आक्रमण करता है एवं मूलतः रात में फसलों की पत्तियों या अन्य हरे भाग को किनारे से काटता है तथा दिन में यह खेत में स्थित दरार या ढेला के नीचे या घने फसल के छाये में छिपा रहता है।
- जिन क्षेत्रों में सैनिक कीट की संख्या अधिक है उन क्षेत्रों में निम्नांकित किसी एक कीटनाशी का छिड़काव तत्काल किया जाये।
- बुआई के पूर्व मिट्टी उपचार: मक्का की फसल में मिट्टी उपचार के द्वारा सैनिक कीट (फॉल आर्मी वर्म) का प्रबंधन किया जाता है। इसके लिए बवेरिया बैसियना 250 ग्राम/एकड़ की दर से 50 किलो FYM मिलाकर खाली खेत में भुरकाव करें।
- छिड़काव: लेमड़ासाहेलोथ्रिन 4.6% + क्लोरांट्रानिलप्रोल 9.3% ZC 100 मिली/एकड़, या क्लोरांट्रानिलप्रोल 18.5% SC @ 60 मिली/एकड़, या इमाबेक्टीन बेंजोएट 5% SG @ 100 ग्राम/एकड़ + बवेरिया बैसियना @ 250 ग्राम/एकड़ का इस्तेमाल करें।
- जिन क्षेत्रों में इसकी संख्या कम हो, उन क्षेत्रों में कृषक बन्धु अपने-अपने खेत के मेड़ पर एवं खेत के बीच में जगह-जगह पुआल का छोटा-छोटा ढेर लगा कर रखें। धूप में आर्मी वर्म (सैनिक कीट) छाया की खोज में इन पुआल के ढेर में छिप जाता है। शाम को इन पुआल को इकट्ठा करके जला देना चाहिए।
26 हजार कृषक मित्र की होगी मध्यप्रदेश में तैनाती, किसानों को देंगे सरकारी योजनाओं की जानकारी
मध्यप्रदेश सरकार किसानों के बीच कृषि संबंधित योजनाओं की जानकारी पहुँचाने के लिए 26 हजार कृषक मित्र तैनात करने वाली है। ग़ौरतलब है की प्रदेश की पिछली कमल नाथ सरकार ने भी हर दो पंचायतों पर एक “कृषक बंधु” नियुक्त करने की योजना बनाई थी। इसी योजना को पलटते हुए अब वर्तमान सरकार ने 26 हजार कृषक मित्र तैनात करने की योजना बनाई है। राज्य के कृषि मंत्री कमल पटेल ने प्रमुख सचिव अजीत केसरी को फिर से कृषक मित्र बनाने के निर्देश दिए हैं।
इस मसले पर कृषि विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि स्थानीय प्रगतिशील किसान को ही कृषक मित्र बनाया जाएगा। इनका काम किसानों के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे कामों के बारे में जानकारी देने के साथ किसानों को खेती में तकनीक के उपयोग को प्रोत्साहित करना भी होगा। किसानों को यदि किसी योजना का लाभ प्राप्त करने में कोई समस्या आती है तो भी ये कृषक मित्र इसकी सूचना वरिष्ठ स्तर पर देंगे।
स्रोत: नई दुनिया
Shareकपास में ऊकसुक/उतसुक (विल्ट) रोग का प्रबंधन
- यह रोग सभी चरणों में फसल को प्रभावित करता है। इसके सबसे शुरुआती लक्षण अंकुरों में बीजपत्रों पर दिखाई देते हैं जो पीले और फिर भूरे रंग के हो जाते हैं।
- यह एक मृदाजनित रोग है। अन्य बीमारियों एवं ऊकसुक रोग में अंतर करना मुश्किल हो सकता है।
- युवा और बड़े हो चुके पौधों में, इसका पहला लक्षण पत्तियों के किनारों का पीला पड़ना और नसों के आसपास के क्षेत्र का मलिनकिरण मार्जिन से शुरू होता है, इसके बाद यह जड़ों, तनों और मिडरिब की ओर फैलता है। पत्तियां अपनी मरोड़ को ढीला करती हैं, धीरे-धीरे भूरे रंग की हो जाती हैं, सूख जाती हैं और अंत में गिर जाती हैं। इस रोग के निवारण के लिए मिट्टी उपचार करना, एवं बीज उपचार बहुत आवश्यक होता है।
- यह रोग प्रारंभिक वनस्पति विकास के दौरान ठंडे तापमान और गीली मिट्टी के द्वारा होता है। प्रारंभिक प्रजनन चरणों के दौरान पौधे संक्रमित होते हैं, लेकिन लक्षण बाद में दिखाई देते हैं।
- इससे बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 37.8% + थायरम 37.8% 2.5 ग्राम/किलो बीज से बीज उपचार करें।
- कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या थियोफिनेट मिथाइल 70% WP 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- जैविक उपचार में बेसिलस सबटिलुस/ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें। इन कवकनाशियो का उपयोग मिट्टी उपचार एवं बीज उपचार में करें।
- अधिक समस्या होने पर डीकंपोजर का भी उपयोग कर सकते हैं। इसका उपयोग खाली खेत में फसल बुआई से पहले करें।
सोयाबीन की फसल में सल्फर की उपयोगिता
- सोयाबीन उत्पादन के लिए सल्फर बहुत आवश्यक होता है।
- सल्फर सोयबीन की फसल में प्रोटीन एवं तेल के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।
- सल्फर पत्तियों में पर्णहरित के निर्माण में सहायक होता है।
- सल्फर पौधों में एंजाइमों की क्रियाशीलता को बढ़ता है।
- सल्फर की कमी के लक्षण सबसे पहले नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं जो की नाइट्रोजन देने के बाद भी बने रहते है।
- नई पत्तियां इसकी कमी के कारण पीली पड़ जाती हैं।
- फसलें अपेक्षाकृत देर से पकती हैं एवं बीज ढंग से परिपक्व नहीं हो पाते हैं।
- सोयबीन के पौधों में स्थित गाठें ढंग से विकसित नहीं हो पाती हैं। इसके कारण प्राकृतिक नाइट्रोजन प्रक्रिया पर विपरीत असर पड़ता है।
9.87 करोड़ किसान पा सकते हैं KCC के अंतर्गत 3 लाख रुपये तक का लोन
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम से जुड़े हर किसान के लिए केंद्र सरकार की तरफ से सस्ते दर पर लोन दिए जाने की योजना बनाई है। इस योजना का उद्देश्य यह है की पैसे के कमी के कारण कोई किसान खेती ना छोड़े। केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने बताया की आने वाले कुछ दिनों में 2.5 करोड़ किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड के अंतर्गत 2 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया जाएगा। यह बड़ी रकम प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लाभार्थियों को दिया जाएगा।
बता दें की किसान क्रेडिट कार्ड पर कर्ज की दर 4% है। किसान 4% की ब्याज दर पर किसी सिक्योरिटी के बिना 1.60 लाख रुपये तक का लोन आसानी से ले सकते हैं। इतना ही नहीं अगर किसान इस लोन का समय पर भुगतान करता है तो उसकी लोन राशि को 3 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।
केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री ने आगे बताया कि 1 मार्च से लेकर अब तक देश के लगभग 3 करोड़ किसानों को 4.22 लाख करोड़ रुपये का कृषि कर्ज उपलब्ध कराया गया है जिसमें 3 महीने का ब्याज भी माफ किया गया है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम से जुड़े 25 लाख नए किसानों को क्रेडिट कार्ड भी जारी किए गए हैं।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareऐसे करें एफिड एवं जैसिड का प्रबंधन
- एफिड और जेसीड फसलों का रस चूसने वाले कीट है। यह आकार में बहुत छोटे होते हैं। इनका आकार एक दाल की नोक के समान होता है। आमतौर पर यह पीले-हरे या सफ़ेद रंग के होते हैं जिनके सामने के पंखों पर काले धब्बे होते हैं। फसल पर थोड़ी सी हलचल होने पर जेसिड उड़ जाते हैं। फसलों में यह किट पत्तियों और पत्तियों के कलियों के नीचे से रस चूसते हैं।
- एफिड एवं जैसिड के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 60% FS या थायमेथोक्साम 30% FS 10 मिली/किग्रा बीज के साथ देना चाहिए। यह बीजोपचार फसल को एक महीने तक चूसने वाले कीट से मुक्त रखता है।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL @100 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रिड 20% WP@ 100 ग्राम/एकड़ या एसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8 % SP@ 400 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
जैविक उपचार:
- बवारिया बसियाना को 1 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।
- मेट्राजियम का 1 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से खेतों में छिड़काव करें।
धान की नर्सरी की तैयारी एवं बुआई
- धान की पौध को ऐसे खेत में डालना चाहिए जो कि सिंचाई के स्रोत के पास हो।
- मई जून में प्रथम वर्षा के बाद नर्सरी के लिए चुने हुए खेत में पाटा चला कर जमीन को समतल कर लेना चाहिए। पौध तैयार करने के लिए खेत में दो-तीन सेमी0 पानी भरकर दो तीन बार जुताई करें। ताकि मिट्टी लेह युक्त हो जाए तथा खरपतवार नष्ट हो जाए। आखिरी जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल करें। ताकि खेत में अच्छी तरह लेह बन जाए, जिससे कि पौध की रोपाई के लिए उखाड़ने में मदद मिले तथा जड़ों का नुकसान कम हो।
- पौध तैयार करने के लिए 1.25 मीटर चौड़ी व 8 मीटर लम्बी क्यारियां बना लें तथा प्रति क्यारी (10 वर्गमीटर) में 10 किलो/वर्गमीटर FYM एवं सूक्ष्म पोषक तत्व 100 ग्राम/वर्गमीटर के हिसाब से उपयोग करें।
- यह ध्यान रहे कि नर्सरी (पौध) जितनी स्वस्थ होगी उतनी अच्छी उपज मिलेगी।
- बीज की मात्रा – एक एकड़ क्षेत्रफल की रोपाई के लिए धान के महीन चावल वाली किस्मों का 12-13 किलोग्राम, मध्य दाने वाली किस्मों का 16-17 किलोग्राम और मोटे दाने वाली किस्मों का 20 से 30 किलोग्राम बीज की पौध तैयार करने की आवश्यकता होती है। जबकि संकर प्रजातियों के लिए प्रति एकड़ 7-8 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
- रासायनिक बीजोपचार – सर्वप्रथम बीज को 12 घण्टे तक पानी में भिगोयें तथा पौधशाला में बुआई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63%WP 2.5 ग्राम/किलो बीज या कार्बोक्सिन 37.8% + थायरम 37.8% 2.5 ग्राम/किलो बीज.
- जैविक उपचार: या ट्राइकोडर्मा विरिडी + पीएसबी 10ग्राम + 5 ग्राम/किलो बीज या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस + पीएसबी 10 ग्राम + 5 ग्राम/किलो बीज।
- नर्सरी की देखरेख – अंकुरित बीज की बुआई के दो – तीन दिनों के बाद पौधशाला में सिचाई करें। फिप्रोनिल 5% SC 30 मिली/पंप + कसुंगामायसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP 20 ग्राम/पंप + ह्यूमिक एसिड 10 ग्राम/पंप नर्सरी छिड़काव करें।
इस साल किसान कर सकते हैं चावल का रिकॉर्ड उत्पादन
इस साल देश के किसान चावल के उत्पादन में रिकॉर्ड उत्पादन कर सकते हैं। इसके पीछे की वजह सरकार द्वारा धान की कीमत बढ़ाना और संभावित अच्छी मानसून की बारिश बताई जा रही है जिसके कारण किसान धान की बुआई बड़े स्तर पर कर रहे हैं। इसके कारण देश में चावल के उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि होने की संभावना है।
इस मसले पर भारत के चावल निर्यातक संघ के अध्यक्ष बी वी कृष्णा राव ने कहा कि “किसान धान उगाने में रुचि रखते हैं। सरकारी समर्थन के कारण उनका विस्तार होने की संभावना है। नए विपणन वर्ष में हम 120 मिलियन टन का उत्पादन कर सकते हैं। सरकार ने कीमत बढ़ाई हैं जिस पर वह किसानों से नए सीजन का चावल खरीदेगी।”
ओलाम इंडिया के उपाध्यक्ष नितिन गुप्ता ने इस विषय पर कहा कि “वैश्विक कीमतों में बढ़ोत्तरी, अच्छी मानसूनी बारिश और बढ़ते निर्यात भारतीय किसानों को अधिक चावल लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।” गुप्ता ने कहा कि अपने प्रतिद्वंद्वियों के विपरीत, भारत में निर्यात के लिए बड़े पैमाने पर अधिशेष है और यह नए सत्र में और बड़ा हो जाएगा।
स्रोत: फ़सल क्रांति
Shareमक्का की उन्नत किस्में
- 6240 sygenta: यह परिपक्वता के बाद भी हरी रहती हैं जिसकी वजह से यह चारे के लिए उपयुक्त किस्म हैं। इससे अधिक उपज और इसके दाने सेमी डेंट प्रकार के होते हैं जो भुट्टे में अंत तक भरे रहते हैं। प्रतिकूल वातावरण में भी उग जाता है स्टॉल्क और रुट रॉट एवं रस्ट बीमारियों के लिए रसिस्टेंट रहती है |
- Syngenta S 6668: सिंचित क्षेत्र के लिए उपयुक्त, अधिक उपज क्षमता, बड़े भुट्टे जो की अंत तक भरे होते हैं |
- Pioneer-3396/Pioneer 3401: दाने भरने की क्षमता अधिक लगभग 80-85%, हर भुट्टे में 16-20 लाइने होती हैं, अंत तक भुट्टे भरे होते हैं, लम्बी अवधी की फसल 110 दिन, अधिक उपज 30-35 कुन्तल।
- Dhanya-8255: नमी तनाव के लिए सहिष्णु, चारे हेतु इस्तेमाल के लिए उपयुक्त।
- NK-30: उष्णकटिबंधीय वर्षा के लिए अनुकूल, तनाव/सूखा आदि की स्थिति को सहन करने की क्षमता वाली, उत्कृष्ट टिप भरने के साथ गहरे नारंगी रंग के दाने वाली, उच्च उपज, चारे के लिए उपयुक्त।
- इन सभी किस्मो की फसल अवधि 100-120 दिनों तक रहती है एवं बीज दर 5-8 किलोग्राम/एकड़ की आवश्यकता होती है।
खरपतवारनाशी के उपयोग के दौरान अपनाई जाने वाली सावधानियां
- खरपतनारनाशी आधुनिक कृषि विज्ञान की परम आवश्यकता है। खरतवारनाशीयों से खरपतवार नियंत्रण करना मज़दूरों द्वारा या या यंत्रो द्वारा खरपतवार नियंत्रण से अधिक मितव्ययी है।
- किसानो को खरपतवार के चयन के पूर्व निम्रलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
- जिस खरपतवारनाशी का उपयोग कर रहे हैं वह बहुत प्रकार के खरपतवार के लिए उपयोग हो सकता है या नहीं इसका भी ध्यान रखना चाहिए।
- खरपतवारनाशी खरीदने से पहले उसके उत्पादन की तिथि एवं उपयोग का तरीका अच्छे से पढ़ लेना चाहिए।
- स्प्रे से पूर्व यह ध्यान रखें की खरपतवारनाशी की निर्धारित मात्रा ही उपयोग हो।
- फसल की प्रारंभिक अवस्था में स्रे पंप पर हुक लगाकर उपयोग करें ताकि फसल पर दवाई का छिड़काव ना हो एवं फसल जलने से बच जाये।
- यदि फसल के अनुसार कोई खरपतवारनाशी सुझाव दिया गया है तो उस फसल पर उसी का उपयोग करें।
- खरपतवारनाशी को किसी भी कीटनाशक एवं कवकनाशक के साथ ना मिलाये।