- गर्डल बीटल के द्वारा पौधे के तने को अंदर से लार्वा द्वारा खाया जाता है और तने के अंदर एक सुरंग बनाई जाती है।
- संक्रमित हिस्से वाले पौधे की पत्तियां पोषक तत्व प्राप्त करने में असमर्थ होती हैं और सूख जाती हैं।
- इस समस्या के समाधान के लिए लैंबडा सायलोथ्रिन 4.9% CS @ 200 मिली/एकड़ या प्रोफेनोफोस 40% EC + साइपरमेथ्रिन 4% EC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- क्विनालफॉस 25% EC@400 मिली/एकड़ या बायफैनथ्रीन @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
कपास की फसल में कोणीय पत्ती (ऐगूलरलीफ स्पॉट) रोग का प्रबंधन
- पौधों में कोणीय पत्ती रोग कई प्रकार के बैक्टीरिया के कारण होता है जो बीज और पौधे के मलबे में जीवित रहते हैं, जिसमें स्यूडोमोनास सिरिंज और ज़ेंथोमोनस फ्रैगरिया शामिल हैं।
- पत्तियों की शिराओं के बीच पानी से लथपथ घाव इस बीमारी का एक लक्षण है, लक्षण अक्सर पत्तियों के नीचे पर दिखाई देते हैं। जिसके कारण पत्तिया मर जाती हैं।
- इसके कारण ऊतक भंगुर हो जाता है और उन पत्ती के हिस्से दूर हो जाते हैं, जिससे पीड़ित पत्तियों को एक रगड़ दिखाई देती है। कोणीय पत्ता स्पॉट घाव रोग के कारण पत्तियों से एक दूधिया तरल पदार्थ को बाहर निकालता है जो पत्ती की सतहों पर सूख जाता है। इसका गंभीर प्रकोप होने पर तने और फलों पर घाव दिखाई देते हैं।
- इस रोग के प्रबंधन के लिए कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP@300 ग्राम/एकड़ या कसुगामाइसिन 3% SL@ 400 मिली/एकड़ या स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड@ 24 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या बेसिलस सबटिलिस@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
पूरे मध्यप्रदेश में सक्रिय हुए मानसून को देख किसानों के चेहरे पर बिखरी मुस्कान
तय समय पर दस्तक देने के बाद मानसून अब धीरे धीरे पूरे मध्य प्रदेश में सक्रिय हो गया है। मानसून की सक्रियता को देख कर किसानों के चेहरे पर भी मुस्कान बिखर गई है। ख़ास कर के धान की खेती करने वाले किसानों के लिए मानसून की बारिश किसी सौगात की तरह है।
इसके अलावा मक्का की खेती करने वाले किसान भी मानसून की बारिश से खुश हैं। हालांकि इस बारिश से सोयाबीन और कपास जैसी फ़सलों में कीटों का प्रकोप भी हो सकता है जिसके लिए किसानों को पहले से बचाव के उपाय कर लेने चाहिए।
अगर बात करें अगले 24 घंटों के दौरान मध्य प्रदेश के मौसम पूर्वानुमान की तो प्रदेश के कुछ हिस्सों में हल्की से मध्यम बारिश होने की संभावना जताई गई है। इससे पहले जबलपुर, भोपाल के इलाकों में पिछले दिनों मानसून की अच्छी बारिश देखने को मिली है।
स्रोत: नई दुनिया
Shareमिर्च के पौधों में पत्ते मुड़ जाने की समस्या का ऐसे करें निदान
- एफिड्स, थ्रिप्स, माइट्स और वाइटफ्लाइज़ जैसे कीट अपनी फीडिंग गतिविधियों के साथ मिर्च के पौधों पर पत्तियों के मुड़ाव का कारण बनते हैं।
- परिपक्व पत्तियां धब्बेदार या कटे-फटे क्षेत्रों को विकसित कर सकती हैं, सूख सकती हैं या गिर सकती हैं, लेकिन विकास के दौरान खिलाए गए पत्ते बेतरतीब ढंग से मुड़े हुए होते हैं या मुड़ जाते हैं।
- इस समस्या के समाधान के लिए प्रीवेंटल BV @ 100 ग्राम/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- ऐसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP@ 400 ग्राम/एकड़ या लैंबडा सायलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- मेट्राज़ियम @ 1 किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से उपयोग करें।
मिर्च की फसल में थ्रिप्स का प्रबंधन
- मिर्च की फसल में जब पहली मानसूनी बारिश हो जाती है तब रस चूसक कीटों का प्रकोप शुरू होने लगता है यह कीट पत्तियों का रस चूसते हैं वे अपने तेज मुखपत्र के साथ पत्तियों एवं कलियों का रस चूसते हैं।
- इसके कारण पत्तियां किनारों पर भूरी हो सकती हैं, या विकृत हो सकती हैं और ऊपर की ओर कर्ल कर सकती हैं। इस कारण पत्तियां मुरझा जाती हैं और पौधे की बढ़वार पूरी तरह रुक जाती हैं यह वायरस के भी फैलने का कारण बनते हैं।
- इन कीटों में मुख्य रूप से थ्रिप्स का प्रकोप बहुत अधिक होता है।
- इन कीटों के प्रबंधन के लिए निम्र रसायनों का उपयोग लाभकारी होता है।
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल.@ 100 मिली/एकड़, या थायमेंथाक्साम 25% WG@ 100 ग्राम/एकड़, या
- ऐसीफेट 50% + इमिडाक्लोप्रिड 1.8% SP@300 ग्राम/एकड़ या एसिटामेप्रीड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- लैंबडा सायलोथ्रिन 4.9% CS @ 300 मिली/एकड़ या फिप्रोनिल 5% SC @ 400 मिली/एकड़।
- प्रोफेनोफोस 50% EC @ 400 मिली/एकड़ या एसिटामिप्रिड 20% SP@ 100 ग्राम/एकड़।
- मेट्राज़ियम @1 किलो/एकड़ या बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम/एकड़ की दर से करें।
पीएम किसान योजना में संशोधन, 2 करोड़ अतिरिक्त किसानों को मिलेगी 6 हजार रुपए की किश्त
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत किसानों को अगली किश्त आगामी 1 अगस्त 2020 से मिलने लगेगी। ग़ौरतलब है की पिछले साल इस महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत हुई थी, जिसके अंतर्गत केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक मदद के तौर पर सीधे किसानों के बैंक खाते में पैसे भेज दिए जाते हैं। बहरहाल अब इस योजना में एक बड़ा बदलाव हो गया है जिससे इस योजना का अब तक लाभ नहीं उठा सकने वाले 2 करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा।
केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी के अनुसार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत आने वाले किसानों के दायरे में विस्तार किया गया है। अब इस योजना के अंतर्गत अधिकतम 2 हेक्टेयर तक की कृषि योग्य भूमि के स्वामित्व की बाध्यता को समाप्त किया जा चुका है। इससे 2 करोड़ से अधिक किसानों को लाभ मिलेगा और उन्हें जल्द ही 6 हजार रूपये की किश्त दी जायेगी।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareटमाटर की उन्नत खेती के लिए ऐसे करें नर्सरी की तैयारी एवं बीज उपचार
- खेत में रोपाई के लिए नर्सरी बेड पर टमाटर के बीज बोए जाते हैं।
- नर्सरी में 3 x 0.6 मीटर और 10-15 सेमी की ऊंचाई वाले बेड तैयार किए जाते हैं।
- पानी, निराई, आदि के संचालन को करने के लिए दो बेड के बीच लगभग 70 सेमी की दूरी रखी जाती है। बेड की सतह चिकनी और अच्छी तरह से समतल होनी चाहिए।
- नर्सरी बेड को FYM 10 किग्रा/एकड़ और DAP@1 किलो किग्रा/एकड़ की दर से उपचारित करें।
- भारी मिट्टी में जल भराव की समस्या से बचने के लिए उठा हुआ बेड आवश्यक है।
- बुआई के पूर्व बीज उपचार भी अति आवश्यक है इसके लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP @ 3 ग्राम/किलो बीज या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 1 ग्राम/100 ग्राम बीज या थायरम 37.5% + कार्बोक्सिन 37.5% @ 2.5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करें।
- नर्सरी में बुआई करने के 7 दिनों के बाद क्लोरोथालोनिल 75% WP@ 30 ग्राम/15 लीटर या थियामेथोक्साम 25% WG 10 ग्राम/15 लीटर का ड्रेंचिंग के रूप में उपयोग करें।
गिलकी की फसल में अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट प्रबंधन
- इस रोग में पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के संकेंद्रित धब्बे बनते हैं व अन्त में पत्तियाँ सूखकर झड़ने लगती है।
- वातावरण में नमी की अधिकता होने पर ही यह रोग दिखाई देता है एवं उग्र रूप से फैलता है।
- इससे बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP @ 2.5 ग्राम/किलो बीज या ट्रायकोडर्मा विरिडी @ 5 ग्राम/किलो बीज की दर से बीज उपचार करना आवश्यक है।
- थियोफैनेट मिथाइल 70% WP @ 500 ग्राम/एकड़ या सूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
- कीटाजिन @200 ग्राम/एकड़ या बैसिलस सबटिलस @250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।
ड्रोन से टिड्डियों पर नियंत्रण करने वाला दुनिया का पहला देश बना भारत
पिछले कई हफ़्तों से राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में पाकिस्तान से आये टिड्डी दल का हमला हो रहा है। ऐसे में भारत में टिड्डी नियंत्रण अभियान के लिए कई कोशिश की गयी है जिसके कारण टिड्डियों के नियंत्रण में कामयाबी भी मिल रही है। भारत ने टिड्डियों को कंट्रोल करने में कुछ ऐसा किया है जिसकी तारीफ पूरी दुनिया में हो रही है। दरअसल भारत ने टिड्डी नियंत्रण के लिए ड्रोन का सहारा लिया है और ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश भी बन गया है।
ड्रोन की सहायता से हवाई छिड़काव करके फसल को भारी नुकसान पहुंचाने वाली टिड्डियों का सफ़ाया किया जा रहा है। टिड्डियों पर प्राप्त की गई इस सफलता के लिए संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य एवं कृषि संगठन यानी एफएओ (FPO) ने भी भारत की जमकर तारीफ भी की है।
ख़बरों के अनुसार देश के कई राज्यों के कृषि विभाग, स्थानीय प्रशासन और सीमा सुरक्षा बल की मदद लेकर इस काम को अंजाम दिया जा रहा है। राजस्थान, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में करीब 114,026 हेक्टेयर क्षेत्र में टिड्डी नियंत्रण कार्य सफलता पूर्वक पूरा कर लिया गया है।
स्रोत: कृषि जागरण
Shareमक्का की फसल में जिंक की उपयोगिता
- मक्का की फसल की बेहतर बढवार के लिए एवं अच्छी उपज के लिए जिंक की आवश्यकता होती है। यह पोषक तत्व पौधे भूमि (मिट्टी) से प्राप्त करते हैं।
- ज़िंक मक्का के पौधों के कायिक विकास और प्रजनन क्रियाओं के लिए आवश्यक हार्मोन के संशलेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- मक्का में जिंक की कमी से सफेद कली रोग उत्पन्न होता है |
- पौधों में वृद्धि को निर्धारित करने वाले इंडोल एसिटिक अम्ल नामक हार्मोन के निर्माण में जिंक की अहम भूमिका होती है।
- पौधों में विभिन्न धात्विक एंजाइम में उत्प्रेरक के रूप में एवं उपपाचयक की क्रियाओं के लिए यह आवश्यक होता है।
- जिंक कमी के लक्षण पौधों की माध्यम पत्तियों पर आते हैं। जिंक की अधिक कमी से नई पत्तियां उजली निकलती हैं। पत्तियों की शिराओं के मध्य सफेद धब्बे दिखाई देते हैं |
- जिंक का पौधों में प्रोटीन संशलेष्ण तथा जल अवशोषण में अप्रत्यक्ष रूप में भाग लेना
- पौधों के आनुवांशिक पदार्थ राइबोन्यूक्लिक अमल के निर्माण में भी इसकी भागीदारी निश्चित करता है।