समुद्री शैवाल (सी वीड) का फ़सलों में महत्व

Importance of Seaweed in Crops
  • समुद्री शैवाल (सी वीड) पौधों की चयापचय बढ़ाने के रूप में काम करता है, यह पौधों में आंतरिक वृद्धि और विकास प्रक्रियाओं को उत्तेजित करती है। 
  • प्रारंभिक अंकुरण वृद्धि के साथ साथ प्राथमिक एवं माध्यमिक जड़ विकास करता है।
  • समुद्री शैवाल सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता बढ़ाता है। जिससे मृदा की संरचना में सुधार होता है। 
  • इससे उच्च मात्रा में पोषक तत्व पौधों को प्राप्त होते है जिससे पत्तियों और शाखाओं का बेहतर विकास होता है। 
  • फसल में फूलों एवं फलों का झड़ना कम करता है।  
  • दानों और फलों के आकर और वजन में वृद्धि कर फसल में अधिक उपज के साथ गुणवत्ता बढ़ाता है।
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ग्रामोफ़ोन की मदद से सोयाबीन की खेती विष्णु ठाकुर के लिए बन गई लाभ का सौदा

इंदौर जिले के देपालपुर तहसील के बिरगोदा गांव के रहने वाले किसान भाई विष्णु ठाकुर पिछले 10 वर्षों से खेती कर रहे हैं और मुख्यतः वे सोयाबीन, गेंहू, चना, लहसुन, आलू जैसी फ़सलों की खेती करते हैं। विष्णु जी खेती के दौरान अपनी फ़सलों में लगने वाली बीमारियों की वजह से परेशान रहते थे और इसी वजह से उन्हें अपनी फसल से अच्छा उत्पादन भी नहीं मिल पाता था।

जब विष्णु अपनी फ़सलों से संबंधित इन समस्याओं से परेशान थे उसी दौरान उन्हें ग्रामोफ़ोन के बारे में पता चला और वे इससे जुड़ गये। ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के बाद उनके समस्याओं का निदान मिलने लगा। इस बारे में बात करते हुए उन्होंने टीम ग्रामोफ़ोन को बताया की “ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के बाद आज मेरी फ़सलों में सुधार हुआ है। पहले मेरी फसलें जो घाटे का सौदा या फिर ‘ना नफा ना नुकसान’ की तरह होती थीं वहीं अब यह मुनाफ़ा दे रही हैं। विष्णु मानते हैं की ग्रामोफ़ोन ने खेती को ‘लाभ का धंधा’ बना दिया है।

बहरहाल विष्णु को अपनी परेशानियों से निजात दिलाने में ग्रामोफ़ोन ने मदद की। इसी का नतीजा था की उनका सोयाबीन का उत्पादन पूर्व में हुए उत्पादन का लगभग दोगुना हो गया। जहाँ पहले विष्णु को सोयाबीन की खेती से 195000 रूपये का मुनाफ़ा हुआ वहीं ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के बाद यह मुनाफ़ा बढ़ कर 380000 रूपये हो गया।

अगर आप भी अपनी खेती को लेकर किसी प्रकार की समस्या का सामना कर रहे हैं तो विष्णु की तरह आप भी ग्रामोफ़ोन के साथ जुड़ कर अपनी परेशानियों का निदान प्राप्त कर सकते हैं। ग्रामोफ़ोन से जुड़ने के लिए आप टोल फ्री नंबर 1800-315-7566 पर मिस्ड कॉल कर सकते हैं या फिर ग्रामोफ़ोन कृषि मित्र एप पर लॉगिन कर सकते हैं।

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अरब सागर से आ रही है अम्फान जैसी आफ़त, फ़सलों को हो सकता है भारी नुकसान

Will Amphan effect the monsoon, differences in scientists, know when monsoon will come

पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा में आए अम्फान तूफान के कारण किसानों के भारी नुकसान की ख़बरे अभी चल ही रही थी कि अचानक अब दक्षिण पश्चिम राज्य केरल के निकट अरब सागर में एक और चक्रवात के आने की प्रबल संभावना बन रही है। इस तूफ़ान का असर पश्चिमी राज्यों के अलावा उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश के कुछ भागों में भी देखने को मिल सकता है। इससे फ़सलों को भारी नुकसान भी हो सकती है।

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक इस चक्रवात का सबसे बुरा प्रभाव गुजरात पर पड़ सकता है। भारतीय मौसम विभाग ने हालांकि चक्रवात को लेकर फिलहाल कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा है लेकिन इतना ज़रूर कहा है की अगर अगले पांच दिन में स्थिति बेहतर नहीं हुई तो भयंकर चक्रवात के आने का अंदेशा है। मौसम विभाग के अनुसार 30 मई के बाद ही इस विषय पर कुछ भी कहना सही होगा, लेकिन लोगों को सचेत रहने की जरूरत है।

स्रोत: कृषि जागरण

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औषधीय गुणों से भरपूर है चिरौंजी

Chironji Health Benefits
  • चिरौंजी में प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है, इसके अलावा इसमें विटामिन सी , विटामिन बी 1, विटामिन बी 2 भी पर्याप्त मात्रा में होता है। 
  • चिरौंजी में पाया जाने वाला B1, B3 बालों की वृद्धि करता है। 
  • चिरौंजी एक बहुत ही कारगर सौंदर्य उत्पाद है। इसके इस्तेमाल से चेहरे पर चमक आती है और कील-मुंहासे साफ हो जाते है। यदि चेहरे पर दाग है तो इसे पीसकर प्रभावित जगह पर लगाने से चेहरा बेदाग हो जाता है। 
  • वहीं इससे निर्मित तेल में अमीनो एसि‍ड और स्टीएरिक एसि‍ड भी पाया जाता है। 
  • चिरौंजी के सेवन से पाचन तंत्र को मजबूत करता है तथा पाचन सम्बन्धी कब्ज की समस्या दूर हो जाती है। 
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बैंगन की फसल का जीवाणुजनित उकठा रोग से कैसे करें बचाव

  • खेतों को साफ रखे, और संक्रमित पौधों को इकट्ठा करके नष्ट कर दे।
  • फूलगोभी, पत्तागोभी, सरसों, मूली जैसी फसल को फसल चक्र में अपनाने से इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • पंत सम्राट किस्म इस रोग के प्रति सहनशील है।
  • इसके बचाव के लिए खेत की अंतिम जुताई या बुवाई के समय 6-8 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में 1 किलो ट्राइकोडरमा विरिडी मिला कर एक एकड़ खेत में बिखेर दे। खेत में नमी जरूर रखें।
  • इससे रोग रोकथाम के लिए कासुगामायसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 250 ग्राम या स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आईपी 90% + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10% W/W @ 20 ग्राम या कसुगामाइसिन 3% SL @ 300 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर पौधे की जड़ों के पास ड्रेंचिंग करें।या
  • जैविक माध्यम से स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस @ 1 किलो को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ पौधों की जड़ों के पास ड्रेंचिंग करें।
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टिड्डी दल के बड़े हमले को देखते हुए म.प्र के कृषि मंत्री ने किया मुआवज़े का ऐलान

Locusts team knocked in Madhya Pradesh, Can cause heavy damage to crops

राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में फ़सलों का सबसे बड़े दुश्मन टिड्डी दल का हमला हो चुका है। कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है की टिड्डियों का इतना बड़ा हमला खासकर के मध्यप्रदेश में 27 साल बाद हुआ है। इस बड़े टिड्डी हमले को देखते हुए सरकार की तरफ से भी एहतियाती कदम उठाये जा रहे हैं।

इस मसले पर मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री श्री कमल पटेल ने बताया कि टिड्डी दल के प्रकोप के कारण किसानों को होने वाले नुकसान का सर्वेक्षण कराया जाएगा। सर्वेक्षण का कार्य राजस्व विभाग और कृषि विभाग के अमले का संयुक्त दल बनाकर कराया जाएगा। इस सर्वेक्षण में जिन किसानों को अधिक मात्रा में नुकसान हुआ है उन्हें आरबीसी 6 (4) के अंतर्गत मुआवजा देकर क्षति पूर्ति की जाएगी। इसके साथ ही राज्य स्तर से इसके लिए आवश्यक निर्देश भी जल्द जारी किए जाने की बात मंत्री श्री कमल पटेल ने कही।

स्रोत: नई दुनिया

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मध्य प्रदेश के किसानों के लिए सोयाबीन की उन्नत किस्मों की जानकारी

Knowledge of advanced varieties of soybean for Madhya Pradesh
  • एन.आर.सी-7(अहिल्या-3): यह मध्यम अवधि की किस्म जो लगभग 90-99 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसकी उपज 10-12 क्विंटल/एकड़ होती हैं।  पौधों की सीमित वृद्धि होने की वजह से कटाई के समय सुविधा रहती हैं साथ ही इस किस्म में परिपक्व होने के बाद भी फल्लिया चटकती नही हैं फलस्वरूप उत्पादन में कोई नुकसान नहीं होता। इस किस्म की मुख्य विशेषता यह हैं की यह गर्डल बीटल और तना-मक्खी के लिए सहनशील हैं। 
  • एन.आर.सी-12 (अहिल्या-2): यह मध्यम अवधि की किस्म जो लगभग 96-99 दिन में पककर तैयार हो जाती है।  यह गर्डल बीटल और तना-मक्खी के प्रति सहनशील तथा पीला मोजेक रोग के प्रति प्रतिरोधी विशेषता रखती है। 
  • एन.आर.सी-37 (अहिल्या-4): यह किस्म 99-105 दिन में पककर तैयार होती है। इसकी उपज क्षमता 8-10 क्विण्टल प्रति एकड़ होती है।
  • एन.आर.सी-86: यह अगेती किस्म 90-95 दिनों में पक जाती है और उपज लगभग 8-10 क्विण्टल/एकड़ होती है। यह किस्म गर्डल बीटल और तना-मक्खी के प्रति प्रतिरोधी एवं चारकोल राॅट एवं फली झुलसा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। 
  • जे.एस 20-34: इसकी उपज लगभग 8-10 क्विण्टल/एकड़ होती है और मध्यम अवधि की यह किस्म लगभग 87 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं। चारकोल रॉट और पत्ती धब्बा रोग के प्रति प्रतिरोधी किस्म है। यह कम और मध्यम वर्षा के लिए उपयुक्त है और हल्की से मध्यम मिट्टी के लिए उपयुक्त हैं।
  • जे.एस 20-29: इसकी उपज लगभग 10 -12 क्विण्टल/एकड़ होती हैं, जो लगभग 90-95  दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं।  पीला मोजैक विषाणु रोग और चारकोल रॉट के प्रति प्रतिरोधी किस्म है। 
  • जे.एस. 93-05: सोयाबीन की यह किस्म 90-95 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इसके फली में चार दाने होते है। इस किस्म की उपज क्षमता 8-10 क्विण्टल/एकड़ आंकी गई है।
  • जे.एस. 95-60: यह अगेती किस्म 80-85 दिनों में पक जाती है, इसकी उपज लगभग 8-10 क्विण्टल/एकड़ होती हैं। इस अर्द्ध-बौनी किस्म की फलिया चटकती नहीं है।
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बढ़ेगा किसानों का मुनाफ़ा, खरीफ फ़सलों के समर्थन मूल्य को बढ़ाने की हो रही है तैयारी

कोरोना संकट के बीच किसानों के लिए एक और खुशख़बरी आने वाली है। ख़बरों के अनुसार किसानों को अतिरिक्त लाभ दिलाने के लिए अब केंद्र सरकार खरीफ फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने पर विचार कर रही है। अगर ऐसा होता है तो मुख्य रूप से धान, कपास और दाल जैसी फ़सलों का समर्थन मूल्य बढ़ जाएगा।

इस संबंध में केंद्र सरकार को कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स एंड प्रइसेज़ (सीएसीपी) ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। अब इस रिपोर्ट को केंद्रीय कैबिनेट के समक्ष रखा जाएगा। अगर इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया तो किसानों को फसल का ज्यादा दाम मिलेगा और उनकी आय बढ़ेगी।

मीडिया में आई ख़बरों के अनुसार सीएसीपी ने 17 खरीफ फ़सलों के समर्थन मूल्य को बढ़ाने की सिफारिश की है और इसमें धान सबसे प्रमुख है। सीएसीपी ने धान की एमएसपी को सीएसीपी ने 2.9% बढ़ाकर 1888 रुपए प्रति क्विंटल करने की सिफारिश की है। बता दें की फिलहाल धान की एमएसपी 1815 रुपए प्रति क्विंटल है।

सीएसीपी ने कॉटन की एमएसपी में 260 रुपए प्रति क्विंटल का इज़ाफा करने कि सिफारिश की है। वहीं प्रमुख दालों की भी एमएसपी बढ़ाने की सिफारिश की गई है जिसमें तुअर, उड़द, और मूंग दाल शामिल हैं। इसके अंतर्गत तुअर दाल 200 प्रति क्विंटल, उड़द दाल 300 रुपए प्रति क्विंटल, मूंग दाल 146 रुपए प्रति क्विंटल का इज़ाफा करने को कहा गया है।

स्रोत: कृषि जागरण

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बैंगन की फसल में जीवाणुजनित उकठा रोग की कैसे करें पहचान

Bacterial wilt in Brinjal crop
  • दोपहर के समय पौधे मुरझाए देखे जा सकते है और रात में स्वस्थ दिखते है किंतु पौधे जल्द ही मर जाते है। 
  • पौधों का गल जाना, बौना रह जाना, पत्तियों का पीला हो जाना और अंत में पूरे पौधे का मर जाना इस बीमारी के विशेष लक्षण है।
  • इस बीमारी का प्रकोप सामान्यतः फूल या फल बनने की अवस्था में होता है   
  • पौधों के गलने से पहले नीचे की पत्तियां सुख कर गिर जाती है।
  • जड़ों और तने के निचले हिस्से का रंग गहरा भूरा हो जाता है। 
  • काटने पर तने में सफेद -पीले तरह का दूधिया रिसाव देखा जा सकता है।
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मिर्च की फसल में एफिड (माहु) कीट की पहचान और बचाव

How to identify and protect Aphid insect in Chili crop
  • एफिड छोटे, नरम शरीर के कीट है जो पीले, भूरे या काले रंग के हो सकते हैं। 
  • ये आमतौर पर छोटी पत्तियों और टहनियों के कोनों पर समूह बनाकर पौधे से रस चूसते है तथा चिपचिपा मधुरस (हनीड्यू) छोड़ते हैं जिससे फफूंदजनित रोगों की संभावनाएं बढ़ जाती है। 
  • गंभीर संक्रमण के कारण पत्तियां और टहनियां कुम्हला सकती है या पीली पड़ सकती हैं। 
  • एफिड कीट से बचाव हेतु थायोमेथोक्सोम 25 डब्लू जी 100 ग्राम या इमिडाक्लोप्रिड 17.8% SL 80 मिली प्रति एकड़ 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें।
  • जैविक माध्यम से बवेरिया बेसियाना 250 ग्राम प्रति एकड़ उपयोग करें या उपरोक्त कीटनाशक के साथ मिला कर भी प्रयोग कर सकते हैं।
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