आद्र गलन रोग फफूंद के माध्यम से फैलता है और मिर्च की नर्सरी में इस रोग का प्रकोप बहुत ज्यादा देखने को मिलता है। वहीं इस रोग का प्रभाव 10 से 15 दिन के पौधों में ज्यादा देखने को मिलता है। इस रोग के लगने से पौधे की जड़ व तने में गलने की समस्या शुरू हो जाती है। इससे पौधों के तने पतले होने लगते हैं और पत्ते मुरझाने लगते हैं। इस रोग की समस्या बढ़ने पर, पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं और पौधे जमीन पर गिर जाते हैं। रोपाई के समय जब पौधे ज्यादा मात्रा में निकाले जाते हैं तो यह बीमारी अधिक तीव्रता से फैलती है।
नियंत्रण के उपाय:
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इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाएं, आद्र गलन रोग से प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें। बुवाई से पूर्व बीजोपचार करना अति आवश्यक है।
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जैविक नियंत्रण के लिए कोमबेट (ट्राइकोडर्मा विर्डी) को 8 ग्राम/किलो बीज को उपचारित करें। या
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विटावेक्स (कार्बोक्सिन37.5%+ थिरम37.5%डब्ल्यू एस) 3 ग्राम/किलो या धनुस्टिन (कार्बेन्डाजिम 50% डब्ल्यूपी) को 3 ग्राम/किलो बीज को उपचारित करें।
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