कद्दू वर्गीय फसल जैसे लौकी, तोरई, तरबूज,खरबूज, पेठा, खीरा, टिण्डा, करेला आदि में फूल झड़ने व फल गिरने से पैदावार में भारी गिरावट आती है। इसके कारण निम्न हैं –
-
परागण की कमी
विभिन्न तंत्रों के कारण परागण विफल हो सकता है तथा परागण की कमी, पराग कर्ता की कमी या विपरीत पर्यावरण के कारण पर परागण विफल हो सकता है।
-
पोषक तत्वों की कमी
कई बार सही मात्रा में पौधे को पोषक तत्व नहीं मिल पाते जिसके कारण फूल एवं फल पूर्णरूप से विकसित नहीं हो पाते हैं और गिर जाते हैं। इसके लिए पौधे को गंधक, बोरान, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि तत्वों का मिलना बहुत जरूरी होता है
-
जल की कमी /नमी :
पर्याप्त जल की कमी के कारण पौधे पोषक तत्वों को भूमि से अपनी जड़ों के द्वारा अवशोषित नहीं कर पाते जिसके कारण फूलों व फलों में कई प्रकार के तत्वों की कमी हो जाती है और वह गिरने लगते हैं। साथ ही अत्यधिक तापमान और तेज हवा के चलने से पानी का अत्यधिक वाष्पीकरण होता है। जिससे पेड़ों की पत्तियां मुरझा जाती हैं, जो फल गिरने का कारण बनती हैं।
-
बीज का विकास
बीज से निकलने वाले ओक्सीटोक्सिन, पोधो से फलों को जोड़े रहने में सहायक होते हैं | परागण कम या नहीं होने पर, बीज सही से बन नहीं पाते या बीज का सही विकास नहीं हो पाता है, इन दोनों ही अवस्थाओं में फल अधिक मात्रा में गिरते हैं।
-
कीट तथा बीमारियां
विभिन्न प्रकार के कीट एवं सूक्ष्म जीवों के पौधों में लगने से फल एवं फूल झड़ने लगते हैं।
-
कार्बोहाइड्रेट की मात्रा :
फलों को बनाने और उन को विकसित करने के लिए कार्बोहाइड्रेट की ज्यादा मात्रा की जरूरत होती है और अगर पौधों में कार्बोहाइड्रेट का स्तर कम होता है तो फलों के झड़ने की समस्या अधिक होने लगती है।
फल एवं फूलों के झड़ने से रोकने के उपाय
-
-
पोषक तत्वों का छिड़काव:- पौधों में समय-समय पर पोषक तत्वों का छिड़काव किया जाना चाहिए। मुख्य एवं सूक्ष्म जैसे – बोरान, कैल्शियम, मैग्नीशियम आदि।
-
सिंचाई:- आवश्यकता अनुसार एक निश्चित अंतराल से फसलों में सिंचाई करते रहना चाहिए जिससे पर्याप्त मात्रा में नमी बनी रहे। ध्यान रहे जरूरत से ज्यादा सिंचाई भी नुकसानदायक हो सकती है।
-
गुड़ाई:- बेल वाली सब्जियों में समय-समय पर गुड़ाई व अन्य अंतर सस्य कार्य होते रहना चाहिए ताकि खेत खरपतवारों से मुक्त रहे। गोबर की अच्छी पकी हुई खाद या केंचुआ खाद (Vermicompost) का इस्तेमाल समय समय पर करना जरूरी है।
-
कीट नियंत्रण : फसलों में कीट व बीमारी अधिक मात्रा में हानि पहुंचाते हैं। इसलिए समय पर देखरेख करें और कीट नियंत्रण करें।
-
हार्मोन का संतुलन बनाए रखना : सामान्य फसल में, हार्मोन के असंतुलन के कारण भी अधिक नुकसान होता है| तो हार्मोन का संतुलन बनाए रखें। इसमें नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001%) @ 300 मिली प्रति एकड़, @ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।
-
-
परागण कर्ता का उपयोग
इन फसलों के परागण के लिए मधुमक्खी या अन्य कीटों का होना आवश्यक है। इन कीटो की उपस्थिति के समय किसी भी प्रकार का छिडकाव या अन्य कृषि कार्य खेत में ना करें। इससे परागण के कार्य सरलता से व समय पर होता है।
Shareमहत्वपूर्ण जानकारियों के लिए रोजाना पढ़ते रहें ग्रामोफ़ोन के लेख। आज की जानकारी पसंद आई हो तो लाइक और शेयर करना ना भूलें।