कद्दू वर्गीय फसलों में गमोसिस रोग के लक्षण एवं निवारण के उपाय

Symptoms and prevention of gummosis disease in cucurbitaceous crops

गमोसिस रोग से प्रभावित लताओं पर उभरे हुए फफोले नजर आने लगते हैं। कुछ समय बाद यह फफोले घाव में परिवर्तित हो जाते हैं। रोग बढ़ने पर इन फफोलों से भूरे रंग के गोंद का स्राव होने लगता है। इस रोग से प्रभावित लताओं में फूल एवं फलों की संख्या में कमी आती है और प्रकोप बढ़ने पर लताएं सूखने लगती हैं।

नियंत्रण: पौधों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए संतुलित मात्रा में उर्वरक एवं पोषक तत्वों का प्रयोग करें। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए रोग से प्रभावित हिस्सों को तोड़कर नष्ट कर दें। खेत में रोग से प्रभावित फसलों के अवशेष न रहने दें। प्रभावित अवशेषों को खेत से बाहर निकालें और जला कर नष्ट कर दें। खेत में जल जमाव न होने दें और जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।

रोग दिखाई दे तो एम-45 (मैनकोजेब 75% डब्ल्यूपी) 400 ग्राम/एकड़ या जटायु (क्लोरोथालोनिल 75% डब्ल्यूपी) 400 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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मूंग की फसल में चूर्णिल आसिता रोग की पहचान एवं निवारण के उपाय

Identification and prevention of Powdery mildew disease in Moong crop

मूंग की फसल चूर्णिल आसिता रोग के कारण पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद पाउडर के समान संरचना दिखाई देती है, जो कि बाद में मटमैले रंग में बदल जाती है। ये सफेद पाउडर तेजी से बढ़ता है और पत्तियों की ऊपरी सतह पर आवरण के रुप में फैल जाता है। अधिक प्रकोप होने पर यह पत्तियों की निचली सतह को भी ग्रसित करता है। रोग की उग्र अवस्था मे संक्रमित पौधे की पत्तियां पूर्णत: सूख जाती हैं और असमय झड़ने लगती है। मौसम अनुकुल होने पर इस तरह के लक्षण पत्तियों के अलावा शाखाओं एवं फलों पर भी दिखने लगते हैं।

नियंत्रण: रोग रोधी सहनशील बीज किस्मों का चयन करें। जैविक नियंत्रण के लिए कोमबेट (ट्राइकोडर्मा विर्डी) से 8 ग्राम/किलो के हिसाब से बीज को उपचारित करें।

घुलनशील सल्फर को 600 ग्राम/एकड़ या धानुस्टीन (कार्बेन्डाजिम 50% WP) 200 ग्राम/एकड़ या टिल्ट (प्रोपिकोनाज़ोल 25% EC) 200 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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लौकी की फसल में फलों का टेढ़ा होना पहुंचाएगा भारी नुकसान

Curvature of Bottle Gourd fruit and its prevention

लौकी की फसल में फल मक्खी कीट के कारण फलों के टेढ़े होने की समस्या देखने को मिलती है। ये कीट लौकी की सतह और फल के अंदर घुसकर अंडे देते हैं, जिससे फल टेढ़े होने लगते हैं। ये ज्यादातर नए और कोमल फलों पर हमला करते हैं जिससे फलों में छेद हो जाते हैं और छेदों में से रस निकलता हुआ दिखाई देता है। इसी वजह से फल सड़ने लगता है और फलों का आकार बिगड़ जाता है साथ हीं फल समय से पहले गिरने भी लगते हैं।

रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए नीमगोल्ड नीम तेल 1000 मीली/एकड़ या फेरोमोन – फ्रूट फ्लाई ट्रैप 10/एकड़ की दर से लगायें या बवेकर्व (बवेरिया बेसियाना 5% WP) 500 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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लौकी की फसल में बीटल कीट की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of beetle pest in Bottle gourd

यह कीट मुख्य रूप से कद्दू वर्गीय फसल पर आक्रमण करता है। लाल पंपकिन बीटल पौधे की पत्तियों को शुरुआती अवस्था में पत्तियों को खाकर छेद कर देता है। यह कीट लौकी की पत्तियों की ऊपरी सतह को खाते हैं। इससे पत्तियां जालीदार हो जाती हैं। प्रकोप बढ़ने पर लौकी की पत्तियों में केवल नसें दिखती हैं जिससे फसल की बढ़वार रुक जाती है।

नियंत्रण: संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए। खेत को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए। इसके नियंत्रण के लिए टाफगोर (डाइमेथोएट 30% EC) 250 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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फसलों में लाल एवं पीली मकड़ी का प्रकोप एवं निवारण के उपाय

Outbreak and prevention of red and yellow mites in crops

लाल और पीली मकड़ी आकार में बहुत छोटे होते हैं और पत्तियों की निचली सतह पर समूह बना कर रहते हैं। ये पत्तियों से रस चूसते हैं जिससे पौधों में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इससे पत्तियां मुरझा जाती है और नीचे की ओर मुड़ जाती है जिसके फलस्वरूप पौधों का विकास रुक जाता है। इसके प्रकोप से फल कम लगते हैं और बिना पके हीं गिर जाते हैं। अधिक संक्रमण होने पर पौधों में जाले दिखाई देते हैं।

रोकथाम: इसकी रोकथाम के लिए फसल चक्र अपनाएं या प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें। इसके अलावा ओमाइट (प्रोपार्जाइट 57% EC) 400 मिली/एकड़ या ओबेरोन (स्पाइरोमेसिफेन 22.90% EC) 160 मिली की दर से 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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मिर्च में बैक्टीरियल लीफ स्पॉट की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of bacterial leaf spot in chilli

मिर्च के पौधों में होने वाला ‘बैक्टीरियल लीफ स्पॉट’ एक गंभीर जीवाणु जनित रोग है। यह रोग मुख्य रूप से पुराने पौधों पर दिखाई देता है लेकिन जल्द ही ये नए पौधों को भी प्रभावित करने लगता है। इससे पत्तियों पर छोटे छोटे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं और धब्बे आपस में मिलकर अनियमित घाव बनाते हैं। पत्तियों में हरापन नहीं रहता और संक्रमण अधिक होने पर पत्तियां समय से पहले गिर जाती हैं। 

नियंत्रण: संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि यह रोग अन्य पौधों में न फ़ैल सके। रोग मुक्त बीजों का प्रयोग करें और रोग दिखाई दे तो एम-45 (मैनकोजेब 75% WP) 400 ग्राम/एकड़ या  ब्लू कॉपर (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP) 300 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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मिर्च की नर्सरी लगाने वाले किसान, इन बातों का रखें ख़ास ध्यान

How to manage a chilli nursery

जरूरत के हिसाब से मिर्च की नर्सरी में फव्वारे या हजारे की सहायता से पानी देते रहना चाहिए। गर्मियों में दोपहर के बाद एक दिन के अंतर पर पानी का छिड़काव कर देना चाहिए, क्योंकि गर्मी के मौसम में एग्रो नेट का प्रयोग करने से भी भूमि की नमी जल्दी उड़ जाती है। जल भराव अधिक मात्रा में होने की स्थिति में, उचित निकास की व्यवस्था होनी चाहिए।

इसके अलावा क्यारियों में से घास कचरा साफ करते रहना चाहिए। अत्यधिक गर्मी होने पर रोपणी को घास के आवरण से ढक कर रखें, बीज के अंकुरण के 4 से 5 दिन बाद घास के आवरण को हटायें। क्यारियाँ साफ करने के बाद पौध गलन और रस चूसक कीट के नियंत्रण के लिए करमानोवा (कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP) 25 ग्राम/पंप और थियानोवा -25 (थियामेथोसाम 25% WG) 10 ग्राम/पंप और मैक्सरुट 10 ग्राम/पंप को 15 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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भिंडी में सर्कोस्पोरा पत्ती धब्बा रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of Cercospora leaf spot disease in okra

इस रोग की शुरूआती अवस्था में पत्तियों की निचली सतह पर भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। ख़ास कर के पुरानी पत्तियां जो कि भूमि के समीप होती हैं, इस रोग से ज्यादा प्रभावित होती हैं। जैसे-जैसे रोग बढ़ता है, पत्तियां सूख कर भूरी हो कर मुड़ जाती हैं। गंभीर संक्रमण की स्थिति में पत्तियां पूरी तरह झड़ जाती हैं और पत्तियों की ऊपरी सतह पर भी धब्बे देखे जा सकते हैं। यह रोग नीचे से ऊपर की पत्तियों की तरफ बढ़ता है और तना और फलों को भी संक्रमित करता है।  

नियंत्रण: यदि इसका हमला देखा जाए तो एम -45 (मैनकोजेब 75% WP) 400 ग्राम/एकड़ की दर 200 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें।

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बैंगन की फसल में बैक्टीरियल विल्ट रोग की पहचान एवं नियंत्रण के उपाय

Identification and control of bacterial wilt disease in brinjal crop

विल्ट रोग फसल की 50-55 दिनों की अवस्था में देखा जाता है। इससे प्रभावित पौधे अचानक मुरझा कर धीरे-धीरे सूख जाते हैं। ऐसे पौधे हाथ से खींचने पर आसानी से उखड़ जाते हैं। विल्ट रोग के कारण रोगी पौधों की जड़ें अंदर से भूरी व काली हो जाती हैं। रोगी पौधों को चीर कर देखने पर उतक काले दिखाई देते हैं। पौधों की पत्तियां मुरझाकर नीचे गिर जाती हैं। जमीन में ज्यादा नमी व गर्मी होने के कारण यह रोग बढ़ता है। 

नियंत्रण: इससे बचाव के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करना चाहिए। यह एक मिट्टी जनित रोग है इसलिए मिट्टी उपचार करना अति आवश्यक है। इसके लिए कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी 1% WP) 2 किग्रा/एकड़ की दर से मिट्टी उपचार करें या फिर फसल लगने के बाद रोग के लक्षण दिखने पर, ब्लू कॉपर (कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP) का उपयोग 300 ग्राम/एकड़ पानी में मिलाकर ड्रिप के माध्यम से करें।

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मिर्च की एक बेहतरीन किस्म है राफेल, जानें इसकी खूबियां

Complete information of the Chilli variety Rafale

मिर्च की इस किस्म के पौधे बेहद मजबूत होते हैं। इन पौधों की शाखाएं घनी और अर्ध फैलाव लिए हुए होती हैं। इस किस्म में बेहतर गुणवत्ता वाले फल और बेहतरीन वृद्धि विकास की क्षमता होती है। इस किस्म के फल की लम्बाई लगभग 7 सेमी एवं मोटाई लगभग 1.2 सेमी होती है। इसके फल गहरे हरे रंग के एवं चिकनी त्वचा और मध्यम चमक वाले होते हैं। पकने पर इसके फल आकर्षक चमकदार गहरे लाल रंग में बदल जाते हैं। यह किस्म लीफ कर्ल वायरस के प्रति उत्कृष्ट सहनशील किस्म मानी जाती है। इसके फल की तुड़ाई आसानी से की जा सकती है और इस दौरान पौधों को किसी प्रकार की क्षति नहीं होती है। चमकदार, आकर्षक फल होने के कारण इस किस्म के मिर्च को बाजार भाव भी अच्छा मिलता है। यह अधिक तीखापन और बेहतर रंग के साथ बहुत अधिक उपज देने वाली संकर किस्म है। बीजदर 60-80 ग्राम/एकड़ की दर से इसकी नर्सरी तैयार कर सकते हैं। इसकी पहली तुड़ाई 60-65 दिन में कर सकते है। इस किस्म का रोपण करते समय कतार से कतार की दूरी 4 सेमी और पौधे से पौधे कि दूरी 2 सेमी रखनी चाहिए। 

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