टमाटर की फसल में स्टेकिंग यानी सहारा देने की विधि क्यों है आवश्यक?

Know why staking is important in tomato crop

टमाटर का पौधा एक तरह की लता होती है, जिसके कारण पौधे फलों का भार सहन नहीं कर पाते हैं और नमी की अवस्था में मिट्टी के संपर्क में रहने से सड़ जाते हैं। जिस कारण से फसल नष्ट हो जाती हैं। इससे किसान को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। साथ ही पौधे के नीचे गिरने से कीट और बीमारी भी अधिक लगती हैं। इसलिए टमाटर को नीचे गिरने से बचाने के लिए तार से बांध कर सुरक्षित रखते हैं।

पौधों की रोपाई के 2-3 हफ्ते बाद मेड़ के किनारे-किनारे दस फीट की दूरी पर दस फीट ऊंचे बांस के डंडे खड़े कर दिए जाते हैं। इन डंडों पर दो-दो फीट की ऊंचाई पर लोहे का तार बांधा जाता है। उसके बाद पौधों को सुतली की सहायता से उन्हें तार से बांध दिया जाता है जिससे ये पौधे ऊपर की ओर बढ़ते हैं। इन पौधों की ऊंचाई आठ फीट तक हो जाती है, इससे न सिर्फ पौधा मज़बूत होता है, फल भी बेहतर होता है। साथ ही फल सड़ने से भी बच जाता है।

स्टेकिंग लगाने का तरीका और फायदे:-

👉🏻 स्टेकिंग करने के लिए, मेड़ के किनारे-किनारे 10 फीट की दूरी पर 10 फीट ऊंचे बांस के डंडे खड़े कर दिए जाते है।

👉🏻इन डंडे पर 2-2 फीट की ऊंचाई पर लोहे का तार बांध दिया जाता है। उसके बाद पौधों को सुतली  की सहायता से उन्हें तार से बांध दिया जाता है, जिससे ये पौधे ऊपर की और बढ़ते हैं।

👉🏻पौधों की ऊंचाई 5-8 फीट तक हो जाती हैं, इससे न सिर्फ पौधा मजबूत होता है, बल्कि फल भी बेहतर होता है। साथ ही फल सड़ने से भी बच जाता है। इस विधि से खेती करने पर पारम्परिक खेती की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त कर सकते है।

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धान की फसल में बढ़ेगा स्टेम बोरर का प्रकोप, जानें नियंत्रण के उपाय

Stem borer infestation will increase in paddy crop
  • धान की फसल में स्टेम बोरर के प्रकोप से डेडहर्ट्स या मृत टिलर नजर आने लगते हैं जिन्हें वनस्पति चरणों के दौरान आसानी से आधार से खींचा जा सकता है।

  • डेडहर्ट्स और व्हाइटहेड्स के लक्षण कभी-कभी चूहों और काले बग से पैदा होने वाले रोगों से होने वाले नुकसान के सामान भी हो सकते हैं।

  • स्टेम बोरर की क्षति की पुष्टि करने के लिए, धान की फसल में वानस्पतिक अवस्था में डेडहार्ट और प्रजनन अवस्था में व्हाइटहेड का निरीक्षण जरूर करें।

  • इसके नियंत्रण के लिए प्रोफ़ेनोवा सुपर (प्रोफेनोफोस 40% + साइपरमेथ्रिन 04% EC) @ 400 मिली/एकड़ या फिपनोवा (फिप्रोनिल 5% SC) @ 400 मिली/एकड़ या नोवालिस (फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% WG) @ 40 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

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बैगन की फसल में तना एवं फल छेदक कीट का बढ़ेगा प्रकोप, जल्द करें रोकथाम

Outbreak of Shoot and fruit borer will increase in brinjal crop
  • तना एवं फल छेदक कीट बैंगन की फसल के सबसे विनाशकारी कीट माने जाते हैं।

  • ये कीट पौधे की वानस्पतिक एवं फलन दोनों अवस्थाओं में फसल को संक्रमित करता है।

  • यह कीट मध्यम जलवायु वाले स्थानों पर पूरे साल सक्रिय रहता है।

  • पत्तियों, अंकुरों, फूलों की कलियों और कभी-कभी फलों की सतह पर यह कीट अंडे देते हैं।

  • युवा पौधों में, इस कीट की कैटरपिलर बड़ी पत्तियों और युवा कोमल टहनियों के डंठलों और मध्य पसलियों में छेद कर प्रवेश बिंदु को मलमूत्र से बंद कर देते हैं और भीतर ही भोजन कर लेते हैं।

  • परिणामस्वरूप प्रभावित पत्तियाँ सूख कर नीचे गिर जाती हैं जबकि अंकुरों के मामले में विकास बिंदु नष्ट हो जाता है। बाद के चरण में कैटरपिलर फूल की कलियों और फलों में छेद कर देते हैं।

  • इसके नियंत्रण के लिए नोवालक्सम (लैम्ब्डैसाइलोथ्रिन 9.5% + थायोमेथैक्सोम 12.9% ZC) @ 50-80 मिली प्रति एकड़ का उपयोग करें।

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खीरे की फसल में डाउनी मिल्ड्यू का प्रकोप पहुंचाएगा भारी नुकसान

Outbreak of downy mildew will cause heavy loss in cucumber crop
  • डाउनी मिल्ड्यू के लक्षण बस पत्तियों तक ही सीमित होते हैं और उनकी उपस्थिति कद्दूवर्गीय प्रजातियों में व्यापक रूप से भिन्न होती है।

  • अधिकांश प्रजातियों में, घाव सबसे पहले ऊपरी पत्ती की सतह पर छोटे, अनियमित से कोणीय, थोड़े हरितहीन क्षेत्रों के रूप में दिखाई देते हैं।

  • इसके लक्षण सबसे पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते हैं और जैसे-जैसे वे बढ़ते हैं, नई पत्तियों में विकसित होते जाते हैं।

  • इसके नियंत्रण के लिए नोवैक्सिल (मेटालैक्सिल 8% + मैंकोजेब 64% WP) @ 1 किलो ग्राम/एकड़ या जटायु (क्लोरोथालोनिल 75% WP) @ 300 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

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प्याज में बढ़ेगा मैगट का प्रकोप, ऐसे करें बचाव

The outbreak of maggot will increase in onions
  • प्याज का मैगट एक सफेद रंग का बहुत छोटा कीड़ा होता है और यह प्याज़ के कंद को बहुत नुकसान पहुँचाता है।

  • बड़े कंदो में 9 से 10 मैगट एक साथ हमला करते हैं और उसे खोखला बना देते हैं। इसके कारण प्याज़ का कंद पूरी तरह सड़ जाता है।

  • इसके प्रकोप के लक्षण मुरझाई और पीली पत्तियों के रूप में दिखाई देते हैं, जिसके बाद पत्तियाँ गिरनी शुरू हो जाती हैं। प्रकोप बढ़ने पर पत्तियाँ सड़ सकती हैं और पौधे मर सकते हैं।

  • अंकुरण अवस्था के दौरान प्याज के पौधे सबसे अधिक असुरक्षित होते हैं, और लार्वा के खाने से अंकुर नष्ट हो सकते हैं।

  • ये कीट प्याज की फसल को पूरे फसल चक्र में नुकसान पहुंचा सकते हैं, हालांकि वे अक्सर फसल को प्रारम्भिक अवस्था के दौरान संक्रमित करने के लिए व्यापक रूप से जाने जाते हैं।

  • अगर इस कीट का प्रकोप फसल की अंतिम अवस्था में होता है तो इसकी वजह से भंडारण में सड़न की समस्या होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

  • प्याज में मैगट के नियंत्रण के लिए कैल्डन 4 जी (कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड) @ 7.5 किग्रा/एकड़ या फैक्स GR (फिप्रोनिल 00.30% GR) 8.0 किग्रा/एकड़ का उपयोग करें।

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गन्ने की फसल को लाल सड़न रोग से बचाएं, जानें नियंत्रण के उपाय

Save sugarcane crop from red rot disease
  • लाल सड़न रोग के कवकजनित रोग है। यह कवक मुख्य रूप से गन्ने के पौधे के तने और पत्तियों पर हमला करता है।

  • इसके कारण पौधे के ऊपरी भाग की पत्तियाँ पीली और गहरे लाल रंग की हो जाती हैं जो अंततः नीचे गिर जाती हैं।

  • इसकी वजह से तना फट जाता है और उस पर कई लाल रंग की धारियाँ बन जाती हैं।

  • गंभीर संक्रमण होने पर तना सड़ जाता है, गांठों पर सिकुड़ जाता है और दिखने में फीका नजर आता है।

  • रोगज़नक़ ज़मीन के ऊपर के सभी भागों पर हमला करता है, विशेष रूप से गन्ने के तने और पत्तियों की मध्य शिराओं पर।

  • प्रारंभिक अवस्था में रोग खेत में पहचान में नहीं आता है। शुरूआती लक्षण बरसात के मौसम के बाद दिखाई देती है जब पौधों की वृद्धि रुक जाती है और सुक्रोज का निर्माण शुरू हो जाता है।

  • इसके प्रबंधन हेतु प्रभावित गुच्छों को प्रारंभिक अवस्था में हीं हटा दें और मिट्टी को कार्बेन्डाजिम 50 WP (1 ग्राम प्रति 1 लीटर पानी) से भिगोएं।

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टमाटर में अर्ली ब्लाइट प्रकोप के होंगे गंभीर परिणाम, जल्द करें रोकथाम

Early blight outbreak in tomato will have serious consequences
  • अर्ली ब्लाइट यानी शुरुआती झुलसा रोग के लक्षण आमतौर पर टमाटर के पौधों पर पहले फल आने के बाद शुरू होते हैं।

  • इसके लक्षण निचली पत्तियों पर कुछ छोटे, भूरे रंग के घावों के रूप में नजर आते हैं। जैसे-जैसे ये घाव बढ़ते हैं, ये छल्लों का आकार ले लेते हैं, जिनके बीच में सूखे, मृत पौधे के ऊतक होते हैं।

  • आसपास के पौधे के ऊतक भी इसके प्रकोप से पीले हो जाते हैं। आखिर में पत्तियां मरने लगती हैं पर मरने से पहले ये पौधे से गिरने से पहले भूरे हो जाते हैं।

  • हालांकि प्रारंभिक अवस्था में यह सीधे फलों को प्रभावित नहीं करता है, लेकिन सुरक्षात्मक पत्ते के नुकसान से सीधे सूर्य के संपर्क में आने से फलों को नुकसान हो सकता है। इस स्थिति की को सन-स्कैल्ड कहा जाता है।

  • इसके नियंत्रण के लिए नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC) @240-400 मिली/एकड़ या एम 45 (मैन्कोज़ेब 75% WP) @ 600-800 ग्राम/एकड़ का उपयोग करें।

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फसलों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं निमेटोड, जानें नियंत्रण के उपाय?

Nematodes cause heavy damage to crops, know the control measures
  • निमेटोड जिसे आम भाषा में सूत्रकृमि भी कहते हैं, दरअसल पतले धागे के समान होते हैं। इनका शरीर लंबा बेलनाकार व बिना खंडों का होता है।

  • निमेटोड, मिट्टी के अंदर फसल की जड़ों में गांठ बनाकर रहता है एवं फसल को नुकसान पहुँचाता है।

  • इसके नियंत्रण के लिए जैविक उपचार ही सबसे अच्छा समाधान होता है।

  • मिट्टी उपचार करना इसके नियंत्रण के लिए सबसे अच्छा उपाय है।

  • रासायनिक उपचार के रूप में, फुरी (कारबोफुरान 3% GR) @ 10 किलो/एकड़, की दर से मिट्टी को उपचारित करें।

  • फसल की बुआई के पूर्व, नेमेटोफ्री (पेसिलोमायसीस लिनेसियस) @1 किलो/एकड़ की दर से, 50-100 किलो FYM में मिलाकर, खाली खेत में भुरकाव करें।

  • जब भी इस उत्पाद का उपयोग किया जाए तब इस बात का ध्यान रखें की खेत में पर्याप्त नमी हो।

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मिर्च में पाउडरी मिल्ड्यू व डाउनी मिल्ड्यू के लक्षण एवं रोकथाम के उपाय

Symptoms and prevention measures of powdery mildew and downy mildew in chilli
  • पाउडरी मिल्ड्यू एवं डाउनी मिल्ड्यू एक कवक जनित रोग है जो मिर्च की फसल में पत्तियों को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं।

  • इसके प्रकोप से होने वाले रोग को भभूतिया रोग के नाम से भी जाना जाता है।

  • पाउडरी मिल्ड्यू के कारण मिर्च के पौधे की पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद पाउडर दिखाई देता है।

  • डाउनी मिल्ड्यू रोग में पत्तियों की निचली सतह पर पीले धब्बे बन जाते हैं और कुछ समय बाद ये धब्बे बड़े होकर कोणीय हो कर भूरे रंग के पाउडर में बदल जाते हैं।

  • जो भूरा पाउडर पत्तियों पर जमा होता उसके कारण प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बहुत प्रभावित होती है।

  • इस रोग को नियंत्रित करने के लिए, नोवाक्रस्ट (एज़ोक्सीस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC) @ 240-400 मिली/एकड़ या टेसुनोवा (टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG) @ 500 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में, ट्राइको शील्ड कॉम्बैट (ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 500 ग्राम/एकड़ या मोनास-कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस) @ 250 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

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कम बारिश में सोयाबीन की फसल को पड़ती है विशेष देखभाल की जरूरत

How to take care of soybean crops in low rainfall
  • आजकल मौसम की असमानता हर तरफ देगी जा रही है। इसकी वजह से कहीं बहुत अधिक बारिश हो जाती है तो कहीं बारिश की कमी हो जाती है।

  • जहाँ जहाँ बारिश की कमी है उन क्षेत्रों में सोयाबीन की फसल पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

  • सूखे एवं अधिक तापमान के कारण सोयाबीन की फसल को बहुत नुकसान हो रहा है।

  • इसके कारण सोयाबीन की फसल पर म्लानि एवं पौधे के मुरझाने की समस्या देखने को मिल रही है।

  • इसके कारण पौधा तनाव में आ जाता है और पौधे की वृद्धि भी बहुत कम होती है।

  • इसके प्रबंधन के लिए नोवामैक्स (जिब्रेलिक एसिड 0.001%)@ 180-200 मिली/एकड़ या मैक्सरूट (ह्यूमिक एसिड + पोटैशियम + फुलविक एसिड@ 100 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।

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