सोयाबीन की फसल में सरकोस्पोरा लीफ स्पॉट की समस्या एवं रोकथाम

क्षति के लक्षण 

इस रोग का संक्रमण सबसे पहले पुरानी पत्तियों पर दिखाई देता है | सर्वप्रथम पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटे भूरे, एवं हल्के बैंगनी रंग के अनियमित, कोणीय धब्बे के रूप में प्रकट होता है और धीरे-धीरे गोलाकार धब्बों में विकसित होता है, बाद में ये धब्बे आपस में मिलकर, बड़े धब्बों में बदल जाते हैं। इससे अधिक प्रभावित पत्ते गहरे बैंगनी रंग की हो जाती हैं। अंत में सनबर्न (जली हुई) की तरह दिखाई देती है।

रोकथाम के उपाय 

जैविक नियंत्रण – मोनास-कर्ब (स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 1% डब्ल्यूपी) @ 500 ग्राम/एकड़ के हिसाब से 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

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सोयाबीन में 15 से 20 दिनों की अवस्था पर रोग एवं कीट नियंत्रण के उपाय

सोयाबीन की फसल  में 15 से 20 दिन की अवधि में सामान्यतः रस चूसक कीट – सफ़ेद मक्खी , जैसिड, एवं लीफ ईटिंग कैटरपिलर, गर्डल  बीटल एवं कवक जनित रोग जैसे आद्र गलन, जड़ गलन, रस्ट आदि की समस्या दिखाई देती है।

नियंत्रण –

  • पत्ता खाने वाली इल्ली एवं  फफूंद जनित रोग की समस्या के लिए –  इमानोवा (इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस जी ) @ 100 ग्राम  + सिलिको मैक्स @ 50 मिली,+ रोको (थायोफिनेट मिथाइल 70 % W/W) @ 300 ग्राम, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से  छिड़काव करें | 

  • रस चूसक कीट, सफ़ेद मक्खी, माहू एवं हरा तेला के नियंत्रण के लिए, थियानोवा-25 (थियामेंथोक्साम 25% WG)@100 ग्राम + विगरमैक्स जेल गोल्ड (वानस्पतिक अर्क, समुद्री शैवाल के अर्क और ट्रेस तत्व) @ 400 ग्राम +  सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से  छिड़काव करें।

  • खड़ी फसल में सफेद ग्रब के नियंत्रण के लिए डेनिटोल (फेनप्रोपाथ्रिन 10% ईसी) @ 500 मिली ,या डेनटोटसु (क्लोथियानिडिन 50.00% डब्ल्यूजी) @ 100 ग्राम को,15 -20 किलो रेत में मिलाकर प्रति एकड़ भुरकाव या ड्रेन्च करें | 

  • गर्डल बीटल के नियंत्रण के लिए लैमनोवा (लैम्ब्डा-साइहलोथ्रिन 4.9% ईसी) @ 200 मिली या नोवालक्सम (थियामेथोक्सम 12.6% + लैम्ब्डा साइहलोथ्रिन 9.5% जेडसी) @ 80 मिली + सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से  छिड़काव करें।

  • रस्ट के नियंत्रण के लिए मिल्ड्यूविप (थियोफैनेट मिथाइल 70% डब्ल्यूपी) @ 300 ग्राम या नोवाकोन (हेक्साकोनाजोल 5% एससी) 400 मिली +  सिलिको मैक्स @ 50 मिली, प्रति एकड़ 150 से 200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। 

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सोयाबीन की बुवाई के बाद खरपतवार नियंत्रण के उपाय

यांत्रिक विधि:- सोयाबीन की बुवाई के 20-25 दिन बाद हाथों से पहली निराई-गुड़ाई करें एवं दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 40-45 दिनों की अवस्था पर करें।

चौड़ी और सकरी पत्ती के खरपतवार के लिए –

सोयाबीन उगने के 12 – 20 दिन बाद तथा 2 – 4 पत्ती वाली अवस्था में मिट्टी में पर्याप्त नमी के साथ शकेद (प्रोपाक्विजाफोप 2.5% + इमाज़ेथापायर 3.75% डब्ल्यूपी) @ 800 मिली या वीडब्लॉक, एस्पायर (इमाज़ेथापायर 10% एसएल) @ 400 मिली प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

सकरी पत्ती के खरपतवार के लिए

सोयाबीन के उगने के बाद 20-40 दिन की अवस्था में, टरगा सुपर (क्यूजालोफाप इथाइल 5% ईसी) @ 400 मिली या गैलेन्ट (हेलोक्सीफॉप आर मिथाइल 10.5% ईसी) @ 400 मिली प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। छिड़काव के समय खेत में नमी अवश्य रखे। एवं फ्लैट फेन नोजल का प्रयोग करें।

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सोयाबीन में गर्डल बीटल (रिंग कटर) की रोकथाम के उपाय

गर्डल बीटल क्या है:-

किसान भाइयों, गर्डल बीटल सोयाबीन के मुख्य कीटों में से एक है। मादा बीटल, मुलायम शरीर एवं गहरे रंग की होती है। वयस्क बीटल कठोर खोल जैसा होता है। सिर पर एक एंटीना होता है। इसका लार्वा सफेद रंग एवं नरम सर वाली कीट है,  फसल पर इसका आक्रमण जुलाई से अगस्त के बीच अधिक होता है।

क्षति के लक्षण:- 

यह कीट सोयाबीन की फसल में सर्वाधिक नुकसान पहुंचाता है। इस कीट की मादा तने पर दो रिंग बनती है और नीचे वाले रिंग में 3 छेद बनाती है और बीच वाले छेद में अंडा रखती है। जब अंडे से शिशु निकलते है तो वो वही तने के गूदे को खाकर कमजोर कर देते है l जिसके कारण तना बीच में से खोखला हो जाता है, खनिज तत्व पत्तियों तक नहीं पहुंच पाते एवं पत्तियाँ सूख जाती है, इसके कारण फसल के उत्पादन में काफी कमी आती है।

नियंत्रण के उपाय -: 

नोवालैक्सम (थायोमिथोक्साम 12.60% + लैम्ब्डा-साइहलोथ्रिन 09.50% जेडसी) @ 50 मिली या सोलोमोन (बीटा-साइफ्लुथ्रिन 08.49% + इमिडाक्लोप्रिड 19.81% ओडी) @ 140 मिली +  सिलिको मैक्स @ 50 मिली प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

जैविक नियंत्रण:- बवे कर्ब (बवेरिया बेसियाना 5% डब्ल्यू.पी) @ 250 -500 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें। 

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सोयाबीन की बुवाई के बाद खरपतवार नियंत्रण के उपाय

यांत्रिक विधि:- सोयाबीन की बुवाई के 20-25 दिन बाद हाथों से पहली निराई-गुड़ाई करें एवं दूसरी निराई-गुड़ाई बुवाई के 40-45 दिनों की अवस्था पर करें।

चौड़ी और सकरी पत्ती के खरपतवार के लिए:- सोयाबीन उगने के 12 – 20 दिन बाद तथा 2 – 4 पत्ती वाली अवस्था में मिट्टी में पर्याप्त नमी के साथ शकेद (प्रोपाक्विजाफोप 2.5% + इमाज़ेथापायर 3.75% डब्ल्यूपी) @ 800 मिली या वीडब्लॉक, एस्पायर (इमाज़ेथापायर 10% एसएल) @ 400 मिली प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

सकरी पत्ती के खरपतवार के लिए 

सोयाबीन के उगने के बाद 20-40 दिन की अवस्था में, टरगा सुपर (क्यूजालोफाप इथाइल 5% ईसी) @ 400 मिली या गैलेन्ट (हेलोक्सीफॉप आर मिथाइल 10.5% ईसी) @ 400 मिली प्रति एकड़ 150-200 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। छिड़काव के समय खेत में नमी अवश्य रखे एवं फ्लैट फेन नोजल का प्रयोग करें।

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सोयाबीन में सफेद ग्रब को नियंत्रित करने के उपाय

सफेद लट (गिडार) की पहचान:- सफेद लट सफेद रंग का कीट है जो सर्दियों में खेत में सुषुप्तावस्था में ग्रब के रूप में रहता है। यह मिट्टी में रहने वाला बहुभक्षी कीट है जो मिट्टी के कार्बनिक पदार्थों को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करता है। यह अलग अलग क्षेत्रों में अलग अलग नामों से जाना जाता है, जैसे सफ़ेद गिडार, गोबर का कीड़ा, गोबरिया कीड़ा आदि, हालांकि वैज्ञानिक रूप से इसे वाइट ग्रब या सफ़ेद लट कहते हैं। 

क्षति के लक्षण:– आमतौर पर प्रारंभिक रूप में ये सोयाबीन की जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। सफेद ग्रब के लक्षण पौधे पर देखे जा सकते हैं, जैसे कि पौधे का एक दम से मुरझा जाना, पौधे की बढ़वार रूक जाना और अंत में पौधों की मृत्यु हो जाना इसका मुख्य लक्षण है।

नियंत्रण :- 

  • फसल एवं खेत के आस पास की भूमि को साफ़ सुथरा रखें। 

  • मानसून की पहली बारिश के बाद शाम 7 बजे से रात 10 के बीच एक लाइट ट्रैप/एकड़ स्थापित करें। 

  • ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें। 

  • फसल बुवाई के पूर्व अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद का ही प्रयोग करें।

  • इस कीट के नियंत्रण के लिए जून और जुलाई माह के शुरुआती सप्ताह में कालीचक्र (मेटाराइजियम एनीसोप्ली) @ 2 किलो + 50-75 किलो अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से खाली खेत में भुरकाव करें।

  • सफेद ग्रब के नियंत्रण के लिए रासायनिक उपचार भी किया जा सकता है। इसके लिए डेनिटोल (फेनप्रोपाथ्रिन 10% ईसी) @ 500 मिली/एकड़, डेनटोटसु (क्लोथियानिडिन 50.00% डब्ल्यूजी) @ 100 ग्राम/एकड़ को मिट्टी में मिला कर उपयोग करें।

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ऐसे करें, सोयाबीन की फसल के लिए खेत की तैयारी

👉🏻प्रिय किसान, सोयाबीन की फसल के लिए 3 वर्ष में कम से कम एक बार ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई अवश्य करनी चाहिये। 

👉🏻वर्षा प्रारंभ होने पर 2 या 3 बार कल्टीवेटर तथा हैरो चलाकर खेत को तैयार कर लेना चाहिये। अंत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। इससे हानि पहुंचाने वाले कीटों की सभी अवस्थाएं नष्ट होगी। ढेला रहित और भुरभुरी मिट्टी वाले खेत सोयाबीन के लिये उत्तम होते हैं।

👉🏻खेत की तैयारी के समय गोबर की खाद @ 4-5 टन + सिंगल सुपर फॉस्फेट @ 50 किलो प्रति एकड़ की दर से बुवाई से पहले खेत में मिलाना चाहिए।  

👉🏻बुवाई के समय DAP @ 40 किलो + म्यूरेट ऑफ़ पोटाश @ 30 किलो + 2 किलो फॉस्फोरस (घुलनशील बैक्टीरिया) + पोटाश गतिशील बैक्टीरिया का कन्सोर्टिया + 1 किलो राइज़ोबियम कल्चर को प्रति एकड़ की दर से खेत में सामान रूप से मिला देना चाहिए। 

👉🏻खाद एवं उर्वरकों की मात्रा मृदा परीक्षण रिपोर्ट, स्थान एवं किस्मों के अनुसार भिन्न हो सकती है। 

👉🏻सफ़ेद ग्रब की समस्या से बचने के लिए उर्वरकों के पहले डोज़ के साथ कालीचक्र (मेटाराईजियम स्पीसीज) @ 2 किलो की मात्रा को 50 किलो गोबर की खाद/कम्पोस्ट के साथ मिलाकर प्रति एकड़ की दर से खेत में भुरकाव करें।

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जानिए, सोयाबीन की फसल में राइजोबियम कल्चर का महत्व

👉🏻किसान भाइयों, सोयाबीन एक दलहनी फसल है, जिसकी जडों की ग्रंथिकाओं में राइजोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है। राइजोबियम वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर फसल की पैदावार बढ़ाने में सहायक है। राइजोबियम दलहनी फसलों में प्रयोग होने वाला एक जैव उर्वरक है। 

सोयाबीन की फसल में राइज़ोबियम के प्रयोग से होने वाले लाभ:-

👉🏻राइजोबियम जीवाणु वातावरण मे व्याप्त नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधों की जड़ों तक पहुंचाते हैं। अतः दलहनी फसलों में रसायनिक खाद की आवश्यकता को कम करता है। 

👉🏻राइजोबियम के प्रयोग से सोयाबीन की उपज में कई प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है। 

👉🏻राइजोबियम के प्रयोग से भूमि में नाइट्रोज़न की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे उर्वरता बनी रहती है।

👉🏻सोयाबीन की जड़ों में विद्यमान जीवाणुओं द्वारा संचित नाइट्रोज़न अगली फसल द्वारा ग्रहण किया जाता है। 

👉🏻राइजोबियम द्वारा संचित नाइट्रोज़न कार्बनिक रूप में होने के कारण पूर्ण रूप से पौधों को प्राप्त  होता है।

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सोयाबीन की फसल में सल्फर की उपयोगिता

Sulfur utility in soybean crop
  • सोयाबीन उत्पादन के लिए सल्फर बहुत आवश्यक होता है। 
  • सल्फर सोयबीन की फसल में प्रोटीन एवं तेल के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है।
  • सल्फर पत्तियों में पर्णहरित के निर्माण में सहायक होता है।
  • सल्फर पौधों में एंजाइमों की क्रियाशीलता को बढ़ता है।
  • सल्फर की कमी के लक्षण सबसे पहले नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं जो की नाइट्रोजन देने के बाद भी बने रहते है।
  • नई पत्तियां इसकी कमी के कारण पीली पड़ जाती हैं।
  • फसलें अपेक्षाकृत देर से पकती हैं एवं बीज ढंग से परिपक्व नहीं हो पाते हैं।
  • सोयबीन के पौधों में स्थित गाठें ढंग से विकसित नहीं हो पाती हैं। इसके कारण प्राकृतिक नाइट्रोजन प्रक्रिया पर विपरीत असर पड़ता है।
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सोयाबीन की फसल में राइजोबियम कल्चर का महत्व

Importance of Rhizobium culture in soybean crop
  • सोयाबीन की जडों की ग्रंथिकाओं में राइज़ोबियम नामक जीवाणु पाया जाता है जो वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण कर फसल की उपज बढ़ाता है। परन्तु आज के दौर मिट्टी में अवांछनीय तत्वों की मात्रा इतनी बढ़ गयी है कि सोयाबीन की फसल में प्राकृतिक रूप से राइज़ोबियम का जीवाणु अपने क्षमता के अनुसार कार्य नही कर पाते है।  
  • इसलिए राइज़ोबियम कल्चर का उपयोग करने से सोयाबीन की पौधों की जड़ों में तेजी से गांठे बनती है तथा सोयाबीन की उपज में 50-60 फीसदी तक का इज़ाफा होता है।
  • राइजोबियम कल्चर के उपयोग से मिट्टी में लगभग 12-16 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ तक बढ़ जाती है। 
  • बीज उपचार के लिए राइजोबियम कल्चर 5 ग्राम प्रति किलो बीज तथा मिट्टी के उपचार के लिए बुआई से पहले 1 किलो कल्चर प्रति 50 किलो सड़ी हुई गोबर खाद में मिलाकर किया जाता है। 
  • दलहनी फ़सलों की जड़ों में मौजूद राइजोबियम जीवाणुओं द्वारा जमा की गई नाइट्रोजन अगली फसल में इस्तेमाल हो जाती है, जिससे अगली फसल में भी नत्रजन कम देने की आवश्यकता होती है।
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