आपकी मिर्च फसल के लिए अगली गतिविधि

रोपाई के 135-150 दिन बाद- इल्ली एवं रस चूसक कीट और कवक रोगों को नियंत्रित करने के लिए

इल्ली एवं रस चूसक कीट और कवक रोगों को नियंत्रित करने के लिए 00:00:50 1 किलो + पायरीप्रोक्सीफैन 10% + बॉयफैनथ्रिन 10% EC (प्रूडेंस) 250 मिली + मेटिराम 55% + पायराक्लोस्ट्रोबिन 5% WG (क्लच) 600 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करे |

Share

खेत में मिर्च की रोपाई विधि और रोपाई के समय उर्वरक प्रबंधन

Transplanting method and fertilizer management of Chilli
  • खेत में सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करनी चाहिये। ऐसा करने से मिट्टी में उपस्थित हानिकारक कीट, उनके अंडे, कीट की प्युपा अवस्था तथा कवकों के बीजाणु भी नष्ट हो जाते हैं। इसके बाद हैरों या देशी हल से 3-4 जुताई करके, पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिये।
  • अंतिम जुताई के बाद ग्रामोफ़ोन की पेशकश ‘मिर्च समृद्धि किट’ जिसकी मात्रा 6.3 किलो है, को 5 टन अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में प्रति एकड़ की दर से अच्छी तरह मिलाकर अंतिम जुताई या बुआई के समय साथ में मिला दे। इसके बाद हल्की सिंचाई कर दे।
  • बुआई के 30 से 40 दिनों बाद मिर्च की पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। वर्षाकालीन मिर्च के पौध की रोपाई का उपयुक्त समय मध्य जून से मध्य जुलाई तक होता है।
  • रोपाई के पूर्व नर्सरी में और खेत में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए, ऐसा करने से पौध की जड़ नहीं टूटती, वृद्धि अच्छी होती है और पौध आसानी से लग जाती है।
  • पौध को जमीन से निकालने के बाद सीधे धूप मे नहीं रखना चाहिये।
  • जड़ों के अच्छे विकास के लिए 5 ग्राम माइकोरायज़ा प्रति लीटर की दर से एक लीटर पानी में घोल बना लें। इसके बाद मिर्च के पौध की जड़ों को इस के घोल में 10 मिनट के लिए डूबा के रखना चाहिए। यह प्रक्रिया अपनाने के बाद ही खेत में पौध रोपण करें ताकि मिर्च की पौध खेत में भी स्वस्थ रहे।
  • मिर्च के पौध की रोपाई के लिए लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी० और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेमी० चाहिये। रोपाई के तुरन्त बाद खेत में हल्का पानी देना चाहिए।
  • मिर्च की पौध के रोपाई के समय 45 किलो यूरिया, 200 किलो एस.एस.पी और 50 किलो एम.ओ.पी. उर्वरक को बेसल डोज के रूप में प्रति एकड़ की दर से खेत में बिखेर देना चाहिए।
Share

मिर्च की फसल में जीवाणु पत्ती धब्बा रोग के लक्षण

Bacterial leaf spot disease in Chilli crop
  • पहले लक्षण नए पत्तों पर छोटे पीले- हरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते है तथा ये पत्तियां विकृत और मुड़ी हुई होती है।  
  • बाद में पत्तियों पर छोटे गोलाकार या अनियमित, गहरे भूरे या काले चिकने धब्बे दिखाती देते हैं। जैसे ही ये धब्बे आकार में बड़े होते है, इनमें बीच का भाग हल्का और बाहरी भाग गहरा हो जाता है। 
  • अंत में ये धब्बे छेदों में बदल जाते है क्योंकि पत्तों के बीच का हिस्सा सूख कर फट जाता है।  
  • गंभीर संक्रमण होने पर प्रभावित पत्तियां समय से पहले झड़ जाती हैं।
  • फलों पर गोल, उभरे हुए, पीले किनारों के साथ जलमग्न धब्बे बन जाते है। 
Share

नर्सरी में ऐसे करें मिर्च के बीजों की बुआई

नर्सरी में मिर्च के बीजों की बुआई के समय कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी होता है। इससे नर्सरी में अच्छी पौध तैयार होती है।

  • मिर्च की पौध तैयार करने के लिए सबसे पहले बीजों की बुआई 3 गुणा 1.25 मीटर आकार की क्यारियों में करनी चाहिए।
  • ये क्यारियां ज़मीन से 8-10 सेमी ऊँची उठी होनी चाहिए ताकि पानी इक्कठा होने से बीज व पौध न सड़ जाये।
  • 150 किलो सड़ी गोबर की खाद में 750 ग्राम डीएपी, 100 ग्राम इंक्रील (समुद्री शैवाल, एमिनो एसिड, ह्यूमिक एसिड और माइकोराइजा) और 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी प्रति वर्ग मीटर की दर से भूमि में मिलाएँ ताकि मिट्टी की संरचना के साथ पौधे का विकास अच्छा हो और हानिकारक मृदाजनित कवक रोगों से भी सुरक्षा हो जाए।
  • एक एकड़ के खेत के लिए 60-80 ग्राम मिर्च के बीजों की आवश्यकता नर्सरी में होती है।
  • क्यारियों में 5 सेमी की दूरी पर 0.5- 1 सेमी गहरी नालियां बनाकर बीजों की बुआई करें।
  • बुआई के बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहे।
Share

जानें मिर्च की नर्सरी में किये जाने वाले मिट्टी उपचार के फायदे

  • अनेक प्रमुख कीटों की प्रावस्थायें व मिट्टी जनित रोगों के कारक मिट्टी में पाये जाते हैं, जो फ़सलों को विभिन्न प्रकार से क्षति पहुंचाते हैं। प्रमुख रूप से दीमक, सफेद गिडार (व्हाइट ग्रब), कटवर्म, सूत्रकृमि, आदि को मिट्टी उपचार द्वारा नष्ट किया जा सकता है।
  • फफूंदी/जीवाणु रोगों के भी मिट्टी जनित कारक मिट्टी में पाये जाते हैं, जो अनुकूल परिस्थितियों में पौधे की विभिन्न प्रावस्थाओं को संक्रमित कर फसल उत्पादन में बाधक बन हानि पहुंचाते हैं।
  • मिट्टी उपचार करने से मिर्ची के पौधे का सम्पूर्ण विकास, सम्पूर्ण पोषण वृद्धि तथा भरपूर गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त होता है।
  • मिट्टी की संरचना सुधारने के साथ-साथ रसचूसक कीटों और रोगों का भी आक्रमण कम हो जाता है।
  • कीट व रोगों के आक्रमण करने के बाद उपचार करने से कृषि रक्षा रसायनों का अधिक उपयोग किया जाता है, फलस्वरूप अधिक व्यय हो जाने के कारण उत्पादन लागत में वृद्धि होती है।
Share

मिर्च की उन्नत किस्मों की जानकारी

हायवेग सानिया

  • मिर्च की यह किस्म जीवाणु उकठा एवं मोज़ेक वायरस के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है।
  • यह किस्म अधिक तीखा होने के साथ साथ चमकीला हरा तथा पीलापन लिए हुए होता है। इसके फल 13-15 सेमी लम्बाई, 1.7 सेमी मोटाई व लगभग 14 ग्राम वजन के होते हैं।
  • इस किस्म की प्रथम तुड़ाई 50- 55 दिनों में होती है।

मायको नवतेज (एम एच सी पी-319)

  • यह पाउडरी मिल्डू/भभूतिया और सूखे के प्रति सहनशील किस्म है।
  • यह  हाइब्रिड किस्म मध्यम से उच्च तीखापन लिए होती है जो लंबी संग्रहण क्षमता रखती है।

मिर्च की अन्य उच्च उपज वाली किस्मों के बारे में अधिक जानकारी के लिए यह वीडियो देखें-

Share

मिर्च में मोजेक वायरस का प्रबंधन

  • मोजेक वायरस से ग्रसित पौधों को निकाल कर नष्ट कर दें। 
  • प्रतिरोधक किस्मों जैसे पूसा ज्वाला, पन्त सी-1, पूसा सदाबहार, पंजाब लाल इत्यादि को लगाएँ। 
  • वैक्टर को कम करने के लिए एसिटामिप्रीड 20% एसपी @ 130 ग्राम/एकड़ का नियमित अंतराल पर छिड़काव करें या फिप्रोनिल 40% + इमिडाक्लोप्रिड 40% डब्ल्यूजी @ 40 ग्राम/एकड़ का छिड़काव करें।
Share

मिर्च में बैक्टीरियल लीफ स्पॉट का प्रबंधन

  • पुरानी फसल के अवशेष को खेत से समाप्त कर देना चाहिए। साथ ही रोग मुक्त पौधों से बीज प्राप्त करना चाहिए।
  • नर्सरी को उस में मिट्टी लगाना चाहिए जहां मिर्च कई वर्षों तक नहीं उगाया जाता है| 
  • स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट आईपी 90% डब्ल्यू/डब्ल्यू + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड आईपी 10% डब्ल्यू / डब्ल्यू @ 20 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करे| या 
  • कसुगामाइसिन 3% SL @ 30 मिली प्रति एकड़ |  या
  • कसुगामाइसिन 5% + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 45% WP @ 250 ग्राम प्रति एकड़।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

मिर्च में बैक्टीरियल लीफ स्पॉट के लक्षण

  • पत्तियो के ऊपर छोटे, वृत्ताकार या अनियमित, गहरे भूरे या काले रंग के धब्बे होते हैं। जैसे-जैसे धब्बे आकार में बढ़ते हैं, केंद्र ऊतक के एक अंधेरे बैंड से घिरा हुआ हल्का हो जाता है।
  • धब्बे अनियमित घावों का निर्माण करते हैं। गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियां क्लोरोटिक हो जाती हैं और गिर जाती हैं। पेटीओल और तने भी प्रभावित होते हैं।
  • स्टेम संक्रमण से कैंसर की वृद्धि और शाखाओं के विघटन का कारण बनता है। फलों पर, हल्के पीले रंग की सीमा के साथ गोल, उठे हुए पानी के धब्बे पैदा होते हैं।
  • धब्बे भूरे रंग में बदल जाते हैं जिससे केंद्र में एक अवसाद पैदा हो जाता है जिसमें बैक्टीरियल ऊज की चमकदार बूंदें देखी जा सकती हैं।

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें।

Share

मिर्च में रस चूसने वाले कीटों की समस्या और समाधान

मिर्ची की फसल में रस चूसने वाले कीटों जैसे एफिड,जैसिड और थ्रिप्स की मुख्य समस्या रहती हैं | यह कीट मिर्ची की फसल में पोधो के हरे भागो से रस चूस कर नुकसान पहुँचाते हैं, जिससे पत्तिया मुड़ जाती हैं और जल्दी गिर जाती हैं | रस चूसक कीटों के संक्रमण से फंगस और वायरस द्वारा फैलने वाली बीमारियों की संभावना बढ़ सकती हैं | अतः इन कीटों  का समय पर नियंत्रण करना आवश्यक हैं:-

नियंत्रण:- 

  • प्रोफेनोफोस 50% EC @ 400 मिली/एकड़ या 
  • एसीफेट 75% SP @ 250 ग्राम/एकड़ या 
  • लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन 4.9% CS @ 200-250 मिली/एकड़ या
  • फिप्रोनिल 5% SC @ 300-350 मिली/एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए | 
  • अधिक जानकारी के लिए आप हमारे टोल फ्री न. 1800-315-7566 पर कॉल करे |

नीचे दिए गए बटन पर क्लिक करके अन्य किसानों के साथ साझा करें

Share